ट्यूशनके लिए देर हो रही है… यह नेहा की बच्ची अभी तक नहीं आई. फोन करना ही पड़ेगा,’ मन ही मन बड़बड़ाती सुमन फोन की तरफ बढ़ी. ‘‘इस के भी अलग ही नखरे हैं… जब देखो जनाब का मुंह फूला रहता है,’’ सुमन ने डैड पड़े फोन को गुस्से में पटका.

अपनी सहेली को फोन करने के लिए सुमन ने मम्मी का मोबाइल उठाया तो उस में एक बिना पढ़ा मैसेज देख कर उत्सुकता से पढ़ लिया. किसी अनजान नंबर से आए इस मैसेज में एक रोमांटिक शायरी लिखी थी. आ गया होगा किसी का गलती से. दिमाग को झटकते हुए उस ने नेहा को फोन लगाया तो पता चला कि उस की तबीयत खराब है. आज नहीं आ रही. इस सारे घटनाक्रम में ट्यूशन जाने का टाइम निकल गया तो सुमन मन मार कर अपनी किताबें खोल कर बैठ गई. मगर मन बारबार उस अनजान नंबर से आए रोमांटिक मैसेज की तरफ जा रहा था. ‘कहीं सचमुच ही तो कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो मम्मी को इस तरह के संदेश भेज रहा है,’ सोच सुमन ने फिर से मम्मी का मोबाइल उठा लिया. 1 नहीं, इस नंबर से तो कई मैसेज आए थे.

तभी बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई तो सुमन ने घबरा कर मम्मी का मोबाइल यथास्थान रख दिया और किताब खोल कर पढ़ने का ड्रामा करने लगी. जैसे ही मम्मी रसोई में घुसीं सुमन ने तुरंत मोबाइल से वह अनजान नंबर अपनी कौपी में नोट कर लिया. अगले दिन नेहा के मोबाइल पर वह नंबर डाल कर देखा तो किसी डाक्टर राकेश का नंबर था. कौन है डाक्टर राकेश? मम्मी से इस का क्या रिश्ता है? उस ने अपने दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा लिए, मगर कोई सूत्र हाथ नहीं लगा.

15 वर्षीय सुमन की मम्मी सुधा एक सिंगल पेरैंट हैं. उस के पापा एक जांबाज और ईमानदार पुलिस अधिकारी थे. खनन और ड्रग माफिया दोनों उन के दुश्मन बने हुए थे. अवैध खनन रोकने के विरोध में एक दिन कुछ बदमाशों ने उन की सरकारी जीप पर ट्रक चढ़ा दिया. जख्मी हालत में अस्पताल ले जाते समय उन की रास्ते में ही मौत हो गई. सुधा ने स्नातक तक की पढ़ाई की थी, इसलिए उन्हें सरकारी नियमानुसार पुलिस विभाग में अनुकंपा के आधार पर लिपिक की नौकरी मिल गई. मांबेटी की आर्थिक समस्या तो दूर हो गई, मगर सुधा के औफिस जाने के बाद सुमन जब स्कूल से घर लौटती तो मां के औफिस से वापस आने तक अकेली रहती. उस की सुरक्षा की चिंता सुधा को औफिस में भी सताती रहती. कुछ समय तक तो सुमन की दादी उस के साथ रही थीं. फिर एक दिन वे भी इस दुनिया से चल दीं. मांबेटी फिर से अकेली हो गईं. बहुत सोचविचार कर सुधा ने अपने घर की ऊपरी मंजिल पर बना कमरा डाक्टर रानू को किराए पर दे दिया. उस की ड्यूटी अकसर नाइट में होती थी. रानू सुधा को दीदी कहती थी और बड़ी बहन सा मान भी देती थी. अब सुधा सुमन की तरफ से बेफिक्र हो कर अपनी नौकरी कर रही थीं. सुमन पढ़ाई में काफी होशियार थी. उस के पापा उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे. वह भी उन का सपना पूरा करना चाहती थी, इसलिए स्कूल के बाद शाम को अपनी सहेली नेहा के साथ प्रीइंजीनियरिंग प्रतियोगी परीक्षा की ट्यूशन ले रही थी.

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अगले दिन सुबहसुबह ज्यों ही मम्मी के मोबाइल में एसएमएस अलर्ट बजा, स्कूल जाती सुमन का ध्यान अनायास पहले मोबाइल पर और फिर मम्मी के चेहरे की तरफ चला गया. मम्मी को मुसकराते देख उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह ठिठक कर वहीं खड़ी रह गई. ‘‘सुमन, स्कूल की बस मिस हो जाएगी,’’ मम्मी ने चेताया तो चेतनाशून्य सी सुमन मेन गेट की तरफ बढ़ गई.

