पारितोष ने 500-500 रुपए के नोट की 24 गड्डियों को गिन कर अपने बैग में रखते हुए कहा, ‘‘तेजपालजी, अब आप को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. जल्दी ही आप का बेटा सरकारी नौकरी में होगा, वह भी भारत की राजधानी नई दिल्ली में.’’

‘‘हांजी, अब तो सब आप के हाथ में है पारितोष साहब.’’

पारितोष को अब जटपुर गांव से निकलने की जल्दी थी. 12 लाख रुपए उस के हाथ में इतनी आसानी से आ चुके थे, जिस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.

पारितोष कार में बैठते हुए बोला, ‘‘तेजपालजी, बस एक बात का ध्यान रखना कि यह मामला हम दोनों के बीच का है, तो किसी तीसरे को इस की भनक भी नहीं लगनी चाहिए.’’

‘‘अरे साहब, मैं किसी से क्यों कुछ बताने लगा. मैं ने तो आप के आने तक की खबर किसी गांव वाले को नहीं दी. मुझे तो बस अपने बेटे की नौकरी से मतलब है’’

‘‘उस की चिंता मत करो तेजपालजी. नौकरी तो लग गई समझ,’’ कहते हुए पारितोष ने अपनी कार की चाबी घुमाई और वहां से चल पड़ा. कुछ ही देर बाद उस की कार मेन रोड की तरफ दौड़ने लगी थी.

चौधरी तेजपाल कार को तब तक जाते देखते रहे, जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

चौधरी तेजपाल पारितोष को इतनी बड़ी रकम दे कर काफी राहत महसूस कर रहे थे. अब उन का छोटा बेटा अनिल उन को ताना नहीं मार सकता था, ‘पापा, आप ने मेरे लिए किया ही क्या है?’

जब चौधरी तेजपाल का बड़ा बेटा सुनील सेना में मेकैनिक के पद पर भरती हुआ था, तब भी उन्होंने 8 लाख रुपए दलाल को दिए थे.

तब सुनील ने उन से बारबार कहा था, ‘पापा, आप को किसी को एक पैसा देने की जरूरत नहीं है. देखना, मैं अपनी काबिलीयत से हर टैस्ट क्वालिफाई कर जाऊंगा.’

लेकिन बाप का दिल था कि मानता ही नहीं था. चौधरी तेजपाल के कानों में यह बात ठूंसठूंस कर भर दी गई थी कि बिना पैसे दिए कोई काम नहीं होता है, इसलिए वे बेटे की नौकरी लगवाने में कोई भी चूक नहीं करना चाहते थे.

यह सोच कर कि नौकरी न लगने पर कहीं सारी जिंदगी पछताना न पड़े कि काश, पैसे दे दिए होते, इसलिए चौधरी तेजपाल ने किसी की कोई बात नहीं सुनी थी और दलाल के हाथों में चुपचाप 8 लाख रुपए रख दिए थे.

जब सुनील की नौकरी लग गई, तो चौधरी तेजपाल को यह सोच कर बड़ी संतुष्टि मिली कि उन्होंने बाप का फर्ज बखूबी निभाया. उन्हें 8 लाख रुपए का कोई गम नहीं था. वे तो यही सोचते रहे कि उन्हीं 8 लाख रुपए की बदौलत सुनील की नौकरी लगी है.

लेकिन सुनील को यह बात आज तक कचोटती है कि उस के पापा ने उस की काबिलीयत पर यकीन न कर के 8 लाख रुपए की रिश्वत पर यकीन किया.

छोटा बेटा अनिल चौधरी तेजपाल को हमेशा ताने मारता रहता कि बड़े भैया के लिए तो उन्होंने तुरंत दलालों को 8 लाख रुपए दे दिए, लेकिन उस के लिए कुछ नहीं करते.

उन्हीं दिनों खतौली के रहने वाले एक रिश्तेदार ने चौधरी तेजपाल को पारितोष से मिलवाया, जो दिल्ली के जल विभाग में अफसर था. उस रिश्तेदार ने उन्हें यह भी बताया था कि पारितोष ने कई लड़कों को जल विभाग के साथसाथ दूसरे विभागों में सैट कराया है.

