ताउम्र व्यवस्था के खिलाफ लड़तेलड़ते मरने को आ गया तो अचानक याद आया कि मरने के बाद मैं कहीं जाऊं या न, कम से कम हरिद्वार तो जाना ही पड़ेगा. तो जिंदगी में क्यों न कम से कम वहां की स्थितियों का जायजा ले लिया जाए, ताकि मरने के बाद व्यवस्था से अपने को एक और शिकायत न हो.

सच पूछो तो मैं मरने से उतना नहीं डरता जितना धर्म से डरता हूं. यह धर्म ही है जो समाज में कभी भी, कुछ भी करने का माद्दा रखता है. कहते हैं, धर्म जोड़ता है पर मैं ने तो इसे तोड़तेमरोड़ते ही बहुधा देखा. एक ही आदमी को सैकड़ों हिस्सों में टांकते देखा. मरने के बाद बंदा ही जाने कि वह कहां जाता है, कहीं जाता भी है या नहीं, पर हम फिर भी लाख सैक्युलर, समाजवादी होने के बाद भी उस के जीतेजी उस के बारे में उतने चिंतित नहीं होते जितने चिंतित उस के मरने के बाद होते हैं.

बस, यही सोच सारे कामधाम छोड़ हरिद्वार के लिए बस पकड़ी और नाक की सीध में सीधे हरिद्वार जा पहुंचा. वहां पहुंचते ही एक पहुंचे हुए पंडितजी टकरा गए. गोया, वे मेरा ही इंतजार कर रहे हों. आत्माओं के प्रति उन के मन में इंतजार देख मन बागबाग हो उठा. मुझे सिर से पांव तक तोलनेदेखने के बाद वे अलापे, ‘‘कहो जजमान, कैसे आना हुआ?’’

‘‘बस, यों ही चला आया. यहां की व्यवस्था देखने. सोचा, मरने के बाद हांडीलोटे में पड़े तो सभी आप के दर्शन करते ही हैं, जीतेजी भी जो आप से एकबार साक्षात्कार हो जाए तो…’’ मैं ने कहा तो वे चौंक कर बोले, ‘‘मान गया तुम्हारा दुस्साहस, हे जीव! जो जिंदा रहते ही हमारे से मिलने चले आए. यहां तो जीव मरने के बाद भी आने से, हम से मिलने से डरता है जबकि तुम जिंदा ही चले आए?’’

‘‘पंडितजी, इसलिए आया हूं कि मरने के बाद यहां कि सुव्यवस्था देख परेशान न होना पड़े. पहले ही कहीं की व्यवस्था के बारे में पता हो तो कुछ भी घटते देखते मन नहीं दुखता. बस, इसीलिए…’’

‘‘गुड, वैरी गुड, बहुत दूरदर्शी मालूम होते हो?’’ कह वे अपनी राह होने को हुए तो मैं ने उन्हें तनिक रोकते पूछा, ‘‘माफ करना, पर सुना है जीवों को स्वर्ग पहुंचाने वाला रास्ता यहीं से शुरू होता है?’’

‘‘हां, कोई शक?’’

‘‘नहीं, आप पर शक कर नरक को जाना है क्या? बंदा अपने कर्मों से स्वर्ग को जाए या न, पर आप के बूते नरक को जा जरूर सकता है. मैं चाहता था कि जो आप की मेहरबानी हो तो…इस नरक में रहतेरहते असल में बहुत तंग आ गया हूं.’’ कह मैं ने जेब में हाथ डाला तो वे बोले, ‘‘नहीं, हम विधि के विधान के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते. इसलिए बेहतर होगा अपना हाथ जेब से निकाल लो. बंदे के मरने के बाद तो हम खुद ही उस के लाख जेब पकड़े रखने के बाद भी उस की जेब में हाथ डाल लेते हैं. हमारी एक जीव ट्रांसपोर्ट कंपनी है, आइएसओ. पर हमारा कायदा है कि हम मरने के बाद ही जीव को स्वर्ग को भेजते हैं.’’

‘‘क्यों? जिंदा जीव क्यों नहीं? जिंदा जीव के पास दिमाग और आंखें तो दोनों होती हैं?’’

‘‘होती हैं, इसलिए तो यह नहीं हो सकता. जिंदा आदमी के पास पर वे आंखें नहीं होतीं जिन से स्वर्गनरक का रास्ता दिखे. नश्वर आंखें तो अपने स्वार्थ से आगे रत्तीभर नहीं देख सकतीं. स्वर्गनरक का रास्ता मरने के बाद ही जीव को दिखता है. जीवित की आंखों और दिमाग पर माया के बहुत भारी परदे पर परदे पड़े होते हैं,’’ उन्होंने सतर्क तर्क दिया.

