‘‘मैं क्या अंदर आ सकता हूं सर?’’
‘‘हांहां, क्या बात है भूपेंद्र?’’
‘‘यह छुट्टी की अर्जी है सर. मुझे 20 दिन की छुट्टी चाहिए.’’
‘‘20 दिन की छुट्टी क्यों चाहिए? अभी तो तुम ने नईनई नौकरी जौइन की है और अभी छुट्टी चाहिए.’’
‘‘हां सर, पता है. पर मुझे शादी में जाना है.’’
‘‘किस की शादी है?’’
‘‘मेरी शादी है, मतलब हमारी.’’
‘‘हमारी मतलब किसी और की भी शादी हो रही है क्या?’’
‘‘मेरे साथ मेरे भाई की भी शादी हो रही है.’’
‘‘अच्छा, साथ में ही होगी?’’
‘‘जी सर.’’
‘‘कब है शादी?’’
‘‘अगले महीने की 10 तारीख को.’’
‘‘ठीक है, देखते हैं.’’
अगले दिन सर ने भूपेंद्र को बुलाया और कहा, ‘‘भूपेंद्र, तुम्हारी छुट्टी मंजूर हो गई है.’’
‘‘शुक्रिया सर.’’
‘‘तुम्हारे पापा क्या करते हैं?’’
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‘‘बड़े पापा घर पर रह कर ही सब की देखभाल करते हैं. दूसरे पापा और तीसरे पापा शहर में रह कर नौकरी करते हैं.’’
‘‘तुम लोग चाचाताऊ को भी पापा ही बुलाते हो?’’
‘‘नहीं, सब मेरे पापा ही हैं.’’
‘‘कैसे?’’
‘‘मेरी मां की तीनों से शादी हुई है.’’
‘‘यह क्या बात हुई?’’
‘‘मेरे गांव में ऐसा ही होता है.’’
‘‘मतलब, तुम्हारी और तुम्हारे भाई की शादी एक ही लड़की से हो रही है क्या?’’
‘‘जी.’’
भूपेंद्र की यह बात सुन कर उस का मैनेजर प्रशांत हैरान रह गया. उस ने पूछा, ‘‘कहां है तुम्हारा गांव?’’
‘‘दिल्ली से 4 सौ किलोमीटर दूर देहरादून में पांच नाम का एक गांव है. वहीं मेरा घर है. जमीन भी है, जिसे मेरे बड़े पापा दिलीप संभालते हैं,’’ भूपेंद्र ने बताया.
प्रशांत ने ज्यादा पूछना ठीक नहीं समझा, पर उस की जानने की जिज्ञासा और बढ़ गई.
‘‘भूपेंद्र, क्या हम को अपनी शादी में नहीं बुलाओगे?’’
‘‘आप आएंगे?’’
‘‘हम जरूर आएंगे. तुम बुलाओगे, तो क्यों नहीं आएंगे.’’
फिर भूपेंद्र ने बड़े प्यार से प्रशांत को शादी का कार्ड दिया. प्रशांत को देशदुनिया घूमना, हर सभ्यता को जानना अच्छा लगता है. अगर वह नौकरी नहीं करता, तो जरूर रिपोर्टर बनता. प्रशांत और उस का स्टाफ जब भूपेंद्र के घर जाने लगा, तो बड़ी परेशानी हुई. रास्ता बड़ा ही ऊबड़खाबड़, मुश्किलों से भरा था, पर खूबसूरत और रोमांच से भरपूर था. आखिर क्या वजह है कि यह प्रथा आज भी चली आ रही है? क्या होता होगा? कैसे निभती होगी ऐसी शादी? यह सब जानने के लिए वे सब उतावले हुए जा रहे थे, पर उन्हें डर भी लग रहा था कि कहीं वे लोग बुरा न मान जाएं. गांव में बड़ी चहलपहल थी. एक प्यारी सी लड़की चायनाश्ता ले कर आई.
‘‘सर, यह मेरी बहन नंदिनी है.’’
‘‘जीती रहो,’’ प्रशांत ने नंदिनी से कहा.
