उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद का एक कस्बा है धाता. यह कस्बा दूध, घी, खोया तथा दूध से बने उत्पादों के लिए मशहूर है. इसी कस्बे में दयाराम यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस का दूध, घी का अच्छा कारोबार था. उस के परिवार में पत्नी मालती के अलावा 2 बेटियां थीं.

दयाराम अपने नजदीक के गांवों से दूध खरीदता, उस से घी और खोया तैयार कर के उसे खागा, धाता, फतेहपुर आदि के थोक बाजारों में बेच देता था. इस काम में दयाराम की बेटियां और  पत्नी भी उस की मदद करती थीं.

वक्त की बयार चलती रही. रेखा और सुलेखा का बचपन किशोरावस्था के सांचे में ढला और निखरता हुआ जवानी में तब्दील हो गया. बेटियां जवान हुईं तो पिता को उन की शादी की चिंता सताने लगी. दयाराम को अपनी बड़ी बेटी रेखा के लिए लड़के की तलाश में अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी.

दयाराम ने अपने ही जिले के बिंदकी कस्बे के एक संपन्न खोया व्यापारी घनश्याम के बेटे रामबाबू से रेखा का विवाह कर के मुक्ति पा ली. लेकिन दूसरी बेटी सुलेखा बहुत खूबसूरत थी. इसलिए उस के योग्य लड़का तलाशने में काफी भागदौड़ करनी पड़ी.

ऐसे लड़के की तलाश में उन्हें समय तो जरूर ज्यादा लगा, लेकिन उन के मन मुताबिक एक लड़का फतेहपुर जिले के बेरुई गांव में मिल गया. लड़का था रामसिंह यादव का बेटा दिनेश यादव.

दिनेश अपने 3 भाइयों में सब से बड़ा था. उम्र में वह सुलेखा से बड़ा जरूर था, लेकिन संपन्न था. दिनेश कम उम्र से ही पिता के साथ खेतीबाड़ी करने लगा था. इसी वजह से वह अधिक पढ़लिख नहीं पाया था.

लड़का पसंद आया तो बातचीत आगे बढ़ी. आखिर सुलेखा की शादी दिनेश से हो गई. ससुराल में जिसने भी सुलेखा को देखा सभी ने उस के रूप सौंदर्य की प्रशंसा की. दिनेश भी  सुलेखा को पा कर बहुत खुश था.

समय अपनी गति से गुजरता रहा. धीरेधीरे दोनों की शादी को 8 साल बीत गए. शादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी सुलेखा की गोद नहीं भरी थी.

दिनेश ने सुलेखा का कई डाक्टरों से इलाज कराया. झाड़फूंक के लिए तांत्रिकों, ओझाओं के पास गया, लेकिन उस की कोख में कोई फूल नहीं खिला. इस के बाद घर और बाहर वाले उसे हेय दृष्टि से देखने लगे. जिस सुलेखा को ससुराल वालों ने विवाह के बाद सिरआंखों पर बिठा लिया था, वही अब उसे देख कर नजरें फेरने लगे थे.

घरपरिवार के लोगों का तो उस के प्रति व्यवहार बदला ही, पड़ोसी और मोहल्ले वाले भी उस के नाम पर तरहतरह की बातें करने लगे थे. कोई उसे बांझ तो कोई उसे निपूती कहता था. जहां 2-4 औरतें इकट्ठी होतीं, वहां इस तरह की बातें कुछ ज्यादा ही होती थीं.

एक रोज सुलेखा की उम्रदराज पड़ोसन उस के पास आई और उस ने गर्भवती होने के तमाम उपाय सुझा दिए. इस पर सुलेखा बोली, ‘‘काकी, सारे जतन कर लिए हैं हम ने, अब तो लगता है कि भगवान के घर हमारी सुनवाई नहीं होगी.’’ कहते हुए सुलेखा ने लंबी सांस भर कर छोड़ी.

सुलेखा के चेहरे पर निराशा की परत चढ़ी देख कर उस की पड़ोसन उस की कलाई पकड़ कर एक ओर ले गई. उस ने शरारत से सुलेखा के कान में फुसफुसा कर कहा, ‘‘बहू ऐसा तो नहीं कि दिनेश में ही कोई कमी हो? कमी उस में होगी पर भुगतना तुझे पड़ेगा. इस से अच्छा तो यह है कि किसी दूसरे आदमी से बीज दान करा ले.’’

