वैलेंटाइन डे पर प्यार करने से पहले जाति और धर्म को बीच में नहीं लाना चाहिए. अगर युवा अपनी सोच बदलेंगे तो समाज में बदलाव होगा. प्यार और शादी को ले कर ज्यादातर युवाओं की यह सोच होती है कि प्यार जहां हो, शादी भी वहीं हो. कुछ युवा प्यार और शादी के मुद्दे को अलग रखना चाहते हैं. उन का कहना है कि शादी पेरैंट्स की मरजी से ही होनी चाहिए. भारत में प्रेम और उस को ले कर चल रहे प्रयोग बहुत अलगअलग होते हैं. भारतीय फिल्में देखने से ऐसा लगता है कि युवा भारतीयों के लिए रोमांस और प्रेम के सिवा कोई दूसरा काम नहीं है. लेकिन एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो अभी भी ‘अरेंज मैरिज’ को अपनी पहली पसंद मानता है.

लव मैरिज के प्रति बदल रहा नजरिया

2018 के सर्वे के मुताबिक, एक लाख 60 हजार से अधिक भारतीय परिवारों में 93 प्रतिशत शादीशुदा लोगों ने कहा कि उन की शादी अरेंज मैरिज है. महज 3 प्रतिशत लोगों ने अपने विवाह को प्रेम विवाह बताया जबकि केवल 2 प्रतिशत लोगों ने अपनी शादी को लव कम अरेंज बताया. इस से जाहिर है कि भारत में परिवार के लोग शादियां तय करते हैं. समय के साथ इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है.

भारत में अरेंज शादियों की विशेषता अपनी जाति में ही शादी करना है. 2014 के एक सर्वे में शहरी भारत के 70 हजार लोगों में 10 प्रतिशत से भी कम लोगों ने माना कि उन के अपने परिवार में जाति से अलग से कोई शादी हुई है. अंतर्धामिक शादियां तो और भी कम होती हैं. शहरी भारत में महज

5 प्रतिशत लोगों ने माना है कि उन के परिवार में किसी ने धर्म से बाहर जा कर शादी की है. भारत में युवा अमूमन जाति के बंधन को तोड़ कर शादी करने की इच्छा जताते हैं लेकिन वास्तविकता में काफी अंतर है.

 हावी है रूढि़वादी सोच

लड़का व लड़की अगर दलित या दूसरे धर्म के हैं तो तमाम मापदंडों, शिक्षा, वेतन, गोरा रंग में ठीक होने के बाद भी उसे शादी के लिए ऊंची जातियों में पसंद नहीं किया जाता है. जिन को ऐसी शादियां करनी होती हैं वे विद्रोह कर के ही कर सकते हैं. इस के अपने खतरे हैं. घर से भागने से ले कर पुलिस, कचहरी, थाना और कोर्ट तक के चक्कर लगाने होते हैं. लड़की के मातापिता की ओर से अपहरण और बलात्कार के मामले दर्ज करा दिए जाते हैं. युवा जोड़ों के बीच शारीरिक संबंधों को बलात्कार की श्रेणी में रख दिया जाता है.

पिछले एक दशक में भारत में जिस तरह से ‘लव जिहाद’ और कट्टर जातिवाद का हौवा खड़ा किया गया है उस से गैरजाति और गैरधर्म के बीच शादी करने वालों के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं. कई राज्यों में महिलाओं को विवाह के बाद जबरन धर्मांतरण के लिए दबाव भी डाला जाता है. अंतर्धामिक शादी करने वालों पर भी प्रतिबंध बढ़ाया गया है. इस को एक तरह से प्रेम पर पुलिस का पहरा माना जा सकता है. प्रेम करने वालों पर इस तरह की रोकटोक से अंतर्धामिक जातीय शादियों पर प्रभाव पड़ेगा.