बगल के ही गांव में शादी थी, इसीलिए सुबह 11 बजे बरात चल पड़ी. प्रशांत का मन रोमांचित हो रहा था. भूपेंद्र और उस का छोटा भाई बलबीर दोनों ही दूल्हे की पोशाक में जंच रहे थे. शादी के सब रीतिरिवाज, मंडप, उस की सजावट, गानाबजाना हमारे जैसा ही था.
शादी शुरू हो गई. पंडितजी मंत्र बोलने के साथ शादी कराने लगे. जब फेरों की बारी आई, तो एक ही दूल्हे के साथ फेरे पड़े. पूछने पर पंडितजी बोले कि फेरे तो किसी एक के साथ ही होंगे, शादी अपनेआप सब के साथ हो जाएगी. बहुत ही कम समय में शादी हो गई. भूपेंद्र हमें अपनी पत्नी से मिलवाने ले गया. प्रशांत जो उपहार लाया था, लड़की के हाथ में दिया. वह बड़ी खुश थी. उसे देख कर यह नहीं लग रहा था कि वह 2 भाइयों से शादी कर के दुखी है.
प्रशांत ने सोचा कि भूपेंद्र के बड़े पापा दिलीप से कुछ बात की जाए.
‘‘किसी बात की कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’’ भूपेंद्र के बड़े पापा ने पूछा.
‘‘नहींनहीं, आप सब से मिल कर बड़ा अच्छा लगा. क्या मैं इस शादी के बारे में आप से कुछ पूछ सकता हूं?’’ प्रशांत ने कहा.
‘‘जी जरूर.’’
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‘‘क्या वजह है कि एक ही लड़की से सब भाइयों की शादी हो जाती है?’’
‘‘ऐसा है सर कि हमें नहीं पता कि यह प्रथा क्यों और कब से चल रही है, पर मेरी दादी, मेरी मां सब की ऐसी ही शादी हुई हैं. हम 3 भाइयों की भी शादी एक ही लड़की से हुई है.’’
‘‘मान लीजिए कि छोटे भाई की उम्र लड़की से बहुत कम है, तो…?’’
‘‘तो वह अपनी पसंद की लड़की से शादी कर सकता है.’’
‘‘अच्छा. ऐसी शादी निभाने में आप सभी को मुश्किलें तो बहुत आती होंगी?’’
‘‘नहीं जी, कोई मुश्किल नहीं आती, बल्कि जिंदगी और अच्छी तरह से चलती है.’’
‘‘कैसे?’’
‘‘हमारे यहां जमीन बहुत कम होती है. अलगअलग लड़की से शादी होगी, तो जमीन, घर का बंटवारा हो जाएगा, बच्चे भी ज्यादा होंगे.
‘‘दूसरी बात यह कि बारिश के मौसम में यहां पहाड़ों पर कोई काम नहीं होता है, तो बाहर जा कर कमाना जरूरी हो जाता है, फिर घर में भी तो कोई चाहिए देखभाल करने के लिए. 4 भाई कमाएं और खर्च एक ही जगह हो, तो पैसे की भी बचत होती है.’’
‘‘दिलीपजी, एक पर्सनल बात पूछ सकता हूं?’’ प्रशांत बोला.
‘‘जी, जरूर.’’
‘‘सभी भाई पत्नी के साथ संबंध कैसे बनाते हैं?’’
‘‘जब जिस का मन होता है, कमरे में चला जाता है.’’
‘‘अगर कभी सब का एकसाथ मन हो गया तो…?’’
‘‘तो सभी साथ में चले जाते हैं, कमरे में, आखिर पत्नी तो हम सब की ही है.’’
प्रशांत यह सुन कर हैरान था. वह सोचने लगा कि पत्नी पर क्या गुजरती होगी?
‘‘आप कहें, तो क्या मैं आप की पत्नी से मिल सकता हूं?’’ प्रशांत ने पूछा.
‘‘जी जरूर. ये हैं हमारी पत्नी सुनंदा.’’
‘‘नमस्ते सुनंदाजी.’’
‘‘नमस्ते,’’ उन्होंने कहा. वे घूंघट में थीं, पर चेहरा दिख रहा था.
‘‘कैसी हैं आप?’’
‘‘अच्छी हूं,’’ वे हंसते हुए बोलीं.
‘‘अब बहू आ गई है, तो आप को आराम हो जाएगा.’’
