नाबालिग कविता पर इश्क का जुनून सवार था. परिवार से दूर, मजे की जिंदगी और सैक्सी दिखने की चाहत उसे ले डूबी. किशोरावस्था में ही वह 2 प्रेमियों के बीच में फंस गई थी. उस की नादानी का प्यार ऐसा जुर्म बना कि…कविता 3 बहनों में सब से छोटी मात्र 16 साल की थी. स्वभाव से चंचल और अपनी मनमरजी वाली बातूनी लड़की. चेहरे पर मासूमियत और तीखे नयननक्श उस की सुंदरता को दर्शाते थे. जबकि अच्छा कद और उन्नत उभारों के साथ भरीपूरी देह के कारण वह 19-20 की दिखती थी.
2 बड़ी बहनों में वह सब से बड़ी बहन सरिता के साथ देहरादून में ही रहती, जबकि मंझली बहन कुसुम पौड़ी में रह कर प्राइवेट नौकरी कर रही थी. कविता दोनों बहनों की लाडली थी. उसे सरिता ने अपने पास 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के लिए रखा हुआ था. वह चाहती थी कि उस का एडमिशन देहरादून के मैडिकल कालेज में हो जाए. वह मंसूरी में जौब करती थी और देहरादून से रोज आनाजाना करती थी.
कविता फोन के जरिए दोनों बहनों के संपर्क में रहती थी. तीनों बहनों की रोज एक बार फोन से बात हो जाती थी. उन के मांबाप और परिवार के दूसरे सदस्य पौड़ी में ही रहते थे.
भोलीभाली मासूम दिखने वाली कविता ने ऐसा कारनामा कर दिया था, जिस के चलते वह 27 मार्च को देहरादून के रायपुर थाने में लाई गई थी. उसे एसपी (सिटी) सरिता डोवाल के निर्देश पर थानाप्रभारी आशीष रावत और महिला इंसपेक्टर भावना कर्णवाल ने हिरासत में लिया था.
कविता और उस के दोस्त आकाश पर हत्या जैसे संगीन आरोप लगे हुए थे, जबकि बहनों पर सच्चाई छिपाने की शिकायत थी. पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार वह पिछले 10 दिनों से लापता थी और अपनी बहन कुसुम के साथ मिल कर पुलिस की आंखों में धूल झोंक रही थी.मुखबिर की सूचना के आधार पर वह राजपुर क्षेत्र में अपनी बहन के घर में छिपी हुई थी. वहीं उस का दोस्त आकाश भी था. कविता के अलावा दोनों बहनों और आकाश को थाने लाया गया था.
डोवाल ने एसएसआई आशीष रावत को उन से पूछताछ करने के निर्देश दिए थे. पूछताछ की शुरुआत कविता से हुई थी.अपनी बात पर अड़ी कविता पुलिस को इधरउधर की बातों में उलझाने की कोशिश कर रही थी. पुलिस को पूछताछ में मदद नहीं करने पर लेडी इंसपेक्टर भावना कर्णवाल ने एक तमाचा जड़ते हुए पूछा, ‘‘तुम ने अपने प्रेमी को क्यों मारा?’’‘‘मैं ने नहीं मारा उसे…’’ कविता तपाक से बोल पड़ी.
‘‘मैं पूछ रही हूं क्यों मारा? …और तुम आधे घंटे से एक ही रट लगाए हुए हो, मैं ने नहीं मारा… मैं ने नहीं मारा…’’ भावना कर्णवाल तेज आवाज में बोलीं.कविता बुत बनी रही. उस के कुछ नहीं बोलने पर थानाप्रभारी आशीष रावत बोलने लगे, ‘‘लगता है फिर झापड़ खाने का इरादा है. इस बार डंडे भी लगेंगे. देखो मैडम, तुम्हारे लिए ही खास डंडा ले कर आई है. रबड़ की है टूटेगी नहीं. जोरदार चोट लगेगी.’’
