Hindi Story : ‘कमरिया लचके रे, बाबू, जरा बच के रे…’ की आवाज चारों ओर गूंजी तो डांस देखने के लिए आए सभी दर्शक उतावले हो गए.

सामने के स्टेज पर एक पतली कमर वाली 22 साल की लड़की अपनी कमर को हिलाहिला कर मस्ती में नाचे जा रही थी और दर्शक आंखें फाड़फाड़ कर उस की नंगी कमर और गहरी नाभि को अपनी आंखों में बसा लेना चाहते थे.

गाने के बदलते बोल के साथ वह लड़की अपने डांस के स्टैप लगातार बदल रही थी, जिस से देखने वाले लोगों की नजरें किसी एक अंग पर नहीं ठहर पा रही थीं.

आंखों में हवस और होंठों पर भद्दी गालियां देते हुए आगे की लाइन में बैठे लोगों ने नोट उड़ाना शुरू कर दिया था. उन नोटों को एक लड़का लगातार उठाने का काम कर रहा था.

कुछ देर बाद ही डांसर की गोरी कमर पसीने से तर हो गई थी, जिस से देखने वालों को वह और भी सैक्सी और मस्त नचनिया लग रही थी.

डांस खत्म हो चुका था. दर्शक ‘एक बार और, एक बार और’ की मांग करते रहे, पर वह डांसर अपना पसीना पोंछते हुए तंबू के पीछे आ गई थी.

देखने वाले हवस के मारे जोश में थे, पर इस नाचने वाली लड़की के लिए यह रोजीरोटी कमाने के लिए उस का काम भर था.

इस खूबसूरत लड़की का नाम शबनम था. शबनम नाम होने से लोग उसे मुसलमान समझते थे, पर शबनम को खुद नहीं पता था कि वह मुसलमान है या हिंदू है. उस ने जब से होश संभाला था, तब से अपनेआप को इसी डांस पार्टी में पाया था और अपनी रोजीरोटी चलाने के लिए उसे यह काम करना पड़ा था. दीनधर्म के बारे में कभी सोचा ही नहीं और न ही शबनम को कभी अपना धर्म जानने की जरूरत महसूस हुई.

शबनम को तो डांस करना भी किसी ने नहीं सिखाया, बस अपने साथ वाली दीदी लोगों को नाचते देख कर वह कब खुद भी स्टेज पर नाचने लगी, उसे खुद भी पता नहीं चला. हां, पर स्टेज पर वह शौक से नहीं नाची, बल्कि उसे बताया गया था कि उसे पैसे चाहिए तो नाचना ही पड़ेगा.

इस डांस पार्टी के मालिक का नाम धर्मा पंडित था. 50 साल का धर्मा पंडित बड़ा रोबीला लगता था.

लंबाचौड़ा शरीर और बड़ीबड़ी गोल आंखें. वह सामने वाले से बात करते समय अपनी धाक बड़ी आसानी से जमा लेता था.

धर्मा पंडित की इस डांस पार्टी में तकरीबन 20 से 25 लोग काम करते थे, जिन में से 6 लेडीज डांसर थीं. कुछ लोग आरकेस्ट्रा पर काम करते थे, तो कुछ लोग डांस पार्टी के तंबू वगैरह का काम संभालते थे.

लेडीज डांसर सभी के आकर्षण का केंद्र थीं. हालांकि, ये डांसर फिल्मी गानों पर नाचती थीं, पर धर्मा पंडित ने अपनी इस डांस पार्टी को नाम दिया था ‘क्लासिकल डांस पार्टी’ और अपनी इस डांस पार्टी को धर्मा पंडित कसबों और गांवों में ले जाता था और एक जगह तकरीबन 15 से 20 दिन तक कार्यक्रम करता था.

