बरामदे में चारपाइयां पड़ी थीं. दक्षिण दिशा में एक तख्त था, जिस पर बिस्तर बिछा हुआ था. बरामदे से उत्तर दिशा में गोशाला थी. वहीं एक बड़ा सा आंगन था, जिसे एक आदमी बहुत देर से पानी की मोटर चला कर धो रहा था. उस के बदन पर एक बनियान थी और वह लुंगी लपेटे हुए था, जिसे घुटनों तक ला कर अपनी कमर में बांधा था.

वे थे कुशघर पंचायत के मुखिया जगन्नाथ सिंह. उन का समाज में काफी दबदबा था. उस पंचायत के लोग उन की इज्जत करते थे या डरते थे. शायद डर कर ही उन्हें लोग ज्यादा इज्जत देते थे.

‘‘मुखियाजी प्रणाम…’’ भीखरा उन के पास आते हुए बोला.

मुखियाजी ने पूछा, ‘‘भीखरा, आज इधर कैसे आना हुआ? सुना है, आजकल तू ब्लौक के चक्कर लगा रहा है… बीडीओ साहब बता रहे थे.’’

‘‘जी हां मालिक, उन्होंने ही मुझे आप के पास भेजा है,’’ भीखरा ने हाथ जोड़े हुए ही कहा.

‘‘किसलिए?’’

‘‘मालिक, सरकार गरीबों के लिए मकान बनाने के लिए पैसा दे रही है.’’

‘‘हां, तो तू इसीलिए बीडीओ साहब के पास गया था.’’

‘‘हां मालिक. अगर आप की मेहरबानी हो जाए, तो हमारा भी एक मकान बन जाए.

‘‘बरसात में तो   झोंपड़ी टपकने लगती है और नाली का गंदा पानी   झोंपड़ी में घुस जाता है.’’

‘‘पर, तू मेरे पास क्यों आया है?’’

‘‘बीडीओ साहब ने कहा है कि दरख्वास्त पर मुखियाजी से दस्तखत करा के लाओ, इसलिए मैं आप के पास आया हूं.’’

‘‘ठीक है, इस दरख्वास्त को मेरे बिस्तर पर रख दे. पहले तू गाड़ी धुलवाने में मेरी मदद कर,’’ मुखियाजी ने कहा.

भीखरा ने वैसा ही किया.

जब गाड़ी धुल गई, तब मुखियाजी ने कहा, ‘‘गाय का गोबर हटा दे.’’

भीखरा ने गोबर को हटा कर उस जगह को साफ कर दिया. हाथ धो कर वह उन के पास अपने कागज लेने गया.

मुखियाजी ने भीखरा से कहा, ‘‘देखो भीखरा, मैं इस पर दस्तखत तो कर दूंगा, लेकिन तुम्हें 4 हजार रुपए खर्च करने पड़ेंगे.

‘‘वह पैसा मैं नहीं लूंगा, बल्कि बीडीओ साहब को दे दूंगा. सब का अपनाअपना हिस्सा होता है. सरकारी मुलाजिम बिना हिस्सा लिए तुम्हारा काम जल्दी नहीं करेंगे.’’

‘‘मालिक, भला मैं इतना पैसा कहां से लाऊंगा?’’ भीखरा ने कहा.

‘‘यह तो तुम्हारी समस्या है, तुम ही जानो,’’ मुखियाजी ने कहा.

‘‘तब मालिक, आप ही दे दीजिए. मैं आप को धीरेधीरे चुका दूंगा.’’

‘‘देखो भीखरा, मेरे पास इस समय पैसा नहीं है. तुम देख ही रहे हो कि यह गाड़ी मैं ने साढ़े 6 लाख रुपए में खरीदी है और घर का खर्च… इसलिए मैं लाचार हूं. मेरे पास होता, तो मैं तुम्हें जरूर दे देता. तुम कहीं और से उपाय कर लो.’’

‘‘मैं कहां जाऊं मालिक. मैं तो आप के भरोसे यहां आया था. मेरे बापदादा ने इस घर की बहुत सेवा की है मालिक.’’

‘‘तुम कह तो ठीक ही रहे हो, पर इस समय चाह कर भी मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता.’’