रबड़ का डंडा सुनते ही कविता बोल पड़ी, ‘‘बताती हूं…बताती हूं…लेकिन पहले इस से भी तो पूछो…’’ यह कहती हुई कविता ने एक कोने में जमीन पर बैठे आकाश की ओर हाथ उठा कर इशारा किया.‘‘उस से भी पूछताछ होगी, लेकिन तुम्हारे सामने नहीं,’’ रावत ने कहा.‘‘तो मुझ से सब के सामने क्यों पूछताछ हो रही है?’’ कविता ने तर्क दिया.‘‘अच्छा तो यह बात है. चलो जाओ, उस चैंबर में वहां कोई नहीं है. तुम से वही झापड़ लगाने वाली पुलिस अधिकारी तुम्हारे मुंह से सब कुछ उगलवाएंगी. सचसच बताना. तुम्हारा यही बयान नोट कर मजिस्ट्रैट को सौंपा जाएगा.’’ रावत ने यह कहते हुए कविता को भावना कर्णवाल के हवाले कर दिया और आकाश को पूछताछ के लिए अपने सामने बैठा लिया, ‘‘चल तू बता, कविता का पहला प्रेमी तू है या वह, जो मारा गया?’’
‘‘जी, वही था,’’ आकाश बोला.रावत आकाश से पूछताछ करने लगे और दूसरी तरफ उसी वक्त कविता अपने अपराध की दास्तान सुनाने लगी. उस के एकएक शब्द को इंसपेक्टर ने रिकौर्ड करने के लिए मोबाइल औन कर दिया था. साथ ही डायरी में भी लिखती जा रही थीं. उस के अनुसार कविता, आकाश और लापता युवक की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—
देहरादून में कविता कहने को तो 12वीं की पढ़ाई करने और मैडिकल की तैयारी के लिए आई थी, लेकिन वह प्रेम का पाठ पढ़ने लगी थी. उसे परिवार और मांबाप से अलग खुला आसमान मिल गया था. खानेपहनने से ले कर घूमनेफिरने की भी वह शौकीन थी. जहां जी में आता था, घूमने निकल जाती थी.
मौल, बाजार, पार्क, फूड कार्नर से ले कर सिनेमा घर तक हो आती थी. इसी दरम्यान उस की मुलाकात एक रोज हमउम्र नरेंद्र उर्फ बंटी से हो गई थी.
नरेंद्र की मिठाई और चाट गोलगप्पे की दुकान थी. उस की दुकान पर चाट खाने के लिए छात्रछात्राओं की भीड़ लगी रहती थी. उस में लड़कियां ही अधिक होती थीं.नरेंद्र वैसे तो मिठाई के काउंटर पर ही बैठता था, लेकिन शाम के वक्त गोलगप्पे के काउंटर पर खुद आ जाता था. लड़कियां उस के गोलगप्पे खिलाने के तरीके और बीचबीच में कमेंट करने के काफी मजे लेती थीं.वह बड़े प्यार से गोलगप्पे का नाम सिनेमा के हीरो और हीरोइनों के नाम पर ग्राहकों के दोने में डालते हुए जब कभी कहता, ‘यह आ गया पुष्पा गोलगप्पा… न फूटेगा, न टूटेगा और न झुकेगा. फायर है फायर, फ्लावर मत समझना.’
संयोग से जब कभी वही गोलगप्पा फूट जाता था, तब सभी ग्राहक लड़कियां खिलखिला कर हंस पड़ती थीं. कविता भी अकसर वहां आती थी.
किसी का गोलगप्पा फूट जाने पर नरेंद्र उस के बदले मुफ्त में दूसरा गोलगप्पा दे देता था. उस की दुकान पर भीड़ जुटने का एक कारण यह भी था. कविता उस की इसी आदत की कायल हो गई थी.
