Social Story : यमुनानगर में बसे छोटे मौडल टाउन इलाके का एक लड़का गगन शर्मा वहां के मुकुंदलाल कालेज में बीकौम थर्ड ईयर का छात्र था और सुमनप्रीत कौर भी यमुनानगर से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर एक छोटे से कसबे मुस्तफाबाद की लड़की थी, जो उसी कालेज में पढ़ती थी. वह बीकौम के फर्स्ट ईयर की छात्रा थी.
सुमनप्रीत का कद 5 फुट, 3 इंच लंबा था, उस का रंग गोरा, लंबे और घने काले बाल, समुद्र के हलके नीले पानी जैसी आंखें, तीखी नाक, लंबी सुराहीदार गरदन और ऊंचे उठे उभार उसे दूसरी लड़कियों से अलग बनाते थे.
वहीं गगन शर्मा 5 फुट, 6 इंच का गोराचिट्टा लड़का था. उस का चौड़ा सीना, घुंघराले बाल, छोटीछोटी बारीक सी मूंछें थीं. वह साधारण सी पैंटशर्ट पहन कर आता था, मगर उस में भी ऐसा लगता था, मानो कहीं का राजकुमार हो.
लेकिन लड़कियों के मामले में गगन शर्मीला था, पर वह पढ़ाई में होशियार था और हर साल पूरी क्लास तो क्या राज्यभर में अव्वल रहता था, इसलिए सारा कालेज उसे जानतापहचानता था.
सुमनप्रीत कौर ने भी गगन के बारे में सुना, तो मन में मिलने की भी इच्छा होने लगी.
आखिरकार एक दिन उन दोनों का आमनासामना भी हो गया. कैंटीन में सुमनप्रीत कौर और उस की एक सहेली रजनीत कौर बैठी कौफी पी रही थीं कि तभी अचानक 2 लड़के कैंटीन में आए और कोई भी टेबल खाली न होने पर वापस जाने लगे.
तभी उन में से एक लड़के पम्मे ने कहा, ‘‘गगन, वह सीट खाली है. चल, वहां चल कर बैठते हैं.’’
‘‘नहीं यार पम्मे, वहां नहीं यार. वे लड़कियां बैठी हैं. ऐसे किसी को डिस्टर्ब क्यों करें…’’
‘‘अरे, लड़कियां हैं तो क्या हुआ, उन से पूछ कर ही बैठेंगे,’’ पम्मे ने कहा.
ये बातें सुमनप्रीत और उस की सहेली रजनीत कौर ने सुन ली थीं.
रजनीत कौर ने गगन की बात सुन कर इशारा कर के सुमनप्रीत को बताया, ‘‘यही गगन है और साथ में उस का दोस्त परमजीत सिंह है.’’
इतने में परमजीत सिंह वहां आ गया और उन दोनों से वहां बैठने की इजाजत मांगी.
रजनीत कौर ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, सामने की सीट खाली है, आप बैठिए.’’
लेकिन सुमनप्रीत कौर कुछ नहीं बोल पाई. वह तो बस गगन को एकटक देखे जा रही थी.
गगन और पम्मा दोनों ‘धन्यवाद’ कह कर बैठ गए.
रजनीत कौर ने उन्हें सुमनप्रीत कौर से मिलवाया, ‘‘यह है मेरी सहेली सुमनप्रीत कौर… और सुमन, ये हैं गगन शर्मा और परमजीत सिंह.’’
लेकिन सुमनप्रीत को तो जैसे होश ही नहीं था. वह तो बुत बनी केवल गगन को देखे जा रही थी.
रजनीत कौर ने सुमनप्रीत को कुहनी मारी, तब सुमन को अहसास हुआ कि उसे कुछ कहा है किसी ने.
सब ने आपस में ‘हायहैलो’ किया. इतने में वेटर आया और उन दोनों का और्डर दे गया. सब चुपचाप अपनी कौफी पी रहे थे, लेकिन सुमन की नजरें गगन से हट ही नहीं रही थीं.
इतने में क्लास का समय हो गया. वे सब अपनीअपनी क्लास में चले गए.
