उम्मीदों के चिराग रोशन हो रहे हैं. सत्तारूढ़ दल का ‘सब का साथ, सब का विकास’ नारा भी उम्मीदों को चार चांद लगा देता है.तसवीर कुछ इस अंदाज में पेश होती है, जैसे समाज में बराबरी आ रही है. दलित तबका अब अनदेखा नहीं है और उस की जिंदगी में खुशियां दस्तक दे रही हैं. यह सपने सरीखा हो सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत ऐसी नहीं है. जातिवाद और छुआछूत की बीमारी ने 21वीं सदी में भी अपने लंबे पैर पसार रखे हैं. इस पर शर्मनाक बात यह है कि रूढि़वाद के बोझ से लोग निकलने को तैयार नहीं हैं. यों तो संविधान में सब को बराबरी का हक है. कोई दिक्कत आए, तो इसे लागू कराने के लिए सख्त कानून भी बने हुए हैं, इस के बावजूद गैरबराबरी धड़ल्ले से जारी है.

18 अप्रैल, 2017 का ही एक मामला लें. उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के कोतवाली इलाके में एक दलित के यहां शादी समारोह में बरातियों के पीने के लिए फिल्टर पानी के जार मंगवाए गए. सप्लायर वहां पहुंचा, तो उसे जाति का पता चल गया. इस से पानी के अछूत होने का भयानक डर पैदा हो गया. लिहाजा, सप्लायर जार वापस ले जाने लगा.

इस पर दलित भड़क गए और नौबत मारपीट तक आ गई. पुलिस पहुंची और मामला समझौते से निबट गया, लेकिन बात क्या सिर्फ इतनी सी थी? जालौन जिले के झांसीकानपुर हाईवे के नजदीक गिरथान गांव में 16 अप्रैल को मोटा चंदा इकट्ठा कर के सामूहिक भंडारा कराया गया. गांव के दलितों से भी इस के लिए चंदा वसूला गया था.

भोज चल ही रहा था कि इसी बीच कुछ दलित नौजवानों ने भी भोज परोसने के लिए पूरियों की टोकरियां उठा लीं. बस, इस बात पर दबंगों की त्योरियां चढ़ गईं. उन्होंने सोचा कि शायद चंदा देने के बाद ये बराबरी के भरम के शिकार हो गए हैं. दलितों को वहीं बेइज्जत किया गया. उन्होंने न सिर्फ खाना खाने से इनकार कर दिया, बल्कि दलितों को अलग बिठाने को भी कहा.

दलितों ने इस का विरोध किया, तो झगड़ा हो गया. इतने पर भी शांति नहीं हुई, तो दबंगों ने फरमान जारी कर दिया कि दलितों का बहिष्कार किया जाए. इस फरमान को तोड़ने वालों पर एक हजार रुपए जुर्माना लगाने के साथ ही सरेआम 5 जूते भी मारे जाएंगे.

गांव में बाल काटने की 2 दुकानें थीं. एक ने झगड़े के चक्कर में दुकान बंद कर दी और दूसरे ने दलितों के बाल काटने से इनकार कर दिया. दूसरे दुकानदारों ने भी उन्हें जरूरत का सामान देना बंद कर दिया. ट्यूशन पढ़ाने वाले एक नौजवान ने दलितों के 5 बच्चों को ट्यूशन आने से रोक दिया.

बात अफसरों तक पहुंची. वे भी समझाने के सिवा कुछ नहीं कर सके. आखिरकार दलितों को ही झुकना पड़ा. दलित बुजुर्ग तुलाराम के मुताबिक, कुएं से पानी भरने से ले कर दूसरी कई बातों में दलित भेदभाव के शिकार रहे हैं. साल 1952 में जब वे 5 साल के थे, तब से यही सब देख रहे हैं.

इसी तरह हाथरस जिले के छीतीपुर गांव में कुछ दलित सार्वजनिक जगह पर हो रही भागवत कथा सुनने के लिए बैठ गए, जिस का आयोजन जाति विशेष के लोगों द्वारा कराया जा रहा था. दलितों को देख कर वे भड़क गए और उन पर आयोजन को अछूत करने का आरोप लगा कर गालीगलौज की. विरोध करने पर उन के साथ मारपीट कर दी गई.

इस घटना में 6 दलित घायल हो गए थे. बाद में कई नेता हमदर्दी का मरहम लगाने वहां पहुंचे, लेकिन आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग करने से वे हिचक रहे थे.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के लोयन गांव का मामला लें. यहां दबंगों को सार्वजनिक नल से दलितों के पानी ले जाने पर एतराज था. रोक लगाने पर दलितों ने विरोध किया, तो बदले में उन्हें गालियां खानी पड़ीं. इतना ही नहीं, दलितों को कई तरह की पाबंदियों का फरमान सुना दिया गया. प्रशासन के दखल से मामला सुलझाया गया.

इसी तरह उत्तराखंड के जयरामपुर गांव में दलितों को अछूत होने के चलते सरकारी नल से पानी लेने से रोक दिया गया. इस की शिकायत तो की गई, लेकिन कोई स्थायी हल नहीं निकला.

चंदौसी के गांव गंगुरा में भी खेतों पर घास काटने गई चरन सिंह की 13 साला बेटी सुधा एक मंदिर में लगे नल पर पानी पीने के लिए चली गई, लेकिन पुजारी और वहां बैठे लोगों ने उसे पानी नहीं पीने दिया. चरन सिंह इस बात का विरोध जताने पहुंचा, तो उस के साथ मारपीट की गई.