अधिक गोलगप्पे खाने के लिए जानबूझ कर नाखून से फोड़ देती थी और मुफ्त का गोलगप्पा मांगने लगती थी. कई बार इसे ले कर उस की नरेंद्र से बहस भी हो जाती थी.एक दिन तो कविता ने हद ही कर दी. उस ने 3-3 गोलगप्पे फोड़ डाले. इस पर नरेंद्र भड़क उठा. गुस्से में बोला, ‘‘एक टोकन पर सिर्फ एक के फूटने पर ही एक्स्ट्रा मिलेगा…’’
उस दिन बात बहुत बढ़ गई थी और उन के बीच तूतूमैंमैं होने लगी. उसे एक बुजुर्ग महिला ग्राहक ने संभाला. कविता को समझाया, ‘‘बेटा उस का बिजनैस है. हमेशा मुफ्त ही देगा, तब उस का तो धंधा ही चौपट हो जाएगा. तुम भी संभल कर खाया करो न.’’कविता ने भुनभुनाते हुए एक्सट्रा गोलगप्पे के पैसे दिए और पैर पटकती जातेजाते बोल गई, ‘‘तुम्हारी दुकान पर अब नहीं आऊंगी कभी.’’
नरेंद्र उसे मटकती हुई जाते देखता रहा. उस रोज बात आईगई हो गई. एक ग्राहक के मना करने से नरेंद्र के बिजनैस पर कोई असर नहीं पड़ा. दरअसल गलती कविता की थी.
3 दिन बाद शाम को कविता दुकान पर 3-4 लड़कियों के पीछे अपनी बारी के इंतजार में खड़ी थी. हाथ में 30 रुपए का टोकन था. अचानक उस पर नरेंद्र की नजर पड़ी. संयोग से उस ने भी उसी वक्त नरेंद्र को देखा. दोनों की नजरें टकरा गईं.नरेंद्र ग्राहकों को गोलगप्पे देने में व्यस्त हो गया, जबकि कविता झेंप गई. जबकि पहले तो ‘पहले मुझे… पहले मुझे…’ का शोर मचाती रहती थी.
खैर, जल्द ही उस की बारी भी आ गई. उस ने चुपचाप अपना टोकन आगे बढा दिया. टोकन देख कर नरेंद्र ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘क्या बात है, 30 रुपए का टोकन. लगता है आज 3 दिनों की कसर एक बार में निकाल लोगी.’’
‘‘मुझे गोलगप्पे नहीं खाने हैं. पापड़ी चाट बना दो, दही पूरा डालना.’’ कविता धीमे से बोली.
‘‘कोई बात नहीं आज भी गुस्से में हो, उस दिन का गुस्सा गोलगप्पे पर क्यों उतार रही हो. बेचारा तो ऐसे ही फूटताटूटता रहता है. आज आलिया भट्ट गंगूबाई गोलगप्पा खिलाऊंगा. चाट के साथ 3 फ्री में.’’ नरेंद्र ने एक और चुटकी ली. इस पर कविता की हंसी फूट पड़ी.‘‘हंसी तो… आगे नहीं बोलूंगा, फिर नाराज हो जाओगी. यह लो पहले चाट खाओ, मिर्च कितनी डालूं. तीखी बनाऊं या नारमल…’’ नरेंद्र बोला.
‘‘भैया, तुम ने तो मुझे गंगूबाई गोलगप्पा नहीं खिलाया?’’ एक ग्राहक बोल पड़ी.
‘‘आप ने पापड़ी चाट भी तो नहीं लिया, आलिया पापड़ी जैसी चिपटी है न, इसलिए उस के साथ फ्री है,’’ यह सुन कर दूसरे ग्राहक हंस पड़े. कविता भी खिलखिला कर हंस दी.
