ढोलक की आवाज सुन कर मैं समझ जाता हूं कि किसी के यहां खुशी हुई है. मेरा अंदाजा सही निकलता है क्योंकि कुछ ही देर बाद बेसुरी बधाइयां बरसने लगती हैं. बृहन्नलाएं लड़का होने की खबर सुनते ही ढोलक ले कर बधाइयां देने पहुंच जाती हैं. इन का सूचना तंत्र बड़ा तगड़ा होता है. किस की शादी हुई, किस के यहां बेटा हुआ, किस का नया मकान बना जैसी खबरें मिनटों में इन के पास पहुंच जाती हैं और कुछ ही देर में बधाई के गीत सुनाई देने लगते हैं.
ये बृहन्नलाएं बधाई की बाकायदा कीमत वसूल करती हैं. वसूली की राशि खुशी पाने वाले की आर्थिक हैसियत पर निर्भर रहती है. किसी ने देने में आनाकानी की तो इन की बधाइयां जल्दी ही श्राप बन कर निकलने लगती हैं.
इन के नाम अकसर स्त्रीलिंगी होते हैं. पर एक नाम ऐसा भी है जो कामन होता है. वह है गुलाब. यह नाम किसी भी महिला का और दूसरे किसी भी पुरुष का हो सकता है पर तीसरे जो न तो महिला होते हैं और न ही पुरुष उन में भी यह नाम लोकप्रिय है.
तीसरे गुलाब अकसर साड़ी या सलवार पहने होते हैं. पर इन की एक प्रजाति ऐसी भी होती है, जो कमीजपतलून पहनती है. मतदाता सूची में इस का नाम पुरुषों में आता है. इस के सदस्य होते तो पुरुष शरीर के हैं पर इन की नीयत बृहन्नलाओं की होती है.
ये बधाई देने खुद नहीं आते बल्कि इन से बधाई लेने इन की शरण में जाना पड़ता है. नेग तो चुकाना ही पड़ता है और वह भी हाथोंहाथ. कभीकभी तो एडवांस में चुकाना पड़ता है. ये नेग को सेवा शुल्क कहते हैं. न दो तो इन के कांटे झेलने पड़ते हैं. अपने साथसाथ ये सामने वाले के कपड़े उतारने में भी नहीं डरते. इन के श्राप बड़े ही भयानक होते हैं. कई बार तो इन का श्रापित व्यक्ति पागल तक हो जाता है. आप शायद समझ नहीं पाए होंगे कि हम यहां किस की बात कर रहे हैं. तो चलिए सिलसिलेवार आप को समझाते चलें.
आप की शादी हुई. नवविवाहिता पत्नी का नाम राशन कार्ड में जुड़वाना है. संबंधित दफ्तर में आप का पाला किसी कमीजपतलून पहने जीव से पड़ता है. अपनी सुविधा के लिए इस का नाम आप गुलाब शर्मा रख लें. आप अपने आने का उद्देश्य बताते हैं. वार्तालाप कुछ यों शुरू होता है :
‘‘10 दिन बाद आइए,’’ गुलाब कहता है.
‘‘पर कल तो हम हनीमून के लिए जा रहे हैं,’’ आप कहते हैं.
‘‘लौटने का इरादा रखते हो या नहीं. लौटने के बाद आना.’’
‘‘छुट्टी खत्म होते ही टूर पर जाना है.’’
‘‘तो जब आप को समय मिले तब आइए,’’ गुलाब कहता है.
‘‘जल्दी नहीं हो सकता?’’
‘‘अब सरकारी दफ्तर में इतनी जल्दी काम तो नहीं होता.’’
आप गुलाब का ध्यान उस के पीछे लगे बोर्ड की ओर खींचते हैं जिस पर राशन कार्ड बनवाने के लिए लगने वाली अवधि लिखी होती है.
‘‘उस के लिए सेवा शुल्क लगेगा,’’ और वह आंकड़ा बतलाता है. आप कहते हैं कि यह तो बहुत है. वह ताना मारता है. ‘‘अरे, जनाब, दहेज में कुछ तो मिला होगा और फिर रिसेप्शन में खाली लिफाफे तो आए नहीं होंगे.’’
आप भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देना चाहते और आप को हनीमून पुकार रहा होता है. इसलिए 10 दिन बाद आने की बात कर हनीमून पर चल देते हैं. लौटने पर राशन कार्ड की याद आती है. आप फिर राशन कार्ड के दफ्तर में जा कर गुलाब शर्मा से रूबरू होते हैं. पहले तो वह आप को प्रश्नवाचक निगाह से देखेगा फिर पहचानने का नाटक करेगा और बताएगा कि राशन कार्ड पर दस्तखत करने वाले साहब छुट्टी पर हैं. अगले सप्ताह लौटेंगे. आप अपने दफ्तर से कुछ देर की छुट्टी ले कर आए हैं. उस की बात पर विश्वास कर जाहिर है आप दफ्तर जाना पसंद करेंगे.
