उत्तर प्रदेश राज्य के हसनगंज कोतवाली इलाके का रहने वाला रमेश पेशे से बढ़ई था. कुछ दिन पहले उस ने काम करने का ठेका लिया था, जिस के लिए वह बेंगलुरु गया था. रमेश की बेटी रीना (बदला नाम) दूसरी जमात में पढ़ती थी. वह डांस करने में अच्छी थी और खूबसूरत भी. लखनऊ में होने वाले हजरतगंज कार्निवाल में उस ने डांस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था. उस समय के डीएम राजशेखर ने उसे
50 हजार रुपए का इनाम दिया था. रीना के परिवार में उस के मातापिता, 2 बहनें और 3 भाई थे. एक रविवार की सुबह 8 बजे रीना दूध लेने बाजार गई थी. इस के बाद उस की मां काम करने बाहर चली गई थी. शाम को तकरीबन 4 बजे जब मां वापस आई, तब रीना घर पर नहीं थी. उस ने दूसरे बच्चों से पूछा, तो पता चला कि रीना सुबह से ही बाहर है और अब तक घर नहीं लौटी है.
रीना की तलाश शुरू हुई. महल्ले की हर गली, हर सड़क पर मां और उस के बच्चे उसे तलाश करते रहे. मां ने पुलिस को 100 नंबर पर फोन कर के बताने की कोशिश की, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. जब रीना का कुछ पता नहीं चला, तो वे लोग थाने गए और बेटी के लापता होने की बात बताई. पुलिस वालों ने परिवार के लोगों से कहा कि तुम खोज लो कि लड़की कहां गई थी. इसी बीच एक दिन बीत गया.
सोमवार की दोपहर निरालानगर में कार बाजार में सफाई करने वाला लड़का कार की सफाई कर रहा था, तो उसे कार की पिछली सीट पर एक बच्ची की लाश पड़ी मिली. वहां से पुलिस को सूचना मिली. तब आननफानन लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखी गई. पुलिस को बच्ची की लाश के नाखूनों में बाल मिले, जिस से लग रहा था कि उस ने खुद को बचाने की कोशिश की थी.
बच्ची की आंखें और जबान बाहर निकली हुई थी और मुट्ठी बंधी हुई थी, जिस से उस के दर्द का एहसास बराबर समझ आ रहा था. बच्ची के शरीर पर काले रंग की लैगिंग और पीले रंग का कुरता था. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. बच्ची की लाश मिलने की जानकारी जब घर वालों को मिली, तो वे भागेभागे आए और चीखतेचिल्लाते जमीन पर गिर पड़े.
वह बच्ची रीना थी. उस की मां ने राजुल नामक लड़के पर शक जाहिर किया, क्योंकि एक दिन पहले वह रीना को बहलाफुसला कर उसी कार के पास ले गया था. उस दिन रीना की मां वहां आ गई थी. पुलिस ने राजुल को पकड़ा. वह साफसफाई का काम करता था. वह रीना को अकसर टौफी भी देता था.
राजुल ने पुलिस को बताया कि उस ने रीना को कार में बिठाया था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के बाद यह पता चला कि रीना के अंगों पर चोट के निशान मिले. मौत की वजह सिर में लगी चोट को माना गया. रीना का विसरा सुरक्षित रख लिया गया.
यह वारदात लखनऊ शहर की है, जहां हर वक्त भीड़ रहती है. यह वारदात सवाल उठाती है कि बच्ची से सैक्स करने के लिए अपराध क्यों किया जाता है? यह किसी एक शहर की वारदात नहीं है. बहुत सी जगहों पर ऐसे अपराध तेजी से होने लगे हैं.
सैक्स की भूख
मनोचिकित्सक डाक्टर मधु पाठक का कहना है, ‘‘सैक्स की भूख और दिमागी बीमारी आदमी को अपराधी बना देती है. छोटी मासूम बच्चियों को बहलानाफुसलाना और उन को काबू में करना आसान होता है.
‘‘बलात्कार करने वाले आदमी दिमागी रूप से बीमार होते हैं. उन को लगता है कि वे किसी सामान्य औरत के साथ सैक्स संबंध नहीं बना सकते हैं. ऐसे में वे छोटी बच्चियों को अपना शिकार बनाते हैं.