उस रोज नरेंद्र ने न केवल बड़े प्यार से कविता को चाट खिलाई, बल्कि वादे के मुताबिक फ्री में 3 गोलगप्पे भी खिला दिए.उस के जाने से पहले कान के पास मुंह ले जा कर धीमी आवाज में बोला, ‘‘मैं दिल का बुरा नहीं हूं, दुकान पर आती रहा करो. तुम बहुत अच्छी लड़की हो.’’कविता पूरे रास्ते नरेंद्र की बातों का मतलब निकालती घर आ गई. रसोई में खाना पकाते समय भी उस की वही बातें दिमाग में चलती रहीं. यहां तक कि उस रोज पढ़ाई में भी मन नहीं लग रहा था. वह सोच में पड़ गई कि नरेंद्र ने क्यों कहा कि दिल का बुरा नहीं हूं. दुकान पर आती रहना. तुम अच्छी लड़की हो.
दरअसल, कविता के दिल को नरेंद्र की बातें छू गई थीं. रात बेचैनी में कटी. अगले रोज दोपहर ढलने के बाद ही नरेंद्र की दुकान पर जा पहुंची. नरेंद्र उस समय चाट और गोलगप्पे की दुकान लगाने की तैयारी में लगा हुआ था. दुकान पर इक्कादुक्का ग्राहक ही थे. वे मिठाई खरीद रहे थे. नरेंद्र की नजर कविता पर पड़ी, चौंकते हुए उस ने पूछा, ‘‘इतना पहले! अभी तो दुकान लगने में समय है. मसाला पानी तैयार किया जा रहा है.’’‘‘कुछ नहीं इधर से गुजर रही थी, सोचा तुम से मिलती जाऊं,’’ कविता बोली.
‘‘मुझ से मिलती जाऊं? मुझ से?’’ नरेंद्र आश्चर्य से बोला.
‘‘हां, क्यों नहीं! और शाम को तो बहुत बिजी रहते हो. दरअसल, मैं कई दिनों से तुम्हारे गोलगप्पे के पानी के मसाले के बारे में पूछना चाह रही थी. और….’’ कविता के बात पूरी करने से पहले ही नरेंद्र चुटकी लेता हुआ बोल पड़ा, ‘‘… और क्या? मेरी दुकान के बगल में दुकान खोलने का इरादा तो नहीं है?’’
यह सुन कर कविता हंस पड़ी.‘‘तुम्हारी यही हंसी तो मुझे अच्छी लगती है. उस रोज न जाने मुझे क्या हो गया था, जो तुम्हें काफी भलाबुरा कह दिया था,’’ नरेंद्र बोला.
‘‘उस रोज गलती मेरी ही थी, मैं उस के लिए भी सौरी बोलती हूं.’’
दुकान के भीतर से ‘बंटी…बंटी…’’ की आवाज आते ही नरेंद्र बोल पड़ा, ‘‘हांजी, अभी आया…’’
‘‘अच्छा तो तुम्हारा नाम बंटी है? तुम्हें कौन पुकार रही है?’’ कविता आश्चर्य से बोली.
‘‘मेरी मम्मी है. भीतर किचन में गोलगप्पे तल रही हैं. मैं और मम्मी ही दुकान चलाते हैं.’’
‘‘और पिताजी?’’ कविता पूछी.‘‘वहां हैं दीवार पर फोटो में माला से आधे ढंक गए हैं.’’ मिठाई के काउंटर के पीछे दीवार पर लगी तसवीर की ओर इशारा कर बोला.नरेंद्र उर्फ बंटी के पिता का नाम अमर सिंह था. उन का कुछ साल पहले बीमारी से निधन हो गया था. वह नालापानी रोड थाना डालनवाला के निवासी थे.
उस के बाद नरेंद्र और कविता ने कब एकदूसरे के दिल में जगह बना ली, उन्हें पता ही नहीं चल पाया. वे समय निकाल कर डेटिंग पर भी जाने लगे. वैसे कविता नियमित उस की दुकान पर आने लगी.