अगले सप्ताह पता चलता है कि राशन कार्ड तो तैयार है पर जिस गुलाब शर्मा के पास है उस के पिता बीमार हैं और अस्पताल में भरती हैं. अब आप में इतनी तो इंसानियत है कि उसे अस्पताल में नहीं ढूंढें़गे. लेकिन आप ईमानदारी की जीतीजागती मिसाल भी बनना चाहते हैं इसलिए उस के लौटने का इंतजार करते हैं.
अगली बार पता चलता है कि गुलाब शर्मा के पिताजी तो ऊपर चले गए. उस के दुख की घड़ी में आप का इनसान जाग उठता है और आप 13 दिन तक उस के दफ्तर नहीं जाते. फिर छुट्टियां आती हैं और आप अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं.
याद आने पर आप पूरी तरह से तैयार हो कर जाते हैं. गुलाब शर्मा अपनी कुरसी पर बैठा नजर आता है. उस का सिर मुंड़ा हुआ नहीं है. आप को देखते ही कह देता है कि साहब टूर पर हैं और राशन कार्ड पर दस्तखत नहीं हो पाए हैं. आप समझदार की तरह उसे सेवा शुल्क का लिफाफा थमा देते हैं. वह उसे खोल कर देखता है और उसे जिस दराज में डालता है उसी दराज से आप का नया राशन कार्ड निकाल कर आप को थमा देता है.
आप की शादी हुई है तो यथा समय आप के यहां संतान भी होगी ही. अगर बेटा हुआ तो तुरतफुरत साड़ी- सलवार वाली बृहन्नलाएं ढोलक की थाप पर बधाइयां देने पहुंच जाएंगी. आप को जो भी नेग देना हो दे कर छुट्टी पा लेें. लेकिन नगर निगम के जन्ममृत्यु विभाग से जन्म प्रमाणपत्र इतनी आसानी से नहीं मिलेगा. आप वहां जब यह कहेंगे कि लड़का हुआ है तो वहां के गुलाबों में खुशी दौड़ जाएगी. आप को बधाइयां देने के लिए कतार लग जाएगी. ‘लाटरी खुल गई. लाटरी खुल गई’ के नारे गूंज उठेंगे. नेग की रकम जो आमतौर पर 100-200 रुपए होती है बढ़कर दोगुनी हो जाती है. आप में ईमानदारी का जज्बा है इसलिए आप नेग देने से मना कर देते हैं.
कर्मचारी एकता की भावना से ओतप्रोत दफ्तर के सभी गुलाब आप को धिक्कारते हैं और उलाहना देते हैं कि बेटा होने की खुशी में आप ने मिठाई तो बांटी ही होगी. कुछ मिठाई नेग के रूप में हमें भी मिलनी चाहिए. आप के ईमानदार बने रहने पर वे आप को 1 महीने बाद आने को कहते हैं. आप 1 महीने बाद जाते हैं तो किसी गुलाब दूबे से पता चलता है कि नगर निगम के पास अभी अस्पताल से आप के बेटे के जन्म की सूचना नहीं मिली है. आप अस्पताल दौड़ते हैं. वहां पता चलता है कि चूंकि वह अस्पताल सरकारी नहीं है इसलिए उन्होंने आप के बेटे के जन्म के 3 दिन बाद ही नगर निगम को उस की सूचना दे दी है.
आप दौड़ कर नगर निगम जाते हैं और हकीकत बयान करते हैं. गुलाब दूबे अपनी ईमानदारी पर संदेह उठने पर नाराज हो जाता है और 1 माह बाद आने को कहता है. आप 1 माह बाद जाते हैं तो बताया जाता है कि बेमौसम बरसात से रेकार्ड रूम में रखे सभी जन्ममृत्यु प्रमाण- पत्र नष्ट हो गए हैं. वैसे आप को यह भी सलाह दी जाती है कि बीचबीच में आते रहें. उन का कहना मान कर आप बीच- बीच में नगर निगम झांक आते हैं. कभी गुलाब नहीं मिलता तो कभी साहब छुट्टी पर रहते हैं तो कभी दोनों ही मीटिंग में लगे होते हैं.
