“दादू, क्या आप किसी अमीन सयानी को जानते हैं?” 62 साल के ननकू से जब उस की पोती राधा ने सवाल किया, तो उस की आंखों में चमक आ गई.

“क्यों… क्या हुआ?” ननकू ने राधा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

“पहले आप यह बताओ कि उन के नाम से आप को सब से पहले क्या याद आता है?”

“मुझे तो अपना बीता हुआ वह जमाना याद आ गया है, जब किसी घर में रेडियो का होना शान की बात समझा जाता था. खेत में थकाहारा किसान और सरहद पर दुश्मन से रखवाली करता जवान रेडियो को ही अपना पसंदीदा टाइमपास मानता था. हर खास और आम घरों में रेडियो बजता सुनाई दे जाता था…”

“उसी जमाने में एक आवाज ने रेडियो सुनने वालों को अपना दीवाना बना लिया था. वह कोई गायक नहीं था, कोई फिल्म हीरो भी नहीं था, पर उस की आवाज में गजब की खनक और मिठास थी.

“उस भलेमानस का नाम नाम था अमीन सयानी. ‘रेडियो सीलोन’ और फिर ‘विविध भारती’ पर‌ तकरीबन 42 सालों तक चलने वाला हिंदी गीतों का उन का कार्यक्रम ‘बिनाका गीतमाला’ इतना ज्यादा मशहूर हो गया था कि लोग हर हफ्ते उन्हें सुनने के लिए बेकरार रहा करते थे. अरे, बाद में उसी ‘बिनाका गीतमाला’ का नाम बदल कर ‘सिबाका गीतमाला’ कर दिया गया था.”

“दादू, अब वही मखमली आवाज चुप हो गई है. 91 साल की उम्र में अमीन सयानी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. मंगलवार, 20 फरवरी, 2024 की शाम को हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई. उन के बेटे राजिल सयानी ने यह दुखद खबर दी थी,” राधा ने बुझे मन से बताया.

“अरे, बाप रे. यह तो बहुत बुरा हुआ. हुआ क्या था उन्हें?” ननकू ने उदास हो कर पूछा.

“राजिल सयानी ने बताया कि अमीन‌ सयानी को मंगलवार को उन के दक्षिण मुंबई में बने घर पर शाम के 6 बजे हार्ट अटैक आया था. इस के बाद उन्हें दक्षिण मुंबई के एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में ले जाया गया, जहां पर इलाज करने के कुछ देर बाद ही डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.”

राधा की इस खबर ने ननकू को तोड़ कर रख दिया. वह बिस्तर से उठा और अलमारी में रखे एक छोटे से संदूक को बाहर निकाल लाया. वह संदूक था ननकू की मीठी यादों का पिटारा. उस ने टूटेफूटे उस संदूक को खोला और अपनी पोती राधा को पास बुलाया.

राधा हैरान थी कि अमीन सयानी की इस दुखद खबर के बाद दादू ने यह संदूक इतने साल बाद क्यों खोला? उस संदूक में बरसों पुराना सामान रखा था और साथ में था धूल में सना एक रेडियो, जो अब चलने की हालत में नहीं दिख रहा था.

ननकू ने वह रेडियो बाहर निकाला, कांपते हाथों से उस की धूल झाड़ी और खो गया उस जमाने में, जब वह महज 12 साल का था.

आज भले ही ननकू अपने परिवार के साथ लखनऊ शहर में रहता है, पर तब वह बांदा से सटे एक गांव में रहता था. 1974 का साल था. ननकू गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ता था और अपने घर से थोड़ी दूर रहने वाली फूलमती के साथ स्कूल आताजाता था.

फूलमती भी ननकू की हमउम्र थी और पढ़ाई में तेज. पर उन दोनों को रेडियो सुनने का शौक था. हर बुधवार को रात के 8 बजे से रात के 9 बजे तक. यह एक घंटा उन दोनों के लिए अकेले मिलने का जरीया था.

दिन में स्कूल की पढ़ाई, फिर घर के काम निबटाने, थोड़ाबहुत खेतीबारी में हाथ बंटाना और फिर रात को रेडियो पर प्यारभरे नगमे सुनना.

ननकू हर रात चोरीछिपे अपना रेडियो उठाए पहुंच जाता था फूलमती के घर के पिछले हिस्से में, जहां वह अपनी खिड़की से बाहर खड़े ननकू के रेडियो पर ‘सिबाका गीतमाला’ सुनती थी.

