जैसलमेर रियासत का दीवान सालम सिंह अपने नए बने मोतीमहल में लेटा हुआ था. दोपहर का समय था. भोजन करने के बाद वह आराम कर रहा था. कमरा हलकी खुशबू से महक रहा था. उस के मन में अजीब सी हुलस थी. झरने से टकरा कर आ रही ठंडीठंडी हवा उस के मन में ताजगी भर रही थी.
वैसे बाहर लू चल रही थी. मगर खिड़की की जगह बने कृत्रिम झरने से पूरा कमरा ठंडा हो रहा था. तभी दरवाजा खुला. उस ने देखा झरने के पास बने दरवाजे से चांदी की सुराही में जल ले कर गुलाबी ऊपर आई. झरने के पास से आती हुई गुलाबी उसे अचानक प्रकट हुई हूर सी लगी. जैसे अभी कहेगी, ‘‘आप ने याद फरमाया हुजूर! बांदी आप की खिदमत के लिए हाजिर है.’’
वह मुसकराया. गुलाबी अपना आंचल संभालती धीरे से पास आई. सुराही आले में रख कर वह उस की तरफ भरपूर नजर से देखती हुई मुड़ी.
सालम ने उस का हाथ पकड़ लिया. गुलाबी को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ. आज यह दीवान साहब को क्या हो गया. वह तो सालों से हवेली में काम कर रही है. आज अचानक बरसों बाद फिर इस नाचीज पर मन कैसे आ गया. हवेली में एक से बढ़ कर एक 3-3 स्त्रियां जिन के इशारे का इंतजार कर रही हैं. सुंदर, कोमलांगी, गोरी, गुदगुदी. उन के आगे वह कहां ठहरती है.
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‘‘आजकल तुम्हें मेरा खयाल ही नहीं रहा गुलाबी.’’ सालम ने उसे अपनी तरफ खींचते हुए कहा.
वह संकोच में खड़ी रही.
‘‘अब आप को गुलाबी की क्या जरूरत. आप ठहरे राज्य के दीवान. 3-3 लुगाइयों के धणी. अब आप वही मौसर फूटते छोरे नहीं रहे. आप राज के मालिक हैं.’’
गुलाबी का एक हाथ सालम की गिरफ्त में था. वह दूसरे हाथ से आंचल ठीक करने लगी.
‘‘मुझे पहला पाठ तो तूने ही पढ़ाया था. मेरी गुरु तो तू ही है.’’ सालम हंसा.
‘‘गुरु तो आप हैं, मैं तो आप की चेली हूं. एक दरोगन. बस, आप के पैरों की धूल.’’
‘‘तो आ न, खड़ी क्यों है?’’
‘‘नहींनहीं, अब आप को मुझ दासी के मुंह नहीं लगना चाहिए. आप रियासत के दीवान हैं.’’ गुलाबी हाथ खींचने का नाटक करने लगी.
सालम ने झटका दिया. वह वहीं ढेर हो गई.
‘‘गुलाबी, मैं रोज दाल खाखा कर उकता गया हूं.’’ सालम ने गुलाबी के चेहरे को हाथों में लेते हुए कहा.
‘‘तो आप कहो सो खिलाऊं.’’ गुलाबी ढुल गई.
तभी दरवाजे पर खटका हुआ. गुलाबी हड़बड़ा कर खड़ी हो गई. सालम ने देखा दरवाजे पर झरने के पास 15-16 साल की अनिंद्य सुंदरी खड़ी थी. अति साधारण कपड़ों में उस का गोरा रंग और दिव्य रूप छलक रहा था. जैसे भटकती हुई साक्षात अप्सरा आ गई हो. दीवान सालम ने ऐसा सौंदर्य पहली बार देखा था. युवती ठिठकी सी हिरनी की तरह हैरत से उसे देख रही थी.
‘‘कस्तूरी, क्या बात है? यहां कैसे आई?’’ गुलाबी ने उस लड़की से पूछा.
मगर सालम की नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थीं. कस्तूरी के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. वह जैसे पत्थर हो गई थी. गुलाबी उस के पास गई, ‘‘यहां क्यों आई है. जा, मैं आ रही हूं.’’