आखिर एक शुभ दिन संयोग से छोटा गुलाब. बड़ा गुलाब, (बड़े बाबू) और साहब दफ्तर में एक समय पर नजर आते हैं. बड़े बेमन से गुलाब दूबे आप को बेशर्म की उपाधि दे कर आप के बेटे का जन्म प्रमाणपत्र देता है. आप देखते हैं कि उस पर उसी दिन की तारीख पड़ी हुई है जिस दिन आप अस्पताल से सूचना भेजने की खबर ले कर आए थे. तभी आप की नजर अपने बच्चे की जन्म तारीख पर पड़ती है. आप को याद आता है कि आज तो आप के बेटे की पहली वर्षगांठ है.
आप खुद के लिए एक घर बनवाना चाहते हैं. पत्नी का आग्रह होता है कि भूखंड खुद का हो ताकि रिटायर होने के बाद ऊपर का हिस्सा किराए पर उठा देंगे. कमाई हो जाएगी. चूंकि नगर निगम ने पूरा शहर बिल्डरों को बेच दिया होता है इसलिए आप समझदार की तरह ‘आन’ में भूखंड खरीदते हैं. भूखंड की रजिस्ट्री के लिए आप रजिस्ट्रार कार्यालय जाते हैं और अपने सिद्धांत पर कुर्बान हो जाते हैं. वहां के गुलाब जैन या गुलाब हुसैन को नेग दे कर अपने नाम रजिस्ट्री करवाते हैं.
कर्ज लेने के लिए आप कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय में आवेदन करते हैं. 6 माह तक तो नियमानुसार कोई जवाब नहीं आता. फिर एक अशुभ दिन आप का आवेदनपत्र लौट आता है. उस में कुछ खामियां बताई जाती हैं. आप वे कमियां दूर कर आवेदनपत्र भेज देते हैं. 6 माह फिर खामोशी.
जानकार लोग आप को बताते हैं कि वहां के गुलाबों को नेग दे कर हाथोंहाथ कर्ज मिल सकता है. आप अपने ही पैसे पाने के लिए पैसे खर्च करने में विश्वास नहीं करते और रोज डाकिए का इंतजार करते रहते हैं. उधर बिल्डर अपनी बाकी रकम के लिए बारबार आप के घर आ कर आप को अपमानित करता है. हार कर आप ज्यादा ब्याज पर गैरसरकारी संस्था के हाथ जोड़ते हैं. चूंकि वहां गुलाब की खेती नहीं होती इसलिए आप को 2 दिन में कर्ज मिल जाता है.
आप मकान का नक्शा पास करवाने के लिए नगर निगम के चक्कर लगाते हैं. वहां कभी छत की ऊंचाई कम बताई जाती है तो कभी ज्यादा. वहां बैठा गुलाब परमार आप को दोस्ताना सलाह देता है कि नक्शे में गैरेज जरूर बताएं. भले ही बनवाएं नहीं. जब नक्शे में गैरेज बताते हैं तो गुलाब जोशी आप को अमीर जान कर ज्यादा नेग मांगता है. हकीकत यह है कि आप की हैसियत स्कूटर खरीदने की भी नहीं रह जाती. चूंकि कर्ज की किस्त शुरू हो जाती है इसलिए आप नेग की रकम दे देते हैं और आप का नक्शा खामियों सहित 5 मिनट में पास हो जाता है. छुट्टी पर बताए जाने वाले दस्तखत करने वाले साहब न जाने कब मौका सूंघ कर अपनी कुरसी पर आ बैठते हैं.
नल कनेक्शन के लिए आप फिर नगर निगम में जाते हैं. अब तक आप को सरकारी दफ्तरों के गुलाबों का अच्छाखासा अनुभव हो चुका होता है अगर सीधे किसी गुलाब चौधरी से आप बात करते हैं, वह जगह बताता है. आप गुलाब चौधरी का लिफाफा कैंटीन वाले को सौंप देते हैं.
दूसरे दिन जब आप अपने प्लाट पर जाते हैं तो पाते हैं कि नल का कनेक्शन हो चुका है और मजदूर बख्शीश के लिए आप का इंतजार कर रहे हैं.
बिजली वाले गुलाबचंद भी आप को इसी तरह का झटका देते रहते हैं. कभी मीटर नहीं है तो कभी तार नहीं है. आप समझदार हो चुके हैं अत: नेग हमेशा अपने साथ रखते हैं. इधर नेग पहुंचा नहीं कि दूसरे ही दिन आप के प्लाट पर बिजली कौंधने लगती है. आप को सलाह दी जाती है कि मीटर की चिंता न करें.
अपने बनाए हुए मकान में किसी छुट्टी के दिन आप भोजन कर आराम कर रहे होते हैं तो अचानक फोन की घंटी आप को जगा देती है. फोन आयकर विभाग से है. आवाज आती है कि आप का रिफंड तैयार है और आप कार्यालय में आ कर कुलकर्णी बाबू से ले लें.