यहां तक कि उस के कामकाज में भी हाथ बंटाने लगी. दोनों के दिल में प्यार फूलनेफलने लगा. वे एक रोज भी मिले बगैर नहीं रह पाते थे.
नरेंद्र कविता के शौक पूरे करने पर भी विशेष ध्यान देने लगा. दोनों साथसाथ घूमने जाने लगे. नरेंद्र उसे गिफ्ट भी देने लगा, उस का गिफ्ट पा कर कविता निढाल हो जाती थी, लेकिन महत्त्वाकांक्षी कविता की नरेंद्र से उम्मीदें बढ़ने लगी थीं.दूसरी तरफ नरेंद्र उस के यौनाकर्षण में बंध गया था. उस के पहनावे की तारीफ करता रहता था. मौका पा कर शरीर को छू लेता था. गाल, गरदन और पीठ सहला लेता था.
जब कभी पीठ सहलाते हुए नरेंद्र के हाथ कमर के नीचे तक चले जाते थे, तब कविता प्यार से उस का हाथ हटा देती थी. यहां तक कि नरेंद्र उसे अकेला पा कर चूमने की भी कोशिश कर चुका था.
इसी साल वैलेंटाइन डे के मौके पर नरेंद्र ने टहनी समेत गुलाब हाथ में देने के बजाय सीधा उस के स्तनों के बीच डाल दिया था और किस करने के लिए उस के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ लिया. इस तरह की अचानक घटना के लिए कविता जरा भी तैयार नहीं थी. वह नाराज हो गई, ‘‘ये क्या बदतमीजी है?’’
‘‘अरे आज वैलेंटाइन डे है, प्रेमियों का दिन.’’ नरेंद्र बोला.
‘‘वैलेंटाइन का मतलब तुम कुछ भी करोगे? मुझे यह सब हरकत पसंद नहीं. मैं देख रही हूं कि पिछले कई दिनों से तुम्हारी नजर बदल गई है.’’ कविता नाराजगी दिखाते हुई बोली.
‘‘अरे, मैं तुम्हें दिल से प्यार करता हूं, तुम्हें चाहता हूं, तुम आज बहुत सैक्सी दिख रही थी, मन मचल गया तो मैं क्या करूं?’’ नरेंद्र बोला.‘‘तो… जो तुम्हारे जी में आएगा, वह करोगे? मुझे बुरी नजरों से घूरोगे, मेरे कपड़े के भीतर हाथ डालोगे, कमर पकड़ोगे? कल को तो तुम मेरे जींस में भी हाथ डाल दोगे और मैं बरदाश्त कर लूंगी, इस गलतफहमी में मत रहना…’’ कविता बोलती चली जा रही थी, ‘‘माना कि मुझे सैक्सी दिखने का शौक है, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि तुम मेरे शरीर को छेड़ो, रेप करने की कोशिश करो…’’
‘‘तुम तो बात का बतंगड़ बना रही हो, रेप तक की बात कहां से आ गई. किस करना रेप है क्या?’’ नरेंद्र सहमता हुआ बोला.‘‘और नहीं तो क्या है? हम अभी प्रेमी हैं और कुछ नहीं. समझे मिस्टर नरेंद्र,’’ कविता डपटते हुए बोली.‘‘कल को पतिपत्नी बन जाएंगे,’’ नरेंद्र बोला.‘‘कल किस ने देखा है. मेरी इज्जत तो आज चली जाएगी,’’ कविता की आवाज और तेज हो गई थी.उस ने वहीं गुलाब के फूल को पैरों तले कुचल डाला. उस के गिफ्ट का पैकेट फेंक दिया और तेजी से सड़क पार कर गई. घर आ कर ही उस ने सांस ली.एक गिलास पानी पी कर मोबाइल फोन पर फेसबुक स्क्राल करने लगी. अपना अकाउंट खोल कर लिखने लगी, ‘‘आज मूड औफ हो गया, कोई बताएगा क्या करूं?’’
