नमस्ते मांजी, चरण स्पर्श.
आप के ‘जवाबी खत’ ने मेरे भटके हुए मन को एकदम सही रास्ता दिखाया है. दिल्ली से तबादला होने पर मैं कश्मीर आया. यहां मुझे आतंकवादियों से निबटने के लिए तैयार किए जा रहे ‘विशेष दल’ के लिए चुना गया.
यहां की रोजमर्रा की जिंदगी में आतंकवाद की काली छाया छाई हुई है. वैसे, मेरी ड्यूटी भारतपाक बौर्डर से सटे एक कसबे में लगी है. यहां बौर्डर पर आएदिन छिटपुट गोलीबारी होती रहती है.
मेरे यहां आने के अगले ही दिन की यह घटना है... शाम को हमें खबर मिली कि कश्मीर में कुछ आतंकवादियों ने शहर के बीच गोलीबारी की है. हम लोग फौरन उस जगह पर पहुंचे. वहां मैं ने देखा कि सड़क के बीच खून से लथपथ कुछ लाशें पड़ी थीं. मशीनगन की गोलियों से छलनी लाशें देख कर मैं भी एक पल के लिए कांप गया.
वहीं एक लाश के पास एक जख्मी औरत बेबस सी बैठी थी. उस की आंखों से आंसू रुक ही नहीं रहे थे. वह लाश उस के पति की थी. पूछने पर उस ने बताया, ‘मेरे पति पर गोलियां दागने के बाद दहशतगर्द मेरी जवान लड़की को जबरदस्ती उठा कर मोटरसाइकिल पर ले गए.’
उस औरत की कहानी सुन कर मैं बहुत दुखी हो गया. मैं ने उसे धीरज बंधाया, लेकिन मन ही मन मैं बेहद डर गया था. सड़क पर मौत का नंगा खेल देख कर मैं इतना डर गया था कि जब अपने कैंप में पहुंचा, तो बिस्तर पर लेटेलेटे सोचने लगा कि जो हादसा मैं ने इन आंखों से देखा है, अगर उस में उस आदमी की जगह आतंकवादियों ने मुझे मार डाला होता, तो आप पर क्या गुजरती? आप की बहू भरी जवानी में विधवा हो जाती.
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