‘‘ज्यादातर मामलों में ऐसे अपराधी बच्चियों के साथ खेलतेखेलते उन को बहलानेफुसलाने का काम करते हैं. इस दौरान वे उन के नाजुक अंगों से खेलते हैं. बच्चियों को इस बारे में पता नहीं होता, इसलिए वे ज्यादा विरोध नहीं कर पाती हैं.
‘‘कई बार तो सैक्स के दौरान ही बच्चियों की मौत हो जाती है और कई बार खुद को बचाने के लिए ऐसे लोग उन की हत्या तक कर देते हैं.’’
अच्छी छुअन की समझ
कुछ लोग सैक्स को ले कर इतने बीमार होते हैं कि वे शरीर को छू कर ही खुश हो जाते हैं. ऐसे लोग दूसरी औरतों के जिस्म को भी छूने की कोशिश करते हैं. राह चलते, बस, ट्रेन और हवाईजहाज तक में सफर के दौरान वे ऐसी हरकतें करने की कोशिश करते हैं. इस को ‘ईव टीजिंग’ यानी छेड़छाड़ कहा जाता है.
रैड ब्रिगेड, लखनऊ की उषा विश्वकर्मा कहती हैं, ‘‘गुड टच और बैड टच यानी अच्छी छुअन और बुरी छुअन की जानकारी बच्चों को देना बहुत ही जरूरी होता है.
‘‘आमतौर पर बीमार सोच के लोग बच्चियों के नाजुक अंगों पर हाथ फेरते हैं. देखने वालों को यह सामान्य लगता है, पर यह उन को खुशी देता है.
‘‘ऐसे में मांबाप की जिम्मेदारी बनती है कि वे बड़ी होती बच्चियों को यह जानकारी दें कि किस तरह से लोग उन को छूने की कोशिश करते हैं.
‘‘वैसे तो उम्र के साथसाथ बड़ी होती लड़कियों को यह पहले से पता चल जाता है कि उन को छूने वाले की मंशा क्या है, छोटी उम्र खासकर 6 साल से 9 साल की लड़कियों में यह समझ नहीं होती है. उन्हें लगता है कि जिस तरह से उन के घर के लोग लाड़प्यार में उन को छूते हैं, वैसे ही दूसरे लोग भी छू रहे हैं. इसलिए बच्चियों को यह बताना जरूरी है कि लाड़प्यार से छूने और सैक्स की सोच वाले के छूने में फर्क होता है.’’
बच्चियों पर कहर
गरीब भिखारी बच्चियों के बीच काम करने वाली लड़कियों को वहां से हटा कर स्कूल भेजने और उन्हें सही राह दिखाने की कोशिश करने वाली सोनाली सिंह कहती हैं, ‘‘आम समाज में रहने वाली लड़कियों को ही नहीं, बल्कि भीख मांगने वाली लड़कियों को भी ऐसे लोग अपना निशाना बनाते हैं.
‘‘आमतौर पर भीख मांगने में पूरे दिन में उतना पैसा नहीं मिलता, जितना किसी आदमी के साथ सैक्स के दौरान मिल जाता है. ऐसे में केवल मजदूर, रिकशा चलाने वाले ही नहीं, बल्कि ड्राइवर, चपरासी या दूसरे ऐसे लोग भीख मांगने वाली लड़कियों को बहलाफुसला कर ले जाते हैं. 1-2 बार सैक्स करने के बाद ये लड़कियां भी इस की आदी हो जाती हैं.
‘‘ऐसे लोग बड़ी चतुराई से इन लड़कियों को नशा करने की आदत भी डाल देते हैं, जिस के चलते इन को पैसों की जरूरत पड़ती रहती है और ये सैक्स की भूख मिटाने का जरीया बनी रहती हैं. हालत यह होती है कि कईकई लड़कियां तो 12 साल से 14 साल की उम्र में ही मां बन जाती हैं.
‘‘यह बात इन के मांबाप को भी पता चल जाती है. कुछ दिनों तक तो ये छोटे बच्चे को अपने साथ रखती हैं, बाद में उस को किसी और के हवाले कर खुद फिर उसी दुनिया में चली जाती हैं.
‘‘भीख मांगने वाली गरीब लड़कियां सैक्स का सब से बड़ा जरीया बनती जा रही हैं. हालात ये हैं कि जल्दी मां बनने और दूसरी बीमारियों का शिकार हो कर इन में से ज्यादातर लड़कियां जवान होने से पहले ही मर जाती हैं.’’
