देश के कुछ हिस्सों से औरतों की चोटी काटे जाने की अनगिनत घटनाएं सामने आ चुकी हैं. कहा जा रहा है कि पीड़ित लड़कियों और औरतों को रात में अचानक महसूस हुआ कि कोई उन का गला दबा रहा है, फिर वे बेहोश हो गईं. बाद में दूसरे लोगों ने देखा कि बिस्तर पर उन के बाल कटे पड़े थे.

इस तरह की घटनाएं राजस्थान के गांवों से शुरू हो कर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और बिहार तक में फैलती गईं. कोई इसे ओझाओंतांत्रिकों की करतूत बता रहा था, तो कोई अनजानी ताकतों का प्रकोप.

आगरा में तो एक बूढ़ी औरत को चोटी काटने वाली डायन बता कर मार डाला गया. लोगों ने इस से बचने के लिए अपनेअपने घरों के दरवाजों पर हलदी और मेहंदी के छापे बनाए, साथ ही, नीम के डंठल लगाए.

अंधविश्वास की पायदान

सितंबर, 1995 की एक सुबह गणेश की मूर्ति के चम्मच से दूध पीने की खबर बहुत तेजी से फैली. असर यह हुआ कि देश के करोड़ों लोग मंदिरों में जा कर गणेश की मूर्ति को दूध पिलाने लगे.

साल 2001 में ‘मंकीमैन’ की अफवाह ने जोर पकड़ा था. दिल्ली में सैकड़ों लोगों पर मंकीमैन ने तथाकथित रूप से हमला किया था.

हालांकि लोगों ने दावा किया था कि उन्होंने मंकीमैन को दौड़तेभागते और छतों को लांघते दूर से देखा था. बाद में बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पूरा मामला अफवाह साबित हुआ था.

साल 2002 में उत्तर प्रदेश में मुंहनोचवा का खौफ फैला हुआ था. कहा जा रहा था कि एक आदमी, जिस का मुंह जानवर जैसा है, लोगों के मुंह नोच कर चला जाता है और जिस के भी मुंह पर वह हमला करता है, उस के ऐसे जख्म हो जाते हैं, जो कभी ठीक नहीं होते. पुलिस प्रशासन इसे अफवाह करार देता रहा और लोगों को समझाता रहा.

साल 2006 में एक दिन अचानक हजारों लोग मुंबई के एक समुद्र तट पर जुटने लगे. मोबाइल से ले कर ईमेल के जरीए लोगों तक यह खबर पहुंचने लगी कि समुद्र का पानी मीठा हो गया है और भीड़ इस मीठे पानी का स्वाद चखने और भर कर ले जाने के लिए उमड़ पड़ी. यह भी अफवाह का एक पहलू था.

साल 2016 में नोटबंदी के दौरान अचानक यह खबर उड़ने लगी थी कि बाजार से नमक खत्म हो रहा है. इस के लिए कहा गया कि नमक की किल्लत हो गई है और यह जल्द ही एक हजार रुपए किलो में मिलेगा. हो सकता है कि यह मिलना ही बंद हो जाए.

यह अफवाह उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा तक फैली. अफवाह के बाद दुकानों पर नमक खरीदने वालों की लंबी लाइनें लग गईं, जबकि असल में ऐसी कोई किल्लत नहीं थी.

चोटी का मामला चोटी पर

हाल ही में देश के बहुत से इलाकों में औरतों के कटे बाल मिलने के मामले सामने आए, जिस ने दहशत का माहौल पैदा कर दिया. आखिर कौन काट रहा था औरतों के बाल?

बाड़मेर की इस वारदात के बाद तो राजस्थान के ही नागौर, बीकानेर, जैसलमेर समेत पश्चिमी राजस्थान यानी मारवाड़ के कई इलाकों से ऐसे तमाम किस्सेकहानियों और अफवाहों की झड़ी सी लग गई थी.

इस के बाद हरियाणा के झज्जर, मेवात, रोहतक वगैरह जिले के गांवों में औरतों की चोटी काटने की घटनाएं हुईं. धीरेधीरे चोटी काटने की घटनाएं गुरुग्राम के आसपास के गांवों में भी होने लगीं.

हरियाणा में गुरुग्राम के भीमगढ़ इलाके की 53 साला सुनीता देवी ने कहा, ‘‘एक तेज रोशनी से मैं बेहोश हो गई. एक घंटे बाद मुझे पता चला कि मेरे बाल काट लिए गए थे.’’