‘‘पर मेरी आंखें तो सब देख सकती हैं,’’ मैं ने अपनी आंखों पर ठोक बजा कर दावा प्रस्तुत किया तो वे बोले, ‘‘बस, यहीं तो जीव धोखा खा जाता है, बुद्धू. सब्सिडी वाले राशन के चलते राशनकार्ड पर अंकित आटेदाल के अतिरिक्त और कुछ, असल में, बंदे को दिखता ही नहीं, चाहे वह कितनी ही कोशिश क्यों न कर ले. धर्म के विनाश का कारण भी यही तर्क है.

‘‘जीव दूसरों की आंखों से अधिक जब अपनी आंखों पर विश्वास करता है तभी तो सारे तीर्थ करने के बाद भी जीव नरक में औंधेमुंह जा कर पड़ता है. तुम्हें भी स्वर्ग का द्वार हम दिखाएंगे तो जरूर लेकिन तुम्हारे मरने के बाद ही. एक बार मर कर आओ, तो फिर देखना हमारा कमाल. पुश्तों से पूरी ईमानदारी से यह काम कर रहे हैं. पर क्या मजाल जो किसी ने भी एक शिकायत की हो कि हम ने उसे स्वर्ग भेजा लेकिन वह नरक में जा पहुंचा.

‘‘पूरे देश में एक भी केस ऐसा निकाल कर बता दो तो अपनी मूंछें कटवा कर रख दूं. यह लो उस्तरा और यह लो मेरा कार्ड. जरूरत पड़े आ जाना. हम मोक्ष के लिए आतुर जीवों की दिनरात सेवा में हाजिर रहते हैं.’’ बंदे ने अपनी जेब से विजिटिंग कार्ड और उस्तरा निकाला लेकिन मुझे देने के बजाय अपनी जेब के हवाले कर मुझे खैनी से सड़े दांत दिखाते, खिसियानी हंसी हंसता रहा.

हर घाट पर घूमतेघूमते स्वर्ग को भेजी जा रही आत्माओं को ठूंसठूंस कर रिकशा में बैठातेबैठाते देखने के बाद कुशाघाट पर जा पहुंचा. अब तक मेरे मन में पापपुण्य सावन के झूलों की तरह हिलोरें मारने लग गए थे. मुझे लग रहा था कभी पेटभर रोटी न खाने वाला भी पाप तले दब सा रहा है. मैं ने वहीं घाट पर अपने कपड़े उतारे और अवांछित पापों से मुक्ति के लिए गंगा में डुबकी लगाने को हुआ कि कहीं से आवाज आई, लगा, जैसे कोई मेरा नाम ले कर मुझे पुकार रहा हो. इधरउधर देखा, तो कोई नजर नहीं आया. फिर नाक पकड़ हिम्मत कर डुबकी लगाने को हुआ कि लगा, जैसे कोई मेरा नाम ले रहा हो. मैं ने डुबकी लगाने को पकड़ी नाक छोड़ी और कहा, ‘कौन?’

‘मैं, गंगा.’

‘गंगा में गंगा?’ मैं चौंका.

‘हां गंगा,’ पहले तो विश्वास ही न हुआ क्योंकि धर्म के नाम पर, भगवान के नाम पर विश्वास करने लायक अब कुछ बचा ही नहीं है. पर जब गंगा ने दृढ़ता से कहा तो सामने साक्षात् गंगा को पा, लगा मैं सशरीर मोक्ष पा गया.

‘पर तुम यहां पंडोंपापियों के मेले में क्या कर रहे हो?’

‘सोचा, बहती गंगा में मैं भी नहा ही लूं.’

‘तुम्हें तो नहा कर मुक्ति मिल जाएगी पर मेरा क्या होगा? कभी इस बारे में भी सोचा? अब मैं कहां नहाने जाऊं? है कहीं कोई ऐसी नदी?’ गंगा ने उदास हो पूछा तो मुझे काटो तो खून नहीं. कुछ देर तक एकटक मुझे देखने के बाद गंगा ने कहा, ‘नहीं सोचा, तो अब सोचो.’

‘सरकारी स्तर पर तो, हे गंगा, हम सोचसोच कर हार गए. अब किसी को स्वच्छ नहीं होना हो तो हम भी क्या करें?’ मैं ने अपनी जिम्मेद?ारी से बचने की कोशिश की तो वह बोली, ‘अपने स्तर पर भी कुछ सोचो तो बात बने. अपनी मुक्ति की बात तो युगों से करते रहे हो, मेरी मुक्ति की बात करो तो मेरा भी कल्याण हो,’ कह अंतर्ध्यान हुईं तो पीछे मुड़ कर देखा, एक पंडा मेरे कपड़े चुरा, बदहवास दौड़े जा रहा था.

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