पारितोष जुगाड़ू आदमी था और उस की पहुंच ऊपर तक थी. उस ने नौकरी की दलाली की कला अपने ही विभाग के एक आला अफसर से सीखी थी. उस अफसर ने पारितोष को बताया था कि नौकरी चाहने वालों से पैसे पकड़ लो, उन्हें इम्तिहान में बैठाओ.

अगर उन लड़कों में से कोई क्वालिफाई कर जाए तो उसे बताओ कि उस का नंबर लाने में हम ने कितनी मेहनत की है. उस का पैसा हजम कर जाओ. जिंदगीभर वह तुम्हारा एहसानमंद भी रहेगा कि तुम ने उस की नौकरी लगवाई.

जिस के पैसे तुम ने पकड़ रखे हैं और अगर उस का नंबर नहीं आया, तो उसे भी बताओ कि हम ने कोशिश तो बहुत की, लेकिन इस बार जुगाड़ नहीं हो पाया, पर अगली बार जरूर हो जाएगा.

अगर वह पैसे वापसी की जिद करे, तो अनापशनाप खर्चे बता कर उस से लाख 2 लाख तो झटक ही लो, बाकी वापस कर दो. पैसा हमेशा नकदी में और अकेले में पकड़ो, जिस से दूसरे को कानोंकान भी खबर न हो.

तब चौधरी तेजपाल ने पारितोष से संबंध गांठने शुरू किए. पारितोष ने पैसे ले कर 6 महीने के अंदर अपने ही विभाग में अनिल की क्लर्क की नौकरी लगवाने का वादा किया था, लेकिन 6 महीने गुजरने के बाद भी पारितोष कोई साफ जवाब नहीं दे रहा था. कभी कोई बहाना, तो कभी कोई बहाना.

तंग आ कर एक दिन तेजपाल अपने बेटे अनिल को ले कर पारितोष के दिल्ली औफिस पहुंच गए. पारितोष तो जैसे उन के आने का ही इंतजार कर रहा था. उन को देखते ही उस ने कहा, ‘‘बधाई हो तेजपालजी, आप के बेटे की नौकरी लग गई है. नौकरी वाली लिस्ट में उस का नाम आ गया है.’’

यह सुनते ही तेजपाल की आंखें खुशी से चमक उठीं. अनिल के चेहरे पर भी मुसकान तैर गई.

तभी पारितोष ने अपनी दराज में से एक प्रिंटेड पेपर निकाला और तेजपालजी की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘देखो, इस में दूसरे नंबर पर तुम्हारे बेटे अनिल का नाम है.’’

लिस्ट में नाम देखते ही चौधरी तेजपाल तो जैसे खुशी से पागल हो गए. वे बारबार उस पेपर को माथे से लगाने लगे, फिर खुश हो कर अनिल से कहा, ‘‘ले बेटा, तू भी देख ले लिस्ट में अपना नाम. मेरी जिंदगी का एक और सपना पूरा हो गया.’’

अनिल भी खुश हो कर उस पेपर को बड़े ध्यान से पढ़ने लगा. अपना नाम देख कर उस की खुशी का भी कोई ठिकाना न था. तभी कुछ सोच कर वह औफिस से बाहर आया और चौकीदार के पास जमा अपना मोबाइल फोन उस से ले लिया.

अनिल पढ़ालिखा नए जमाने का लड़का था. उस ने इंटरनैट पर दिल्ली जल विभाग में हुई नई नियुक्तियों के बारे में सर्च करना शुरू किया, लेकिन उसे कहीं भी ऐसी कोई लिस्ट नहीं मिली.

अनिल ने इशारे से अपने पापा को बुलाया और कहा, ‘‘मुझे तो यह लिस्ट फर्जी लगती है. इंटरनैट पर तो कोई भी ऐसी लिस्ट नहीं है. पारितोष सर से कहिए कि इंटरनैट पर लिस्ट दिखाएं.’’

लेकिन इंटरनैट पर तो कोई ऐसी लिस्ट तब मिलती, जब उसे अपलोड किया गया होता. पारितोष समझ गया कि कम पढ़ेलिखे और पुराने जमाने के तेजपाल को तो बेवकूफ बनाया जा सकता है, लेकिन नई पीढ़ी के अनिल को नहीं. वह फिर से बहाना बनाते हुए इधरउधर की बातें करने लगा.