एक रात की बात है. साल था 1974. ननकू और फूलमती में शर्त लगी थी कि इस साल ‘सिबाका गीतमाला’ में साल का टौप का गाना कौन सा रहेगा?

फूलमती ने कहा, “तुम मुझ से शर्त मत लगाया करो. पिछले साल भी हार गए थे. तब फिल्म ‘जंजीर’ का गाना ‘यारी है ईमान मेरा…’ बाजी मार गया था.”

इस पर ननकू ने कहा, “हर बार तुक्का नहीं लगता. अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. इस बार तो गाना ‘मेरा जीवन कोरा कागज, कोरा ही रह गया…’ ही सरताज बनेगा.”

इस बार वाकई ननकू का कहा सही साबित हुआ. वही गाना सरताज बना था. ननकू ने फूलमती को देख कर आंख दबा दी. वह शरमा कर खिड़की बंद करते हुए वहां से भाग गई…

“क्या हुआ दादू, आप कहां खो गए?” राधा की आवाज ने ननकू को यादों से बाहर निकाला.

“कुछ नहीं बेटी. अच्छा, यह तो बता खबर में अमीन सयानी के बारे में और क्याक्या छपा है?” झिलमिलाती आंखों से ननकू ने पूछा.

“यही कि अमीन सयानी के नाम पर 54,000 से ज्यादा रेडियो कार्यक्रम प्रोड्यूस, कंपेयर, वौइसओवर करने का रिकौर्ड दर्ज है. तकरीबन 19,000 जिंगल्स के लिए आवाज देने‌ के लिए भी उन का नाम ‘लिम्का बुक्स औफ रिकौर्ड्स’ में दर्ज है.

“अमीन सयानी ने ‘भूत बंगला’, ‘तीन देवियां’, ‘कत्ल’ जैसी फिल्मों में अनाउंसर के तौर पर भी काम किया था. रेडियो पर फिल्मी सितारों पर बना उन का शो ‘एस. कुमार का फिल्मी मुकदमा’ भी काफी मशहूर हुआ था.

“बाद में अमीन सयानी ने कई शो होस्ट किए थे, जिन में ‘फिल्मी मुलाकात’, ‘सैरिडौन के साथी’, ‘बौर्नविटा क्विज कौंटैस्ट’, ‘शालीमार सुपरलैक जोड़ी’, ‘सितारों की पसंद’, ‘चमकते सितारे’, ‘महकती बातें’ और ‘संगीत के सितारों की महफिल’ शामिल रहे थे.

“21 दिसंबर, 1932 को जनमे अमीन सयानी अपने जमाने में रेडियो की दुनिया के सुपरस्टार थे. उन का कार्यक्रम की शुरुआत में ही ‘बहनो और भाइयो’ के साथ रेडियो सुनने वालों को संबोधित करने का तरीका बड़ा फेमस हुआ था. साल 2009 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से भी नवाजा गया था…” राधा बोले जा रही थी, पर ननकू तो फिर से अपनी फूलमती और रेडियो के पास जा पहुंचा था.

रेडियो ने ननकू और फूलमती की दोस्ती गहरी कर दी थी. एक शाम को ननकू खेत से लौट रहा था. रेडियो पर उस का पसंदीदा गाना ‘हायहाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी…’ बज रहा था. इतने में उसे फूलमती दिखाई दी. ननकू ने गाने की आवाज तेज कर दी. फूलमती भी चारा काटते हुए वह गाना गुनगुनाने लगी.

“आज रात को तैयार रहना 8 बजे. बुधवार है न,” ननकू ने कहा.

“ठीक है,” फूलमती बोली. पर वे दोनों नहीं जानते थे कि उन की बातें पास ही पेड़ की आड़ में खड़ी फूलमती की मां सुन रही थीं.

मां ने घर में जाते ही फूलमती के बापू को पूरी बात बता दी. पहले तो बापू को लगा कि यह उन दोनों का बचपना है, क्योंकि वे एकसाथ जो रहते हैं, पर रात को ननकू का घर के पिछवाड़े में आ कर मिलना अखर गया.

रात के 8 बजे ननकू और फूलमती ‘सिबाका गीतमाला’ पर प्यार भरे नगमे सुन रहे थे कि अचानक फूलमती के बापू ने ननकू को दबोच लिया. बस, फिर क्या था. बापू ने ननकू की धुनाई कर दी. इधर, फूलमती की मां ने उसे ताबड़तोड़ थप्पड़ बरसाने शुरू कर दिए.