‘‘कैसी बात कर रही हो काकी?’’ सुलेखा ने शर्म से अपना सिर झुका लिया, ‘‘मैं ऐसा कैसे कर सकती हूं.’’

सुलेखा की पड़ोसन ने यह बात भले ही मजाक में कही थी, मगर इस से सुलेखा के दिलोदिमाग में हलचल मचानी शुरू कर दी. जब भी वह अकेली होती, उस के मन में यही कशमकश रहती कि लोगों के तानों से बचने के लिए क्या उसे किसी परपुरुष की मदद लेनी चाहिए.

इसी बीच अचानक दिनेश के पिता रामसिंह की तबीयत खराब हो गई और उन्होंने चारपाई पकड़ ली. उन की बीमारी की खबर पा कर दिनेश की बुआ का लड़का अनिल उन्हें देखने आया. 30 वर्षीय अनिल कानपुर के मछरिया मोहल्ले में रहता था. वह हृष्टपुष्ट और स्मार्ट था. कपड़े का व्यवसाय करने वाला अनिल सजसंवर कर रहता था.

अनिल हालचाल जानने तो रामसिंह का आया था, लेकिन उस की नजर पड़ गई भाभी सुलेखा पर, जो उस वक्त किसी गहरी सोच में डूबी थी. अनिल ने पहले भी कई बार सुलेखा को देखा था, लेकिन उस रोज उसे सादे लिबास में देखा तो वह उस के दिल को भा गई.

उस ने सुलेखा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की गरज से कहा, ‘‘भाभी, मुझे नहीं मालूम था कि मामा की तबीयत इतनी ज्यादा खराब है. इन का बदन तो सूख कर कांटा हो गया है.’’

‘‘तुम्हारे भैया ने दवादारू में तो कोई कसर नहीं छोड़ी है. फिर भी पता नहीं क्यों दिनबदिन कमजोर होते जा रहे हैं.’’ नजरें उठा कर सुलेखा ने निराश भाव से कहा.

‘‘नाना जी का ध्यान रखिएगा भाभी, अगर मेरे लायक कोई काम हो तो जरूर बताना.’’ अनिल ने चाहतभरी आंखें सुलेखा की आंखों में डाल दीं.

सुलेखा सिहर सी गई. अनिल काफी देर वहां बैठा रहा. इस दौरान सुलेखा की चोर निगाहें अनिल के मजबूत बदन पर पड़ीं तो उसे पड़ोसन वाली सलाह याद आ गई. सुलेखा ने अपने पति से सुन रखा था कि अनिल की पत्नी मानसिक रोगी थी, जिसे उस ने छोड़ रखा था. अनिल में सुलेखा की दिलचस्पी जागी तो पूछ बैठी, ‘‘तुम्हारी घर वाली के अब क्या हाल हैं?’’

पत्नी का नाम सुनते ही अनिल का चेहरा उतर गया. उस ने नाकभौंह सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘भाभी, वह मेरी जिंदगी की नासूर थी. अब जैसी भी होगी, अपने मायके में होगी. और वैसे भी हर किसी के भाग्य में आप जैसी सुंदर और सुशील बीवी तो होती नहीं.’’ कह कर उस ने एक बार फिर सुलेखा को भरपूर नजरों से देखा.

सुलेखा को उस की नजरों में चाहत दिखी.

उस रोज के बाद अनिल मामा का हाल जानने के बहाने अकसर दिनेश के घर आने लगा. जब भी वह आता काफी देर तक सुलेखा के पास बैठ कर इधरउधर की बातें करता. उस की रसीली बातें सुलेखा के दिलोदिमाग पर हलचल मचा देतीं. इस बीच सुलेखा के पति दिनेश के स्वभाव में एक विचित्र सा परिवर्तन आ गया था.

संतान सुख से वंचित होने की मानसिकता ने उस के मन में निराशा भर दी थी, जिस के चलते उस ने शराब पीनी शुरू कर दी थी. सुलेखा में भी उस की रुचि कम हो गई थी. इस से सुलेखा के स्वभाव पर भी फर्क पड़ा. बिस्तर की तन्हाई उसे जलाने लगी थी, जिस से वह चिड़चिड़ी सी हो गई थी.

हालात धीरेधीरे सुलेखा को पतित करने की भूमिका बनाने लगे थे. एक तरफ संतान की चाहत से वंचित और पति की उपेक्षा तो दूसरी तरफ परपुरुष का आकर्षण.