अनिल समझ गया कि पारितोष उन्हें चकमा देने की कोशिश कर रहा है. यह देख कर उस का जवान खून उबाल खा गया. उस ने अकड़ते हुए कहा, ‘‘पारितोष सर, या तो एक हफ्ते में आप मुझे नौकरी का जौइनिंग लैटर दे दीजिए या फिर मेरे पापा के पैसे वापस कर दीजिए.’’

‘‘धमकी दे रहे हो क्या?’’ पारितोष ने आंखें दिखाते हुए कहा.

‘‘मैं तो धमकी नहीं दे रहा, लेकिन अगर आप धमकी ही समझ रहे हैं, तो यही समझ लीजिए,’’ अनिल ने कहा.

‘‘क्या सुबूत है कि तुम्हारे पापा ने मुझे पैसे दिए हैं?’’

‘‘मेरे पापा सीधेसादे हैं. उन्होंने तुम पर यकीन कर के पैसे दिए. अगर उन के पास इस बात का कोई सुबूत नहीं है, तो इस का मतलब यह नहीं कि उन्होंने तुम्हें पैसे नहीं दिए.’’

बात को बढ़ता और बिगड़ता देख चौधरी तेजपाल ने दखल दिया. अपने अनुभव का फायदा उठाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘पारितोषजी, इस समय तो हम जा रहे हैं, लेकिन एक हफ्ते बाद फिर आएंगे. या तो आप जौइनिंग लैटर तैयार रखना या फिर हमारी रकम.’’

यह कह कर चौधरी तेजपाल अनिल को ले कर बाहर आ गए.

अनिल गुस्से में बोला, ‘‘पापा, आप ने बीच में टांग अड़ा दी, नहीं तो आज ही आरपार का मामला कर देता.’’

‘‘बेटा, जोश में होश नहीं खोना चाहिए. गुस्से में तू कुछ कर बैठता तो वह हम पर ही उलटा केस ठोंक देता. धमकाने, मारपीट करने, सरकारी काम में बाधा डालने, झूठे आरोप लगाने और भी न जाने क्याक्या. नौकरी तो मिलनी ही नहीं, 12 लाख की बड़ी रकम भी डूब जाती.

‘‘हमारे पास कोई सुबूत नहीं कि हम ने उसे 12 लाख रुपए दिए. मैं ने तो आंखें मूंद कर पारितोष पर यकीन किया था. वह हम पर मुकदमा अलग से करता और मुकदमेबाजी से तेरा कैरियर भी तबाह कर देता. इन सब बातों से बचने और तुझे बचाने के लिए ही बेटा मैं ने टांग अड़ाई.’’

पापा की बात सुन कर अनिल की आंखें खुली की खुली रह गईं. उस ने तो इतनी दूर तक की बात सोची ही नहीं थी. उसे अपने पापा के अनुभव पर गर्व महसूस हो रहा था. वह यह भी समझ गया कि कम से कम अभी पैसे वापस मांगने का रास्ता तो बचा रह गया है. अगर वह पारितोष से लड़ पड़ता, तो वह रास्ता भी बंद हो गया होता.

अब चौधरी तेजपाल के सामने एक ही सवाल मुंहबाए खड़ा था कि पारितोष से पैसा वापस कैसे लिया जाए? उन के पास उसे पैसा देने का कोई भी सुबूत नहीं था. तभी उन्हें अचानक याद आया कि अकसर गन्ना किसान कैसे अपना पैसा ऐसे दलालों के पास फंसा देते हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के साथ अकसर ऐसा होता ही रहता है.  गन्ने का अच्छा पैसा मिल जाता है और किसान अपने बच्चों की नौकरी लगवाने के चक्कर में इन दलालों की बातों में फंस जाते हैं. किसी को नौकरी मिल जाती है, किसी को नहीं मिलती.

इस मायाजाल को आज तक कोई समझ नहीं पाया और बहुतकुछ जानते हुए भी नौकरी के लालच में किसान फंसते ही फंसते हैं.

घर आ कर तेजपाल ने सारा मामला अपनी पत्नी तारा देवी को बताया. तारा देवी एक तेजतर्रार औरत थीं. उन्होंने कुछ सोच कर कहा, ‘‘अनिल के पापा, इस बार तुम जब पारितोष के पास जाओ, तो मुझे भी साथ ले कर चलना.’’

