लेखक- मनमोहन भाटिया
सुभाष व सारिका को घबराया देख कर डौली बोली, ‘‘सारिका, इतनी दूर क्यों खड़ी हो, मेरे नजदीक आओ.’’
‘‘इन कुत्तों की वजह से थोड़ा डर…’’
डौली कुछ सकुचा कर बोली, ‘‘डरो मत, कुछ नहीं कहेंगे.’’
सारिका नजदीक गई और दोनों देवरानीजेठानी गले मिल कर रो पड़ीं.
सुभाष ने डौली के भाइयों से पूछा, ‘‘अचानक क्या हो गया, कोई खबर ही नहीं मिली. सब कैसे हुआ?’’
‘‘बस, क्या बताएं, समझ लीजिए कि समय आ गया था, हम से रुखसत लेने का. हम लोग भी कोई कारण नहीं जान पाए. जब समय आता है तो जाना ही पड़ता है.’’
यह उत्तर सुन कर सुभाष ने कुछ नहीं पूछा, लेकिन देवरानीजेठानी आपस में कुछ फुसफुसा रही थीं. तभी डौली के छोटे भाई का मोबाइल फोन बजा. वह किसी को कह रहा था, ‘‘देख, यह हमारी इज्जत का सवाल है. हर कीमत पर वह प्रौपर्टी चाहिए. जीजा मर गया उस के पीछे, मालूम है न तुझे या समझाना पड़ेगा. देख टिंडे, खोपड़ी में 6 के 6 उतार दूंगा.’’
फोन पर भाई की बातचीत सुनते ही डौली बाथरूम का बहाना बना कर दूसरे कमरे में चली गई और सुभाष, सारिका ने मौके की नजाकत समझ कर विदा ली. चुपचाप दोनों घर वापस आ गए. सुभाष ने टीवी चलाया, लेकिन मन कहीं और विचरण कर रहा था.
सुभाष ने सारिका से पूछा, ‘‘क्या बातें कर रही थीं देवरानीजेठानी?’’
‘‘बात क्या करनी थी, बस इतना ही पूछा था कि क्या हुआ था?’’
‘‘तू ने तो पूछ भी लिया, मेरी तो हिम्मत ही नहीं हुई,’’ सुभाष ने पानी का गिलास हाथ में पकड़ते हुए कहा, ‘‘सारिका, मुझे तो लगता है कि बिहारी किसी गैरकानूनी धंधे में लिप्त था तभी तो उस ने कुछ ही सालों में इतना कुछ कर लिया…और जिस तरह से फोन पर किसी को धमकाया जा रहा था उस से मेरे विश्वास को और बल मिला है…’’
पति की बात को काटते हुए सारिका ने कहा, ‘‘छोड़ो इन बातों को, पहले आप पानी पी लो. हाथोें में अभी भी गिलास थामा हुआ है.’’
पानी पी कर सुभाष ने बात आगे जारी रखते हुए कहा, ‘‘आखिर भाई था, जानने की उत्सुकता तो होती है कि आखिर उस के साथ हुआ क्या था.’’
‘‘जिस गली जाना नहीं वहां के बारे में क्या सोचना. भाई था, लेकिन 10 साल में उन्होंने एक भी दिन आप को याद किया क्या?’’ सारिका ने कुछ व्यंग्यात्मक मुद्रा में कहा, ‘‘छोड़ो इन बातों को, थोड़ा आराम कर लें. फिर दोपहर को उठावनी में भी जाना है.’’
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इतना कह कर सारिका किचन में चली गई और सुभाष का मन सोचने लगा कि क्या रिश्ते केवल रुपएपैसों तक ही सिमट कर रह गए हैं. बचपन का खेल क्या सिर्फ एक खेल ही था. शायद खेल ही था, जो अब समझ में आ रहा है. समझ में तो काफी साल पहले आ चुका था, लेकिन दिल मानता नहीं था.
‘‘खाना लग गया,’’ सारिका की आवाज सुन कर सुभाष हकीकत के धरातल पर आ गया. खाना खाते हुए उस ने कहा, ‘‘उठावनी में हमें बच्चों को भी ले चलना चाहिए.’’
