लेखक-संगीता बवेजा
‘‘नानी, जैसे फिल्मों में दिखाते हैं वैसे ही मां भी दुलहन बनेंगी?’’ उस ने फिर पूछा.
‘‘मुझे नहीं पता,’’ मीना ने नाती को टालते हुए कहा.
4 वर्ष का सौरभ दुनियादारी से तो बेखबर था लेकिन जो कुछ घर में हो रहा था उसे शायद वह सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहा था. स्वीकार तो घर में कोई नहीं कर पा रहा था लेकिन इस के सिवा दूसरा रास्ता भी नजर नहीं आ रहा था. मीना रोने लगी तो सौरभ उन के नजदीक खिसक आया और उन के आंसू पोंछता हुआ बोला, ‘‘नानी, रोओ मत. अब मैं आप से कुछ नहीं पूछूंगा. बस, एक बात और बता दो, जिन से मम्मी की शादी हो रही है वह कौन हैं?’’
मीना स्वर को संयत करती हुई बोलीं, ‘‘वह तेरे पापा हैं.’’
‘‘अच्छा, मैं अब पापामम्मी दोनों के साथ रहूंगा,’’ सौरभ खुशी से उछल पड़ा तो मीना उस का चेहरा देखती रह गईं.
अंजली अपनी मां और बेटे की बातें बगल के कमरे में बैठी सुन रही थी. उस के हाथ का काम छूट गया और वह बिस्तर पर निढाल सी लेट गई. अतीत की काली परछाइयां जैसे उस के चारों ओर मंडराने लगी थीं.
5 साल पहले भी घर में उस की शादी की तैयारियां चल रही थीं. तब अंजली के मन में उत्साह था. आंखों में भविष्य के सुनहरे सपने थे. तब गाजेबाजे के साथ वह विवेक की पत्नी बन अपने ससुराल पहुंची. जहां सभी ने खुले दिल से उस का स्वागत किया था. विवेक अपने मातापिता का इकलौता लड़का था. शादी के दूसरे दिन विवेक के 10-12 दोस्त उन्हें बधाई देने आए थे. नए जोडे़ को ले कर सब दोस्त मजाक कर रहे थे. उन्हीं में एक ऐसा भी दोस्त था, जिसे देख कर अंजली सहज नहीं हो पा रही थी, क्योंकि जितने समय सब बैठे थे उस की दोनों आंखें उसे घूरती ही रहीं.
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‘विवेक, मुझे तो तुझ से जलन हो रही है,’ सब के बीच सूरज बोला, ‘तू इतनी सुंदर बीवी जो ले कर आया है. अब मेरे नसीब में जाने कौन है?’ सूरज ने नजरें अंजली पर जमाए हुए कहा तो सब हंस पडे़.
‘चिंता मत कर, तुझे अंजली भाभी से भी ज्यादा खूबसूरत बीवी मिलेगी,’ दोस्तों के बीच से एक दोस्त की आवाज सुनाई दी तो सूरज ने नाटकीय अंदाज में अपने दोनों हाथ ऊपर हवा में लहरा दिए. एक बार फिर जोर से हंसी के फौआरे फूट पडे़.
चायनाश्ते के बाद जब सब दोस्त जाने लगे तो सूरज अंजली के करीब आ कर बोला, ‘मुझे अच्छी तरह पहचान लीजिए, भाभी जान. मैं विवेक का बहुत करीबी दोस्त हूं सूरज और आप चाहें तो आप का भी करीबी बन सकता हूं.’
अंजली उस के इस कथन से सकपका गई और एक देवर की अपनी नई भाभी से चुहलबाजी समझ कर चुप रह गई.
सूरज अब अकसर घर आने लगा. वह बात तो विवेक से करता पर उस की निगाहें अंजली पर ही टिकी रहतीं. अंजली ने कई बार विवेक को इशारों से समझाने की कोशिश भी की पर वह अपनी दोस्ती के आगे किसी को न तो कुछ समझता था और न समझाने का मौका देता था.
एक दिन सूरज किसी फिल्म की 3 टिकटें ले आया और विवेक व अंजली को ले जाने की जिद करने लगा. अंजली ने फिल्म देखने न जाने के लिए सिर दर्द का बहाना भी किया लेकिन उस के आगे उस की एक न चली.