‘‘लेकिन, तुम वहां क्या करोगी?’’

‘‘जो तुम नहीं कर पाए. यकीन करो, मैं वहां काम नहीं बिगाड़ूंगी, बल्कि बनाऊंगी.’’

अगली बार चौधरी तेजपाल अपनी पत्नी तारा देवी और 2 रिश्तेदारों को ले कर पारितोष के औफिस पहुंचे. चौकीदार ने उन के मोबाइल औफिस के बाहर ही रखवा लिए.

चौधरी तेजपाल ने औफिस में ठीक वैसा ही किया जैसा तारा देवी ने उन से करने के लिए कहा था.

तारा देवी पूरी तैयारी के साथ आई थीं. पीली साड़ी, पीला ब्लाउज और उन से मैच करता हुआ मोबाइल का पीला कपड़े का कवर. सबकुछ एक योजना के तहत.

औफिस में पहुंचते ही चौधरी तेजपाल ने हाथ जोड़ते हुए पारितोष से कहा, ‘‘साहब, पिछली बार के लिए माफी मांगता हूं. चलो नौकरी न सही, साहब, हमारे 12 लाख रुपए ही वापस कर दो.’’

पारितोष ने चौधरी तेजपाल और उस के दोनों रिश्तेदारों की जेबों पर एक नजर डाली कि कहीं वे चौकीदार की नजरों से मोबाइल छिपा कर तो नहीं लाए. लेकिन उन के पास ऐसा कुछ नहीं था. फिर एक सरसरी नजर उस ने तारा देवी पर डाली, लेकिन उन के हाथ तो खाली थे.

तब निश्चिंत हो कर पारितोष ने कहा, ‘‘क्यों तेजपालजी, पिछली बार तो तुम और तुम्हारा लड़का बड़ी अकड़ दिखा रहे थे?’’

‘‘अरे साहब, मिट्टी डालिए पिछली बातों पर. लड़का तो नादान है. उस की बातों को दिल पर मत लीजिए.’’

‘‘लेकिन, अगर मैं फिर से यह कह दूं कि क्या सुबूत है तुम्हारे पास कि मैं ने तुम से 12 लाख रुपए लिए हैं?’’

‘‘अरे साहब, सुबूत तो मेरे पास कोई नहीं है कि तुम ने हमारे गांव आ कर फलां तारीख में फलां समय 12 लाख रुपए लिए थे.’’

‘‘हां, मैं ने उस तारीख को उस समय तुम्हारे गांव आ कर तुम से 12 लाख रुपए लिए थे, लेकिन इसे अदालत में कैसे साबित करोगे? अदालत तो सुबूत और गवाह मांगती है.’’

‘‘अरे साहब, मैं अदालत क्यों जाऊंगा यह साबित करने कि आप ने 500-500 रुपए के नोट की 24 गड्डियां अपने चमड़े के बैग में रखी थीं. मेरी खोपड़ी इतनी खराब नहीं हुई है कि आप से दुश्मनी मोल लूं.’’

‘‘तो अब आए न लाइन पर. ये सब काम हुए, लेकिन इन्हें अदालत में साबित करना टेढ़ी खीर है.’’

‘‘अरे साहब, हम आप के खिलाफ जाएंगे ही क्यों? आप ने यही मान लिया है कि आप ने 12 लाख रुपए लिए थे, यही बड़ी बात है. आप मुकर भी तो सकते थे.’’

‘‘तो फिर जाओ. जब मेरे पास पैसे होंगे, मैं तुम लोगों को बुलवा लूंगा. तकादा बिलकुल मत करना, नहीं तो मैं मुकर भी जाऊंगा. फिर तुम क्या कर लोगे? आज के बाद मेरे औफिस में दिखाई मत देना.’’

तारा देवी का मकसद पूरा हो चुका था. उन्होंने तेजपाल से वहां से चलने को कहा. तेजपालजी को समझ में नहीं आ रहा था कि तारा देवी ने यहां आने की जिद की थी, लेकिन उन्होंने तो एक शब्द भी नहीं बोला.