एक रोज सुलेखा घर का कामकाज निपटा कर आराम करने जा रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई. सुलेखा ने दरवाजा खोला तो सामने अनिल खड़ा था. उसे देख कर वह खुश होते हुए बोली, ‘‘अरे, अनिल तुम. अंदर आओ.’’

सुलेखा ने दरवाजा अंदर से बंद किया फिर मन ही मन खुश हो कर कमरे में आ गई. तभी अनिल ने उस की कलाई थाम ली और आंखों में अथाह चाहत तथा उन्माद भर कर बोला, ‘‘भाभी, तुम भी अधूरी, मैं भी अधूरा. आज इस अधूरेपन को पूरा करने का मौका है.’’

सुलेखा ने न अपना हाथ छुड़ाया और न कोई विरोध किया, बल्कि अनिल के स्पर्श से उस के बदन पर चीटियां सी रेंगने लगी थीं. अनिल को अब सब्र कहां था. बेसब्री के आलम में उस ने सुलेखा का चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में भरा और उस का निचला होंठ अपने होंठों में भर कर चूसने लगा.

‘‘बहुत दिनों से प्यासे लगते हो.’’ सुलेखा ने उस की गरदन में अपनी बांहें फंसाते हुए कहा.

‘‘हां भाभी.’’ कह कर अनिल उस के नाजुक अंगों को सहलाने लगा, ‘‘आज मेरी प्यास बुझा दो.’’

इस के बाद दोनों ने अपनी हसरत पूरी कर ली.

एक बार अवैध संबंधों का यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर अकसर चलने लगा. हालांकि दोनों ने अपने इस अवैध रिश्ते को छिपाने की भरपूर कोशिश की. लेकिन कहावत है कि पाप चाहे कितना भी छिप कर किया जाए, उजागर हो ही जाता है.

ऐसा ही अनिल और सुलेखा के साथ भी हुआ. एक दिन दिनेश इंजन के लिए डीजल खरीदने फतेहपुर के लिए निकला. उस के निकलते ही अनिल आ गया. आते ही अनिल ने सुलेखा को बाहों में भर लिया.

सुलेखा ने किसी तरह अनिल की बांहों से मुक्ति पाई फिर बोली, ‘‘सब्र किया करो अनिल. आते ही भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ते हो. आज हमारे पास पूरा दिन है. तुम्हारे भैया डीजल खरीदने गए हैं. वहां से देर शाम तक ही लौटेंगे.’’

सुलेखा की बात सुन कर अनिल खुश हो कर बोला, ‘‘ठीक है, फिर तो पूरा दिन मस्ती करेंगे.’’ कह कर अनिल, कमरे में बैठ कर कोई किताब पढ़ने लगा और सुलेखा सजनेसंवरने लगी.

कुछ देर बाद सुलेखा सजधज कर कमरे में आई तो अनिल उसे देखता ही रह गया. वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. अनिल ने उस की सुंदरता की जम कर तारीफ की तो वह मन ही मन खुश हुई और अनिल के साथ मस्ती में डूब गई.

दोनों का खेल चल ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई. दस्तक से अनिल और सुलेखा घबरा गए. उन्होंने सोचा कहीं दिनेश तो वापस नहीं आ गया. सुलेखा सोच ही रही थी कि बाहर से आवाज आई, ‘‘दरवाजा खोल सुलेखा. क्या घोड़े बेच कर सो रही है?’’

दरअसल दिनेश पैसे घर में ही भूल गया था. इसलिए उसे बीच रास्ते लौटना पड़ा था.

सुलेखा ने पति की आवाज सुनी तो वह घबरा गई. वह घुटी सी आवाज में बोली, ‘‘आ रही हूं.’’ उस ने जैसेतैसे कपड़े लपेटे और दरवाजा खोला. देर से दरवाजा खोलने और सुलेखा की घबराहट व छितरे बालों से दिनेश समझ गया कि दाल में कुछ काला जरूर है. दिनेश अंदर आया तो कमरे में अनिल बैठा था. बैड की अस्तव्यस्त चादर और टूटी चूडि़यां काफी कुछ बयां कर रही थीं.

इस के बाद तो दिनेश का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने अनिल व सुलेखा की पिटाई कर दी. अपराधबोध के कारण दोनों ने पिटाई का विरोध नहीं किया.

