Writer- पूनम पाठक
‘‘इस परवर को यहीं खत्म कर दो रंजन, मैं तुम से प्यार करने लगी हूं. सच में तुम मेरा पहला प्यार हो. परी के पापा आशीष को मैं ने कभी इतना प्यार नहीं किया,’’ रंजन के गले में अपनी बांहें डालते हुए नेहा बोली, ‘‘तुम्हें जब पहली बार देखा तो बस देखती रह गई. तुम्हारे चौड़े सीने और मजबूत बांहों में खो जाने को जी चाहा और जानेअनजाने में तुम से प्यार करने लगी.’’
‘‘मम्मी, मुझे अब नहीं देखना टीवी,’’ हाथ में रिमोट लिए बैडरूम के दरवाजे पर परी खड़ी थी.
‘‘ओके, बस चल ही रहे हैं, बस
2 मिनट मेरी प्यारी परी.’’
‘‘ओके,’’ परी के जाते ही नेहा फिर से रंजन के गले लग गई और बोली, ‘‘रंजन, मैं जानती हूं कि तुम भी मुझे प्यार करते हो और अगर यह सच है, तो तुम्हें आज रात फिर मेरे घर आना होगा. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’
इस के बाद परी को ले कर नेहा तेज कदमों से बाहर निकल गई.
रात को नेहा की कशिश में बंधे रंजन के बहकते कदम एक बार फिर उस
की चौखट पर जा पहुंचे. पर कहते हैं न कि काठ की हांड़ी बारबार नहीं चढ़ती. यही हाल उन के इस जिस्मानी प्यार का भी हुआ.
जब रंजन कई दिनों तक घर नहीं आया, तो आरती अपने एक रिश्तेदार के संग रंजन के पास फैक्टरी में जा पहुंची. आरती के आ जाने से रंजन की जिंदगी बदल गई. अब वह काम से सीधे घर आता और ज्यादातर समय अपनी पत्नी के संग ही गुजारता.
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