रजनीत कौर ने सुमनप्रीत से कहा, ‘‘सुमन, क्या हुआ? तुम किस दुनिया में खोई हुई थी?’’
‘‘पता नहीं यार, मुझे क्या हो गया है. कहीं दिल ही नहीं लग रहा है. ऐसा लगता है कि गगन के सामने बैठी रहूं,’’ सुमनप्रीत ने कहा.
‘‘कहीं तुझे प्यार तो नहीं हो गया न…? पर यह लड़का तो किसी लड़की को पलट कर देखता ही नहीं है. बस, अपनी किताबों में ही मस्त रहता है.’’
सुमनप्रीत को खुद ही नहीं समझ आ रहा था कि उसे क्या हुआ है. हर पल उस के दिमाग पर गगन ही छाया हुआ है, लेकिन गगन कभी किसी लड़की की तरफ न तो देखता था, न ही बात करता था.
सुमनप्रीत ने गगन से बात करने के लिए परमजीत से दोस्ती कर ली, क्योंकि गगन और परमजीत हर समय साथ रहते थे. दोनों की पक्की यारी थी. परमजीत के बहाने सुमनप्रीत की कभीकभार गगन से भी बात हो जाती थी.
सुमनप्रीत ने गगन की नजदीकियां पाने का एक नया रास्ता निकाला और अकाउंट्स न समझ आने का बहाना बनाया और गगन को यह सब्जैक्ट सम?ाने की रिक्वैस्ट की, तो परमजीत के जोर देने पर गगन मान गया.
अब तो रोज कालेज के बाद थोड़ी देर वहीं रुक कर सुमनप्रीत गगन से अकाउंट्स सीखती थी. उधर, परमजीत भी सुमनप्रीत को चाहने लगा था, पर सुमनप्रीत के दिल में तो गगन बैठा था.
साल खत्म होने को आया, मगर सुमनप्रीत गगन से अपने प्यार का इजहार न कर सकी. वह 2 बातों से डरती थी कि गगन ब्राह्मण है और वह सिख है. घर वाले किसी कीमत पर नहीं मानेंगे. दूसरा यह कि गगन भी उसे चाहता है या नहीं?
गगन बीकौम पास कर के चला गया. उस की कार के एक शोरूम में अच्छी नौकरी लग गई, लेकिन परमजीत फेल हो गया. लेकिन गगन लंच टाइम में फ्री होता था, तो कालेज पहुंच जाता था और पम्मा और सुमनप्रीत को थोड़ी देर अकाउंट्स समझ जाता था.
एक बार गगन को कंपनी की तरफ से ट्रेनिंग के लिए 4-5 दिन के लिए गुरुग्राम जाना था. यह सुन कर सुमनप्रीत सुन कर उदास हो गई कि इतने दिन गगन को नहीं देख पाएगी.
मगर जब गगन ट्रेनिंग पर चला गया, तो वहां उस का मन नहीं लगा. उसे हरपल सुमनप्रीत ही आंखों के सामने नजर आती थी. वह सम?ा नहीं पा रहा था कि उसे क्या हो रहा है.
गगन ने फोन पर परमजीत से भी कहा, ‘‘यार पम्मे, सुमनप्रीत ठीक तो है न? पता नहीं, क्यों मुझे हरपल उस का ही खयाल आ रहा है. ऐसा लगता है जैसे वह मेरे पास है और कोई उसे मुझ से छीन कर दूर ले जा रहा है. पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है मेरे साथ?’’
परमजीत ने महसूस किया कि गगन को सुमनप्रीत से प्यार हो रहा है. हालांकि, वह खुद भी सुमनप्रीत से प्यार करता था, लेकिन अपने दोस्त के लिए वह अपना प्यार भूल गया, कुरबान कर दिया अपना प्यार अपने जिगरी दोस्त पर.
‘‘ओए गगन, तुझे प्यार हो गया है. अब ट्रेनिंग से आते ही जल्दी से अपने प्यार का इजहार भी कर देना. कहीं ऐसा न हो कि कोई दुलहनिया ले जाए और तू बरात में नाचता ही रह जाए,’’ ऐसा कह कर परमजीत जोरजोर से हंसने लगा.
