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श्यामू पांडे के उस बड़े से घर से ढोलक और गीतों की आवाज आनी बंद हो गई. गांव की रिश्ते की औरतें गाबजा कर अपनेअपने घर जा चुकी थीं. घर में शांति छाती जा रही थी. मेहमानों में आई हुई औरतें थक कर चूर थीं. पांडेजी के बेटे प्रकाश की बरात को गए 2 दिन बीत चुके थे. उन के पीछे घर में रह गई थीं औरतें और चौकीदार चिम्मन.

चिम्मन दिनभर इधरउधर घूमता और रात को सिरहाने बंदूक रख कर सोता. आसपास के गांवों में उन दिनों गैंगस्टरों का बड़ा जोर था. ये गैंगस्टर राजनीतिक पार्टी से भी जुड़े थे. एक पत्रकार को भी धमका चुके थे. रोजाना किसी न किसी कांड की खबर मिलती थी कि अमुक दुकानदार को लूट लिया. अमुक के लड़के को दिन में ही घर से गैंगस्टर उठा ले गए. नदी पार गैंग ने एक आदमी को मोटरसाइकिल से बांध कर जिंदा जला दिया वगैरह. चिम्मन ऐसी बातें बहुत दिनों से सुन रहा था और हंस कर उड़ा देता था. उसे अपनी बंदूक पर बड़ा भरोसा था. फौज में जो रहा था. कारगिल में भी था. मोरचे पर कभी पीठ न दिखाई. एक  बार वापस होने का हुक्म मिला.

सारी टुकड़ी मिनटों में खाई में जा छिपी, पर चिम्मन वहीं डटा रहा. आखिर में कहनेसुनने पर लौटा भी तो दुश्मन की ओर सीना ताने और खाई की ओर पीठ किए हुए. चलते समय पांडेजी ने उसे ही घर सौंपा था, क्योंकि उस पर उन्हें पूरा भरोसा था. उस ने भी गर्व से कह दिया था, ‘‘मजे से बरात कर आइए सरकार. यहां कोई गैंगस्टर आया तो जिंदा वापस नहीं जा सकता.’’  और उस ने गर्व से अपनी प्यारी ‘मुंहतोड़’ पर हाथ फेरा. उस ने अपनी बंदूक का नाम ‘मुंहतोड़’ रखा था, जो उसे इनाम में मिली थी. बाद में 2 दिन बड़ी मुस्तैदी से काटे. घर की औरतें भी उस की देखरेख में निश्चिंत थीं. बिना किसी खटके के गानेबजाने में शामिल होने वाली औरतों के सामने अपने गहनों का प्रदर्शन करतीं, उन की लागत बतातीं और रात को गहने पहने ही सो जातीं. चिम्मन पौर में बिस्तर लगाए था. सिरहाने भरी बंदूक. हवेली में 15-20 औरतें छत पर सो रही थीं. उस रात बिजली चली गई थी.

यह आम बात थी. हर 4-5 दिन में कोई ट्रांसफौर्मर फेल हो जाता था. चांद चढ़ आया था. गांव और आसपास के जंगल में रोशनी फैल गई. चारों ओर सुनसान था. कभीकभी कोई सियार बोल उठता था या किसी खेत के मचान से थोड़ा सा शोरगुल होता था. कहींकहीं डीजल पंप की आवाज जरूर आ रही थी. राजू भी अपने आम के बाग में अधसोया सा चौकसी कर रहा था. अंदर  झोंपड़ी में अंधी मां सो रही थी. हफ्तेभर से बुखार से पीडि़त थी. राजू ही उस का सहारा था. मेहनती और नेक बेटा. बाप के मर जाने के चलते चाहते हुए भी न पढ़ सका. बागबानी करता था. मरमिटने का शौकीन और रसिक था. गांव में एक बार रक्षक दल आया. लाठी के पैंतरे और तरहतरह की कसरतें उस से सीख लीं. शाम को नदी के किनारे बांसुरी भी खूब बजाता. उस के मोबाइल में भी ढेरों रैप म्यूजिक थे. घर में कम बैठता. कुंआरा जो ठहरा.  आज दिनभर मां की सेवा में लगा रहा.

