जटपुर गांव की मुंदरी को जब यह पता चला कि उस की बड़ी बहन सुंदरी अपने 4 बलात्कारियों को तबाह और बरबाद कर के ईंटभट्ठे से गायब हो गई है, तो उसे अपनी बहन की बहादुरी और होशियारी पर बड़ा गर्व हुआ.

मुंदरी के मन में यह बात गहराने लगी कि उसे भी अपनी बहन की तरह बहादुर बनना है. वह जानती थी कि वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो है नहीं, इसलिए उसे कोई बड़ी नौकरी मिलने से रही. हां, ईंटभट्ठे पर मजदूरी का काम उसे जरूर मिल सकता है.

मुंदरी ने अपने पिता जगप्रसाद से अपने मन की बात कही, ‘‘पिताजी, मुझे भी उसी ईंटभट्ठे पर काम करना है, जहां दीदी काम करती थीं.’’

‘‘बिटिया, सुंदरी के जाने के बाद मेरा मन निढाल हो गया है. यह सब तू अच्छी तरह से जानती है कि ये दिन मैं ने कैसे काटे हैं. अगर तू भी उसी ईंटभट्ठे पर काम करना चाहती है, तो तेरी मरजी. मैं कुछ नहीं कहने वाला. सुंदरी लड़ कर गई थी, इसलिए तुझे रोकने की मेरी हिम्मत नहीं. घर में अगर दो पैसे आएंगे, तो क्या मुझे काटेंगे...’’

मुंदरी अगले ही दिन नेमतपुर गांव गई, जहां पर वह ईंटभट्ठा था. वह ठेकेदार रामपाल से नौकरी के बाबत मिली, लेकिन जब रामपाल को यह पता चला कि मुंदरी तो सुंदरी की बहन है, इसलिए वह उसे काम पर रखने के लिए आनाकानी करने लगा. उसे लगा कि कहीं वह किसी मुसीबत में न फंस जाए. उस के मन में काला चोर बैठा था. उस ने सुंदरी के साथ क्याक्या किया था, उसे वे सारी बातें याद आने लगीं.

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