लेकिन गगन सोच रहा था कि क्या सचमुच जो प्यार नाम की चिडि़या को पहचानता भी नहीं था, उसे प्यार हो गया है?
खैर, ट्रैनिंग से वापस आ कर गगन ने परमजीत से बात की, तो उस ने समझाया, ‘‘बुद्धू, जो तुझे सुमन की दूरी बरदाश्त नहीं हुई, हरपल उस की याद सताती रही, यही तो प्यार है… और अब देर मत कर, कल ही प्रपोज कर दे सुमनप्रीत को. उस का जन्मदिन भी है कल.’’
अगले दिन गगन ने होटल मधु में एक छोटी सी सरप्राइज पार्टी रखी. रजनीत कौर और परमजीत सिंह बहाने से सुमनप्रीत को वहां ले गए, लेकिन वहां गगन की तरफ से पार्टी को देख कर सुमन फूली न समाई.
केक काटने के बाद गगन हाथ में एक फूल लिए सुमन के सामने घुटनों के बल बैठ कर बोला, ‘‘सुमन, क्या तुम मेरा प्यार स्वीकार करोगी? क्या तुम जिंदगी के हर सुखदुख में मेरा साथ दोगी? अगर तुम मुझे अपने लायक समझती हो, तो क्या मुझ से शादी करोगी?’’
सुमन ने एक पल के लिए भी नहीं सोचा और ‘हां’ कह दिया.
‘‘सुमन, अभी समय है, सोच लो. तुम महलों में पली हो, मेरा छोटा सा घर है. नौकरी भी कोई बहुत बड़ी नहीं है, बस ठीकठाक गुजरबसर ही होती है.’’
‘‘गगन, मुझे केवल तुम चाहिए. तुम्हारा साथ होगा तो मैं भूखी भी रह लूंगी. न होगा मखमल का बिस्तर, तो तुम्हारे सीने पर सिर टिका कर चैन की सांस लूंगी. बस, तुम न मुझे छोड़ना मत, चाहे तो सारी दुनिया मैं छोड़ दूंगी.’’
इस के बाद उन दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. वे साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे.
सुमनप्रीत की बीकौम पूरी हुई, तो घर वालों ने शादी के लिए जोर डालना शुरू कर दिया. सुमन ने घर में गगन के बारे में बताया तो तूफान आ गया सुमनप्रीत के पापा ने नाराजगी में कहा, ‘‘हम सरदार हैं और वह शर्मा. यह मेल कभी नहीं हो सकता. गगन अकेला नौकरी करने वाला है. उस के पापा कोई काम नहीं करते हैं. उस का बड़ा भाई भी नौकरी करता है, मगर उस का अपना अलग परिवार है. मांबाप की जिम्मेदारी भी गगन पर है. जिस लाड़प्यार से तुम पली हो, वहां तुम्हारा गुजारा नहीं हो सकता.’’
जिस तरह से घर वालों ने अपना गुस्सा जाहिर किया था, उस से सुमन समझ चुकी थी कि इस शादी के लिए वे किसी भी कीमत पर राजी नहीं होंगे.
लेकिन गगन का परिवार इस शादी के लिए तैयार था. वे लोग जातपांत, बिरादरी जैसी दकियानूसी बातों को नहीं मानते थे, क्योंकि गगन के पापा की भी इंटरकास्ट मैरिज थी.
लेकिन गगन का परिवार सुमनप्रीत के परिवार के बराबर नहीं था. सुमनप्रीत के पापा रेलवे से अच्छी पोजिशन से रिटायर हुए थे. उस का भाई चंडीगढ़ में लैक्चरर था और पुरखों की जमीन व जायदाद भी काफी थी.
लेकिन प्यार का जोश, दीवानापन ऐसी बातें कहां समझता है. सुमनप्रीत चुप हो गई, मगर दिमाग में शैतानी खयाल आ रहे थे, इसलिए कंप्यूटर कोर्स के बहाने फिर से यमुनानगर जाने लगी और एक दिन उन दोनों ने भाग कर कोर्टमैरिज कर ली. गगन सुमनप्रीत को अपने घर ले आया.