कोर्ट के तमाम बार फैसला देने के बाद भी भारत में किसी का प्रेम में होना एक निजी मामला बिलकुल नहीं होता. समाज, घरपरिवार ही तय करता है कि कौन किस से प्रेम और शादी करेगा. भारतीय समाज हमेशा से ही अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है. आज इस संस्कृति का मतलब बदल चुका है. संस्कृति की रक्षा के नाम पर इस का दुरुपयोग किया जा रहा है. अब यहां मोरल पुलिसिंग होने लगी है. रूढि़वादी सोच से ग्रसित लोगों ने समाज में प्रेम को भी अपना निशाना बनाया हुआ है. भारतीय समाज में कोई अपनी मरजी से अपना जीवनसाथी चुनता है तो उसे तुच्छ और घृणा की नजर से देखा जाता है, जैसे, उस ने कोई अपराध किया हो. उन को समाज के ताने सुनने पड़ते हैं.

 प्यार पर हावी होती नफरती सोच

समाज में प्रेम संबंधों के प्रति नफरत इस कदर हावी है कि अगर लड़की के घर पर उस के प्रेम संबंध के बारे में पता चलता है तो परिवार के सदस्य इसे समाज में अपनी बेइज्जती और सम्मान पर लगा दाग सम?ाते हैं. यदि कोई लड़कालड़की घरवालों की सहमति के साथ प्रेम विवाह करता है तो लड़की के घर वाले यह बात समाज के सामने उजागर नहीं होने देते और सभी रिश्तेदार आदि से छिपाने की कोशिश करते हैं. वे इस को अरेंज्ड मैरिज ही बताते हैं. प्रेम विवाह को यह समाज भारतीय संस्कृति के खिलाफ ही मानता है. समाज में फैली ऐसी ही रूढि़वादी विचारधारा से ‘औनर किलिंग’ जैसे अपराध बढ़ते हैं.

वैसे देखा जाए तो भारतीय संस्कृति प्रेम की मुखालफत नहीं करती है. कुछ रूढि़वादी लोगों ने इस धारणा को बढ़ावा दिया है. ऐसे लोग हमेशा से ही पितृसत्ता के ही पक्ष में रहते हैं. किसी लड़की का अपनी मरजी से अपना साथी चुनना पितृसत्ता को चुनौती देना माना जाता है. इसलिए लोग प्रेम विवाह के विरुद्ध कई तरह के अभियान चलाते हैं.

उदाहरण के तौर पर बजरंग दल, जिस का मानना होता है कि वैलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी विदेशी संस्कृति है जो युवाओं को भ्रमित कर रही है. इस तरह के लोग वैलेंटाइन डे के दिन सार्वजनिक स्थलों, सड़क आदि पर दिखने वाले हर जोड़े, यहां तक साथ दिखने वाले हर लड़कालड़की को बिना जाने कि वे प्रेमी जोड़े हैं भी या नहीं, परेशान करते हैं.

कानून ने भले ही बालिग लड़कालड़की को अपनी इच्छा अनुसार जीवनसाथी चुनने को या लिवइन रिलेशनशिप आदि का अधिकार दिया हो पर समाज अभी भी इस के विरोध में ही रहता है. सामाजिक तौर पर इसे अपनाया नहीं गया है. प्रेम के खिलाफ वही रूढि़वादी अवधारणाएं फैली हुई हैं. इन के कारण इस तरह के संबंधों में हत्या की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं. पिछले कुछ वर्षों से देश में लगातार ऐसे प्रेम संबंधों की भयानक तसवीरें सामने आ रही हैं. अब देश में हर साल ढाईतीन हजार हत्याएं प्रेम संबंधों में बिखराव के चलते हो रही हैं.

प्रेम में बढ़ता अपराध

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, प्रेम या अवैध संबंधों के कारण देशभर में हत्याएं तेजी से बढ़ी हैं. आंकड़ों के अनुसार, 2017 से 2021 तक देशभर में प्रेम संबंधों या अवैध संबंधों के कारण होने वाली हत्याओं की संख्या 2,706 से बढ़ कर 3,139 हो गई.

हाल ही में श्रद्धा वालकर की आफताब अमीन पूनावाला द्वारा की गई हत्या चर्चा में है. आफताब अमीन पूनावाला 2018 से श्रद्धा वालकर के साथ रिश्ते में था. 18 मई, 2022 को दोनों के बीच हुए ?ागड़े के बाद आफताब ने श्रद्धा का गला घोंट दिया. इस के बाद उस ने उस के शरीर के कई टुकड़े कर दिए और शरीर के हिस्सों को अलगअलग जगहों पर ठिकाने लगा दिया.

