Writer- परवीन कुमार
‘‘इस बार दिल्ली में बारिश के दर्शन कुछ ज्यादा ही हो गए. जहां देखो पानी ही पानी. लगता नहीं कि यह वही दिल्ली है, जहां लोगों की आपसी दुश्मनी की वजह पानी बन जाता है.
‘‘सुबह से ही महल्ले की गलियों में बारिश और नाले का पानी जमा हो रखा है. बारिश जैसे ही कम हुई, काम पर जाने के लिए निकला ही था कि रास्ते में पूरे कपड़े भीग गए.
यह बात सोनू अपने दोस्त बिरजू को बता रहा था, जो उस का दिल्ली शहर में एकलौता खास दोस्त था और जिस से वह अपनी जिंदगी की सभी बातें किया करता था.
सोनू उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का रहने वाला था. उस की पत्नी और
2 बच्चे गांव में उस के मातापिता के साथ रहते थे. उस की शादी के 4 साल हो चुके थे. जमीनजायदाद इतनी नहीं थी कि आराम से जिंदगी बिता सके. कहने को जमीन थी, जिस पर इतना भी नहीं उगता था कि परिवार का पेट भर सके. इस वजह से सोनू अपने गांव से दूर शहर में कमाने आया था.
शहर में सोनू को आए हुए सालभर हो चुका था. उस के जानपहचान वाले किसी दूसरे इलाके में रहते थे. पहचान वालों के साथ कोई खास रिश्ता नहीं था. बिरजू उस का जिगरी यार था. वे दोनों एक ?ाग्गी में किराए पर रहते थे.
‘‘तो तू काम पर नहीं गया,’’ बिरजू ने कुछ सोचते हुए सोनू से पूछा.
‘‘गया था. मु?ो पता था कि रास्ते में भीग जाऊंगा, इसलिए एक जोड़ी कपड़ा भी साथ रख लिया था. बस मिलने में देरी हो गई तो फैक्टरी देर से पहुंचा. तू बता, तू ने सोने के अलावा कुछ किया या नहीं?’’
‘‘किया न… सोने के बाद मैं जागा और फिर सो गया. क्या करता, पूरे दिन बारिश जो होती रही. कल रात हलका बुखार था, इसलिए आज छुट्टी ले ली.’’
‘‘इतनी छुट्टी मत कर, वरना कमाएगा क्या और खाएगा क्या? बीमारी का क्या है, काम पर जाने से पहले ही रहती है, काम पर जाते ही सब ठीक हो जाता है.’’
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‘‘भैया, देखो मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है. तुम अपनी टैंशन मु?ा पर मत लादो,’’ बिरजू ने कहा.
‘‘लदे न इसलिए कह रहा हूं, बाकी तुम्हारी मरजी,’’ सोनू बोला.
‘‘आज क्या लाए हो? क्या बनाओगे?’’
‘‘दालचावल और आलू की तरकारी बना लेते हैं. जल्दी बन जाएंगे.’’
‘‘जैसा आप को ठीक लगे,’’ बिरजू ने हां में हां मिलाई.
खाना खा कर वे दोनों जल्दी ही सो गए. सुबह 6 बजे बिरजू पानी भरने के लिए उठा तो उस ने देखा कि सोनू को बहुत तेज बुखार है. उस ने सोनू को उठाया और बोला, ‘‘भैया, तुम्हें तो तेज बुखार है. आज आराम करो. मैं तुम्हारे मालिक को थोड़ी देर बाद फोन कर देता हूं.’’
सोनू उसे रोकते हुए बोला, ‘‘बुखार नहीं है, बस शरीर गरम हो गया है. सामान लेने बाहर जाओगे तो बुखार की गोली लेते आना. उस से सब ठीक हो जाएगा.’’
‘‘आज तो आराम कर लो. कल से काम पर चले जाना.’’
‘‘नहीं. ऐसे तो कोई न कोई दिक्कत होती ही रहती है.’’
बाद में सोनू बुखार की गोली खा कर अपना टिफिन ले कर काम पर निकल गया. बिरजू ने उसे आराम करने को कहा, लेकिन वह उसे टाल गया.
शाम को सोनू वापस आया, तो उस का शरीर ठंडा तो था, लेकिन वह कुछ ज्यादा ही थकाथका सा लग रहा था.
‘‘क्या सोनू भैया, आज कुछ ज्यादा ही थकेथके से लग रहे हो? तबीयत तो ठीक है न?’’
‘‘ठीक ही है बस, जरा कमजोरी सी लग रही है.’’
‘‘दवा ले लो. सब ठीक हो जाएगा.’’
‘‘इतनी सी बात पर कौन दवा लेता है. गरम पानी में काली मिर्च डाल कर पी लूंगा, तो सब ठीक हो जाएगा.’’