खैर, जब सुमनप्रीत के घर वालों को इस शादी के बारे में पता चला, तो उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की. छोटा सा कसबा है, बात फैलने पर बदनामी होगी. बस, इतना ही कहा कि आज से सुमनप्रीत उन के लिए मर चुकी है.
लेकिन ससुराल वालों ने सब रीतिरिवाजों के साथ अपनी बहू का गृहप्रवेश कराया. जिस दिन शादी हुई, उस के 2 दिन बाद ही गगन की प्रमोशन हो गई.
अब तो सुमनप्रीत को भाग्यशाली समझ जाने लगा. सबकुछ ठीक चल रहा था. एक साल में ही सुमनप्रीत ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया.
सुमनप्रीत ने गगन से कहा, ‘‘गगन, मेरी इच्छा है कि मैं अपनी बेटी का नाम मेरे पापा के नाम हरजोत सिंह पर हरलीन कौर रखूं, लेकिन कहीं मम्मीडैडी को बुरा न लगे जाए…?’’
‘‘नहीं सुमन, मम्मीडैडी बुरा नहीं मानेंगे. हम इस का नाम हरलीन कौर ही रखेंगे,’’ गगन ने कहा.
बच्ची का नाम हरलीन कौर रखा गया. एक दिन गगन और सुमनप्रीत उस बच्ची को ले कर मायके गए और बच्ची को उस के नाना की गोद में रख दिया.
बच्ची को देख कर सुमनप्रीत के मम्मीपापा के मन में भी प्यार उमड़ा और उन्होंने सुमनप्रीत की गलती को भुला कर उसे गले से लगाया.
दोनों परिवार मिल गए. सुमनप्रीत की जिंदगी में अब और भी खुशियां बढ़ गई थीं. मायके का प्यार जो फिर से मिल गया था.
इधर बच्ची के आने से खर्च बढ़ने लगा. अभी तो गगन को प्रमोशन पर प्रमोशन मिल रहा था. सुमनप्रीत ने आगे पढ़ने की इच्छा जताई.
गगन ने उसे पत्राचार से एमकौम कराई और उस के बाद कंप्यूटर का एक कोर्स भी कराया.
अब तक हरलीन स्कूल जाना शुरू हो गई थी, तो सुमनप्रीत ने कहा, ‘‘गगन, हरलीन स्कूल चली जाती है. आप भी सुबह से जा कर शाम को घर आते हो.
घर पर कुछ खास काम तो रहता नहीं है, क्यों न मैं किसी स्कूल में नौकरी के लिए ट्राई करूं?’’
सुमनप्रीत की खुशी के लिए गगन ने उसे नौकरी करने के लिए मना नहीं किया.
सुमनप्रीत ने अपनी बेटी के ही स्कूल में नौकरी के लिए अप्लाई किया और उसे वहां नौकरी भी मिल गई.
हरलीन अब 10 साल की हो गई थी. सुमनप्रीत की दूसरी बेटी पैदा हुई, जिस का नाम प्रेजी रखा.
अब 2 बच्चों का खर्च और मांबाप की उम्र के हिसाब से बीमारी का बढ़ता खर्च… धीरेधीरे घर में तनाव भरा माहौल रहने लगा.
सुमनप्रीत ने अब महाराजा अग्रसेन कालेज में अपना बायोडाटा भेज दिया और वहां से नौकरी का बुलावा
आ गया.
गगन और सुमनप्रीत की आमदनी से बस गुजारा ही होता था. सुमनप्रीत को अपनी इच्छाओं को मारना पड़ता था, लेकिन कब तक?
कालेज में सुमनप्रीत की दोस्ती अपने से 6 साल छोटे आयुष के साथ हो गई, जो एक ऊंचे और अमीर खानदान से था, जो वहां शौकिया नौकरी करता था. वह सुमनप्रीत की हर इच्छा पूरी करता था, इसलिए वह उस की तरफ खिंचती चली गई.