जिस भी कसबे और गांव में धर्मा पंडित की डांस पार्टी जाती थी, वहां पर जम कर प्रचारप्रसार कराने के लिए नाचने वाली लड़कियों के छोटे कपड़े पहने हुए पोस्टर तैयार कराए जाते थे और सड़कों के किनारे लगवा दिए जाते थे, जिन्हें देख कर लोग अच्छीखासी तादाद में डांस देखने आते थे और जम कर पैसे भी लुटाते थे.

धर्मा पंडित की डांस पार्टी में नाचने वाली लड़कियों की खूबसूरती देख कर गांवकसबे के शोहदे कई बार इन लड़कियों के साथ जिस्मानी संबंध भी बनाना चाहते थे और इस के लिए वे अपना रोबताब दिखा कर धर्मा पंडित से बात भी करते थे, पर यहां तो धर्मा पंडित का अलग ही रूप देखने को मिलता था.

वह इन हुस्न के सौदागरों को साफ मना कर देता था, ‘‘ये क्लास्किल और फिल्मी डांस दिखाने वाले कलाकार हैं. यह तो समय की मांग ने इन के कपड़ों को जरूर छोटा कर दिया है, पर जब तक ये मेरे पास हैं, तब तक इन्हें जिस्म बेचने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

धर्मा पंडित के इस रूप को देख कर लोग चिढ़ जाते थे और पीठ पीछे धर्मा पंडित को खूब गरियाते थे. उन्हें लगता था कि धर्मा पंडित खाली इस तरह की बड़ी बातें कर के अपनी नाचने वालियों का रेट बढ़ाना चाहता है और फिर वे और ज्यादा पैसे देने की बात भी कहते, पर धर्मा पंडित टस से मस नहीं होता था और फिर बारबार परेशान किए जाने पर वह अगले गांव की तरफ चल देता था.

अब धर्मा पंडित और उस की डांस पार्टी कमलापुर नामक गांव में जाने वाली थी. कमलापुर में जम कर इस डांस पार्टी का प्रचारप्रसार भी कर दिया गया था. इस के चलते वहां के नौजवानों में आने वाली डांस पार्टी को ले कर बहुत जोश था. मजे की बात तो यह थी कि सिर्फ नौजवान ही नहीं, बल्कि बड़ी उम्र के लोग भी डांस देखने के लिए उतावले थे और इसीलिए खुद को सजानेसंवारने में लगे हुए थे.

गांव के नुक्कड़ पर इकबाल नाम के लड़के का लकड़ी का बनाया हुआ खोखा था, जिस में उस ने एक बड़ा सा आईना रख कर उसे एक सैलून की शक्ल देने की कोशिश की थी. गांव के लोग यहां पर अपने दाढ़ीबाल कटवाने आते थे.

इकबाल कुछ खास लोगों को ही अपने चेहरे पर पीली वाली क्रीम की मालिश करवाने को कहता था, ‘‘यह पीली वाली क्रीम बादाम क्रीम है, जिस को लगाने से चेहरा एकदम सलमान खान की तरह चमकीला हो जाता है,’’ सलमान खान के एक पोस्टर की तरफ इशारा करते हुए इकबाल कहता, तो लोग तुरंत ही अपना चेहरा आगे कर देते और इकबाल खूब मेहनत से उन के चेहरे पर मसाज करता.

मसाज के बाद लोग अपना चेहरा आईने में देखते तो उन्हें खुद भी फर्क साफ नजर आता और वे इकबाल
को पैसे देने के साथसाथ शुक्रिया कहना न भूलते.

गांव की तरफ से शहर की ओर जाने वाली रोड के किनारे बहुत चहलपहल थी, क्योंकि आज क्लासिकल डांस पार्टी का कमलापुर गांव मे पहला शो था. स्टेज के आगे एक तख्त पर चादर बिछा दी गई थी, जो गांव के चौधरी साहब के लिए थी. इस के बाद की लाइन में प्लास्टिक के तार से बिनी हुई कुरसियां और इस के बाद दरी और टाट को धूल झाड़ कर बिछा दिया गया था.