‘‘जी सरजी,’’ वे बहुत ही कम शब्दों में जवाब दे रही थीं.
‘‘आप से कुछ पूछूं सुनंदाजी?’’
उन्होंने ‘हां’ में सिर हिला दिया.
‘‘जब आप की शादी हुई थी, तब आप की उम्र क्या थी?’’
‘‘17 साल.’’
‘‘मुश्किलें तो बहुत आई होंगी घर संभालने में?’’
‘‘बहुत आई थीं, पर अब तो सब ठीक है.’’
‘‘कभी आप को ऐसा नहीं लगता कि एक से ही शादी होती, तो अच्छा होता? कम से कम जिंदगी अच्छी तरह से गुजरती?’’
‘‘ऐसा कभी सोचा नहीं. यही सब देखती आई हूं और फिर यहां यही परंपरा है, तो सब ठीक है.’’
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‘‘तीनों पतियों को संभालना, उन की हर जरूरत को पूरा करना, थक नहीं जातीं आप?’’
‘‘मैं कभी नहीं थकती. द्रौपदी भी तो 5 पतियों की पत्नी थी.’’
‘‘पर, उन की मजबूरी थी. द्रौपदी तो अर्जुन को ही ज्यादा प्यार करती थी. क्या आप भी किसी एक को ज्यादा पसंद करती हैं?’’
‘‘मैं सब को बराबर पसंद करती हूं, सब का खयाल रखती हूं, नहीं तो पाप लगेगा.’’
प्रशांत ने कभी पढ़ा था कि यूरोप में कहींकहीं बहुपत्नी प्रथा का चलन है. तिब्बत में भी छोटेछोटे गांवों में ऐसा होता है, दक्षिण अमेरिका में भी, पर हिंदुस्तान में तो एक गांव ऐसा है, जहां आज भी हजारों द्रौपदी हैं. शास्त्रीजी, जो वहां के पुजारी थे, उन से भी जानकारी मिली. वे कहने लगे, ‘‘हम अपनी पुरानी परंपरा से खुश हैं. हम इसे बुरा नहीं मानते हैं.’’
प्रशांत को पता चला कि आज के पढ़ेलिखे लोग भी इस परंपरा को बुरा नहीं मानते हैं. आज की पीढ़ी इस मुद्दे पर बात करने से झिझक महसूस नहीं करती है. दुख हो या खुशियां आपस में बांट लेती हैं.
ऐसा नहीं है कि एक ही जाति है, जो इस परंपरा को मानती है. इस गांव में सभी जाति के लोग इस प्रथा को निभाते हैं. अगर कोई लड़का इस शादी में नहीं रहना चाहे, तो वह दूसरी लड़की से शादी कर सकता है.
प्रशांत ने दिलीपजी से पूछा, ‘‘आप भाइयों में कभी किसी बात को ले कर झगड़ा नहीं होता.’’
‘‘नहीं जी, ऐसा कभी नहीं होता.’’
सब से बड़ा सवाल अब भी जवाब के इंतजार में था. इस प्रथा का सब से बड़ा उदाहरण पांडवों और द्रौपदी से जुड़ा ही मिलता है. इतिहास या पुराणों में कहीं भी इस प्रथा का कोई उदाहरण नहीं मिलता है. तो सवाल यह उठता है कि दूर हिमालय में बसे लोग इस प्रथा को क्यों और कब से मान रहे हैं?
प्रशांत की सोच इस परंपरा को वहां तक ले जाती है कि जोड़ीदार से शादी होने का मतलब काम करने वाले ज्यादा और खाने वाले कम, ताकि परिवार न बढ़े और बंटवारा न हो. शायद यही बात इस परंपरा को जिंदा रखे हुए है. सवाल यह नहीं है कि यह प्रथा सही है या गलत, सवाल यह भी नहीं है कि यह प्रथा रहे या खत्म हो जाए, बल्कि इस प्रथा को मानने या रोकने का फैसला इन्हीं लोगों पर छोड़ देना चाहिए.
यहां आ कर इस तरह की शादी देखना प्रशांत की जिंदगी का सब से बड़ा तजरबा रहा. सब से हंसीखुशी से मिल कर वे लोग उस गांव से विदा हो लिए. साथ में थीं कुछ मीठी और कभी न भूलने वाली यादें.