कुछ देर बाद जब दिनेश का गुस्सा शांत हुआ तो उस ने अनिल व सुलेखा को ऊंचनीच का वास्ता दे कर समझाया भी. समझाने पर दोनों ने दिनेश से माफी मांग ली और आइंदा गलती न दोहराने का वादा किया.

उन्होंने वादा तो कर लिया था लेकिन वह ज्यादा समय तक अपने वादे पर कायम नहीं रह सके. रंगेहाथ पकड़े जाने के बाद कुछ दिन तक तो दोनों एकदूसरे से दूरी बनाए रहे किंतु बाद में उन्होंने फिर से पहले की तरह मिलना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह बेहद सतर्कता बरतने लगे थे. सुलेखा को जब भी मौका मिलता वह अनिल को फोन कर के घर बुला लेती थी.

इसी दौरान एक घटना और घट गई. दिनेश को बैंक से नोटिस मिला कि वह कर्ज की किस्तें चुकाए अन्यथा उस की आरसी कट जाएगी. इस के लिए उसे जेल भी जाना पड़ सकता है. बैंक नोटिस मिलने से दिनेश घबरा गया. फसल खराब हो जाने से वह कर्ज नहीं चुका पा रहा था. फलस्वरूप दिनबदिन उस पर कर्ज बढ़ता जा रहा था.

सुलेखा भी परेशान हो उठी. उस ने इस बाबत अपने प्रेमी अनिल से बात की तो वह उस की मदद के लिए तैयार हो गया. पर वह चाहती थी कि पैसे लेने की बात दिनेश ही अनिल से करे.

एक दिन दिनेश कर्ज को ले कर ज्यादा परेशान दिखा तो सुलेखा ने पति को सुझाव दिया कि वह अनिल से पैसे उधार ले कर बैंक की किस्तें चुका दे. फसल कटने पर अनिल का पैसा चुका देंगे. पत्नी का यह सुझाव दिनेश को पसंद आया.

उस ने सुलेखा की मार्फत अनिल को घर बुलाया. दिनेश ने बैंक के कर्ज वाली परेशानी बता कर अनिल से पैसे उधार मांगे. अनिल ने पहले तो कुछ नखरे दिखाए फिर पैसा देने को राजी हो गया.

दिनेश ने अनिल से पैसे ले कर बैंक कर्ज चुका दिया और राहत की सांस ली. इस के बाद अनिल का सुलेखा के घर बेरोकटोक आनाजाना होने लगा. अब वह वहां रात को भी ठहरने लगा. अनिल ने दिनेश को पीने की लत भी डाल दी थी. दिनेश अब अनिल के अहसानों तले इतना दब गया था कि वह उस के रात में ठहराने के लिए भी मना नहीं कर सकता था.

अनिल की महफिल सप्ताह में 2-3 दिन दिनेश के यहां जमने लगी थी. दिनेश को मुफ्त में शराब व गोस्त की दावत मिलने लगी तो वह भी खुश रहने लगा. अनिल, शराब पीने के दौरान दिनेश को ज्यादा नशे में कर देता, जिस की वजह से कभीकभी तो वह खाना खाए बिना ही चारपाई पर लुढ़क जाता और खर्राटे भरने लगता. इस के बाद अनिल व सुलेखा रात भर मस्ती करते.

अनिल का दिनेश के घर आना और रात में रुकना पासपड़ोस के लोगों को खलने लगा तो वे कानाफूसी करने लगे. एक रोज पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग रामदत्त ने उसे टोका, ‘‘दिनेश, तुम रातदिन नशे में डूबे रहते हो. घर में तुम्हारी लुगाई क्या गुल खिलाती है, तुम्हें पता भी है. बेटा जानबूझ कर अनजान मत बनो. अनिल का तुम्हारे घर आनाजाना और रात में रुकना ठीक नहीं है. उन दोनों पर नजर रखो. तुम्हें खुद ही सब पता चल जाएगा.’’

दिनेश शराबी जरूर था, लेकिन मूर्ख नहीं था. रामदत्त चाचा की बात उस के कलेजे को चीरते हुए निकल गई. अब वह दोनों पर नजर रखने लगा. एक रोज अनिल दिनेश के घर आया तो उस ने शराब पीने से इनकार कर दिया.

वह अपने साथ पीनेपिलाने का सामान लाया था. उस ने पीने के लिए दिनेश को बुलाया तो उस ने बताया कि वह पहले से नशे में है. एक दोस्त के साथ खापी कर आ रहा है.