धर्मा पंडित अपने साथ गांव के चौधरी साहब को बड़े आदरभाव से अंदर लाया और सब से आगे पड़े तख्त पर बिठा दिया.

50 साल के आसपास के चौधरी साहब भी तन कर बैठ गए और उन के गुरगे पास ही नीचे जमीन पर बैठ गए और सभी की निगाहें स्टेज के परदे के खुलने का इंतजार करने लगीं.

इंतजार लंबा हो रहा था, तो सभी लोग सीटियां बजा कर शोर करने लगे. आखिरकार परदा खुला और शबनम एक नौजवान दिलीप के साथ स्टेज पर आई. एक भड़काऊ भोजपुरी गाना भी बजने लगा, जिस के बोल थे, ‘हमार मिक्सी, तोहार मिक्सी, दोनों के मिक्सी बा कालाकाला… हमार पीसे नरम मसाला, तोहार पीसे गरम मसाला…’

इस गीत पर शबनम और दिलीप एकदूसरे की कमर से कमर चिपकाते हुए मसाला पीसने का इशारा करते, तो दर्शकों के बीच जोश की लहर फैल जाती और वे भी खड़े हो कर नाचने लगते और पैसे लुटाते.

हालांकि, चौधरी साहब का मन भी नाचने का कर रहा था, पर उन्होंने अपनी शान का खयाल करते हुए सिर्फ पैसे ही लुटाए.

शबनम के जाते ही दूसरी डांसर ने अपने नाच का जलवा दिखाया और उस के बाद 3 गीत और बजाए गए, जिन पर भी भड़काऊ नाच का मजा दर्शकों ने उठाया.

रात हो चली थी और शो भी खत्म हो गया था. चौधरी साहब के गुरगे भी उन्हें बड़े से मकान के बाहर तक छोड़ गए थे.

चौधरी साहब बड़े ही अदब से घर में गए और सीधे हाथमुंह धोने चले गए. घर में उन की 20 साल की रीता नाम की एक विधवा बेटी ही थी, जो चौधरी साहब के इंतजार में अभी तक जाग रही थी.

‘‘बाबूजी, आप के लिए खाना लगा दूं?’’ रीता ने पूछा, तो चौधरी साहब ने यह कहते हुए मना कर दिया, ‘‘सरखु के यहां कुछ आयोजन था, इसलिए वहां पर भोजन कर लिया है.’’

इतना कह कर चौधरी साहब सीधा अपने कमरे में चले गए.

रीता, जो पिता के इंतजार में भूखी बैठी थी, का मन भी अकेले खाने का नहीं हुआ और रसोईघर में कुंडी लगा कर वह भी सोने चले गई.

रीता की 18 साल की उम्र में ही शादी कर दी गई थी और अगले साल ही वह विधवा हो गई थी और फिर उस ने अपने पिता की देखभाल करने के लिए अपने मायके में ही रहना ठीक समझा.

हालांकि, चौधरी साहब ने अपने रोब का इस्तेमाल करते हुए 2-3 जगह रीता की शादी की बात चलाई, पर कुछ बात नहीं बनी.

किसी भी नौटंकी या डांस पार्टी के लोगों में सब से ज्यादा नोट उड़ाने वाले ग्राहक को पहचानने का एक गजब का टैलेंट धर्मा पंडित में भी था. उस ने अच्छी तरह से देखा था कि कल के शो में सब से ज्यादा पैसे चौधरी साहब ने ही उड़ाए थे. धर्मा पंडित और उस की डांस पार्टी के लिए ऐसे ही ग्राहक अच्छे माने जाते हैं.

2 दिन के बाद धर्मा पंडित ने अपने डांसर दिलीप को चौधरी के घर पर भेज कर संदेश भिजवाया कि उस ने एक खास शो रखवाया है, जिस में सिर्फ चौधरी साहब और उन के अपने आदमी ही होंगे.

