शेखू मियां के घर पर ठहरे मौलाना ने बताया कि हर मुसलिम को शौक के साथ दाढ़ी रखना लाजिम है. यह खुदा का नूर है. इस से मोमिन की अलग पहचान होती है.
‘बात हक और सच की है,’ कहते हुए सभी ने हां में हां मिलाई.
मौलाना रोज शरीअत की बातें बताते. धीरेधीरे यह बात फैली और आसपास के लोग इकट्ठा हो कर उन की हर बात ध्यान से सुनते और उन पर अमल करते.
जब भी उन के चाहने वालों ने उन से उन का नामपता जानना चाहा, तो वे बात को टाल देते. खुद शेखू मियां को नहीं मालूम कि वे कहां से आए?
शेखू मियां के औलाद नहीं थी. गांव के आसपास के इलाकों में उन की काफी शोहरत थी. वे नौकरचाकर, खेती को देखते और 5 वक्त की नमाज करते. मौलाना की बातों से वे उन के दीवाने हो गए.
मौलाना ने कहा, ‘‘मेरा दुनिया में कोई नहीं. दो वक्त का खाना और कपड़े, सिर छिपाने के लिए छत और इबादत… इस के सिवा मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’
मौलाना की बात पर यकीन कर शेखू मियां ने उन्हें मसजिद में रख लिया.
‘‘शादाब बेटा, तुम्हें हम आलिम बनाना चाहते हैं,’’ अब्बू ने कहा.
‘‘ठीक है अब्बू, मैं मदरसे में जाने को तैयार हूं.’’
‘‘तो ठीक है,’’ अब्बा ने कहा.
2 दिन बाद शादाब के अब्बू शहर के मदरसे में उसे भरती करा आए.
‘‘देखो बेगम, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं. मैं ने खाने व रहने का बंदोबस्त मदरसे में ही कर दिया है. वहां और भी लड़के हैं, जो तालीम ले रहे हैं,’’ मौलाना ने बीवी को सम?ाया.
उन का बेटा शादाब शहर में तालीम पाने लगा. अभी उस की तालीम पूरी भी नहीं हो पाई थी कि एक सड़क हादसे में उस के अब्बूअम्मी का इंतकाल हो गया. शादाब पढ़ाई छोड़ कर घर आ गया.
घर पर उस के चाचाचाची, 2 बच्चे थे. शादाब वहीं उन के साथ रहने लगा. शादाब की चाची पढ़ीलिखी, निहायत खूबसूरत, चुस्तचालाक व आजाद खयालों की औरत थी.
वह शादाब से खूब हंसीमजाक करती, उस के आसपास मंडराती रहती. घर पर उस का ही हुक्म चलता.
‘‘सुनो शादाब मियां, जवानी में बु?ाबु?ा सा चेहरा, दाढ़ी अच्छी नहीं लगती. नए जमाने के साथ चलो. अब कौन मदरसे में पढ़ाई कर रहे हो.’’
चाची के कहने पर उस ने दाढ़ी साफ करा ली. नए फैशन के कपड़े पहनना शुरू कर दिया. वह चाची का दिल नहीं तोड़ना चाहता था, बल्कि वह चाची को मन ही मन चाहने लगा था.
चाचा को शादाब की यह हरकत बिलकुल पसंद नहीं थी कि वह उस की बीवी के पास रहे.
तभी एक दिन नौकरानी ने कहा, ‘‘अंदर जा कर देखिए… क्या तमाशा हो रहा है?’’
इधर एक कचरा उड़ कर शादाब की चाची की आंख में चला गया था.
‘‘शादाब देखना… मेरी आंख में कचरा चला गया है, जरा निकाल दो,’’ कह कर वह पलंग पर लेट गई और शादाब ?ाक कर उस की आंख से कचरा निकालने लगा.
शादाब का पूरा जिस्म चाची पर ?ाका देख कर चाचा जोर से चिल्लाया, ‘‘यह क्या हो रहा है?’’
‘‘कुछ नहीं, आंख में कचरा चला गया था. शादाब से निकालने को कहा… और क्या?’’ कह कर वह पलंग से उठ कर खड़ी हो गई.
चाचा शादाब की खोटी नीयत को पहचान गया. उस ने गांव वालों के साथ मिल कर ऐसी चाल चली कि उस की खूबसूरत बीवी शादाब की बुरी नीयत से बच जाए और शादाब की जायदाद भी हड़पी जा सके.
‘‘क्यों मियां, मदरसे में यही तालीम मिली है कि तुम मदरसा छोड़ते ही दाढ़ीमूंछ रखना भूल जाओ? कौन कहेगा तुम्हें आलिमहाफिज?’’
खोटी नीयत, नए पहनावे, बगैर दाढ़ी के पा कर पंचायत ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. पंचायत में मौजूद मुल्लामौलवी
ने शादाब को गांव से बाहर रहने का तालिबानी हुक्म सुना दिया.
शादाब भटकता हुआ शेखू मियां के गांव पहुंचा. उस ने सालभर में नमाजियों की तादाद बढ़ा ली. उस के चाहने वालों की तादाद में इजाफा होता गया. इसी बीच उस ने ऐसी शैतानी हरकत की, जिसे सुन कर इनसानियत भी शर्मसार
हो गई.
वह शेखू मियां को भाई साहब और उस की बीवी को भाभीजान कहता था.
