बुधिया और बलुवा पक्के दोस्त थे. बुधिया भूतप्रेत पर यकीन करता था, जबकि बलुवा उन्हें मन का वहम मानता था. एक बार उन की बछिया जंगल में खो गई, जिसे ढूंढ़ने में रात हो गई. इसी बीच बुधिया को किसी भूत ने पकड़ लिया. आगे क्या हुआ?

बुद्धि चंद्र जोशी… गांव के लोग अकसर उसे बुधिया कह कर बुलाते थे. वह ठेठ रूढि़वादी पहाड़ी पंडित परिवार से था. सवेरे स्कूल जाने से पहले आधा बालटी पानी से स्नान, एक घंटा पूजापाठ, फिर आधी फुट लंबी चुटिया में सहेज कर गांठ लगाना, रोली और चंदन से ललाट को सजाना  उस के रोजमर्रा के काम थे.

बेशक कपड़े मैले पहन ले, पर बुधिया ने नहाना कभी नहीं छोड़ा, फिर चाहे गरमी हो या सर्दी. उसे पढ़ाई में मेहनत से ज्यादा भाग्य और जीवन में लौकिक से परलौकिक संसार पर ज्यादा भरोसा था. वह हमेशा भूतप्रेत, आत्मापरमात्मा और तंत्रमंत्र की ही बातें किया करता था और ऐसी ही कथाकहानियों को पढ़ा भी करता था.

बलुवा यानी बाली राम आर्या बुधिया का जिगरी दोस्त था, लेकिन आचारविचार में एकदम उलट. न पूजापाठ, न रोलीचंदन और न ही वह चुटिया रखता था. हर बात पर सवाल करना उस के स्वभाव में शुमार था. जब तक तर्क से संतुष्ट नहीं हो जाता था, तब तक वह किसी बात को नहीं मानता था.

वे दोनों गांव के पास के स्कूल में 11वीं क्लास में पढ़ते थे. बुधिया ने आर्ट्स, तो बलुवा ने साइंस ली थी. वे दोनों साथसाथ स्कूल जाते थे.

उन दोनों में अकसर भूतप्रेत के बारे में बहस होती रहती थी. बलुवा कहता था कि भूतप्रेत नाम की कोई चीज नहीं होती, बस सिर्फ मन का वहम है, पर बुधिया मानने को तैयार नहीं था और कहता, ‘‘तू बड़ा नास्तिक बनता है. जब भूतप्रेत का साया तुझ पर पड़ेगा, तब तेरी अक्ल ठिकाने आएगी.’’

इस पर बलुवा कहता, ‘‘भूतप्रेत की कहानियां पढ़पढ़ कर तू हमेशा उन की ही कल्पना करता है, जिस से तेरे अंदर उन का डर बैठ गया है.’’

तब बुधिया शेखी बघारता, ‘‘एक न एक दिन तुझे भी भूत के दर्शन करा दूंगा, तब तू सच मानेगा,’’ फिर वह गांव के कई लोगों के नाम गिनाता जैसे रमूली, सरला, किशन, महेश जिन्हें भूत लग गया था और जो बाद में तांत्रिक के भूत भागने से ठीक हुए थे.

पहाड़ों में दिसंबर में छमाही के इम्तिहान के बाद स्कूल में छुट्टियां पड़ जाती हैं. छुट्टियों में उन दोनों का काम होता था जंगल में गाय चराना.

वे दोनों अपनीअपनी गाय ले कर दूर जंगल में निकल जाते. दिनभर खेलतेकूदते रहते और शाम को गाय ले कर घर वापस आ जाते. जंगल में बाघतेंदुए का आतंक भी बना रहता था, इसलिए घर आते समय जानवरों की गिनती की जाती थी कि पूरे हैं या नहीं.

एक दिन जब बुधिया जानवरों की गिनती कर रहा था तो एक बछिया नहीं दिखी. चूंकि एक बछिया कम थी, घर कैसे जाया जाए. घर पर डांट जो पड़ेगी.

जाड़ों में दिन छोटे होते हैं, तो अंधेरा जल्दी पसरने लगता है. दोनों ने फैसला लिया कि जल्दी से जल्दी बछिया को ढूंढ़ा जाए, नहीं तो रात हो जाएगी. दोनों बछिया को ढूंढ़ने अलगअलग दिशाओं में निकाल गए, ताकि काम जल्दी हो जाए.