दिलीप की बात सुन कर चौधरी साहब को बहुत खुशी मिली और उन्होंने भी अपनी पसंद बताते हुए कहा कि एक नाच शबनम का भी जरूर होना चाहिए.

दिलीप ने मुसकरा कर देखा और वापस जाने लगा. जाते समय उस की नजर रीता से टकरा गई, जो छत पर कपड़े फैला कर नीचे आ रही थी.

रीता जैसी खूबसूरत लड़की दिलीप ने कभी नहीं देखी थी. उस के पैर ठिठक गए थे, पर अगले ही पल वह आगे बढ़ गया.

उस दिन अकेले में चौधरी साहब ने शबनम का जो नाच देखा, तो वे तो उस के जिस्म और नाच के कायल हो गए.

उस दिन चौधरी साहब ने धर्मा पंडित को उस के हाथ में पैसे देते हुए कहा, ‘‘बड़ा खूबसूरत हीरा है तुम्हारा. इसे तो हमारे जैसे जौहरी के पास होना चाहिए.’’

चौधरी साहब ने अपनी बाईं आंख दबा दी थी. धर्मा पंडित भी बिना मुसकराए नहीं रहा था.

चौधरी साहब की पत्नी को मरे हुए 10 बरस हो चले थे और उन के मन में औरत की देह भोगने की बेतहाशा चाह थी, जो शबनम की नंगी कमर, गहरी नाभि और मांसल सीना देख कर और भी भड़क उठी थी, इसीलिए उस दिन के बाद कई बार अकेले ही शबनम के शो के लिए उन्होंने धर्मा पंडित से बात की थी.

पर उस दिन तो चौधरी साहब ने हद कर दी, जब उन्होंने अपनी उम्र की परवाह न करते हुए शबनम के जिस्म को भोगने की बात कह दी, पर धर्मा पंडित नहीं डिगा.

‘‘हम लड़कियों को नचाते जरूर हैं, पर उन से जिस्म का धंधा नहीं करवाते चौधरी साहब. हां, अगर आप को नाच अकेले में देखना हो, तो उस के लिए आप का हमेशा स्वागत रहेगा,’’ धर्मा पंडित ने मुसकराते हुए चौधरी साहब से कहा.

धर्मा पंडित की यह बात चौधरी साहब को अच्छी नहीं लगी, पर बदले में वे कुछ नहीं बोले.

उधर दिलीप, जो रीता को देख कर पहली नजर में ही उस से एकतरफा प्यार कर बैठा था, वह रीता के पास जाने और मिलने की ताक में रहता था. आज जब दिलीप ने चौधरी साहब और धर्मा पंडित को आपस में बातें करते देखा, तो वह बिना हिचके तुरंत ही चौधरी साहब के घर पहुंच गया और कुंडी खटका दी.

अंदर से बिना दरवाजा खोले ही दरवाजे में बनी एक छोटी सी खिड़की को रीता ने खोला और उस की आंखें सीधा दिलीप से टकराईं, तो वह कुछ हड़बड़ाते हुए बोली, ‘‘बाबूजी घर में नहीं हैं. जब वे आ जाएं, तब आना.’’

दिलीप ने कहा, ‘‘मुझे पता है कि वे घर में नहीं हैं, इसीलिए मैं आया हूं और यह कहना चाहता हूं कि आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं.’’

रीता ने तुरंत ही उस छोटी सी खिड़की को बंद कर दिया. उस का दिल भी हलका सा धड़क कर रह गया था, पर ये शब्द उस के मन को रोमांचित जरूर कर गए थे.

रीता विधवा जरूर थी, पर थी तो अभी जवान ही. उस के भी अरमान थे कि उसे कोई अपनी बांहों में इतनी
जोर से जकड़ ले कि उन के बीच बिलकुल भी फासला न रह जाए. कोई उस के होंठों पर अपने होंठ रख दे, पर मजबूर थी.