 आफताब पूनावाला को अपराध के

6 महीने बाद गिरफ्तार किया गया. दोनों 2019 से लिवइन रिलेशनशिप में थे और 8 मई, 2022 को दिल्ली चले आए थे. वे पहाड़गंज के एक होटल में 7 दिनों तक रहे और फिर 15 मई को श्रद्धा की हत्या के ठीक 3 दिन पहले किराए के मकान में शिफ्ट हो गए थे. आफताब ने अपने अपराध के हर सुबूत को मिटाने के लिए महीनों तक काम किया. एक विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2017 में विश्व में लगभग 30 हजार महिलाएं अपने प्रेमियों के हाथों मौत के घाट उतारी गईं. अपने दोस्त के हाथों मारे गए लोगों में 80 फीसदी महिलाएं रही हैं.

संयुक्त राष्ट्र का दावा है कि प्रेम संबंधों के कारण विश्व स्तर पर सालाना 5,000 हत्याओं में 1,000 हत्याएं तो अकेले भारत में हो रही हैं. गैरसरकारी संगठन बता रहे हैं कि विश्व में ऐसी हत्याओं की संख्या 20 हजार तक पहुंच चुकी है. भारत में प्रेम संबंधों में रोजाना 7 हत्याएं, 14 आत्महत्याएं और 47 अपहरण की घटनाएं हो रही हैं.

पुलिस रिकौर्ड के मुताबिक, इन दिनों 90 में से 25 हत्याएं प्रेम संबंधों और अवैध संबंधों को ले कर हो रही हैं. ऐसी हत्याओं के पीछे मूल कारण गलतफहमी, व्यभिचार और घरेलू हिंसा है. ऐसी ज्यादातर हत्याओं के खुलासे पीडि़त के अंतिम फोन कौल्स से हो रहे हैं. ऐसे हत्यारे पुलिस की मामूली सख्ती पर ही पूरा राज उगल देते हैं.

 सोच बदलने की जरूरत

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, इन दिनों का प्रेम संबंध इंसान को अंदर से बहुत पजेसिव बना दे रहा है. लड़की से उम्मीद के मुताबिक निर्वाह नहीं मिलने पर पुरुष पार्टनर प्रतिशोध पर आमादा हो जा रहे हैं. भारत में हर साल 1,000 से अधिक हत्याएं औनर किलिंग की हो रही हैं, जिन में प्रतिवर्ष हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में करीब 900 और बाकी देश में लगभग 300 औनर किलिंग हो रही हैं. अवैध प्रेम संबंधों में होने वाली हत्याओं का आंकड़ा तो और भी भयावह है.

आजकल के प्रेमी अपनी महिला दोस्तों पर चोरीछिपे नजर रखते हुए उन का उत्पीड़न करते रहते हैं. उन का रोमांस पहले तो तेजी से गहरे संबंधों में तबदील हो जाता है, फिर वे स्वयं पर नियंत्रण खो कर संबंध पर हावी होने लगते हैं. वे अकसर आत्महत्या की धमकियां देते हैं, प्रतिशोध की साजिश रचने लगते हैं. जबरदस्ती महिला दोस्त पर नियंत्रण रखने की प्रवृत्ति के कारण वे उन्माद के जनून में अंधे हो कर हत्या तक कर बैठते हैं. प्यार में एकदूसरे को समान अधिकार देने की जरूरत होती है. जहां यह नहीं होता वहीं अपराध घटता है.

ऐसे में सोच बदलने की जरूरत है. प्यार में सम्मान देना सीखें. अगर कहीं संबंधों में प्यार और सम्मान खो रहा है तो एकदूसरे के प्रति अपराध करने की जगह पर अलग हो जाएं. अगर प्यार में बढ़ते अपराध और भेदभाव को रोका नहीं गया तो प्यार का भाव ही खत्म हो जाएगा. इस से रूढि़वादी सोच रखने वालों की धारणा मजबूत होगी. जरूरत इस बात की है कि युवा प्यार को आगे बढाएं और यह साबित करें कि प्यार से बेहतर कुछ भी नहीं है. तभी प्यार के प्रति समाज की सोच और नजरिया बदल सकेगा.

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