उत्तर प्रदेश में लखीमपुर के एक गांव में रहने वाली देविका की शादी देवेश से तय हो गई. देवेश सरकारी नौकरी करता था. ऐसे में देविका के घर वालों ने उस की तकरीबन हर डिमांड पूरी की थी. दोनों ने एकदूसरे को देखा था और पसंद भी किया था. सभी को जोड़ी अच्छी लग रही थी.
देविका अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर रही थी. अपने भविष्य को ले कर उस ने सपने देखे थे. शादी के दिन जब फेरे हो रहे थे, उस समय देवेश नशे की हालत में था. उस के पैर लड़खड़ा रहे थे और मुंह से बदबू आ रही थी.
देविका को अच्छा नहीं लगा. उस ने आगे के फेरे लेने बंद कर दिए और अपने परिवार को बुला कर फैसला सुना दिया कि वह नशा करने वाले लड़के के साथ शादी नहीं करेगी.
देविका के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं था. घरपरिवार, नातेरिश्तेदार सभी उस को समझाने में लग गए. हर तरह से समझाया पर देविका ने अपने फैसले को बदलना ठीक नहीं समझा.
देविका ने कहा, ‘‘अगर आप लोग नहीं माने तो मैं मुकदमा दर्ज करा दूंगी.’’
देविका के दबाव के आगे सभी को झुकना पड़ा. देवेश को शादी किए बिना ही अपने घर वापस आना पड़ा.
यह घटना एक उदाहरण भर है. ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जहां लड़की ने शादी करने से इनकार कर दिया, क्योंकि उस का होने वाला पति नशा करता था.
नशे की लत
गांव में खेतीकिसानी ही अहम पेशा होता है. हाल के कुछ सालों में खेतीकिसानी बेहाल होती जा रही है. गांव के आसपास शहरों का विकास होने लगा है. गांव की जमीन महंगी होती जा रही है. गांव के आसपास सड़क बनने से सरकार गांव से जमीन खरीद कर अच्छाखासा मुआवजा देने लगी है. घर और रिसोर्ट बनाने वाले भी गांवों की जमीन की खरीदारी कर रहे हैं. शहरों में रहने वाले लोग भी गांव की जमीनें खरीदने लगे हैं. ऐसे में गांव के लोगों के पास जमीन बेचने के बाद पैसा आने लगा है. पैसा आने के बाद ये लोग उस का इस्तेमाल ऐशोआराम में करने लगे हैं. ऐेसे में नशे की आदत सब से ज्यादा बढ़ती है.
गांवों में रहने वाले नौजवान उम्र के 90 फीसदी लोग नशे के शिकार हैं. वे शराब, भांग और गांजा समेत तंबाकू का सेवन करने लगे हैं. पढ़नेलिखने से दूर ऐसे बेराजगार नौजवानों से लोग अपनी लड़की की शादी नहीं करना चाहते हैं.
नशे के आदी इन नौजवानों की इमेज बेहद खराब है. लड़कियों को लगता है कि ये लोग शादी के बाद मारपीट और गालीगलौज ज्यादा करते है. ऐसे में इन के पास जमीनजायदाद होते हुए भी लड़कियां शादी के लिए तैयार नहीं होती हैं. कई बार अगर मातापिता के दबाव में लड़की शादी करने को राजी हो भी जाए तो शादी टूट जाती है. नशे और स्वभाव के चलते गंवई लड़के लड़कियों को पसंद नहीं आते. गांव के माहौल में पली लड़कियां तो किसी तरह से अपने को ढाल भी लें पर शहर की रहने वाली लड़की तो कभी भी ऐसा नहीं कर पाती है.
बेरोजगारी से बड़ा दाग
अब लड़कियां लड़कों से ज्यादा पढ़ीलिखी होने लगी हैं. ऐसे में वे लड़कों की बेरोजगारी से तो समझौता कर भी लेती हैं पर नशेड़ी होने की हालत में समझौता करने को तैयार नहीं होती हैं.
कविता नामक लड़की कहती है, ‘‘रोजगार नहीं होगा तो कोई भी धंधा किया जा सकता है. आज गांवों में हर तरह की सुविधा और साधन हो गए हैं पर अगर पति में नशे की लत होगी तो वह हमेशा परेशान करेगा. नशे के लिए पैसा चाहिए. पैसे का इंतजाम करने के लिए वह जमीनजायदाद और गहने तक बेचने की कोशिश करता है. नशे के हावी होने से शादी के बाद की खुशनुमा जिंदगी बरबाद हो जाती है.’’
नशे के शिकार नौजवान उम्र से पहले ही बूढ़े हो जाते हैं. तमाम बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. एक तरफ गरीबी होती है तो दूसरी तरफ पैसा जो पहले नशे पर खर्च होता है और बाद में नशेड़ी के इलाज में. ऐसे में अगर पहले से नशेड़ी लोगों को सबक मिले तो भविष्य में गांव के नौजवान नशे से दूर रहेंगे.
ज्यादातर नौजवानों को नशे की लत आपस के लोगों से ही लगती है. कई बार यह भी होता है कि अगर आप का कोई दुश्मन है तो वह आप के लड़के को नशे की लत लगा देगा, जिस से पूरी पीढ़ी बरबाद हो जाती है.
कई बार नशा करने वाला यह स्वीकार ही नहीं करता कि वह नशा करता है. ऐसे में समस्या को हल करने का कोई जरीया ही नहीं बचता है. गांव में रहने वालों को खुद का भविष्य सुधारना है तो नशे के खिलाफ खड़ा होना होगा.
नशे से बढ़ते हैं घरेलू झगड़े
नौजवान पीढ़ी नशे की सब से ज्यादा शिकार बनती जा रही है. नशे की लत और मात्रा बढ़ती जा रही है. पहले गांव में गिनेचुने लोग ही नशा करते थे, अब आप गिन नहीं सकते कि कितने लोग नशा कर रहे हैं. अपनी मेहनत से कमाया गया पैसा नशे में उड़ा रहे हैं. इस से पैसा और शरीर दोनों खराब हो रहे हैं. गांव में स्कूल के बच्चों से बात करने पर पता चलता है कि पिता बच्चे के स्कूल से ज्यादा अहमियत अपने नशे को देता
है. जिस घर में नशा करने वाले लोग होते हैं वहां लड़ाई जरूर होती है. नशे के खिलाफ सामाजिक जागरूकता बढ़नी चाहिए.
– आईपी सिंह, समाजसेवी टीचर.
बीमारियों की वजह है नशा
पिछले कुछ सालों में कैंसर, टीबी जैसी बीमारियों ने गांवों में तेजी से पैर पसार लिए हैं. हम लखनऊ के मैडिकल कालेज में कैंसर पीडि़त परिवारों की मदद करते समय यह समझ पाते हैं कि हालात बहुत खराब हैं. ऐसी बीमारियां केवल नशा करने वाले को ही नहीं होतीं, बल्कि उस के परिवार में दूसरों को भी होती हैं. परिवार में कोई एक बीमारी का शिकार हो गया तो पूरा परिवार बरबाद हो जाता है.
अगर नशे का विरोध हो और इस को बंद किया जा सके तो समाज और परिवार का बहुत भला हो सकता है. बीमारी के बाद इलाज में लगने वाला पैसा घरपरिवार की खुशहाली में लग सकता है.
– सपना उपाध्याय, ईश्वर चाइल्ड केयर फाउंडेशन
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