जहां एक तरफ गगन और ज्यादा कमाने और सुमनप्रीत की इच्छाओं को पूरा करने के लिए दिनरात जद्दोजेहद करता था, वहीं दूसरी तरफ सुमनप्रीत आयुष के रंग में रही.
इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, सुमनप्रीत का भी परदाफाश हुआ. गगन को एक दिन खबर मिली कि इस समय सुमन और आयुष किसी मीटिंग या कालेज में नहीं हैं, बल्कि होटल में रंगरलियां मना रहे हैं.
गगन भड़का हुआ होटल गया और दोनों को रंगे हाथ पकड़ लिया और सुमन को घर ले आया.
इस समय हरलीन 14 साल की और प्रेजी 4 साल की थी. गगन ने सुमनप्रीत को बहुत समझाया, लेकिन वह खुले शब्दों में विरोध करते हुए बोली, ‘‘गगन, जब तुम मेरी इच्छाएं पूरी नहीं कर सकते, तो मुझे तलाक दे दो. मैं आयुष के साथ नया सफर शुरू करना चाहती हूं. वह मुझे हर तरह से खुश रखेगा.’’
‘‘सुमन, प्लीज ऐसा मत करो. बच्चियों के बारे में भी सोचो. तुम ने अब तक जो भी किया, मैं सब भुला दूंगा. तुम्हारी हर गलती माफ कर दूंगा. तुम अपने बच्चों के साथ मेरा परिवार बन कर एक अच्छी बीवी, अच्छी मां और अच्छी बहू की तरह रहो.’’
‘‘बहुत बन चुकी मैं अच्छी बीवी, बहू और मां, पर मुझे अपनी जिंदगी भी जीनी है. कब तक मैं दूसरों के लिए जीऊं?’’
‘‘मैं तुम्हें हर खुशी दूंगा, तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूंगा. मैं दिनरात मेहनत करूंगा. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. मैं बहुत प्यार करता हूं तुम से,’’ गगन ने कहा.
‘‘मिस्टर गगन, प्यार से पेट नहीं भरता. प्यार से तन नहीं सजता. प्यार चांदतारों की भी ख्वाहिश करता है. मेरी भी कुछ ऐसी हसरतें हैं, जो आयुष पूरी कर सकता है.’’
एक दिन गगन के पास कोर्ट से तलाक के पेपर आ गए. रात को गगन जब औफिस से घर आया, तो गुस्से में बोला, ‘‘सुमन, यह क्या है? तुम ने तलाक के लिए अर्जी दी है?’’
सुमन ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, तो और क्या करूं मैं? तुम्हें कितनी बार कहा कि मुझे तलाक दो. तुम तो तलाक लोगे नहीं, तो सोचा कि मैं ही यह शुभ काम कर दूं.’’
गगन ने रोते हुए कहा, ‘‘सुमन, प्लीज ऐसा मत करो. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’
‘‘अब मैं बिलकुल भी तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. मेरे पास और वक्त नहीं है इंतजार के लिए. मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है, जो मेरे लिए चांदतारे भी तोड़ कर लाएगा.’’
‘‘ये सिर्फ बातें हैं. वह तुम्हें हमेशा के लिए नहीं अपनाएगा. अधर में छोड़ देगा, तब पछताओगी.’’
‘‘जो होगा देखा जाएगा, मैं फैसला ले चुकी हूं. इन पेपर पर साइन करो, वरना मैं यहीं खुदकुशी कर लूंगी,’’ सुमनप्रीत ने कहा.
गगन ने कहा, ‘‘मैं ऐसे तलाक नहीं दूंगा. अगर तलाक लेना है, तो कोर्ट में जा कर ही क्यों न फैसला किया जाए…’’
दोनों ने कोर्ट में बच्चों की कस्टडी के लिए एप्लीकेशन दे दी. केस अभी भी चल रहा है, लेकिन गगन अभी भी सुमनप्रीत को मना रहा है कि वह आयुष को भूल जाए और उस की जिंदगी में वापस आ जाए.
पर यह कैसा प्यार है, जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने की चाहत में सबकुछ भूल चला है?