अंजली को फिल्म देखने जाना ही पड़ा. इंटरवल से पहले तो सब ठीक था. विवेक उन दोनों के बीच में बैठा था. अंजली ने चैन की सांस ली लेकिन इंटरवल में जब वे लोग ठंडा पी कर लौटे तो अंजली को बीच की सीट पर बैठना पड़ा और वह विवेक से कुछ कहती इस से पहले फिल्म शुरू हो गई. सूरज ने मौका मिलते ही अंजलि को परेशान करना शुरू कर दिया. उस की आंखें तो सामने परदे पर थीं लेकिन हाथ और पैर अकसर अंजली से टकराते रहे. अंजली ने जब उसे घूर कर देखा तो वह अंजान बना फिल्म देखने लगा. किसी तरह फिल्म देख कर वह घर पहुंची तो उस ने मन में निश्चय किया कि आज की घटना वह विवेक से नहीं बल्कि अपनी सास को बताएगी.
अगले दिन विवेक के जाने के बाद अंजली अपनी बात कहने के लिए सास के पास गई. पर वहां कमरे में सामान फैला देख वह बोली, ‘मम्मीजी, आप कहीं जा रही हैं क्या?’
‘हां बहू, मैं और विवेक के पिताजी सोच रहे थे कि तुम घर संभाल रही हो तो हम दोनों कहीं घूम आएं. बहुत दिनों से हरिद्वार जाने की सोच रहे थे,’ अंजली की सास के स्वर में शहद की मिठास थी.
‘कितने दिनों के लिए आप लोग जा रहे हैं?’ अंजली ने झिझकते हुए पूछा.
‘3-4 दिन तो लग ही जाएंगे.’
‘आप लोग रास्ते में मुझे मेरी मां के घर छोड़ देंगे?’ अंजली ने हिम्मत बटोर कर पूछा.
‘बेटी, तेरे ही सहारे तो मैं निश्ंिचत हो कर जा रही हूं और फिर विवेक का खयाल कौन रखेगा?’ अंजली की सास ने कहा.
घर में अकेले रहने की कल्पना मात्र से अंजली का मन घबरा रहा था पर वह करे भी तो क्या. सोचा, चलो मांजी को हरिद्वार से लौटने पर सब बात बता देगी. यह सोच कर अंजली फिर अपने काम में लग गई. यथासमय सासससुर के हरिद्वार जाने के बाद अंजली डाक्टर के पास नर्सिंग होम चली गई क्योंकि कुछ दिन से उसे ऐसा लग रहा कि शायद उस के व विवेक के प्यार का बीज उस के अंदर पनपने लगा है. घर में किसी से कुछ कहने से पहले वह डाक्टर की सहमति चाहती थी इसलिए आज रिपोर्ट लेने चली गई.
‘मुबारक हो अंजली, तुम मां बनने वाली हो,’ डाक्टर ने मुसकरा कर अंजली के हाथ में रिपोर्ट पकड़ा दी, ‘घर से तुम्हारे साथ कौन आया है?’
‘धन्यवाद, डाक्टर, मैं अकेली आई हूं. कुछ खास बात है तो मुझे बताइए,’ अंजली ने कहा.
‘नहीं, कुछ खास बात नहीं है,’ डाक्टर बोली, ‘मैं तो बस, इतना कहना चाहती थी कि तुम्हारे घर वालों को अब तुम्हारा खास खयाल रखना चाहिए.’
घर जातेजाते अंजली सोच रही थी कि आज जब विवेक घर आएंगे तो उन्हें यह खास खबर बताऊंगी. सुन कर कितने खुश होंगे वह. यह सोचते हुए अंजली विवेक के आने का इंतजार कर रही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी.
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अंजली ने लपक कर दरवाजा खोला तो सामने सूरज खड़ा था.
‘कैसी हो भाभी…जान?’ सूरज ने कुटिल हंसी के साथ पूछा.
अंजली दरवाजा कस कर पकडे़ हुए बोली, ‘मांबाबूजी घर पर नहीं हैं. आप फिर कभी आइएगा.’ लेकिन सूरज दरवाजे को ठेल कर जबरदस्ती अंदर घुस आया.
‘मैं जानता हूं कि वे लोग हरिद्वार गए हैं, पर तुम मुझे जाने को क्यों कह रही हो,’ अंजली को सिर से पैर तक घूरते हुए सूरज बोला, ‘कितने दिन बाद तो आज यह मौका हाथ लगा है. इसे यों ही क्यों गंवाने दें.’