इस पोस्ट के आधे घंटे के भीतर कविता के फोन पर काल आया. फोन करने वाले का नाम आकाश था. कविता ने तुरंत काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हां आकाश, तुम कहां हो, तुम से अभी मिलना चाहती हूं.’’
‘‘क्यों, क्या हुआ? तुम बहुत परेशान दिख रही हो. तुम ने फेसबुक पर निराशा वाला पोस्ट क्यों डाला है, वह भी आज वैलेंटाइन डे के दिन. सब कुछ ठीक तो है न?’’ आकाश चिंता जताते हुए बोला.
‘‘मिलोगे तब बताऊंगी,’’ कविता उदासी से बोली.
आकाश ने ही मिलने की जगह बताई. शाम के समय पहले दोनों एक फूड कौर्नर पर मिले. उस के बाद बसस्टैंड के कोने में चले गए. वे जानते थे कि पार्क में प्रेमी युगलों की भीड़ होगी. बैठने की जगह नहीं मिलेगी.कविता ने आकाश को नरेंद्र के बारे में पूरी बात विस्तार से बताई. उस की हरकतों से अपनी परेशानी बताई. साथ ही उस ने बताया कि उस से पीछा छुड़ाना चाहती है, कोई उपाय बताए.
आकाश चुपचाप उस की बात सुनता रहा. उस समय तो उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन कविता को भरोसा दिया कि वह उस की भलाई के लिए कोई न कोई रास्ता अवश्य निकाल लेगा. आकाश की बातों ने कविता के दुखे दिल पर मरहम का काम किया, लेकिन नरेंद्र से छुटकारा पाने का वह भी कोई रास्ता निकालने के बारे में सोचने लगी.
22 साल का आकाश देहरादून में ही चावला चौक करनपुर थाना डालनवाला का निवासी था. उस के पिता सुरेंद्र पिछले 6 महीने से लापता थे. उस की महाराणा प्रताप चौक पर अंबे टायर सर्विस नाम की दुकान है. उस के घर में मां के अलावा 4 भाई व 2 बहनों का भरापूरा परिवार है.
आकाश की कविता से जानपहचान फेसबुक के जरिए हुई थी. जल्द ही उन के बीच फोन पर बात होने लगी और वे मिलनेजुलने भी लगे.
कविता को आकाश नरेंद्र की तुलना में ज्यादा सभ्य और समझदार लगता था. धीरेधीरे वह आकाश से प्रेम करने लगी. इस की जानकारी उस ने अपनी बहन कुसुम को भी दी थी.
कुसुम भी आकाश से मिल चुकी थी. उसे भी आकाश अच्छा लड़का लगा था. कविता को उस से मिलनेजुलने का विरोध नहीं किया. संयोग से वह सजातीय भी था. कुसुम चाहती थी कि कविता अपना करिअर तय होने के बाद ही उस से शादी करे, लेकिन नरेंद्र से छुटकारा पाने के लिए कविता जल्द शादी करना चाहती थी.
जब नरेंद्र को आकाश के बारे में जानकारी हुई, तब वह कविता को बदनाम करने की कोशिश में लग गया. वह कविता को मोहल्ले में बदनाम करने की ताक में रहता था. इसी आड़ में उस के साथ सैक्स संबंध बनाने की कोशिश करने लगा था. नरेंद्र नहीं चाहता था कि कविता की शादी आकाश से हो.
आकाश को जब नरेंद्र की हरकत के बारे में पता चला, तब उस से मिल कर उसे काफी समझाया. उस के रास्ते से हट जाने के लिए कहा. फिर भी नरेंद्र अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. उलटे उस ने फेसबुक पोस्ट के जरिए उसे ही बदनाम करने की धमकी दे डाली.
नरेंद्र की दी गई धमकी कविता और आकाश के दिल में चुभ गई. दोनों ने मिल कर एक योजना बनाई. उस के मुताबिक कविता ने 16 मार्च, 2022 को नरेंद्र से बात करने के लिए अपने घर बुलाया.