कस्तूरी की मूर्ति जैसे सजीव हो गई. उस में हरकत हुई तो सालम जागा, ‘‘इसे अंदर ले आओ. कौन है यह?’’
‘‘यह कस्तूरी है. मेरी बहन की बेटी. आजकल यहां आई हुई है.’’ गुलाबी उसे अंदर ले आई.
सालम उसे देखता रह गया. गजब की सुंदरता, चेहरे पर मासूमियत. शर्मसार आंखें. लज्जा के गहनों को पलकों के कपाट से ढांके. अपने आप में सिकुड़ती. गुलाबी में खुद को छिपाने की कोशिश करती हुई.
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‘‘सुंदर…यह तो कोई हूर है.’’ सालम चकित होते हुए बोला.
‘‘आप की रैयत है. कस्तूरी चल जा, मैं आ रही हूं.’’ गुलाबी ने धीरे से कहा.
कस्तूरी तुरंत भाग गई. सालम उसे जाते देखता रहा. एक हीरे की अंगूठी उतारी. गुलाबी को देते हुए बोला, ‘‘आज से यह मेरी हुई.’’
‘‘हुकम, माफ करें, यह शादीशुदा है. बचपन में ही इस का विवाह हो गया था. मुकलावा होने वाला है.’’ अंगूठी हाथ में ही रही.
‘‘मुकलावा होता रहेगा. आज की रात तू इसे यहीं लाएगी.’’ सालम ने जोर दे कर कहा.
‘‘हुकम, मेरी बहन…’’
‘‘वह तू जाने, मुझे नहीं मालूम. यह काम तुझे करना है, बस.’’ सालम की आवाज थोड़ी कड़क हो गई.
‘‘जड़ा सोरा को जोतीजेनी. बाई काढणी पड़ै.’’ (अप्रशिक्षित को जोतना सरल नहीं है. पहले उसे प्रशिक्षित करना पड़ता है)
‘‘तो तू किसलिए है. तू तो पुरानी गुरु है.’’ सालम ने हंस कर कहा. उस ने एक और अंगूठी उतार कर गुलाबी को दिखाई.
‘‘आप इतना कह रहे हैं तो…बाकी मैं संभाल लूंगी. पर आप को रात में मेरे गरीबखाने पर पधारना होगा. उसे यहां लाना मुश्किल होगा. वहां सारे इंतजाम हो जाएंगे. एक बार नथ उतरने के बाद आप चाहेंगे तो वह यहां आती रहेगी. पर पहली बार तो…’’ गुलाबी के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. इस मुसकराहट में डर, आशंकाएं, मजबूरियां, भोग और चापलूसी के भाव थे. ये सारे भाव एक साथ एक मुसकराहट में भर देना गुलाबी जैसी औरत के ही वश में था.
सालम ने दूसरी अंगूठी भी गुलाबी को दे दी.
‘‘जा, सारे इंतजाम कर के रखना. मैं रात के दूसरे पहर में कभी भी आ जाऊंगा.’’
गुलाबी ने दोनों अंगूठियों को बेशरमी से कांचली (चोली) में रखा. आंचल को पहले हटाया फिर ढंका. मगर सालम ने ध्यान ही नहीं दिया. वह मुजरा करती हुई वहां से चली गई.
घर आ कर गुलाबी ने कस्तूरी को देखा तो सोचने लगी, ‘दीवान सा गलत नहीं हैं. इस रूप के आगे दूसरी कोई भी सुंदरी कैसे ठहर सकती है. वह रोज उसे देखती थी, पर कभी गौर ही नहीं किया. वाकई वह अब बच्ची नहीं रही. वह तो रूपलावण्य की देवी बन चुकी थी. उस के रूपरंग पर तो वह खुद भी सब कुछ हार जाने को तैयार हो सकती है, फिर दीवान सा तो असली पारखी हैं.’
उस ने कस्तूरी से कहा, ‘‘तू बहुत भाग्यशाली है छोरी. तेरे रूप पर दीवान सा मर मिटे.’’
कस्तूरी लजा गई.
‘‘तेरा मुकलावा तो अब तक हो जाना था. बहन ने देखा ही नहीं. तू जवान हो गई है.’’