एक दिन उस ने शेखू मियां से कहा, ‘‘भाभी बीमारी से परेशान हैं. इन्हें दवा के साथ दुआ की भी जरूरत है. भाभी जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’
‘‘वह तो ठीक है. आदमी ढूंढ़ना पड़ेगा,’’ शेखू ने कहा.
‘‘उस की जरूरत नहीं. मैं जो हूं…’’ शादाब ने कहा, ‘‘आप कहें, तो मैं कल से भाभीजान के लिए तावीज फूंकने का इंतजाम करा दूं.’’
‘‘ठीक है,’’ शेखू मियां ने कहा.
अगले दिन शादाब ने भाभीजान को तावीज दिया. इस से शेखू की बीवी को आराम लगने लगा. उन्होंने राहत की सांस ली.
अब दवा और दुआ दोनों साथसाथ चलने लगीं.
शेखू मियां की खूबसूरत बीवी के बदन पर सोने के गहने को देख कर शादाब के अंदर का शैतान जाग उठा. वह भूल गया कि मदरसे में बच्चों को तालीम देने के साथसाथ नमाज भी पढ़ता है. नमाजी परहेजी मौलाना है. लोग उस की इज्जत करते हैं.
‘‘मौलाना, आज मेरा पूरा जिस्म दर्द कर रहा है. सीने में जलन हो रही है,’’ शेखू मियां की बीवी ने कहा.
‘‘ठीक है, मैं राख से ?ाड़ देता हूं,’’
और फिर हाथ में कुछ राख ले कर शादाब बुदबुदाया. फिर राख को ही बेगम की बांहों पर मलने लगा. पराए मर्द के हाथ लगाते ही उसे अजीब सा महसूस हुआ, पर उसे अच्छा लगा शादाब का जिस्म छूना.
और फिर सिलसिला चल पड़ा. दोनों करीब आते गए और उन में जिस्मानी ताल्लुकात बन गए.
दोनों के बीच सालभर रंगरलियां चलीं. धीरेधीरे उन के बीच इतनी मुहब्बत बढ़ गई कि वे दुनिया को भूल बैठे.
यह खबर शेखू मियां तक पहुंची, पर वह मौलाना को नेकनीयत, काबिल इनसान, नमाजीपरहेजी सम?ा कर इसे सिर्फ बदनाम करने की साजिश सम?ा बैठा और जब बात हद से ज्यादा गुजर गई, तो उस ने इस की आजमाइश करनी चाही.
‘‘सुनो बेगम, मैं एक हफ्ते के लिए बाहर जा रहा हूं. तुम घरखेती पर नजर रखना. नौकर भी मेरे साथ जा रहा है. हफ्तेभर की तो बात है,’’ शेखू ने कहा.
‘‘जी, आप बेफिक्र रहें, मैं सब संभाल लूंगी,’’ बेगम ने कहा.
‘‘देखो मौलाना, अब हम एक हफ्ते के लिए बेफिक्र हैं. तुम्हारे भाई साहब एक हफ्ते बाद लौटेंगे, तब तक हम जी भर के मिलेंगे. डर की कोई बात नहीं,’’ बेगम ने मौलाना शादाब से कहा.
अब शेखू की गैरहाजिरी में दिल खोल कर मिलनेजुलने का सिलसिला चला. तीसरे दिन शेखू मियां अचानक रात में घर आ पहुंचे.
अपनी बीवी को मौलाना की गिरफ्त में देख कर शेखू मियां का खून खौल उठा. गवाही के लिए नौकर को भी बुला कर अपनी मालकिन का नजारा दिखा दिया. फिर चुपके से वह खेत के घर में जा कर सो गए.
सुबह गांव की पंचायत शेखू के बुलावे पर जमा हुई. कानाफूसी का दौर चला.
‘‘पंचायत की कार्यवाही शुरू की जाए,’’ एक बुजुर्ग ने कहा.
‘‘अरे भई, मौलाना को तो आने दो,’’ एक सदस्य ने कहा.
‘‘उन की ही तो पंचायत है,’’ एक नौजवान ने कहा.
‘वह कैसे?’ सभी एकसाथ कह उठे.
शेखू मियां ने तफसील से बात पंचों को बताई. लोगों का शक ठीक था.
‘‘बीवी का शौहर रहते हुए पराए मर्द से हमबिस्तरी करना, दाढ़ी की आड़ में एक नमाजी का मसजिदमदरसे में तालीम के नाम पर वहशीपन करना मजहब की आड़ में घिनौनी साजिश है.’’
‘‘अनपढ़ औरतें जल्दी ही मजहब के नाम पर ढोंग, अंधविश्वास, तांत्रिक के बहकावे में तावीज, गंडे, ?ाड़नेफूंकने के नाम पर अपना सबकुछ लुटा देती हैं, इसलिए औरतमर्द का पढ़ालिखा, सम?ादार होना जरूरी है, ताकि वे धर्म के इन ठेकेदारों, शैतानों के बहकावे में न आ सकें,’’ कह कर शेखू चुप हो गए.
तभी एक बुजुर्ग ने कहा, ‘‘दोनों को पंचायत में बुलाया जाए.’’
जमात के कहने पर 2 आदमी मौलाना और शेखू की बीवी को लेने गए.
लौट के आ कर उन्होंने बताया कि मसजिद में न तो मौलाना है और न घर पर शेखू की बेगम.