मुखियाजी मंजे हुए खिलाड़ी थे. वे जानते थे कि अगले चुनाव में भीखरा की जाति के वोट बड़ी अहमियत रखेंगे और हर चुनाव में वे इन्हीं लोगों के वोट से जीतते आए हैं.

वे भीखरा को नाराज भी नहीं करना चाहते थे, साथ ही अपना कमीशन भी वसूल कर लेना चाहते थे.

इस समय भीखरा पर पक्का मकान बनाने का नशा सवार था, इसलिए वह कहीं न कहीं से उधार जरूर लेगा. बीडीओ साहब के हर आवंटन पर उन का 15 सौ रुपए कमीशन तय था और वे इसे जाने नहीं देना चाहते थे.

‘‘देखो भीखरा, अभी तो तुम कहीं और से कर्ज ले लो और अपना मकान बनवा लो.

‘‘सोचो, पक्का मकान बन जाएगा, तब तुम लोगों को कितना आराम हो जाएगा. बरसात में तुम्हारी   झोंपड़ी में नाली का पानी नहीं घुसेगा और न   झोंपड़ी तेज बारिश में टपकेगी.’’

‘‘लेकिन मालिक, मैं रोजरोज मजदूरी करने वाला आदमी इतने पैसे कहां से लाऊंगा?’’ भीखरा ने कहा.

‘‘एक उपाय है. तुम बालमुकुंद पांडे के पास जाओ और मेरा नाम ले कर कहना कि मैं ने तुम्हें भेजा है. उन के पास पैसा है. वे जरूर तुम्हें दे देंगे,’’ मुखियाजी ने उसे सम  झाते हुए कहा.

भीखरा वहां से उठ कर बालमुकुंद पांडे के पास गया. वे बरामदे में कुरसी पर बैठ कर अपने पोते को खिला रहे थे. भीखरा की  झोंपड़ी और उन का मकान आमनेसामने था. बीच में गली पड़ती थी.

बालमुकुंद पांडे ने उस से बहुत बार कहा था कि वह अपनी जमीन उन्हें बेच दे. उस में वे अपनी गायों को बांधने के लिए गोशाला बनाना चाहते थे, लेकिन भीखरा ने मना कर दिया था.

वैसे, बालमुकुंद पांडे उस से जमीन खरीदना चाहते थे. भीखरा की झोंपड़ी से पांडेजी के मकान की खूबसूरती मिट रही थी. वे रोज सुबहसुबह एक दलित का मुंह भी नहीं देखना चाहते थे.

भीखरा ने जैसे ही उन के बरामदे के नीचे से ‘पंडितजी प्रणाम’ कहा, तभी उन का माथा ठनका कि भीखरा आज इधर कैसे? जरूर कोई बात है.

उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘‘आओ भीखरा, आज तुम इधर कैसे आ गए?’’

‘‘पंडितजी, मुखियाजी ने भेजा है.’’

‘‘क्यों? कोई बात है क्या?’’

‘‘हां पंडितजी,’’ भीखरा ने उन्हें सारी बातें सचसच बता दीं.

बालमुकुंद पांडे बोले, ‘‘भीखरा,  यह मौका हाथ से जाने मत दो,’’ और मन ही मन वे सोचने लगे, ‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे.’

फिर उन्होंने पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?’’

भीखरा ने कहा, ‘‘पंडितजी, मुझे  4 हजार रुपए उधार चाहिए. मैं धीरेधीरे कर के चुका दूंगा.’’

‘‘मैं कहां कह रहा हूं कि तुम नहीं दोगे? मैं तुम्हें पैसे जरूर दूंगा, जिस से तुम्हारे पास पक्का मकान हो जाए.’’

‘‘पंडितजी, आप की बड़ी मेहरबानी होगी. मेरे बच्चे जिंदगीभर आप का एहसान नहीं भूलेंगे.’’

‘‘लेकिन, देखो भीखरा…’’ पंडितजी ने पैतरा बदलते हुए कहा, ‘‘भाई, यह पैसे के लेनदेन का मामला है. इस के लिए तो तुम्हें कुछ गिरवी रखना पड़ेगा और इस पैसे का ब्याज मैं महीने का 8 रुपए प्रति सैकड़ा के हिसाब से लूंगा.’’

