प्याज खरीदने की लंबी कतार में लगे हुए 2 घंटे से ज्यादा का समय बीत चुका था, पर बढ़ती महंगाई की तरह यह लाइन भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. किसकिस लाइन में लगे जनता? बिजली का बिल जमा करने, राशन की दुकान, रेल का टिकट, बैंक का काउंटर और सरकारी अस्पतालों की बिना बेहोशी की दवा के बेहोश करने वाली कतारें. सच, नानी याद दिला देती हैं.
खैर, लाइन आगे बढ़ी. मुश्किल से 10 लोग अपने मकसद से दूर रह गए. मुझे संतोष हुआ कि चलो अब मंजिल दूर नहीं है कि तभी अचानक स्टे और्डर सा लग गया.
मालूम हुआ कि प्याज का स्टौक खत्म हो गया है. दूसरा स्टौक आने में कुछ देर लग जाएगी.
तभी एक सज्जन ने हद कर दी. उन्होंने ‘हद है भैया’ कहते हुए मेरी ओर पान की पीक थूक दी, तभी आगे से एक वाक्य उछल कर मेरे कानों से टकराया, ‘अरे, आप धक्का क्यों दे रहे हैं?’
जवाब आया, ‘मैं ने कोई धक्का नहीं दिया. आप ने इतनी जोर से मेरे पेट में कुहनी मारी कि मैं गिरतेगिरते बचा.’
यह तो अच्छा हुआ कि इस धक्कामुक्की में मेरी जगह नहीं गई. इसी शोरशराबे में मेरा नंबर आ गया. मैं झपट कर पहुंचा तो देखा कि काउंटर पर निर्धन के धन की तरह मुश्किल से पावभर प्याज पड़े थे. मरता क्या न करता, प्याज के आंसू रोते हुए मैं ने झोला आगे कर दिया. आज समझ में आया कि प्याज के आंसू किसे कहते हैं. जो खरीदने से ले कर पकाने तक में सौसौ आंसू गिरवाते हैं.
प्याज खरीद कर मैं ने अपना स्कूटर स्टार्ट किया. घर की घंटी बजाने से पहले ही पत्नी ने सजग द्वारपाल की तरह ऐसे दरवाजा खोल दिया, जैसे वह पहले ही से दरवाजे पर कान लगाए बैठी थी.
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