‘तुम क्या अनापशनाप बके जा रहे हो?’ सूरज को बीच में टोकते हुए अंजली बोली, ‘तुम्हें शरम आनी चाहिए, मैं तुम्हारे अजीज दोस्त की बीवी हूं.’
सूरज उस की इस बात पर ठठा कर हंसते हुए बोला, ‘तुम्हें पता है अंजली, आज तक मैं ने विवेक की हर चीज शेयर की है तो बीवी क्यों नहीं, तुम चाहो तो सब हो सकता है और विवेक को कानोंकान खबर भी नहीं होगी.’
‘तुम अभी दफा हो जाओ मेरे घर से,’ अंजली चीखते हुए बोली, ‘मैं तुम्हें और बरदाश्त नहीं कर सकती. आज मैं विवेक को सब सचाई बता कर रहूंगी.’
‘तुम समझने की कोशिश करो अंजली, तुम्हारे लायक सिर्फ मैं हूं, विवेक नहीं, जो मुझ से हर लिहाज में उन्नीस है,’ कहतेकहते सूरज ने अंजली का हाथ पकड़ अपनी तरफ खींचा तो ‘चटाक’ की आवाज के साथ अंजली ने सूरज के गाल पर तमाचा जड़ दिया.
‘मैं सिर्फ और सिर्फ अपने पति से प्यार करती हूं और अब तो उस के बच्चे की मां भी बनने वाली हूं,’ फुफकार हुए अंजली बोली और सूरज को दरवाजे की ओर धकेल दिया.
‘तुम ने मेरा प्रस्ताव अस्वीकार कर बहुत बड़ी भूल की है अंजली. तुम्हें तो मैं ऐसा मजा चखाऊंगा कि भूल कर भी तुम मुझे कभी भुला नहीं पाओगी,’ जातेजाते सूरज उसे धमकी दे गया.
अंजली का शरीर गुस्से से कांप रहा था. उसे अपनी खूबसूरती और शरीर दोनों से घृणा होने लगी, जिसे सूरज ने छूने की कोशिश की थी. जो हुआ था उस के बारे में सोचतेसोचते अंजली परेशान हो गई. बुरेबुरे खयाल उस के मन में आने लगे कि आज तक तो विवेक आफिस से सीधे घर आते थे फिर आज देर क्यों? इसी उधेड़बुन में अंजली बैठी रही. रात 9 बजे विवेक घर आया.
‘आज बहुत देर कर दी आप ने,’ अंजली ने दरवाजा खोलते ही सामने खड़े विवेक को देख कर पूछा.
‘तुम्हारे लिए तो अच्छा ही है,’ विवेक ने चिढ़ कर कहा.
‘क्या मतलब?’ अंजली हैरानी से बोली.
‘तुम मां बनने वाली हो?’ विवेक ने गुस्से में पूछा.
‘जी, आप को किस ने बताया?’
‘तुम यह बताओ कि बच्चा किस का है?’ चिल्ला कर बोला विवेक.
‘किस का है, क्या मतलब? यह हमारा बच्चा है,’ अंजली विवेक को घूर कर बोली.
‘खबरदार, जो अपने पाप को मेरा नाम देने की कोशिश भी की. मैं सब जानता हूं, तुम कहांकहां जाती हो?’
‘आप यह सब क्या अनापशनाप बोले जा रहे हैं. आज हुआ क्या है आप को? कहीं सूरज…’
अंजली की बात बीच में काटते हुए विवेक फिर दहाड़ा, ‘देखा, चोर की दाढ़ी में तिनका. अपनेआप जबान खुलने लगी. हां, सूरज ने ही मुझे सारी सचाई बताई है. उसी ने तुम्हें हमेशा किसी के साथ देखा है और आज तुम ने सूरज के सामने सचाई स्वीकार की थी और सूरज ने मुझे यह भी बताया है कि तुम अपने आशिक के बच्चे की मां बनने वाली हो जिसे तुम मेरा नाम दोगी.’
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‘बस कीजिए, आप. इतना विश्वास है अपने दोस्त पर और अपनी बीवी पर जरा सा भी नहीं. आप क्या जानें सूरज की सचाई को. जबकि हकीकत यह है कि उस ने मुझे हमेशा गंदी नजरों से देखा और आज उस ने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश भी की. अंजली अपनी बात अभी कह भी नहीं पाई थी कि विवेक का करारा तमाचा अंजली के गाल पर पड़ा और कमरे में सन्नाटा छा गया.’
