अभिषेक अभी भी गुस्से में था और अंदर ही अंदर कुढ़ रहा था, ‘‘क्या समझती है वह अपनेआप को? हर वक्त चिकचिक करती रहती है. एक तो दफ्तर में चैन नहीं, घर आओ तो यहां भी वही परेशानी... इसीलिए मां कहती थीं कि तनु से प्यार मत करो. अगर पहले पता होता कि वह इतनी बददिमाग है, तो मैं कभी भी उस से शादी न करता.’’
एक झटके से अभिषेक ने बैग बंद किया और मोटरसाइकिल निकालने लगा, तभी उस के दिल ने कहा कि इसे कहां ले जा रहा है? यह भी तो तनु की ही है? यही मोटरसाइकिल तो उस ने ली थी दहेज में. लेकिन इस वक्त तनु इस के लिए भी उसे ताना मारेगी.
अभिषेक ने मोटरसाइकिल फिर वहीं खड़ी कर दी और बाहर चला गया. आटोरिकशा सामने ही दिख गया. उस ने आटोरिकशा वाले को आवाज दी.
‘‘कहां चलना है?’’ आटोरिकशा वाले के पूछने पर उस का दिल हुआ कि बोल दे, ‘कहीं भी चलो’, मगर तनु को जलाने की गरज से बोला, ‘‘रेलवे स्टेशन.’’
लेदे कर अभिषेक का बस अपने गांव ही जाना होता था, जहां सिर्फ रेलगाड़ी जाती थी. बाइक से वह सिर्फ दफ्तर के काम से जाता था. हां, 1-2 बार तनु को साथ ले कर वह लखनऊ और बनारस जरूर गया था.
कभीकभी तनु खीज कर कहती, ‘‘ट्रेन या जहाज पर चढ़ने के लिए दिल तरस जाता है. सभी रिश्तेदार आसपास ही रहते हैं. सभी ह्वाट्सएप पर रहते हैं, तो हालचाल पूछने भी उन के पास नहीं जा सकते.’’
अभिषेक ने पढ़लिख कर एक दवा की कंपनी में नौकरी कर ली थी, पर उस का छोटा भाई अभिजीत कम पढ़ालिखा होने की वजह से खेती करता था.
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