लेकिन दिलीप की यह बात रीता के मन को छू गई थी, जैसे तपती धूप के बाद बारिश की कुछ बूंदों ने तनमन को भिगो दिया हो, पर वह तो एक विधवा है, कैसे किसी को प्यार कर सकती है… पर क्यों? उस के विधवा होने में उस का क्या कसूर है? और फिर एक विधवा भी तो एक औरत ही होती है…

दिलीप के मन में रीता के लिए प्यार था और वह उस से शादी करना चाहता था, क्योंकि रीता भले ही विधवा थी, पर वह बिलकुल वैसी लड़की थी जैसी उसे अपने लिए चाहिए थी. लेकिन वह जानता था कि गांव के चौधरी साहब की विधवा बेटी के मन को जीतने के लिए उसे चौधरी साहब के मन को भी जीतना होगा.

‘‘बड़ा खोएखोए से रहते हैं सरकार,’’ चौराहे पर चौधरी साहब को अकेला देख कर दिलीप ने पूछा, तो चौधरी साहब भी डांस मंडली के आदमी को देख कर मन की बात कह बैठे, ‘‘क्या बताएं… शबनम पर हमारा दिल आ गया है, पर तुम्हारा धर्मा पंडित मान ही नहीं रहा है.’’

बस, यही शब्द सुनना चाहता था दिलीप. उस ने तपाक से बात बनाई और चौधरी साहब को भरोसा दिलाया कि वह उन्हें शबनम के जिस्म को भोगने का मौका जरूर दिलवाएगा.

यहां से दिलीप का चौधरी साहब के घर पर आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया था. वह बेधड़क चौधरी साहब के घर जाता, तो चौधरी साहब उसे सीधा अपने पास बुला लेते और दोनों बतियाते रहते. इस बीच रीता से दिलीप की नजरें भी दोचार हो जाती थीं.

एक दिन मौका देख कर दिलीप ने रीता का हाथ पकड़ लिया. रीता ने झट से हाथ छुड़ा लिया और तुरंत ही वहां से यह कहते हुए भाग गई, ‘‘मैं एक विधवा हूं और यह सब मेरे लिए पाप है.’’

दिलीप का चौधरी के घर आनाजाना बढ़ गया था और अब तक डांस कंपनी के दूसरे लोगों को रीता और दिलीप के संबंधों की भनक भी लग गई थी.

धर्मा पंडित की डांस कंपनी में भूलर नाम का एक 25 साल का लड़का था, जो बिजली का इंतजाम देखता था. वह था तो अनाथ, पर ऊंची जाति का था और धर्मा पंडित ने उसे गोद लिया हुआ था.

भूलर को वह हर सम्मान मिलता था, जो एक डांस कंपनी के मालिक के बेटे को मिलना चाहिए. जब भूलर को दिलीप और रीता के संबंधों की खबर मिली, तो उस पर जाति का घमंड हावी हो गया.

‘‘यह निचली जाति का चौधरी साहब की लड़की के साथ मजे लेना चाह रहा है, पर हम इस का मनसूबा कभी कामयाब नहीं होने देंगे.’’

भूलर ने नमकमिर्च लगा कर धर्मा पंडित को सारी बता दी. यों तो धर्मा पंडित सैकुलर होने का दावा करता था और अपनी डांस मंडली के लोगों के लिए खुद को पिता के जैसा दिखाता था, पर उसे यह कतई मंजूर नहीं हुआ कि उस की डांस मंडली में काम करने वाला कोई निचली जाति का किसी ऊंची जाति की लड़की से इश्क लड़ाए.

हालांकि, धर्मा पंडित के लिए यह बहुत आसान होता कि वह अपनी डांस मंडली को किसी दूसरे गांव में ले जाए और दिलीप और रीता का मामला यहीं खत्म हो जाए, पर ऐसा करने के बाद भी दिलीप और रीता का प्रेम बदस्तूर कायम रह सकता था और हो सकता था कि वे दोनों भाग कर शादी भी कर लेते.