‘देखा, जब अपना मैला दामन दूसरों को दिखने लगा तो तुम ने दूसरों पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया. हां, मुझे सूरज पर विश्वास है, तुम पर नहीं. तुम्हें यहां आए 6 महीने भी नहीं हुए और सूरज के साथ मैं ने 6 सालों से कहीं ज्यादा समय बिताया है. अब जब तुम्हारी असलियत जाहिर हो चुकी है तो मैं तुम्हें बरदाश्त नहीं कर सकता. मैं कल सुबह तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ कर आऊंगा और तलाक लूंगा,’ इतना कह कर विवेक अपने कमरे में जाने को मुड़ा तो अंजली उसे खींच कर अपने सामने खड़ा कर गरजते हुए बोली, ‘मैं नहीं जानती कि सूरज ने क्या झूठी कहानी आप को सुनाई है. अब मैं भी आप के साथ नहीं रहना चाहूंगी लेकिन मैं इतना आप को बता दूं कि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है. मैं चाहूं तो आप को प्रमाण दे सकती हूं कि मेरी कोख में आप का बच्चा है पर उस से कोई फायदा नहीं है, क्योंकि उस प्रमाण को सूरज फिर झूठा बना सकता है.’
रात भर अंजली सो न सकी. सुबह होते ही वह उठी और अपना सामान ले कर मायके चल दी. विवेक को पता भी नहीं चला.
मायके में मांबाबूजी को अपनी आप- बीती सुना कर अंजली ने ठंडी सांस ली. बाबूजी गुस्से से तमतमा उठे, ‘विवेक की यह मजाल कि फूल सी नाजुक और गंगा सी पवित्र बेटी पर लांछन लगाता है. मैं उस नवाबजादे को छोडूंगा नहीं.’
‘आप शांत रहिए और कुछ समय बीतने दीजिए. शायद विवेक को खुद अपनी गलती का एहसास हो जाए अन्यथा हम दोनों इस की ससुराल चलेंगे,’ मां ने बाबूजी को शांत करते हुए कहा.
लेकिन वहां से न कोई आया न ही उन्होंने अंजली के मांबाप से कोई बात की. बल्कि उन की पहल को ठुकराते हुए विवेक ने तलाक के कागज अंजली को भिजवाए तो पत्थर सी बनी अंजली ने यह सोच कर चुपचाप कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए कि जहां एक बार बात बिगड़ गई वहां दोबारा सम्मान और प्यार पाने की उम्मीद नहीं की जा सकती.
धीरेधीरे समय बीतता गया. सौरभ का जन्म हो गया. अंजली ने कई बार नौकरी करने की जिद की पर बाबूजी ने हमेशा यह कह कर मना कर दिया कि तुम अपना बच्चा संभालो. मैं अभी इतना कमाता हूं कि तुम्हारा भरणपोषण कर सकूं.
एक दिन बाबूजी अंजली को समझाते हुए बोले, ‘बेटी, जिंदगी बहुत बड़ी होती है. मैं सोचता हूं कि तेरी शादी कहीं और कर दूं.’
‘बाबूजी, शादीविवाह से मेरा विश्वास उठा चुका है,’ अंजली बोली, ‘अब तो सौरभ के सहारे मैं पूरा जीवन काट लूंगी.’
‘बेटी, आज तो हम हैं लेकिन कल जब हम नहीं रहेंगे तब तुम किस के सहारे रहोगी?’ बाबूजी ने समझाया.
‘क्या मैं अपना सहारा स्वयं नहीं बन सकती? मैं क्यों दूसरों में अपना सहारा ढूंढ़ने के लिए कदम आगे बढ़ाऊं और फिर गिरूं.’
‘पांचों उंगलियां एकसमान नहीं होतीं,’ बाबूजी समझाते हुए बोले, ‘जीतेजी तुम्हारा सुखीसंसार देखने की हार्दिक इच्छा है वरना मर कर भी मुझे चैन नहीं मिलेगा. क्या मेरी इतनी सी इच्छा तुम पूरी नहीं करोगी?’
बाबूजी के इस कातर स्वर से अंजली पिघल गई पर दृढ़ स्वर में बोली, ‘ठीक है बाबूजी, मैं शादी करूंगी पर उस व्यक्ति से जो मुझे सौरभ के साथ अपनाएगा.’