उस ने बहाना बनाया कि बड़ी बहन की शादी की बात करना चाहती है. कविता ने नरेंद्र के आने से पहले ही आकाश को अपने कमरे में छिपा लिया था.
नरेंद्र शाम को करीब साढ़े 7 बजे आ गया था. उस ने शराब पी रखी थी. कमरे में आते ही बैड पर लेट गया. तभी कविता भी उस की बगल में आ कर बैठ गई. नरेंद्र से बातें करने लगी. वह नरेंद्र का हाथ पकड़ कर उठाने लगी. अधलेटा नरेंद्र बैड पर ही बैठ गया.
मौका देख कर आकाश पीछे से दबेपांव आया और नरेंद्र के गले में बेल्ट कस दी. नरेंद्र झटके के साथ बैड पर गिर गया. उस ने अपने हाथों से बेल्ट निकालने की कोशिश की. तब तक कविता ने उस के हाथ पकड़ लिए थे.जल्द ही नरेंद्र बेजान हो गया था. उस की नाक से खून निकल आया. बेहोश नरेंद्र के मुंह पर आकाश ने जोर का घूंसा मारा. जब नरेंद्र की सांसें चलनी बंद हो गईं, तब दोनों ने मिल कर उस की लाश बोरे में भर दी.
लाश को जंगल में ठिकाने लगाने की उन की योजना थी, लेकिन उसे वहां तक ले जाने की समस्या आ गई थी. कारण आकाश के पास बुलेट मोटरसाइकिल थी. अगर उस पर रात में लाश ले जाता तो बुलेट की आवाज से पहचान हो सकती थी. इसलिए रात भर लाश कमरे में ही रखी रही. अगले रोज 17 मार्च, 2022 की सुबहसुबह आकाश अपनी बहन के घर जा कर उन की स्कूटी ले आया.स्कूटी पर नरेंद्र की लाश के बोरे को सामान की तरह लाद लिया और आमवाला ननूरखेड़ा होता हुआ तपोवन रोड पर लगभग 300 मीटर जंगल में अंदर चला गया. साथ में कविता भी थी. वहीं आकाश ने पहले से ही एक गड्ढा खोद रखा था. उन्होंने नरेंद्र की लाश गड्ढे में दबा दी. उस के बाद वे दोनों देहरादून से फरार हो गए.
उधर कविता कमरे पर नहीं दिखी तो बड़ी बहन कुसुम ने देहरादून आ कर कविता की गुमशुदगी की सूचना लिखवा दी. थाने में उस ने लिखवाया कि कविता 17 मार्च से लापता है और उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ है.कविता की गुमशुदगी की सूचना के आधार पर देहरादून पुलिस ने कविता की तलाश शुरू कर दी. कविता की बहनों को यह नहीं मालूम था कि नरेंद्र की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी 17 मार्च को ही लिखवाई जा चुकी थी. पुलिस दोनों लापता को मिला कर जांच में जुट गई थी. दोनों की तसवीरें थाने में जमा की जा चुकी थीं.
पुलिस ने दोनों लापता कविता और नरेंद्र को सोशल मीडिया पर खंगालना शुरू किया. उन के फोन नंबरों से एक ही प्रोफाइल में दोनों के एक साथ की तसवीरें मिल गईं. इस से दोनों के बीच जानपहचान होने का पता चल गया. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मामला प्रेम संबंध में फरार प्रेमी युगल का है.
पुलिस को यह मामला बहुत अधिक संदिग्ध नहीं लगा, क्योंकि अकसर ऐसे प्रेमी कुछ रोज में खुद ही वापस आ जाते हैं. फिर भी उन के साथ कुछ भी अप्रत्याशित घटना हो सकती है, इसे ध्यान में रख कर उन के घरों के आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाले गए और मुखबिर भी लगा दिए गए. साथ ही कविता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकाली गई.