एक पहाड़ी के इस तरफ तो दूसरा पहाड़ी के दूसरी तरफ चला गया.

तय हुआ कि जिसे भी बछिया पहले

मिल जाएगी, वह दूसरे को आवाज दे कर बताएगा.

बछिया ढूंढ़तेढूंढ़ते वे दोनों काफी

दूर निकाल गए. रात भी धीरेधीरे

गहराने लगी. अचानक जोरजोर से चीखने की आवाज आने लगी, ‘‘भूत… भूत… बचाओ बचाओ… इस ने मुझे पकड़ लिया.’’

बलुवा रुक कर आवाज पहचानने की कोशिश करने लगा. यह बुधिया के चीखने की आवाज थी. बलुवा ने सोचा कि बुधिया डरपोक है. ऐसे ही रात में कोई जंगली जानवर की आहट को भूत समझ कर चिल्ला रहा होगा.

बलुआ ने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘‘बुधिया, डर मत. तू किसी जंगली जानवर को भूत समझ कर डर गया होगा. भूतप्रेत कुछ नहीं होते. सब तेरे मन का वहम है.’’

बुधिया फिर गला फाड़फाड़ कर चिल्लाने लगा, ‘‘नहीं, यह सचमुच का भूत है. इस के बड़ेबड़े दांत, सींग और नाखून हैं. इस के पैर भी उलटे हैं. यह मुझे खा जाएगा. जल्दी आ कर मुझे बचा ले.’’

बलुवा भी अब थोड़ा सहम सा गया और सोचने लगा, ‘बुधिया इतने विश्वास से कह रहा है कि उसे भूत ने पकड़ लिया है, तो जरूर कोई बात होगी.’

रात की बात थी. बलुवा ने घने अंधेरे जंगल में अकेले जाना ठीक नहीं समझा. लिहाजा, वह वापस गांव की ओर आ गया. जंगल से सटे घरों से 4 लोगों को इकट्ठा कर के उस ओर को चला, जहां से बुधिया की आवाज आ रही थी. सब के हाथों में मशालें थीं.

बुधिया का चीखतेचीखते गला भी बैठ चुका था. अब चीखने की आवाज भी रुंधी हुई दबीदबी सी आ रही थी.

उन पांचों में सब से सयाना पंडित धनीराम था, पर सब से ज्यादा वही डरा हुआ था. उस ने बताया कि इस जंगल में लकड़ी के तस्करों ने एक फौरैस्ट गार्ड की हत्या कर दी थी. जरूर उस भूत ने ही बुधिया को पकड़ा होगा.

यह सुन कर बलुवा ने कहा, ‘‘क्या बात कर रहे हो पंडितजी. अगर वह भूत बन गया तो बाघ ने तो यहां सैकड़ों जानवर मारे होंगे. तब सब को भूत

बन जाना चाहिए. क्यों हम सब को डरा रहे हो…’’

‘‘डरा नहीं रहा हूं बलुवा. चल, अब तू अपनी आंखों से देखेगा भूत की पकड़…’’ धनीराम ने डराने के लहजे

से कहा.

अब वे लोग करीबकरीब बुधिया के नजदीक पहुंच चुके थे. बुधिया का गला चिल्लातेचिल्लाते तकरीबन बैठ चुका था. वह रुंधे गले से धीरेधीरे चीख रहा था, ‘‘बचाओ… बचाओ…भूत से मुझे छुड़ाओ… नहीं तो वह मुझे खा जाएगा.’’

बलुवा दिलासा देते हुए बोला, ‘‘डर  मत बुधिया. मैं गांव से लोगों को ले कर आया हूं. तुझे कुछ नहीं होगा.’’

पहाड़ों में मौसम का कुछ भरोसा नहीं होता. कुछ ही मिनटों में वहां बादल घिर आते हैं और बारिश होने लगती है. ऐसा ही आज भी हुआ. जैसे ही वे लोग बुधिया के पास पहुंचे, तेज बारिश होने लगी. सब की मशालें बुझ गईं.