कस्तूरी की आंखें चंचल और होंठ थिरकने लगे. उस के गाल गुलाबी हो गए.
‘‘अब तुझे बचपन की बातें छोड़ कर जवानी की लहरों पर उतर जाना चाहिए.’’ गुलाबी शातिर आंखों से उसे देखने लगी.
कस्तूरी शर्मसार हो गई. अगर उस के शरीर में खुद में ही सिकुड़ जाने की कला होती तो वह अपने आप को खुद में छिपा लेती.
दिन में बात यहीं तक हुई. कस्तूरी सोचती रही. उसे अपना शरीर बड़ा लगने लगा. हथेलियां, कलाई, बांह, कंधे, चेहरा, आंखें सभी कुछ. उसे लोगों की घूरती आंखें दिखाई देने लगीं. दीवान सा की कामुक आंखें बारबार उस के आगे आ खड़ी होतीं. उस ने लाख हटाने की कोशिश की, आंखें बंद कर देखना बंद कर दिया. उन पर से ध्यान हटाने के लिए कुछ और सोचने लगती. मगर वे ढीठ आंखें सामने से हट ही नहीं रही थीं.
वह अपने पड़ोस के लड़के किशन को देखा करती. वह भी उसे देखता था. उस का देखना भी उसे अच्छा लगता था. मगर उस की आंखें दहशत को पैदा करने की हद तक पीछा नहीं करती थीं. अब तो उसे घेरते शिकारियों के बीच डरी हिरणी की तरह कंपकंपी हो रही थी.
उस ने हमेशा सपना देखा. वह, उस का पति और उस का परिवार. एक सुखी और सुरक्षित जीवन. मगर दीवान सा की आंखों से तो उस में डर बैठ गया था. शाम ढलते ही गुलाबी विशेष तैयारियों में जुट गई. उस ने सारे घर में साफसफाई सजावट की. जगहजगह दीपक जलाए. सारा घर जगमगा उठा. खुद भी नहाधो कर नएकपड़े पहन कर इत्र की खुशबू से महकतीचहकती भाग रही थी. लगता था जैसे आज कोई उत्सव हो.
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कस्तूरी को सुगंधित साबुन से नहलाया, सिर धो कर चमेली का तेल लगा चोटी गूंथी. नए कपड़े पहनाए. कस्तूरी की समझ में नहीं आ रहा था. वह बारबार पूछ रही थी मगर गुलाबी टालती जा रही थी.
जब उसे गहने पहना कर दुलहन की तरह सजाया जाने लगा तो उस के सब्र का बांध टूट गया. वह चिल्ला पड़ी, ‘‘क्या है? क्यों मुझे इस तरह तैयार कर रही हो?’’
‘‘तू तो भाग्यशाली है. तुझ पर दीवान सा की मेहर हो गई है.’’ गुलाबी ने समझाया.
‘‘तो?’’
‘‘और सुन, आज रात दीवान सा हमारे घर आएंगे. वह भी तेरे लिए.’’
‘‘मेरे लिए?’’ कस्तूरी चौंकी.
‘‘तू आज की रात दीवान सा की रानी बनेगी.’’
‘‘मौसी, तुझे नहीं पता मैं ब्याहता हूं. मेरा मुकलावा होने वाला है.’’ कस्तूरी बेचैन हो गई. तन के कपड़े, गहने सभी उसे चुभने लगे. उस का मन किया कि अभी भाग जाए यहां से.
‘‘मैं जानती हूं. क्या बिगड़ जाएगा जो तू एक रात दीवान सा के साथ बिता देगी. शादी टूट नहीं जाएगी.’’ गुलाबी की आवाज कठोर होने लगी.
‘‘यह क्या कह रही है तू. मेरी इज्जतआबरू का भी खयाल नहीं है तुझे?’’
‘‘इज्जत आबरू?’’ गुलाबी हंसी, ‘‘गोलों की इज्जत इसी तरह ऊंचाइयां चढ़ती, उतरती रही है. हम लोग गुलाम हैं और गुलाम का काम मालिक का हुकम बजाना होता है, समझी?’’
‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती. अपने पति, सासससुर, मांबाप सब से कैसे नजरें मिला पाऊंगी.’’