धर्मा पंडित को कुछ ऐसा सोचना होगा, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. धर्मा पंडित मन ही मन गहरी सोच में डूबने लगा था.

2-3 दिन बीतने के बाद धर्मा पंडित चौधरी से मिलने उस के घर गया. उसे देख कर चौधरी साहब बहुत खुश हुए और दालान में कुरसियां डलवा कर मीठा शरबत और पान मंगवाया.

थोड़ी देर वे दोनों इधरउधर की बातें करते रहे, फिर धर्मा पंडित ने फुसफुसाते हुए चौधरी साहब से कहा, ‘‘बड़े जागेजागे से लग रहे हैं, क्या बात है? रातों में नींद नहीं आ रही लगता है…’’

धर्मा पंडित की बात सुन कर पहले तो चौधरी साहब थोड़ा सा सकुचाए, फिर मुसकराते हुए कहने लगे, ‘‘क्या बताऊं धर्मा, जब से तुम्हारी उस नचनिया शबनम को देखा है, तब से तो मेरी रातों की नींद ही उड़ गई है. अब तो मन में यही आता है कि जब तक उसे बांहों में भर कर उस का सारा रस न निकाल लूं, तब तक शायद ही इस दिल को चैन मिले.’’

धर्मा पंडित का तुरुप का पत्ता कामयाब हो गया था. उस ने चौधरी साहब से कहा कि वह तो 1 या 2 रातें नहीं, बल्कि हर रात शबनम को उन के साथ सुला सकता है, पर चौधरी साहब को अपने घर की विधवा बेटी का भी ध्यान रखना चाहिए.

धर्मा पंडित ने चौधरी साहब को उन की विधवा बेटी का ब्याह कर देने की बात कही, तो उन्हें अचानक धर्मा पंडित के मुंह से अपनी विधवा बेटी के दूसरे ब्याह की बात सुन कर झटका सा लगा, मानो वे नींद से जागे हों, पर फिर उन्होंने कहा, ‘‘आजकल किसी विधवा से कौन शादी करना चाहेगा?’’

धर्मा पंडित ने तुरंत भूलर का नाम पेश कर दिया और फिर धीरे से चौधरी साहब को दिलीप और रीता के बढ़ते प्यार की बात भी बता दी और दिलीप धोबी जाति का है, यह बताना भी नहीं भूला था धर्मा पंडित.

चौधरी साहब के अहंकार को ठेस लगी कि एक निचली जाति का लड़का उन की विधवा बेटी से इश्क लड़ा रहा है. उन का ऊंची जाति का घमंड जाग उठा और उन्होंने बिना ज्यादा कुछ सोचेसमझे धर्मा पंडित से रीता की शादी भूलर के साथ कर देने के लिए हां कर दी.

शबनम के जिस्म का लालच चौधरी साहब के दिमाग में अब भी चल रहा था, पर धर्मा पंडित अभी भी संतुष्ट नहीं हुआ था. उस ने चौधरी साहब को अपनी बातों में लिया और कहा कि भूलर अभी भी एक डांस मंडली वाले का बेटा जाना जाता है और चौधरी एक ऐसे लड़के से अपनी विधवा बेटी की शादी करे, यह कुछ शोभा नहीं देता. इस के लिए जरूरी है कि उन का दामाद कुछ खास हो.

‘‘तो उस के लिए मुझे क्या करना होगा?’’ चौधरी साहब ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, बस आप शहर में एक अच्छा सा मकान अपनी बेटी और दामाद को दिलवा दीजिए और कोई छोटामोटा धंधा चालू करवा दीजिए, जिस से आप की बेटी भी सुखी रहेगी और आप के दामाद का नाम भी होगा.’’