तेज बारिश और चारों ओर घना अंधेरा. किसी को कुछ नजर नहीं आ रहा था. बस, बुधिया की रुकीरुकी चीखने की आवाज सुनाई पड़ रही थी.

बलुवा आवाज की दिशा में धीरेधीरे आगे बढ़ने लगा और बुधिया से बोला, ‘‘ला, अपना हाथ मुझे दे…’’ बलुवा ने  बुधिया का हाथ पकड़ कर जोर से खींचा, पर बुधिया निकल नहीं पा रहा था. अब तो बलुवा को भी शक होने लगा था कि कहीं बुधिया को सचमुच तो भूत ने नहीं पकड़ लिया है.

बलुवा ने कुछ घबराई हुई आवाज में साथ आए राम सिंह से कहा, ‘‘देखो तो भाई, आप की जेब में माचिस पड़ी होगी. उस से थोड़ा चीड़ के नुकीले पत्ते जला कर उजाला करो. देखें, आखिर बुधिया को किस ने पकड़ा है…’’

अब तक बारिश भी थम चुकी थी. राम सिंह ने आसपास से कुछ पत्ते इकट्ठा कर के जलाए. उजाले में जोकुछ देखा उस से सब की हंसी छूट गई.

बुधिया घबराते हुए बोला, ‘‘इधर मेरी जान जा रही है और तुम लोग हंस रहे हो.’’

जवाब में राम सिंह ने हंसते हुए कहा, ‘‘बुधिया, पीछे मुड़ कर तो देख तुझे भी अपनी बेवकूफी पर हंसी आ जाएगी.’’

बुधिया ने पीछे मुड़ कर देखा तो उस के पाजामा के दाहिने पैर की मोहरी एक खूंटे में फंस हुई थी. वह ज्योंज्यों ज्यादा जोर लगाता, घबराहट में और भी फंसता जाता. वह बहुत डर गया था. उस के डर ने कहानियों और टैलीविजन पर देखे भूत की शक्ल ले ली थी.

बड़ेबड़े दांत, लंबेलंबे नाखून, सींग और उलटे पैर. जंगली जानवरों की अजीबोगरीब आवाजें उस के डर को और भी बढ़ा रही थीं. डर के मारे उस की सोचने की ताकत जीरो हो गई थी. वह एक मामूली खूंटे से भी अपनेआप को नहीं छुड़ा पा रहा था.

बलुवा ने फिर बुधिया को समझाते हुए कहा, ‘‘देख, मैं कहता था न कि भूतप्रेत कुछ नहीं होते. हमारे मन का डर ही भूत को जन्म देता है.’’

पर बुधिया कहां मानने वाला था.

वह फिर भी कह रहा था, ‘‘नहीं यार, कुछ तो था. शायद उजाला देख कर भाग गया होगा.’’

बलुवा बुधिया को उस के घर तक छोड़ आया. घर वाले बछिया नहीं, बल्कि बुधिया कि चिंता कर रहे थे कि वह अब तक घर क्यों नहीं पहुंचा.

घर पहुंच कर बुधिया ने सारी बातें बताईं. बछिया तो अपनेआप बहुत पहले ही घर पहुंच चुकी थी.

जड़ों की छुट्टियां अब खत्म हो चुकी थीं. आज तकरीबन 4 महीने के बाद फिर से वे दोनों गपें मारते हुए

स्कूल जा रहे थे. रास्ते में एक सुनसान पहाड़ी नाले के पास ‘छपछप’ की आवाज सुनाई दी.

बुधिया ने डर के मारे बलुवा का हाथ कस के पकड़ लिया और कांपती आवाज में बोला, ‘‘देख, वह ‘छपछप’ की आवाज करते हुए भूत आ रहा है.’’

बलुवा जोर का ठहाका लगा कर हंसते हुए बोला, ‘‘हां, उस दिन वाले जंगल के भूत का अब इधर ट्रांसफर हो गया है. वह तुझ से मिलने आया है.’’

तभी झाड़ी से एक जंगली मुरगी फड़फड़ाते हुए भागी. बलुवा हंसते हुए बोला, ‘‘देख, तेरा भूत वह जा रहा है. जा, जा कर पकड़ ले.’’

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