अफवाह फैलाई जा रही थी कि पहले औरतों के सिर में तेज दर्द होता है, फिर वे बेहोश हो जाती हैं और तब उन की चोटी काट दी जाती है.

औरतों के मुताबिक, यह कोई बुरी आत्मा थी, जिस की नजर उन के बालों पर थी. इस तथाकथित आत्मा से बचने के लिए कहीं लड़कियां अपनी चोटी में नीबूमिर्च लटका रही थीं, तो कहीं पैरों में महावर लगा रही थीं. घरों की दीवारों पर हाथों के हलदी और गेरू से छापे लगाए जा रहे थे. औरतें डर के मारे सिर पर कपड़ा बांध कर सो रही थीं.

किसी औरत ने कहा कि वह कुत्ता देखने के बाद बेहोश हुई, तो किसी ने कहा कि उसे किसी ने अंधेरे में धक्का दिया, जिस के चलते वह गिर पड़ी और बेहोश हो गई. जो बात समान रूप से सही थी, वह यह थी कि चोटी काटे जाने से पहले पीडि़त औरत का बेहोश होना.

हालांकि फिलहाल दावे के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि यही सच था. एक बात यह भी समझने की थी कि जिन औरतों की चोटी कटने की बातें सामने आईं, वे बेहद गरीब और अनपढ़ थीं.

मौजूदा दौर में इस तरह की घटनाएं हमारी तरक्की पर सवालिया निशान लगाती हैं. आज भी नरबलि और डायन हत्या जैसी घटनाएं घट रही हैं.

पिछले साल झारखंड में 5 औरतों की डायन बता कर हत्या कर दी गई थी. वहीं उत्तर प्रदेश के सीतापुर इलाके में एक परिवार ने तांत्रिक की सलाह पर अपनी ही बच्ची की बलि चढ़ा दी थी.

पुलिस ने इन मामलों की जांच की, लेकिन न तो कुछ सुराग मिला और न ही कोई चश्मदीद गवाह. ऐसे में चोटी कटने की घटनाओं को ले कर यह तय होना मुश्किल हो पा रहा था कि ये पूरी तरह से कोरी अफवाह हैं और अपराधियों का कोई ऐसा गैंग नहीं है या फिर यह वाकई एक सोचीसमझी खुराफाती साजिश के तहत किया जा रहा है.

सवाल यह भी है कि अगर इस के पीछे किसी गैंग का हाथ था, तो वह ऐसा क्यों कर रहा था?

गुरुग्राम की एक घटना के मुताबिक, आशा देवी के ससुर सूरज पाल ने बताया कि एक रात आशा देवी के बाल कट जाने के बाद उन्होंने आशा और घर की दूसरी औरतों को उत्तर प्रदेश में एक रिश्तेदार के घर पर भेज दिया था. इस हमले के बाद वे डरी हुई थीं. उन्हें कुछ हफ्तों के लिए घर से दूर रहने को कहा गया था.

सूरज पाल ने कहा कि उस दिन वे घर पर थे, जबकि आशा देवी रात के 10 बजे किसी काम से घर के बाहर थीं. जब वे आधा घंटे तक नहीं लौटीं, तब वे उन्हें ढूंढ़ने निकले. ढूंढ़ने पर बाथरूम में वे बेहोश पड़ी मिलीं. उन के सिर के कटे बाल जमीन पर बिखरे पड़े थे.

तकरीबन एक घंटे बाद होश में आने पर आशा देवी ने बताया कि उन पर किसी औरत ने हमला किया था. सबकुछ केवल 10 सैकंड में ही हो गया.

इसी तरह के कुछ मामले गुरुग्राम से 70 किलोमीटर दूर रेवाड़ी जिले के देहात के इलाकों में भी देखे थे.

गुरुग्राम में ही एक औरत ने यह बताया कि उस ने एक बिल्ली की आकृति को अपने ऊपर हमला करते देखा और पाया कि उस के बाल कट गए, जो कि नामुमकिन सा लगता है.

इसी तरह एक और पीडि़त औरत का कहना था, ‘‘मैं पड़ोसी के घर जा रही थी, जब किसी ने पीछे से मेरे कंधे को थपथपाया. मैं पीछे मुड़ी, तो कोई नहीं था. इस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं. बस अपनी चोटी कटी हुई पाई.’’