शाम को सुधा के घर लौटते ही सुमन ने सब से पहले उन का मोबाइल मांगा. आज फिर

3 रोमांटिक शायरी वाले संदेश… ओहो, आज तो व्हाट्सऐप पर मिस्ड कौल भी. ‘कोई मैसेज तो नहीं है व्हाट्सऐप पर… हुंह डिलीट कर दिया होगा,’ सोच सुमन ने नफरत से मोबाइल एक ओर फेंक दिया. सुधा औफिस से लौटते समय उस के मनपसंद समोसे ले कर आई थीं. ओवन में गरम कर के चाय के साथ लाईं तो सुमन ने भूख नहीं है कह खाने से मना कर दिया. सुधा को थोड़ा अटपटा तो लगा, मगर टीनऐज मूड समझते हुए इसे अधिक गंभीरता से नहीं लिया.

कुछ दिनों से सुधा को महसूस हो रहा था कि सुमन उन से खिंचीखिंची सी रह रही है. न उन से बात करती है, न ही किसी चीज की फरमाइश. कुछ पूछो तो ठीक से जवाब भी नहीं देती. कभीकभी तो सुधा को झिड़क भी देती. क्या हो गया है इस लड़की को? शायद पढ़ाई और प्रीइंजीनियरिंग कंपीटिशन का प्रैशर है. सुधा हर तरह से अपनेआप को समझाने का प्रयास करतीं और अधिक से अधिक उस के नजदीक रहने की कोशिश करतीं, मगर जितना वे पास आतीं उतना ही सुमन को अपने से दूर पातीं.

सुधा का माथा तो तब ठनका जब पीटीएम में सुमन की क्लास टीचर ने उन से अकेले में पूछा कि क्या सुमन को कोई मानसिक परेशानी है? किसी लड़केवड़के का कोई चक्कर तो नहीं? आजकल क्लास में पढ़ाई पर बिलकुल ध्यान नहीं देती. बस खोईखोई सी रहती है. जरा सा डांटते ही आंखों में आंसू भर लाती है. साथ ही नसीहत भी दे डाली कि देखिए सुमन के लिए मां और बाप दोनों आप ही हैं. उसे बेहतर परवरिश दीजिए… उसे समय दीजिए… कहीं ऐसा न हो कि वह किसी गलत राह पर चल पड़े और हाथ से निकल जाए.

‘सुमन से बात करनी ही पड़ेगी,’ सोच अपनेआप को शर्मिंदा सा महसूस करती हुई सुधा स्कूल से सीधे औफिस चली गईं. अचानक दोपहर 3 बजे रानू का फोन आया. घबराई हुई आवाज में बोली, ‘‘दीदी आप तुरंत घर आ जाइए.’’ ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘बस आप आ जाइए,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया. औफिस से तुरंत परमिशन ले कर सुधा टैक्सी पकड़ घर पहुंच गईं. सामने का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. सुमन अर्धचेतना अवस्था में बिस्तर पर पड़ी थी. डाक्टर उस के सिरहाने बैठी थी.

‘‘क्या हुआ इसे?’’ सुधा दौड़ कर सुमन के पास पहुंचीं. ‘‘इस ने नींद की गोलियों की ओवरडोज ले ली… वह तो शुक्र है कि मैं फ्रिज से सब्जी लेने नीचे आ गई और इसे इस हालत में देख लिया वरना पता नहीं क्या होता… मैं ने इसे दवा दे कर उलटी करवा दी है. अभी बेहोश है. मगर खतरे से बाहर है,’’ रानू ने सारी बात एक ही सांस में कह डाली.

‘‘मगर इस ने ऐसा कदम क्यों उठाया?’’ दोनों के दिमाग में यही उथलपुथल चल रही थी. तभी सुमन नीम बेहोशी की हालत में बड़बड़ाई, ‘‘मां, प्लीज मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ… पहले पापा, फिर दादी मां और अब तुम भी चली जाओगी तो मैं कहां जाऊंगी…’’

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‘‘नहीं मेरी बच्ची… मम्मी तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी… तुम्हीं तो मेरी दुनिया हो,’’ सुधा जैसे अपनेआप को दिलासा दे रही थीं. इसी बीच सुमन को होश आ गया.