इस के बाद दिनेश सोने का बहाना कर चारपाई पर लेट गया. कुछ देर बाद दिनेश खर्राटे भरने का नाटक करने लगा तो अनिल व सुलेखा हर बार की तरह निश्ंिचत हो गए. फिर दोनों वासना का खेल खेलने लगे. आधी रात को दिनेश की आंखें खुलीं तो देखा कि सुलेखा कमरे में नहीं है.

वह दबे पांव कमरे के बाहर आंगन में पहुंच गया. आंगन में आते ही दिनेश के कदम ठिठक गए. आंगन से सटे कमरे से फुसफुसाहट और चूडि़यों की खनक की अवाज आ रही थी. दिनेश सधे कदमों से कमरे के पास पहुंच गया. दरवाजा उढ़का हुआ था. उस ने धकेला तो खुल गया. कमरे में अनिल और सुलेखा निर्वस्त्र थे.

सुलेखा को अनिल के साथ रंगरलियां मनाते देख दिनेश की मर्दानगी जाग उठी. उस ने दोनों को जलील किया. फिर सुलेखा की जम कर पिटाई की. दिनेश कुल्हाड़ी ले कर अनिल की तरफ बढ़ा तो वह जान बचा कर भाग गया. अब दिनेश की समझ में आ गया था कि अनिल उस पर क्यों मेहरबान था. क्यों उसे कर्ज दिया और क्यों उसे शराब और गोस्त की दावत देता था.

इधर रंगेहाथों पकडे़ जाने के बाद भी अनिल ने सुलेखा के घर आनाजाना बंद नहीं किया था. अब वह कर्ज मांगने के बहाने आता था. यद्यपि दिनेश अनिल के आने का विरोध करता था और उसे जलीकटी भी सुनाता था लेकिन अनिल, सुलेखा के शरीर को पाने की चाहत में सब सहन कर लेता था.

अब अनिल जब भी सुलेखा के घर आता, घर में जम कर कलह होती थी. सुलेखा को वह जलील करता अैर उस पर कड़ी नजर रखता, जिस से सुलेखा और अनिल का मिलन नहीं होता था. अनिल झुंझला कर वापस चला जाता था. अनिल के जाते ही दिनेश सुलेखा पर टूट पड़ता और उसे बेरहमी से पीटता था. वह चीखतीचिल्लाती तो लोग इकटठा हो जाते थे.

पति की प्रताड़ना से सुलेखा परेशान हो चुकी थी. अत: एक रोज जब अनिल उस के घर आया तो वह झुंझला कर बोली, ‘‘तुम कैसे मर्द हो. तुम्हारे आने से वह मुझे जानवरों की तरह पीटता है और गालियां देता है. तुम उस का कुछ नहीं कर पा रहे हो. धिक्कार है तुम्हारी ऐसी मर्दानगी पर.’’

सुलेखा ने प्रेमी की मर्दानगी को ललकारा तो अनिल बोला, ‘‘भाभी, मेरी मर्दानगी को मत ललकारो. मैं अब भी तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. तुम्हारे इशारे पर किसी की जान ले भी सकता हूं और अपनी जान दे भी सकता हूं.’’

‘‘तो फिर प्यार में रोड़ा बने दिनेश को हटा क्यों नहीं देते. कब तक मैं तुम्हारे लिए मार खाती रहूं. कब तक उस की प्रताड़ना सहूं.’’ कहते हुए उस की आंखों में आंसू भर आए.

‘‘ठीक है भाभी, तुम्हारे लिए मैं यह काम भी करने को तैयार हूं. अब तुम्हें न तो मार खानी पड़ेगी और न ही प्रताड़ना सहनी होगी.’’ इस के बाद अनिल व सुलेखा ने दिनेश की हत्या की योजना बना ली.

8 जुलाई, 2018 को अनिल, सुलेखा को अपने साथ मछरिया (नौबस्ता) ले आया. दिनेश को जब पता चला तो वह भी मछरिया पहुंच गया. मछरिया में दिनेश ने हंगामा खड़ा कर दिया.

उस ने अनिल के घर वालों को बताया कि अनिल और सुलेखा के बीच नाजायज संबंध हैं. दोनों ने उस का जीना हराम कर दिया है. अनिल के घर वालों ने किसी तरह दिनेश को समझाया और दूसरे रोज सुलेखा को उस के साथ भेजने का वादा कर दिया.