विज्ञान के हवाले से अगर हम मानवशास्त्र के वैज्ञानिक पक्ष के हवाले से कहें, तो मास हिस्टीरिया इनसानी जिंदगी का एक कड़वा सच है, जो विकसित समाज में भी देखा जाता है.

19वीं सदी के आखिर में लंदन में ‘जैक: द रिपर’ नामक एक सीरियल किलर की दहशत छाई रही, जो कुछ समय बाद खुद ब खुद खत्म हो गई.

दरअसल, हमारे अचेतन मन में न जाने क्याक्या चीजें चलती रहती हैं. ऐसे में किसी भी बेतुकी हरकत पर बहुत सारे लोग एकसाथ चर्चा करने लगें, तो वह मास हिस्टीरिया में बदल जाती है. इस की जद में आ कर कई लोग जो सुनते हैं, वही करने लग जाते हैं.

मनोवैज्ञानिक इस को सामूहिक उन्माद या सामूहिक विभ्रम बताते हैं. इस नजरिए से भी जांच की जरूरत है कि कहीं कोई अंधविश्वासी समूह या संगठन तो इस के पीछे नहीं है, जिस का कि कोई फायदा छिपा हो?

लगातार फैल रही इस अफवाह के खिलाफ हरियाणा और पंजाब में काम करने वाली तर्कशील सोसाइटी सामने आई. इस सोसाइटी ने ऐलान किया है कि अगर चोटी कटने की घटना के पीछे कोई भूतप्रेत या दैवीय ताकत का हाथ साबित कर दे, तो उसे एक करोड़ रुपए का इनाम दिया जाएगा.

मुमकिन है कि चोटी काटने का मामला किसी आत्मा व डायन से जुड़ा हुआ न हो कर, बल्कि कुछ असामाजिक तत्त्वों की मिलीजुली चाल हो, जो अंधविश्वास फैला कर अपना पुश्तैनी धंधा, जो मंदा हो चला है, पटरी पर लाने के लिए लोगों को समयसमय पर इस तरह परेशान कर अंधविश्वास के पौधे को हराभरा रखना चाहता हो, जिस से कि समाज पर उन की बादशाहत बनी रहे.

कई लोग इस अंधविश्वास की आड़ में पुरानी दुश्मनी भी साधते हैं. बहुत साल पहले मुंहनोचवा का भी खौफ इसी तरह फैला था. वह भी हमारे आसपास रहने वाले कुछ लोगों की ही करतूत थी.

हल है आसान

यह दुख की बात है कि हमारी सरकारें एक तरफ तो वैज्ञानिक सोच बढ़ाने का दम भरती हैं, वहीं दूसरी तरफ आज भी अखबारों, टैलीविजन चैनलों से ले कर सड़कों, चौराहों, गलियों में तांत्रिकोंओझाओं के बड़ेबड़े इश्तिहार छाए रहते हैं. इन में मनचाहा प्रेम विवाह कराने, गृहक्लेश से मुक्ति दिलाने, सौतन का नाश करने, शत्रुमर्दन, गड़े धन की प्राप्ति जैसे तमाम दावे किए जाते हैं. अशिक्षा और परेशानियों में जकड़े हुए लोग इन के पास राहत पाने जाते हैं और ठगी के शिकार होते हैं.

सरकार हो या समाज, सभी को मिल कर यह सोचने की जरूरत है कि आखिर कब तक हमारा समाज इस तरह की मुसीबतों में फंसता रहेगा?

\ऐसे लोगों की धरपकड़ खुद समाज ही कर सकता है. पुलिस को आमजन को सतर्क करना चाहिए. अफवाहों के सिरपैर नहीं होते. उन की काया नहीं होती, जिसे पुलिस पकड़ सके. हां, उसे प्रभावित इलाकों में लगातार गश्त और छोटीछोटी महल्ला स्तरीय सजगता बैठकें करनी चाहिए, ताकि बदमाशों में डर बना रहे.

ऐसे ही मौकों पर सिविल डिफैंस के कार्यकर्ता काम आते हैं. एनजीओ को सक्रिय किया जा सकता है. यह समस्या अफवाहों की देन है, इसलिए उन्हें ही काबू करने की कोशिश होनी चाहिए.

सतर्कता और समझदारी से जिस तरह मुंहनोचवा का खौफ खत्म हुआ, वैसे ही चोटी कटवा की अफवाहों को भी सब को मिलजुल कर खत्म करना होगा.

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