चौधरी साहब को धर्मा पंडित की यह बात पसंद आ गई. उन्होंने जब अपनी बेटी रीता से उस के दोबारा ब्याह की बात कही, तो वह सोच में पड़ गई. उस के मन में तो दिलीप के लिए प्यार था, पर एक विधवा भला कब अपने मन की बात अपने पिता से कह सकती है?

रीता ने कुछ देर नानुकर की, पर चौधरी साहब ने फैसला सुना दिया था, इसलिए वह चुप रही. वह चाह कर भी दिलीप का नाम नहीं ले सकी, क्योंकि वह जानती थी कि एक विधवा के लिए किसी दूसरे मर्द से प्यार करना महापाप समझ जाता है.

रीता ने चुपचाप अपने पिता के फैसले को स्वीकार कर लिया था.

चौधरी ने शहर में एक 2 कमरे का मकान देखा और उस से कुछ दूरी पर ही एक दुकान देख कर उस में खाद और बीज भंडार का उद्घाटन कर दिया.

रीता और भूलर की शादी एक सादा समारोह में हो गई थी. भरी आंखों से चौधरी ने रीता को विदा किया.

पूरा गांव चौधरी साहब के इस कदम की बहुत तारीफ कर रहा था. धर्मा पंडित की यह सारी योजना सही से कामयाब हो सके, इस के लिए उस ने बड़ी चालाकी से दिलीप को 15 दिन पहले ही शहर में किसी ऐसे काम से भेज दिया था, जिस से कि वह जल्दी वापस न आ सके.

आज जब दिलीप वापस आया, तो धर्मा पंडित ने उसे शाबाशी दी और कहा, ‘‘आज शाम को चौधरी साहब के घर पर हम सब को एक भोज के लिए चलना है.’’

बेचारा दिलीप सब बातों से अनजान था, इसलिए उस ने हामी में सिर हिला दिया.

रात को धर्मा पंडित और दिलीप चौधरी साहब के घर पहुंचे, तो वहां पर बढि़या शराब और मीट का इंतजाम था. धर्मा पंडित ने बोटी खाने से तो इनकार किया, हालांकि उस ने मीट की करी लेने से कोई परहेज नहीं किया और अपनी पांचों उंगलियां मीट के रस में डुबोडुबो कर चाट डालीं.

आज धर्मा पंडित कुछ ज्यादा ही अपनेपन से दिलीप को शराब पिला रहा था. दिलीप पर अब शराब हावी हो रही थी और उस की आंखें अपनेआप बंद होने लगी थीं. उसे लगा कि वह बेहोश हो रहा है, पर वह चाह कर भी अपनी बेहोशी को रोक नहीं पाया और अगली सुबह जब उस की आंख खुली तो उस ने पुलिस को अपने चारों तरफ पाया.

पुलिस इंस्पैक्टर ने दिलीप को घूरते हुए कहा, ‘‘इसे गिरफ्तार कर लो और इस की इतनी तुड़ाई करो कि अगली बार यह किसी चौधरी के घर में चोरी करने से पहले हजार बार सोचे.’’

दिलीप अपने बेकुसूर होने की दुहाई देता रहा, पर पुलिस इंस्पैक्टर ने उस की पैंट की जेब से नोटों की गड्डियां बरामद कर ली थीं.

दिलीप को पुलिस वैन में बिठा लिया गया था. उस की आंखें अभी भी रीता को ढूंढ़ रही थीं, पर रीता अब उसे कहां मिलने वाली थी?

आज रात चौधरी साहब की हवेली गुलजार थी और कुछ ज्यादा ही रोशन थी. चौधरी साहब धर्मा पंडित के साथ अपने सोफे पर धंसे हुए थे और उन के सामने शबनम अपनी नंगी कमर और गहरी नाभि हिलाहिला कर नाच रही थी. चौधरी साहब आज शबनम का सारा रस निकाल लेने वाले थे.

हवेली में गाना गूंज रहा था, ‘कमरिया लचके रे… बाबू, जरा बच के रे… दिल मेरा धड़के रे…’

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