बाहर आ कर तारा देवी ने चौकीदार को अपने पास बुलाया और उस के आगे अपने मोबाइल को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो, अपने साहब का 12 लाख रुपए लेने का वीडियो देखो और आडियो सुनो. सब रिकौर्ड कर लिया गया है. अभी का ताजाताजा.’’

वीडियो रिकौर्डिंग को साफसाफ सुना जा सकता था, जिस में पारितोष 12 लाख रुपए लेने की बात स्वीकार कर रहा है.

रिकौर्डिंग सुनाने के बाद तारा देवी ने चौकीदार से कहा, ‘‘जाओ, कह दो अपने साहब से कि हम अदालत नहीं सीधे विजिलैंस औफिस जा रहे हैं और उस के बाद बड़े अफसरों के पास जाएंगे इस सुबूत के साथ.’’

चौधरी तेजपाल और उस के दोनों रिश्तेदार बड़े हैरान हो कर तारा देवी को देख रहे थे, तभी तारा देवी ने कहा, ‘‘हमें यहां से तुरंत निकलना होगा.’’

अभी उन की कार 10-15 किलोमीटर ही गई होगी, तभी तेजपाल का फोन घनघना उठा. फोन करने वाला पारितोष था. वह घबराते हुए बोला, ‘तेजपालजी, आप के हाथ जोड़ता हूं आप लोग विजिलैंस औफिस मत जाना. वे मेरी नौकरी खा जाएंगे. मैं आज ही आप का पूरा पैसा वापस करने के लिए तैयार हूं. बस, मुझे इतनी बड़ी रकम जुटाने के लिए 2-3 घंटे का समय दे दीजिए.’

चौधरी तेजपाल ने तारा देवी से पूछा कि क्या जवाब देना है, फिर थोड़ी देर के बाद तेजपाल ने कहा, ‘‘हम तुम्हें 4 घंटे का समय देते हैं. तुम पैसा ले कर गाजियाबाद के आउटर पर मेरठ रोड पर गणेश ढाबे के पास मिलना.’’

‘ठीक है, मैं जल्दी से जल्दी पैसा ले कर वहां पहुंचता हूं.’

‘‘ठीक है, आ जाइए पूरा पैसा ले कर, नहीं तो विजिलैंस…’’

‘‘नहींनहीं, तेजपालजी, ऐसा मत करना. मैं आप के आगे हाथ जोड़ता हूं, तबाह हो जाऊंगा मैं. पैसे ले कर आ रहा हूं,’ पारितोष ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

पारितोष समय से पहले आ गया. चौधरी तेजपाल की कार गणेश ढाबे से कुछ आगे एक पेड़ के नीचे खड़ी थी.

पारितोष ने आते ही कार में से चमड़े का भारी बैग निकाला और चौधरी तेजपाल की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘गिन लीजिए, एक रुपया भी कम नहीं है.’’

चौधरी तेजपाल ने वह बैग कार में बैठे अपने रिश्तेदारों को रुपए गिनने के लिए दे दिया. पैसा पूरा था.

घबराए हुए पारितोष को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था कि पूरी चौकसी बरतने के बाद भी आखिर उस की वीडियो कैसे बन गई. जब उस ने यह बात पूछी, तो तारा देवी ने अपने ब्लाउज की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘ऐसे… और अभी भी तुम्हारी वीडियो रिकौर्ड हो रही है. तुम्हारे जैसे जालसाजों के लिए ऐसी जालसाजी करनी पड़ती है. पीली साड़ी, पीला ब्लाउज और मोबाइल का ब्लाउज के कपड़े से मैच करता हुआ कवर, जिस से तुम्हारा चौकीदार और तुम दोनों गच्चा खा गए.

‘‘अब हमारे पास तुम्हारे खिलाफ सारे सुबूत हैं. अगर अब तुम ने भविष्य में ऐसी हरकत किसी के साथ भी की तो ये सारे सुबूत विजिलैंस औफिस, तुम्हारे बड़े अफसरों और अदालत को सौंपे जाएंगे.’’

पारितोष ने उन के सामने कान पकड़ कर और उठकबैठक लगा कर माफी मांगी कि अब भविष्य में वह यह काम किसी के साथ नहीं करेगा. उसे अंदाजा नहीं था कि चुप रहने वाली और सीधीसादी दिखाई देने वाली गांव की एक औरत इतनी शातिर दिमाग भी हो सकती है.

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