इलाहाबाद के पुरखास गांव की रहने वाली एक किशोरी को दबंग नौजवान ने ऐसी सजा दी, जिसे वह शायद ही कभी भूल पाए. ये दबंग आमतौर पर पिछड़ी जातियों के थे, जो जमींदारी खत्म होने से पहले दलितों सी हालत में थे और उन के साथ ठाकुरब्राह्मण बैठ कर खाना नहीं खा सकते थे. अब वे अपने को ठाकुरब्राह्मण साबित करने में लग गए हैं.

दलित समुदाय के संगमलाल की बेटी सुशीला खेत पर घास काटने गई थी. इस दौरान उस ने एक दबंग के खेत में शकरकंद के पौधे की पत्तियां भी काट लीं. एक दलित लड़की द्वारा अपने खेत की पत्ती काटने पर गुस्से से तिलमिलाए दबंग के बेटों ने दरांती छीन कर उस के दाएं हाथ की 2 उंगलियों पर वार कर दिया.

इस हैवानियत का पता जब गांव वालों को चला, तो उन्होंने आरोपियों के पिता को पकड़ कर पीट दिया. मामला पुलिस तक पहुंच गया. सुशीला का बड़े अस्पताल में उपचार कराया गया. इस घटना से दबंगों की नजर में दलितों की हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है.

दलित चिंतक चाहते हैं कि ऐसी सामाजिक बुराई के खिलाफ लगातार आवाज बुलंद की जानी चाहिए. संवैधानिक हकों को मारने वालों के खिलाफ कानून का कड़ाई से पालन हो और उस में डर पैदा हो.

हालांकि दलितों की भलाई के लिए कई तरह के कानून बने हैं, पर कागजी और कानूनी हकों को दबंग सामाजिक तौर पर देने को आज भी तैयार नहीं हैं. बात सिर्फ कानून बनाने से हल होती नहीं दिखती, बल्कि इस के लिए सामाजिक पहल की भी जरूरत है.

दुखी दलित ने खोद दिया कुआं

एक दलित की बीवी ऊंची जाति वाले पड़ोसियों के कुएं से पानी लेने गई, तो उन्होंने छुआछूत की बात कह कर ताने मारे और उसे बेइज्जत कर के लौटा दिया. अमनपसंद पति ने अपने ही अंदाज में जवाब देने की ठान ली. एक दिन उस ने जातिवाद को ऐसा करारा जवाब दिया कि सब हैरान रह गए.

महाराष्ट्र के वाशिम जिले के ताजणे का दिल पत्नी की बेइज्जती से बहुत दुखी हुआ. उस ने एक महीने से ज्यादा की गई मेहनत के बाद बिना किसी की मदद से अपना ही कुआं खोद दिया.

ताजणे 8 घंटे की मजदूरी कर के घर आने के बाद हर रोज तकरीबन 6 घंटे खुदाई करता था. जब वह कहता था कि दलितों के लिए अलग कुआं बना रहा है, तो लोग उस का मजाक बनाते थे, लेकिन उस ने इस की परवाह नहीं की. एक दिन ऐसा आया कि कुएं से पानी निकला, तो सब हैरान रह गए.

दलितों की खुशियों पर पहरा

आलम यह है कि दलितों की खुशियों पर भी दबंगों का पहरा होता है. उन के हिसाब से दलितों को उन के सामने खुशियां मनाने की इजाजत नहीं होती. ठीक वैसे जैसे पहले पिछड़ों यानी शूद्रों को खुशियां मनाने पर पाबंदी थी. हां, वे नौकर थे, पर अछूत नहीं.

अब दलितों की शादियों में बैंडबाजे बजने और दूल्हों के घोड़ी पर बैठने पर दबंग एतराज करते हैं. ऐसा करने की कोशिश में उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती है. मध्य प्रदेश के मालवा जिले में माना गांव के चंदेर की बेटी की शादी थी. चंदेर ने बैंड पार्टी बुलवा ली. यह बात ऊंची जातियों के दबंगों को नागवार गुजरी. उन्होंने उसे सामाजिक बहिष्कार की धमकी दी. इस के बावजूद बैंडबाजा बजा, तो दलितों ने खुशियां मनाईं.

दलित की बेटी की शादी में बैंडबाजा बजने से दबंग बुरी तरह नाराज हो गए. बदला लेने के लिए उन्होंने दलितों के कुएं में मिट्टी का तेल डाल दिया.

इसी तरह राजस्थान के जयपुर के हसनपुरा गांव में एक दलित के घोड़ी पर बैठने को ले कर दबंग भड़क गए. झगड़ा बढ़ गया, तो दलितों ने पुलिस में फरियाद कर दी. इस बात से नाराज हो कर दबंगों ने शादी के घर में काम आ रही पानी की टंकी में जहरीली चीज मिला दी, जिस से तकरीबन एक दर्जन लोग बीमार हो गए.

फिरोजाबाद के एक गांव में दबंगों ने दलितों की बरात रोक दी. काफी मिन्नतों के बाद भी उन्होंने दलित को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया. दरअसल, ऊंची जाति के गुमान में रहने वाले दबंग नहीं चाहते कि दलित गांवों में उन की बराबरी कर के खुशियां मनाएं.

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