“अगर तू आज के बाद फूलमती के आसपास भी दिखा तो अच्छा नहीं होगा. गांव का लड़का है, इसलिए पहली गलती मान कर तुझे छोड़ रहा हूं,” फूलमती के बापू ने ननकू को धमकाते हुए कहा.

ननकू ने अपने कपड़े झाड़े, पास रखा रेडियो उठाया और भारी मन से वहां से चला गया. फूलमती की खिड़की बंद हो चुकी थी.

इस के बाद फूलमती का स्कूल जाना बंद हो गया. ननकू की जिंदगी दर्दभरे नगमे सी हो गई थी. उसे पहली बार अहसास हुआ था कि वह फूलमती को पसंद करता है. यही हाल फूलमती का भी था. उन दोनों को जोड़ने वाला रेडियो भी अब शांत रहने लगा था.

इस बात को 3 साल गुजर गए थे. 15 साल की होते ही फूलमती के हाथ पीले कर दिए गए. 1977 का साल था. फिल्म ‘लैला मजनू’ का गाना ‘हुस्न हाजिर है मोहब्बत की सजा पाने को…’ ‘सिबाका गीतमाला’ पर खूब बज रहा था, जो ननकू की नाकाम मोहब्बत पर फिट बैठ रहा था.

उस बुधवार की रात ननकू खूब रोया था. रात जैसेतैसे कटी थी. अगले ही दिन वह अपना रेडियो ले कर फूलमती की ससुराल जा पहुंचा और उस के घर से थोड़ी दूर बैठ कर तेज आवाज में रेडियो पर गाने सुनने लगा.

गाने की आवाज सुन कर फूलमती के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. उस ने मन ही मन कहा, ‘बस, ननकू यहां न आया हो.’

फूलमती डरतीडरती खिड़की पर आई और सामने ननकू को देख कर उस की आह निकल गई. चूंकि घर के आसपास कुछ दुकानें थीं, तो किसी को शक नहीं हुआ कि ये गाने क्यों बज रहे हैं.

यह सिलसिला कई साल चला. ननकू रोज वहां आता और एक चाय की दुकान पर बैठ कर गाने सुनता. फूलमती खिड़की से सब देखती और इशारे से ननकू को वहां से जाने की गुजारिश करती, पर ननकू तो जैसे फूलमती की एक झलक पाने के लिए यह सब कर रहा था…

“दादू, खाना खा लो. आज आप की पसंद की कटहल की सब्जी बनी है,” राधा की आवाज ने ननकू का ध्यान भंग किया.

“मन नहीं है,” ननकू ने इतना ही कहा और अपने रेडियो को ताकने लगा और फिर यादों में खो गया.

ननकू और फूलमती को दूर हुए अब 25 साल बीत चुके थे. एक दिन ननकू को पता चला कि फूलमती को कोई बड़ी बीमारी हो गई है और वह अस्पताल में आखिरी सांसें ले रही है. वह तुरंत अपना वही रेडियो ले कर अस्पताल पहुंचा.

उस समय फूलमती के कमरे में कोई नहीं था. वह आंखें बंद किए लेटी हुई थी. ननकू ने धीरे से रेडियो चला दिया. भूलेबिसरे गानों का प्रोग्राम चल रहा था. शम्मी कपूर की फिल्म ‘पगला कहीं का’ का गाना ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे…’ बज रहा था.

फूलमती ने आंखें खोल दीं और अपने सामने ननकू को देख कर उस की आंखें गीली हो गईं. ननकू ने उस का हाथ पकड़ लिया. फूलमती की हथेली पर ननकू की आंख से आंसू गिरने लगे.

यह वह आखिरी गाना था, जो उन दोनों ने साथ सुना था. फूलमती अब इस दुनिया में नहीं थी.

वह दिन है और आज का दिन, ननकू ने वह रेडियो कभी नहीं चलाया. आज बुधवार को अमीन सयानी की मौत की खबर ने ननकू और फूलमती के अधूरे प्यार को जिंदा कर दिया था.

ननकू ने वह रेडियो चलाया, पर उस में से ‘खरखर’ की आवाज ही आ रही थी, जैसे अमीन सयानी की मौत के बाद उस का गला बैठ गया हो.

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