Writer- पूनम पाठक
सुबह उठ कर उस ने चाय पीते समय अपना मोबाइल स्विच औन किया, तो उस में नेहा के ढेरों मैसेज देख कर वह उन्हें पढ़ने लगा. नेहा ने उस पर केस करने के लिए उस से बारबार माफी मांगते हुए मिलने की इच्छा जाहिर की थी.
फिर अचानक नेहा का अंतिम मैसेज पढ़ते ही रंजन के चेहरे का रंग उड़ गया. वह हड़बड़ा कर उठा और बाहर की तरफ लपका.
रंजन ने देखा कि आसपड़ोस से
1-2 लोग नेहा के घर के समीप बड़ी हैरानी के भाव लिए खड़े हैं.
‘‘क्या हुआ...?’’ रंजन ने घबराते हुए पूछा.
‘‘हम भी अभीअभी आए हैं. काफी देर से बच्ची के रोने की आवाज आ रही है. वहां चल कर देखते हैं,’’ नेहा के एक पड़ोसी राजेश ने कहा.
रंजन ने परी को पुकारते हुए दरवाजा खटखटाया, लेकिन उस का हाथ लगते ही दरवाजा खुल गया. अंदर का दृश्य देखते ही सब के होश उड़ गए. सोफे पर अधलेटी नेहा की लाश पड़ी थी और उस का बायां हाथ खून से सना हो कर सोफे से लटका हुआ था.
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5 साल की मासूम परी इतना सारा खून देख कर बुरी तरह से रोते हुए अपनी मम्मी को जगाने की कोशिश कर रही थी.
पुलिस को फोन कर दिया गया था. पुलिस ने वहां पहुंच कर तमाम छानबीन कर के नेहा के घर को सील कर उस की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.
पुलिस के हाथ नेहा के मोबाइल के अलावा और कुछ खास न लगा. सहमी परी रंजन की गोद से उतर कर कहीं और जाने को तैयार न थी. नेहा के मोबाइल में पुलिस को उस के द्वारा रंजन को किए गए कई मैसेज मिले, जिन में आखिरी था:
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