किसी को नहीं चिंता
ऐसे ज्यादातर मामले गरीब घरों की बच्चियों के साथ होते हैं. इस मामले में पुलिस और कानून दोनों ही बहुत सुस्ती से काम करते हैं.
रीना की मां जब बेटी के गायब होने पर पुलिस थाने गई, तो पुलिस ने उस से रिपोर्ट तो ले ली, पर रीना को तलाश नहीं किया. अगर पुलिस ने उस दिन अपना काम शुरू कर दिया होता तो हो सकता है कि रीना बच जाती या उस का पता पहले चल जाता.
यही नहीं, ज्यादातर मामलों में अगर गंभीर किस्म की वारदात न हो जाए, तो घरपरिवार के लोग चुप हो जाते हैं. वे अपनी शिकायत कहीं दर्ज नहीं कराते हैं. ऐसे में अपराध करने वालों का हौसला बढ़ता है.
लखनऊ के ही एक स्कूल की घटना है. वहां काम करने वाले एक मुलाजिम ने छोटी बच्ची के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार करने की कोशिश की. बच्ची इस बात से डर गई और उस ने स्कूल जाना ही बंद कर दिया.
उस के मांबाप ने जब पूछा, तो वह कुछ बोली ही नहीं. मांबाप को लगा कि हो सकता है, स्कूल की किसी टीचर ने कुछ कहा हो. ऐसे में जब वे टीचर से मिलने की बात कहने लगे, तो बच्ची ने अपने डर की वजह बताई और तब घर वालों को पता चला कि स्कूल का एक मुलाजिम उसे डरा कर रखता था. स्कूल में शिकायत होने पर उस को हटाया गया.
ऐसे कई मामलों में केवल टीचर ही नहीं, प्रिंसिपल तक पर आरोप लग चुके हैं. यह जरूर है कि बड़े मामलों में लड़की से छेड़छाड़ तक मामला रहता है, पर गरीब बच्चियों के साथ बात बलात्कार और हत्या जैसे मामलों तक पहुंच जाती है.
कई बार लोग बच्चियों के घर वालों को पैसे दे कर मामला दर्ज न कराने का दबाव बनाते हैं. बहुत बार पैसों के दबाव में पुलिस भी आपस में समझौता कराना ठीक समझती है.
निशाने पर गरीब
‘आभा जगत ट्रस्ट’ की अध्यक्ष शिवा पांडेय कहती हैं, ‘‘गरीब बच्चियों के बहुत सारे ऐसे मामले दबा दिए जाते हैं. इन की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है. ऐसे में कुसूरवार को सजा नहीं मिलती. अपराध करने वाले ज्यादातर शराब के नशे में होते हैं. उन्हें खुद पता नहीं चल पाता कि नशे में वे शैतान बन चुके हैं.
‘‘पुलिस भी तभी काम करती है, जब उस पर दबाव होता है. कई बार तो हत्यारे पकड़े ही नहीं जाते याफिर किसी दूसरे को जेल भेज कर मामले को खत्म कर दिया जाता है. ऐसे मामले ज्यादातर गरीब और दलित जाति की लड़कियों के साथ होते हैं.’’
शिवा पांडेय गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं. वे बताती हैं कि इन के घरों में रहने की जगह नहीं होती. ऐसे में ये बच्चियां किसी दूसरी जगह पर सोने या रहने लगती हैं. वहां आसपास के लोग इस का फायदा उठाते हैं. गरीब बच्चे भी दूसरे बच्चों की तरह टौफी, चौकलेट, कोल्ड ड्रिंक पीना चाहते हैं. इन के घर वाले पैसे दे नहीं पाते, तो दूसरे लोग खिलापिला कर बहलाफुसला लेते हैं. कई बार तो ये बातें किसी को पता ही नहीं चलतीं. जब कभी कोई वारदात हो जाती है, तो ही बात सामने आ पाती है.
देश में एक तबका कितना भी क्यों न चमक रहा हो, दूसरा तबका बहुत पीछे है. ऐसे में उस का शोषण करना लोग अपना हक समझते हैं. कई बार ऐसे मामले खबरों में आते हैं, जहां बलात्कार की शिकार को पैसे दे कर समझौता करा दिया जाता है. जब तक यह सुधार नहीं होगा, तब तक हालात नहीं बदलेंगे.