आमतौर पर समझा यही जाता है कि आईआईटी, मेडिकल कालेजों, इंजीनियङ्क्षरग कालेजों में पढ़ाई के दरवाजे सिर्फ प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्टूडेंट्स के लिए खुली हैं. दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 2200 से ज्यादा सरकारी स्कूलों के युवाओं ने नीट, जेईई मेन व जेईई एडवांस एक्जाम क्वालीफाई करके साबित किया है कि स्कूल या मीडिया नहीं स्कूल चलाने बालों की मंशा ज्यादा बड़ा खेल खेलती है.

अरङ्क्षवद केजरीवा की आम आदमी पार्टी जो एक तरफ धर्मभीरू है, भाजपा की छवि लिए घूमती है, दूसर और भाजपा की केंद्र सरकार और उस के  दूत उपराज्यपाल के लगातार दखल से परेशान रहती है, कुछ चाहे और न करे, स्कूलों का ध्यान बहुत कर रही है. सरकारी स्कूलों के एक शहर के इतने सारे युवा इन एक्जाम में पास हो जाएं जिन के लिए अमीर घरों के मांबाप लाखों तो कोङ्क्षचग में खर्च करते हैं, बहुत बड़ी बात है.

यह पक्का साबित करता है कि गरीबी गुरबत और ज्ञान न होना जन्मजात नहीं, पिछले जन्मों के कर्मों का फल नहीं, ऊंचे समाज की साजिश है. एक बहुत बड़ी जनता को गरीबी में ही नहीं मन से भी फटेहाल रख कर ऊंचे लोगों ने अनपढ़ सेवकों की एक पूरी जमात तैयार कर रखी है जो मेहनत करते हैं, क्या करते हैं पर उस में स्विल की कमी है, लिखनेपढऩे की समझ नहीं हैै.

सरकारी स्कूल ही उन के लिए एक सहारा है पर गौ भक्त राज्यों में ऊंची जातियों के टीचर नीची जातियों के छात्रों के पहले दिन से ऊंट फटका कर निकम्मा बना देते हैं कि उन में पढऩे का सारा जोश ठंडा पड़ जाता है और वे या तो गौर रक्षक बन डंडे चलाना शुरू कर देते हैं या कांवड ढोने लगते हैं. केजरीवाल की सरकार के स्कूलों में उन्हें पढऩे की छूट दी, लगातार नतीजों पर नजर रखी. ये लोग चाहे जैसे भी घरों से लाए, पढऩे की तमन्ना थी और जरा सा हाथ पकडऩे वाले मिले नहीं कि सरकारी स्कूलों ने 2000 से ज्यादा को इंजीनियङ्क्षरग और मेडिकल कालेजों की खिड़कियां खोल दीं.्र

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