‘‘सुमन, यह क्या किया बिटिया तू ने? एक बार भी नहीं सोचा कि तेरे बाद तेरी मां का क्या होगा,’’ सुधा ने उस का सिर प्यार से सहलाते हुए भरे गले से कहा. ‘‘आप ने भी तो नहीं सोचा कि आप की बेटी का क्या होगा…’’ बात अधूरी छोड़ कर सुमन ने नफरत से मुंह फेर लिया.

‘‘मैं ने क्या गलत किया?’’ सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया.

रानू ने कहा, ‘‘सुमन तुम एक बहादुर मां की बहादुर बेटी हो, तुम्हें ऐसी कायरता वाली हरकत नहीं करनी चाहिए थी.’’ ‘‘बहादुर या चरित्रहीन?’’ सुमन बिफर पड़ी.

‘‘चरित्रहीन?’’ सुधा और रानू दोनों को जैसे एकसाथ किसी बिच्छू ने काट लिया हो. ‘‘हांहां चरित्रहीन… क्या आप बताएंगी कि कौन है यह डाक्टर राकेश जो आप को रोमांटिक संदेश भेजता है?’’ सुमन ने जलती निगाहों से सुधा से प्रश्न किया.

‘‘डाक्टर राकेश?’’ सुधा और रानू दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया बस खामोशी से जमीन की तरफ देखने लगीं.

‘‘देखा, कोई जवाब नहीं है न इन के पास,’’ सुमन ने फिर जहर उगला. ‘‘दीदी, आप नीचे जाइए. 3 कप कौफी बना कर लाइए. तब तक हम दोनों बैस्ट फ्रैंड्स बातें करते हैं,’’ रानू ने संयत स्वर में कहा.

रानू ने सुमन का हाथ अपने हाथ में लिया और कहने लगी, ‘‘सुमन, तुम बहुत बड़ी

गलतफहमी का शिकार हो गई हो. इस में सुधा दीदी का कोई दोष नहीं है. चरित्रहीन तुम्हारी मां नहीं, बल्कि डाक्टर राकेश है और उस से तुम्हारी मम्मी का नहीं बल्कि मेरा रिश्ता है. वह मेरा मंगेतर था, मगर मैं ने उस के चरित्र के बारे में कई लोगों से उलटासीधा सुन रखा था. बस अपना शक दूर करने के लिए मैं ने सुधा दीदी का सहारा लिया. उन के मोबाइल से राकेश को कुछ मैसेज भेजे. 3-4 मैसेज के बाद ही जैसाकि हमें शक था उस के रिप्लाई आने लगे. मैं ने जानबूझ कर बात को थोड़ा और आगे बढ़ाया तो उस के चरित्र का कच्चापन सामने आ गया. सचाई सामने आते ही मैं ने अपनी सगाई तोड़ ली. ‘‘सगाई टूटने के बाद तो राकेश और भी गिर गया. उस ने मुझ से तो अपना संबंध खत्म कर लिया, मगर तुम्हारी मम्मी के मोबाइल पर आने वाले उस के संदेश अब रोमांटिक से अश्लील होने लगे. बस 1-2 दिन में हम तुम्हारी मां की इस सिम को बदल कर नई सिम लेने वाले थे ताकि इस राकेश का सारा किस्सा ही खत्म हो जाए, मगर इस से पहले ही तुम ने यह नादानी भरी हरकत कर डाली. पगली एक बार अपनी मां से न सही, मुझ से ही अपने दिल की बात शेयर कर ली होती.’’

‘‘मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए. मैं जानती हूं आप मम्मी का दोष अपने सिर ले रही हैं. मगर मम्मी का उस से कोई रिश्ता नहीं है तो वे उस के संदेश पढ़ कर मुसकराती क्यों थीं?’’ सुमन को अब भी रानू की बात पर यकीन नहीं हो रहा था. ‘‘वह इसलिए पगली कि जो रोमांटिक मैसेज मैं राकेश को भेजती थी वही मैसेज फौरवर्ड कर के वह तुम्हारी मम्मी वाले मोबाइल पर भेज देता था और दीदी की हंसी छूट जाती थी.’’

तभी सुधा कौफी ले आईं. सुमन उठने की स्थिति में नहीं थी. उस ने बैड पर लेटेलेटे ही अपनी बांहें मां की तरफ फैला दीं. सुधा ने उसे कस कर गले से लगा लिया. मांबेटी के साथसाथ डाक्टर रानू की भी आंखें भर आईं. आंसुओं में सारी गलतफहमी बह गई. मन में चुभी संदेश और अविश्वास की किरचें भी अब निकल चुकी थीं.

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