अपना देशी काढ़ा पी कर सोनू जल्दी सो गया. देर रात बिरजू को सोनू का शरीर बहुत ज्यादा गरम लगा. उस ने उठ कर देखा कि सोनू को फिर बुखार चढ़ गया है.
जल्द ही उस ने सुबह लाई हुई बुखार की दवा सोनू को उठा कर खिला दी. बिरजू की आवाज में गुस्सा था. उस ने कहा, ‘‘भैया, कल सुबह होते ही पहले दवा लो. तुम्हारी तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. नहीं होता है तो कुछ दिनों के लिए अपने पहचान वाले के यहां चले जाओ. वे तुम्हें अस्पताल ले जाएंगे.’’
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‘‘नहीं बिरजू, पहचान वाले तो ठीक हालात में भी मुंह फेर लेते हैं, तो इन हालात में उन के लिए सिरदर्द बन जाऊंगा. रहने दो, मैं खुद ही सुबह बंगाली डाक्टर के पास जा कर दवा
ले लूंगा.’’
सोनू को ठंड लग रही थी और कमरे में मच्छर भी ज्यादा हो गए थे, इसलिए बिरजू ने उसे कंबल ओढ़ा दिया.
कुछ देर बाद सोनू को थोड़ा आराम आया तो उस ने देखा कि बिरजू बैठेबैठे ही सो गया है.
सुबह होते ही बिरजू रोजाना की तरह पानी भरने के बाद दूधब्रेड लेने चला गया. सुबह के नाश्ते में वे दोनों वही खाया करते थे. उन्हें यह सस्ता भी पड़ता था और स्वादिष्ठ भी लगता था.
सोनू आज देर तक सोया रहा और बिरजू ने भी उसे तकलीफ नहीं दी. बस, जातेजाते वह कह गया, ‘‘भैया, नाश्ता कर के दवा लेने चले जाना.’’
सोनू के जोड़ों में दर्द हो रहा था. हिम्मत नहीं हो रही थी फिर भी वह नहा कर एक ?ालाछाप बंगाली डाक्टर के पास चला गया.
दड़बेनुमा क्लिनिक पहुंच कर उस ने देखा कि आज तो वहां बहुत भीड़ थी. जैसे पूरा महल्ला बीमार पड़ गया हो. थोड़ी देर अपने आसपास देख कर वह भी उस लंबी कतार के आखिर में खड़ा हो गया.
नंबर नजदीक आने से पहले सोनू ने देखा कि वह बंगाली डाक्टर सभी को खून की जांच करवाने को कह रहा था, जिसे सुनते ही सब मना कर देते.
जब सोनू का नंबर आया, तो उस बंगाली डाक्टर ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मु?ो पिछले 2 दिन से बुखार आ रहा है और जोड़ों में कुछ ज्यादा ही दर्द रहने लगा है.’’
‘‘तुम अपनी एक जांच करा लो.’’
‘‘कितने रुपए में होगी यह जांच?’’
‘‘700 रुपए लग जाएंगे.’’
‘‘अभी तो तनख्वाह भी नहीं मिली है और इतने पैसे अभी मेरे पास हैं नहीं, जो टैस्ट करा लूं.’’
उस बंगाली डाक्टर ने भी ज्यादा जोर न डालते हुए उस से कहा, ‘‘कोई नहीं, कुछ दिन ये दवाएं खाओ, आराम न मिले तो टैस्ट करा लेना.’’
शोनू दवा ले कर ?ाग्गी में वापस आ गया. शाम को उस ने बिरजू के आने पर डाक्टर वाली बात बताई.
यह सुनने के बाद बिरजू ने कहा, ‘‘भैया, इतनी भी कंजूसी अच्छी नहीं. जांच कराने को कहा था तो करा लेते.’’
‘‘ऐसा नहीं है कि मैं जांच नहीं कराना चाहता था. अब वह दाम ही इतना ज्यादा कह रहा था कि मैं करता क्या.’’
‘‘सरकारी अस्पताल से करा लो.’’
‘‘करा तो लूं, लेकिन वहां की भीड़ देखी है तुम ने? पूरा दिन गुजर जाएगा, लेकिन जांच नहीं हो पाएगी. मेरी फैक्टरी में एक चाचा हैं, जो अपनी कोई जांच कराने गए तो उन से दिल्ली का पहचानपत्र मांग लिया. उन के पास पहचानपत्र नहीं था, इसलिए उन का टैस्ट नहीं हो पाया. मेरे पास भी पहचानपत्र नहीं है. वैसे भी अब पहले से तबीयत ठीक है.’’
कुछ दिनों तक वे दोनों काम पर जाते रहे और रात को वापस आ कर खाना खाने के साथ दिनभर की बात करते रहे. एक रात सोनू दर्द से
कहराने लगा और ठंड लगने के चलते कांपने लगा.