9 जुलाई की शाम को अनिल अपने दोस्त की कार ले आया. इसी कार में सवार हो कर अनिल, सुलेखा व दिनेश गांव बेरुई के लिए निकले. सरसौल कस्बा पार करने के बाद अनिल ने कार महौली गांव की ओर मोड़ दी. दिनेश के टोकने पर अनिल बोला कि महौली गांव के पास कोल्ड स्टोरेज है. वहां उस का दोस्त काम करता है, उस से मिलना है. यह सुन कर दिनेश चुप हो गया.

अनिल ने महौली गांव से पहले एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी. फिर वह पिछली सीट पर आ गया, जहां दिनेश और सुलेखा बैठे थे. सुलेखा को ले कर दिनेश व अनिल के बीच फिर से कहासुनी होने लगी.

इसी बीच दिनेश ने सुलेखा का हाथ पकड़ लिया और कार से उतर कर साथ चलने की जिद करने लगा. सुलेखा कार से नहीं उतरी तो दिनेश ने उसे 2 थप्पड़ जड़ दिए. तिलमिला कर सुलेखा बोली, ‘‘देखते क्या हो अनिल. आज इस राक्षस को सबक सिखा ही दो.’’

तब तक अंधेरा छा गया था. अनिल व सुलेखा ने कार में ही दिनेश को दबोच लिया और अंगौछे से दिनेश का गला घोंट दिया. उस की हत्या करने के बाद उन्होंने शव को कोल्ड स्टोरेज के पास झाडि़यों में फेंक दिया. इस के बाद दोनों फतेहपुर आ गए. रास्ते में उन्होंने एक ढाबे पर खाना खाया. खाना खाने के बाद अनिल, सुलेखा को उस की ससुराल बेरुई छोड़ कर कानपुर आ गया.

अगले दिन सुबह 10 बजे महौली गांव के कुछ बच्चे बकरियां चरा रहे थे, तभी उन्होंने झाडि़यों में एक युवक की लाश पड़ी देखी. बच्चों ने भाग कर गांव वालों को बताया तो वहां गांव वालों की भीड़ जुट गई. इसी बीच गांव के सरपंच धनीराम ने लाश पड़ी होने की सूचना थाना महाराजपुर पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रामविलास वर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने ग्रामीणों से लाश के बाबत पूछा. लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. शव की तलाशी ली गई तो जेब में आधार कार्ड मिला जिस में उस का नाम दिनेश, पिता का नाम रामसिंह, पता गांव बेरुई फतेहपुर लिखा था.

थानाप्रभारी ने तत्काल दिनेश की हत्या की जानकारी उस के घर वालों को दे दी और मौके की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

हत्या की खबर पा कर सुलेखा व अन्य लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. सुलेखा पति की लाश देख कर घडि़याली आंसू बहाने लगी. लेकिन साथ आए लोगों ने थानाप्रभारी को बताया कि पति की हत्या का राज सुलेखा के पेट में ही छिपा है.

यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी सुलेखा को हिरासत में ले कर थाना महाराजपुर आ गए. महिला एसआई ममता सिंह ने सुलेखा से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई. उस ने बताया कि उस ने अपने प्रेमी अनिल की मदद से पति दिनेश की हत्या कर के लाश झाडि़यों में फेंक दी थी.

पुलिस ने सुलेखा के प्रेमी अनिल को पकड़ने के लिए उस के मछरिया स्थित घर पर छापा मारा. पुलिस को देख कर अनिल भागा भी, लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया. थाना महाराजपुर में जब उस का सामना सुलेखा से हुआ तो वह समझ गया कि अब चुप रहने से कुछ नहीं होगा.

उस ने बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. अनिल ने बताया कि सुलेखा से उस के नाजायज संबंध थे. उस का पति संबंधों में बाधक था, इसलिए उसे रास्ते से हटाना पड़ा. अनिल की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार व अंगौछा भी बरामद कर लिया.

चूंकि दिनेश की हत्या का जुर्म दोनों ने कबूल कर लिया था, अत: पुलिस ने सरपंच धनीराम को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत अनिल व सुलेखा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया और दोनों को कानूनी रूप से गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद 12 जुलाई, 2018 को पुलिस ने अभियुक्त अनिल व सुलेखा को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. मामले की जांच थानाप्रभारी रामविलास वर्मा कर रहे हैं.

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