अब कहीं जा कर उस की आंख लगी थी. न चाहते हुए भी राजू की नींद भरी आंखें मुंदी जा रही थीं. घंटाभर भी न बीता होगा कि श्यामू पांडे की हवेली से शोर सुनाई दिया. आवाज घबराई हुई औरतों के गलों की थी. 2-3 हवाई फायरों के धमाकों ने तो गांवभर को हिला दिया. पौर में चिम्मन ने, बाग में राजू ने, गांव में रामबली, जग्गू, नोखे वगैरह सब ने सुना. पलभर में सब कुछ साफ हो गया. डाका पड़ा है. गैंगस्टर राजू के बाग से हो कर पांडे की हवेली में पीछे से चढ़ आए थे. चिम्मन 1-2 पल बौखलाया. ऊपर से आती हुई धमाचौकड़ी की आहट ने उसे हिला दिया. डाका पड़ गया. दूसरे ही पल उस की हिम्मत लौटी और साथ में फौजी सतर्कता भी. दबे पैर उठा. हाथ में बंदूक संभाली. धीरे से घबराए लोगों के लिए दरवाजा खोल दिया और खुद जीने से ऊपर जाने को लपका. जोश में उबल पड़ रहा था. जाते ही 1-2 को उड़ा देने का निश्चय किया. ‘पांडेजी भी देख लेंगे, ऐसे ही गप नहीं हांकता था.’  जीने की आखिरी सीढ़ी पार कर के दरवाजे के बाहर छत पर पैर रखा. दरवाजे के बगल में एक डाकू पहले से ही स्वागत करने के लिए तैयार खड़ा था. उस ने  झट से चिम्मन की टांगों में लाठी का अड़ंगा लगाया.  चिम्मन इस के लिए बिलकुल तैयार न था. भरभरा कर औंधे मुंह गिरा और बंदूक छिटक कर दूर जा गिरी. तुरंत ही 2 डाकुओं ने उस की मुश्कें कस दीं और मुंह में कपड़ा ठूंस कर कोने में डाल दिया. चिम्मन की आंखें अब खुलीं. यह कारगिल का मोरचा नहीं, गैंगस्टर का हमला था. ऐंठ कर रह गया. छत पर तकरीबन 15 लोग थे. सब हथियारबंद. औरतों के होश गायब. चिम्मन को इस तरह धरती सूंघते देख वे सिट्टीपिट्टी भूल गईं. रहीसही उम्मीद भी जाती रही. भगवती चाची, जानकी जीजी, छोटी माई और पांडेजी की बेटियां सब जड़ हो गईं. भगवती चाची सारे शरीर पर जेवर लादे थीं. सारे दिन गांव की औरतों ने उन्हें जलन भरी आंखों से देखा था. क्या मालूम था, निगोड़े गैंगस्टर आ टपकेंगे. काटो तो देह में खून नहीं.

जीजी ने अपना निश्चय सुनाया, ‘‘प्राण दे दूंगी, पर इन निगोड़ों को एक छल्ला भी न ले जाने दूंगी. हराम की कमाई सम झी है…’’ कांपती हुई भगवती चाची में भी दम आया, ‘‘क्या पता था, दुष्ट कभी न मानेंगे. अब क्या होगा कम्मो?’’ कामिनी पांडेजी की बड़ी बेटी थी. सम झदार थी और पढ़ीलिखी थी. पेचीदा मामलों में पांडेजी भी उस से सलाह  लेते थे. अभी तक  हाथ पीले न कर  पाए थे. कोई काबिल लड़का आंखों न चढ़ा था. ‘‘अब वही होगा जो होना था. तुम सब से कितना कहा, गहने लादे न घूमो. आखिर में गैंगस्टर चढ़ ही आए. चुपचाप गहने हवाले कर देने में ही खैर है. अटकने से कोई फायदा नहीं. कील तक छीन ले जाएंगे. दुर्गति होगी सो अलग,’’ कामिनी ने कहा. गैंगस्टर भी मोरचा बांध चुके थे. औरतें बीच में घेर लीं. उन के अगुआ ने कहा, ‘‘सब औरतें पास वाली दरी पर जेवर रख दें. किसी ने गड़बड़ की, तो उस का भी ऐसा ही हाल होगा,’’ कह कर उस ने पास पड़े चिम्मन को ठोकर लगाई. चिम्मन मजबूर था. फुफकारा और तड़फड़ा कर रह गया. जानकी जीजी भी कुछ बड़बड़ाईं.

अगुआ ने फिर डपटा, ‘‘क्या होश ठिकाने नहीं हैं? दलन मर्दऔरत किसी को नहीं देखता है.’’ दलन. दलन के नाम में जादू था. गांव के क्या, जिलेभर के लोग इस नाम से कांपते थे. घोर अत्याचारी, गजब का फुरतीला और परले सिरे का बदचलन. उस ने पुलिस के भी दांत खट्टे कर रखे थे. सरकार ने उसे पकड़ने वाले के लिए 5,000 रुपए का इनाम बोला था. पर क्या मजाल कि उस की छांह भी हाथ आ जाती. रात ही रात में इस जिले से उस जिले में जा लगता था. जानकी जीजी, रज्जो दादी, रानी, कमला, सरला सब के देवता कूच कर गए. जेवर तो गए भाड़ में, उन्हें अपनी इज्जत बचाने की पड़ गई. दूसरे ही पल दरी पर गहनों का ढेर लग गया. शोरगुल और धमाका सुन कर राजू को मेंड़ से गुजरते आदमियों की बात याद आ गई. निश्चय हो गया कि गैंगस्टर ही थे. लाठी कंधे पर साधे हुए वह मिनट भर में बाग की मेंड़ पर जा पहुंचा. यहां हवेली से आता हुआ शोरगुल साफ सुनाई देता था.

उस ने मन में कहा, ‘पांडे की हवेली में ही डाका पड़ा है.’  तुरंत ही दोहराया, ‘पांडे के यहां अच्छा हुआ…’ आगे बढ़ते पैर रुक गए. पिछले साल का घाव पलभर में हरा हो गया. उसे याद आई अपनी बेइज्जती. चिम्मन के धक्के, श्यामू पांडे की गालियां. कम्मो का करुणा भरा चेहरा. कितना जलील किया गया था वह.

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