आप खुश हो जाते हैं. हमेशा आप की जेब काटने वाले आय कर विभाग से आप को कमाई हो रही है. आप इस रिफंड की सफेद कमाई लेने आयकर दफ्तर जाते हैं. वहां जा कर पता चलता है कि कुलकर्णी बाबू तो असल में गुलाब कुलकर्णी हैं.
नेग पर खींचतान होती है. चूंकि रिफंड का चेक आप के नाम से बना है इसलिए आप अकड़ कर नेग देने से मना कर देते हैं और चेक डाक से भेजने को कह कर चले आते हैं.
रोजरोज डाक देखने पर भी जब निराशा हाथ लगती है तो आप फिर आय- कर दफ्तर जाते हैं. वहां गुलाब कुलकर्णी बताता है कि चेक तो डाक से भेज दिया गया है. आप खाली हाथ लौट आते हैं. 2 दिन बाद आप को डाक से चेक मिलता है. आप खुशी से नाच उठते हैं. बिना कुछ दिए सरकारी विभाग से अपने हक की चीज मिली है.
आप की खुशी सरकारी इमारत की तरह तब भरभरा कर गिर जाती है. जब आप को यह पता चलता है कि चेक 6 महीने पहले का बना है और अब बैंक में जमा नहीं किया जा सकता है. आप फिर आयकर दफ्तर जा कर गुलाब कुलकर्णी से मिलते हैं. वह खलनायकी अंदाज में आप से फिर नेग की मांग करता है और न देने पर पतलून उतारने की धमकी देता है. अब यहां भी मोलभाव होता है. काफी हुज्जत के बाद वह आप के घर रिफंड का चेक ले कर आता है. आप उसे खास मेहमान की तरह बढि़या चायनाश्ता करवाते हैं. वह आप से नेग का लिफाफा ले कर चला जाता है और जातेजाते हिदायत दे जाता है कि आप आगे किसी भी सरकारी कर्मचारी से पंगा न लें.
अब एक दुखद घटना. पिताजी की मृत्यु की खानापूर्ति करने के बाद जब आप उन की संपत्ति बीमे की रकम पाने के लिए नगर निगम से उन का मृत्यु प्रमाणपत्र लेने जाते हैं तो उसी गुलाब दूबे से आप का सामना होता है. वह भले ही जन्म विभाग में हो पर आप को पहचान कर मृत्यु विभाग के अपने सहयोगियों को ‘एफसी’ कह कर सावधान कर देता है.
विभाग के गुलाब आप को टालना शुरू करते हैं. बहाने पुराने ही होते हैं. आखिर मृत्यु विभाग का गुलाब चौबे साफसाफ बात करता है तो आप मौके की दुहाई देते हैं. वह उलटे आप से सवाल करता है कि आप ने अपने पिताजी की अंतिम क्रिया में पंडित को तो दक्षिणा दी ही होगी. जब उसे दी है तो यहां देने में क्या हर्ज है.
सरकारी दफ्तरों के बदबू भरे कमरों में अब आप बारबार जाना नहीं चाहते इसलिए नगर निगम के इस कर्मकांडी ब्राह्मण को दक्षिणा दे कर आप अपने पिताजी का मृत्यु प्रमाणपत्र ले आते हैं.
अगर आप के पिताजी ने कोई मकान या जमीन का टुकड़ा खरीद रखा है तो रजिस्ट्रार के दफ्तर में आप का फिर उन्हीं गुलाबों से पाला पड़ेगा. वे सहानुभूति जताने के बजाय आप की किस्मत पर रश्क करेंगे. कहेंगे कि काश, उन के पिता भी ऐसा ही कुछ छोड़ जाते या छोड़ जाएं. बिना मेहनत के बाप की कमाई हुई संपत्ति आप को मिली है, इस संपत्ति पर यहां तो टैक्स देना ही होता है. यहां के गुलाब आप के शरीर का कुछ हिस्सा तो घायल कर ही देंगे वरना वह संपत्ति आप को तो खैर छोडि़ए आप के पोते को भी नहीं मिलेगी, क्योंकि तब तक वहां एक और गुलाब उग आया होगा.
आप के अनुभवों ने यह तो बतला दिया होगा कि किसी भी पार्टी की सरकार हो और उस ने भले ही किसी भी तरह के गुलाब के लिए आरक्षण न रखा हो पर उस के दफ्तरों में तीसरे गुलाबों की भरमार है. यहां आ कर पहले क्या और दूसरे क्या दोनों ही तीसरे गुलाब बन जाते हैं. वह बात और है कि वे कमीजपतलून पहनते हैं और उन का लिंग ‘पुरुष’ लिखा होता है.