कविता की गुमशुदगी भादंवि की धारा 365 में तरमीम कर दी गई थी. इस की जांच पुलिस चौकी मयूर विहार के इंचार्ज अर्जुन सिंह गुसाईं कर रहे थे. उन्होंने अब तक की जांच प्रगति से सीओ अनिल जोशी समेत एसपी (सिटी) सरिता डोवाल को भी अवगत करा दिया था. जांच के सिलसिले में 4 दिनों के बाद थानेदार अर्जुन सिंह गुसाईं द्वारा कविता के घर के आसपास लगे 37 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक किए गए थे.
जब एसएसआई आशीष रावत द्वारा कविता के मोबाइल की काल डिटेल्स चैक की गई, तब एक चौंकाने वाली जानकारी मिली कि मोबाइल भले ही स्विच्ड औफ था, मगर उस के मोबाइल से रोज मैसेज उस की बहन के मोबाइल पर भेजे जा रहे थे.
मुखबिर ने भी कविता के बारे में एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी कि पिछले कुछ दिनों तक कविता एक युवक आकाश के साथ कई बार देखी जा चुकी थी. पुलिस के सामने अब मामला गंभीर लगा. क्योंकि अब तक पुलिस लापता नरेंद्र के साथ लापता कविता को जोड़ कर देख रही थी, उस में एक ट्विस्ट भी था. आकाश भी 17 मार्च से शहर में नहीं देखा गया था. उस के परिवार वाले भी उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए थे. इस तरह नरेंद्र, आकाश और कविता तीनों ही देहरादून से लापता चल रहे थे.
यह सूचना पा कर सरिता डोवाल का माथा ठनका. उन्हें लगा कि इस मामले में दाल में काला जरूर है. जांच से मिले सभी तरह की जानकारियों की कडि़यां नए सिरे से जोड़ी जाने लगीं.
इसी बीच 5वें दिन मुखबिर से कविता के आकाश के घर पर होने की सूचना मिली. और फिर उन्हें बगैर देरी किए हिरासत में ले लिया गया.
पूछताछ में कविता और आकाश ने बताया कि नरेंद्र की लाश को ठिकाने लगा कर कुछ सामान और रुपए ले कर दोनों बस से हरिद्वार चले गए थे. वहां एक दिन रह कर दोनों ट्रेन से दिल्ली चले गए. दिल्ली में 2 दिन ठहरने के बाद वे ट्रेन से असम निकल भागे. वहां 3 दिन रहने के बाद वे वापस देहरादून लौट आए. उन्हें लगा कि अब मामला निपट गया होगा, लेकिन यह उन की भूल थी.
कविता और आकाश ने नरेंद्र की लाश बरामद करवाने में पुलिस की मदद की और झाडि़यों में फेंकी बेल्ट के बारे में बता दिया. आकाश और कविता द्वारा नरेंद्र की लाश, उस की हत्या में इस्तेमाल की गई बेल्ट, आकाश का सैमसंग मोबाइल फोन तथा लाश को ले जाने वाला बोरा भी बरामद कर लिया गया.
पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर वह पोस्टमार्टम के लिए कोरोनेशन अस्पताल देहरादून भेज दी. नरेंद्र की गुमशुदगी थाना डालनवाला में दर्ज थी. वहां उस की हत्या की सूचना भेज दी गई.
थाना डालनवाला के एसएसआई महादेव उनियाल ने इस मामले में आईपीसी की धाराएं 302, 201 व 34 और बढ़ा दीं तथा उन्होंने आरोपियों आकाश व कविता को न्यायालय के समक्ष पेश कर दिया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नरेंद्र उर्फ बंटी की मौत का कारण गला घोटना बताया गया. कथा लिखे जाने तक आकाश जेल में और कविता बाल सुधार गृह में थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कविता परिवर्तित नाम है.