बिरजू आवाज सुनते ही उठा और पड़ोस के एक लड़के की मदद से उसे अस्पताल ले गया.
पास के सरकारी अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में कुछ देर लाइन में लगने के बाद उसे डाक्टर ने देखा. उस की हालत को देखते हुए डाक्टर ने अस्पताल में भरती कर लिया और कुछ टैस्ट भी लिख दिए.
सुबह रिपोर्ट में कुछ नहीं निकला. डाक्टर ने उसे कुछ दवाएं दे कर छुट्टी दे दी. ?ाग्गी में वापस आ कर बिरजू ने सोनू को बिस्तर पर लिटा कर पूछा, ‘‘भैया, आप को हो क्या गया है… एक काम करो कि आप ?ाड़ा लगवा लो, नहीं तो फिर बीमार पड़ जाओगे.’’
‘‘बिरजू, यह एकदम से नहीं हुआ है. कुछ दिनों से मेरे जोड़ों में दर्द रहता है और रात को दर्द बढ़ने के साथ ठंड भी लगने लग जाती है.’’
‘‘इतने दिनों से कह तो रहा हूं, अच्छे डाक्टर को दिखाओ, लेकिन आप हो कि सुनते ही नहीं.’’
‘‘क्या करूं, साथ में कोई चलने वाला ही नहीं है.’’
‘‘मैं चलता हूं.’’
‘‘अरे, तुम कहां कामधंधा छोड़ कर भागदौड़ करोगे. मैं देखता हूं किसी और को.’’
‘‘क्या भैया, अब मेरे होते हुए आप को दूसरों से क्यों मदद लेनी है.’’
वे दोनों अगली सुबह दिल्ली के एक बड़े सरकारी अस्पताल में गए, जहां जातेजाते सोनू की तबीयत और ज्यादा बिगड़ने लगी. वहां जांच में मलेरिया निकला.
सोनू कभी इतना बीमार नहीं हुआ था. जब कभी मामूली बुखार होता तो मां की देखरेख में सब ठीक हो जाता. आज वह परिवार से दूर एक अनजान शहर के खस्ताहाल अस्पताल के बिस्तर पर अकेला पड़ा था.
बिरजू ने सोनू के पास आ कर कहा, ‘‘भैया, आप के घर वालों को यह बात बता देते हैं. डाक्टर भी दस्तखत के लिए परिवार वालों को ढूंढ़ रहा है.’’
सोनू ने कुछ नहीं कहा, लेकिन बिरजू ने सोनू के गांव में खबर पहुंचा दी. यह सुनते ही उस की पत्नी जोरजोर से रोने लगी. इतने में फोन पर सोनू के पिता बोले, ‘हैलो, क्या हुआ मेरे बेटे को?’
‘‘अंकलजी, मैं बिरजू बोल रहा हूं. दिल्ली से सोनू का दोस्त. उस की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. डाक्टर आप लोगों को बुला रहे हैं,’’ और बिरजू भी फोन पर ही रो दिया.
वार्ड के अंदर से आवाज आई, ‘‘अरे, सोनू के साथ कौन है?’’
बिरजू ने सुनते ही कहा, ‘‘मैं हूं.’’
‘‘सुनाई नहीं दे रहा, डाक्टर कब से बुला रहे हैं.’’
बिरजू ने सोनू के पिता को जल्दी आने की कहने के बाद फोन काट दिया और डाक्टर के पास चला गया.
डाक्टर ने कहा, ‘‘जल्दी बताओ, कोई दस्तखत करने आ रहा है या नहीं? देखो, इलाज के दौरान अगर मौत होती है, तो उस के जिम्मेदार हम नहीं होंगे… और बाकी मरीजों को भी देखना है. जल्दी बताओ?’’
‘‘मु?ो कुछ समय दीजिए. मैं
बताता हूं,’’
यह कह कर बिरजू सोनू के पास चला गया. उस ने सोनू से पूछा, ‘‘भैया, अपने दिल्ली वाले चाचा का नंबर दे दो. डाक्टर दस्तखत के लिए बुला रहे हैं.’’
सोनू से नंबर पूछ कर बिरजू ने फोन लगा दिया. बिरजू ने समय बरबाद न करते हुए सोनू के चाचा को बताया कि सोनू बीमार है और डाक्टर परिवार वालों को जल्दी बुला रहे हैं, आप जल्दी आ जाओ.
बिरजू सोनू के पास वापस गया, तो उस ने उसे बेसुध देखा. वह सोनू को पुकारने लगा. जब जवाब नहीं मिला तो वह चीखते हुए रोने लगा.
डाक्टर ने आ कर देखा, तो सोनू मर चुका था.