‘‘ब्याज तो मालिक हम हर महीने चुकाते जाएंगे, पर गिरवी रखने लायक मेरे पास है ही क्या?’’ भीखरा ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘तुम्हारे पास जमीन है न, उसी को गिरवी रख दो. सरकार तुम्हें जो पैसा देगी, उसी में से तुम कुछ बचत कर के मु  झे लौटा देना और अपने कागज ले जाना,’’ पंडितजी ने  कहा.

भीखरा तैयार हो गया. उस ने एक सादा स्टांप पेपर पर अपने अंगूठे के निशान लगा दिए. पंडितजी ने गांव के ही 2 लोगों के गवाह के रूप में दस्तखत करा कर भीखरा को पैसे दे दिए.

भीखरा ने वह पैसे मुखियाजी को दे दिए. मुखियाजी ने उसे भरोसा दिलाया कि वे उस का काम बहुत जल्दी कराने की कोशिश करेंगे, पर उस का काम होतेहोते 2 साल लग गए.

आज उस के घर में गृह प्रवेश था. पंडितजी ने कहा, ‘‘अब तुम दोनों एकसाथ घर में प्रवेश करो. पहले मंगली जाएगी और उस के पीछेपीछे तुम.’’

उसी समय न जाने कहां से बालमुकुंद पांडे वहां पहुंच गए और जोर से बोले, ‘‘भीखरा, तुम गृह प्रवेश तब करोगे, जब मेरा पैसा चुका दोगे.’’

भीखरा ने कहा, ‘‘पंडितजी, हम आप का सारा पैसा दे देंगे. अभी तो हमें गृह प्रवेश कर लेने दीजिए.’’

‘‘नहीं, आज मैं किसी की नहीं सुनूंगा. जब से तुम ने पैसा लिया है, तब से एक रुपया भी नहीं दिया है. इस समय मूल पर ब्याज लगा कर 19,369 रुपए होते हैं. ये रुपए मुझे दे दो और खुशीखुशी गृह प्रवेश करो.’’

‘‘पंडितजी, इतना पैसा कैसे हो गया?’’ भीखरा की पत्नी ने पूछा.

‘‘तुम्हारी सम झ में नहीं आएगा. ऐ रामलोचन, तुम आओ… मैं तुम्हें सम झाता हूं,’’ पंडितजी ने रामलोचन को आवाज दे कर कहा.

पंडितजी ने उसे समझाया, तो वह भी मान गया कि पंडितजी सही कह रहे हैं.

भीखरा ने बालमुकुंद पांडे से प्रार्थना की, पर वे नहीं माने. थोड़ी देर में मुखियाजी भी वहां पहुंच गए.

भीखरा ने उन से भी कहा, पर उन्होंने साफ कह दिया कि वे इस में उस की कोई मदद नहीं कर सकते. या तो पंडितजी के रुपए लौटा दो या जमीन छोड़ दो.

‘‘मालिक, लेकिन हम अपने बच्चों को ले कर कहां जाएंगे? अब तो मेरी   झोंपड़ी भी नहीं रही,’’ भीखरा ने मुखियाजी से गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘वह तुम सोचो. जिस दिन पंडितजी से तुम ने रुपए उधार लिए थे, उस दिन नहीं सोचा था?’’ मुखियाजी ने कहा.

उस समय वहां पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सभी भीखरा को ही कुसूरवार ठहरा रहे थे.

भीखरा ने हाथ जोड़ कर पंडितजी से कहा, ‘‘पंडितजी, इस समय हम आप का पैसा देने में लाचार हैं. हम यह गांव छोड़ कर जा रहे हैं. अब यह मकान आप का है और आप ही इस में गृह प्रवेश कीजिए.’’

थोड़ी देर बाद अपनी आंखों में आंसू लिए दोनों पतिपत्नी अपने बच्चों के साथ गांव छोड़ कर चले गए.

इधर पंडितजी अपनी पत्नी के साथ उस घर में हंसीखुशी गृह प्रवेश कर रहे थे.

आनंद मोहन तिवारी         

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