‘‘क्यों?’’ सारिका ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘बच्चे अब बड़े हो गए हैं. शादियों मेें हमारे साथ जाते हैं, गमी में भी जाना उन्हें सीखना चाहिए. समाज के नियम हैं, आज नहीं तो कल कभी तो उन्हें भी गमी में शरीक होना पड़ेगा. जब परिवार में एक गमी का मौका है तो हमारे साथ चल कर कुछ नियम, कायदे सीख लेंगे.’’
‘‘हमारे जाने से पहले वे आ गए तो जरूर साथ चलेंगे.’’
दोनों बच्चे साक्षी और समीर कालेज से आ गए. सुभाष को देख कर बोले, ‘‘क्या पापा, आप घर में, तबीयत तो ठीक है न.’’
‘‘तबीयत ठीक है, तुम्हारे बिहारी ताऊ का देहांत हो गया है, आज दोपहर को उठावनी में जाना है, इसलिए आज आफिस नहीं जा सका. सुनो, खाना खा लो, फिर हम को उठावनी में जाना है.’’
‘‘क्या हमें भी?’’ दोनों बच्चे एक- साथ बोले.
‘‘हां, बेटे, आप दोनों भी चलो.’’
‘‘हम वहां क्या करेंगे?’’ साक्षी ने पूछा.
‘‘शादीविवाह में हमारे साथ चलते हो, अब बड़े हो गए हो, गमी में भी जाना सीखो.’’
सुभाष परिवार सहित समय से पहले ही शोकसभा स्थल पर पहुंच गए. सुबह की तरह सुरक्षा जांच के बाद हाल के अंदर गए, अंदर अभी कोई नहीं था, सुभाष का परिवार सब से पहले पहुंचा था. ‘कमाल है, घर वाले ही नदारद हैं, शोकसभा तो समय पर शुरू हो जाती है, कम से कम डौली और उस के भाइयों को तो यहां होना ही चाहिए था,’ सोचते हुए सुभाष अभी इधरउधर देख ही रहे थे कि तभी रमेश परिवारसहित पहुंचा. दोनों भाई गले मिले.
‘‘मेशी, तू तो बहुत मोटा हो गया है. लाला बन गया है. क्या तोंद बना रखी है,’’ सुभाष की बातें सुन कर समीर और साक्षी हैरान हो कर सारिका से पूछने लगे, ‘‘मां, ऐसे मौके पर भी मजाक चलता है क्या?’’
‘‘बस, तुम दोनों चुपचाप देखते रहो.’’
रमेश ने सुभाष को कोई उत्तर न दे कर, समीर, साक्षी को देख कर पूछा, ‘‘बच्चों से तो मिलवा यार, कितने सालों बाद मिल रहे हैं… बच्चे तो हमें पहचानते भी नहीं होंगे, बड़े स्वीट बच्चे हैं तेरे, भाषी, तू ने भी अपने को मेंटेन कर के रखा है, भाभीजी भी स्लिमट्रिम हैं, कुछ टिप्स बबीता को भी दो, इस की कमर तो नजर ही नहीं आती है,’’ पत्नी की तरफ इशारा कर के मेशी ने कहा. यह सुन कर सभी हंस पड़े तभी डौली, भाई और परिवार के दूसरे सदस्यों ने हाल में प्रवेश किया. हंसी रोक कर सभी ने हाथ जोड़ कर सांत्वना प्रकट की. डौली ने समीर व साक्षी को देख कर उन्हें गले लगा लिया.
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‘‘सारिका के बच्चे कितने स्वीट हैं. किसी की नजर न लगे मेरे इन क्यूट बच्चों को.’’
साक्षी परेशान हो कर सोचने लगी कि डौली आंटी कैसी औरत हैं, इन का पति मर गया और ये शोकसभा में क्यूटनेस देखने में लगी हैं.
तभी डौली के बड़े भाई ने कहा, ‘‘बहना, यह कुत्ते का बच्चा टिंडा कहां मर गया, गधे को पंडित लाने भेजा था, सूअर का फोन भी नहीं लग रहा है.’’