सुन कर बाबूजी थोड़ा विचलित तो हुए पर प्रत्यक्ष में बोले, ‘ठीक है जिन से तुम्हारी शादी की बात चल रही है उन से मैं तुम्हारी बातें कह दूंगा पर सौरभ को हम शादी के कुछ समय बाद भेजेंगे.’
‘‘अंजली बेटी, तुम तैयार नहीं हुई,’’ मीना ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा तो अंजली अपनी यादों से वापस लौट आई. बेटी की भीगीभीगी आंखें देख मीना का मन भी भीग उठा.
कोर्ट में रजिस्ट्रार के सामने अमित और अंजली दोनों ने हस्ताक्षर किए. अमित के चेहरे पर परिपक्वता थी फिर भी चेहरे की गरिमा अलग थी. उन का व्यक्तित्व विशिष्ट था.
सौरभ को कुछ दिन बाद भेजने की बात कह बाबूजी रोतेबिलखते सौरभ को ले कर भीतर कमरे में चले गए और अपने घर से विदा हो अंजली एक बार फिर अनजान लोगों के बीच आ गई.
अमित की दोनों बेटियां सुमेधा और सुप्रिया गुडि़यों जैसी थीं. सौरभ से उम्र में कुछ बड़ी थीं जो जल्दी ही अंजली से घुलमिल गईं. 2 महीने बीततेबीतते अंजली ने अमित से कहा, ‘‘मैं सौरभ को यहां लाना चाहती हूं.’’
‘‘हां, इस बारे में हम शाम को बात करेंगे,’’ अमित झिझकते हुए इतना कह कर आफिस चले गए.
शाम को सब बैठे टेलीविजन देख रहे थे तो अमित की मां बोलीं, ‘‘बहू, मुझे जल्दी से अब पोते का मुंह दिखाना.’’
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‘‘सौरभ भी आप का पोता ही है मांजी.’’ जाने कैसे हिम्मत कर अंजली कह गई.
यह सुनते ही अमित और उस की मां का चेहरा उतर गया.
एक पल बाद ही अमित की मां बोलीं, ‘‘लेकिन मैं अपने पोते अपने खून की बात कर रही थी बहू.’’
‘‘क्या मैं सुमेधा और सुप्रिया को अपना नहीं मानती, तो फिर सौरभ को अपनाने में आप को क्या दिक्कत है?’’ अंजली विनम्रता से बोली.
‘‘बहू, मैं ने तो शुरू में ही तुम्हारे बाबूजी को मना कर दिया था कि सौरभ को हम नहीं अपनाएंगे,’’ अमित की मां ने कहा तो अंजली यह सुन कर अवाक् रह गई.
‘‘चलिए, मैं मान लेती हूं कि आप ने बाबूजी से यह बात कही होगी जो उन्होंने मुझे नहीं बताई पर मैं अपने बच्चे के बिना नहीं रह सकती,’’ अंजली ने कहा.
‘‘देखो बहू, मैं इस बारे में सोच भी लेती पर अब जिंदा मक्खी निगल तो नहीं सकती न. मुझे सचाई का पता चल चुका है. मैं सौरभ को नहीं अपना सकती, जाने किस का गंदा खून है.’’
‘‘मांजी’’ अंजली ने चिल्ला कर उन की बात बीच में काट दी, ‘‘आप को मेरे या सौरभ के बारे में ऐसी बातें कहने का कोई हक नहीं है.’’
‘‘तुम क्या हक दोगी और अपने बारे में क्या सफाई दोगी?’’ अमित की मां तल्ख शब्दों में बोलीं, ‘‘तुम्हारे बारे में हमें सबकुछ पता है. मैं सब जान कर भी खामोश हो गई कि चलो, इनसान से गलती हो जाती है और सौरभ कौन सा मेरे घर आएगा पर अब तुम्हारी यह जिद नहीं चलेगी.’’
‘‘मांजी, यह मेरी जिद नहीं, मेरा हक है. मेरे मां होने का हक है,’’ अंजली भी उसी तरह तल्ख लहजे में बोली, ‘‘सौरभ विवेक का ही बेटा है और कौन किस का बेटा है यह एक मां ही जानती है और मैं नहीं चाहती कि हमारी भूल की सजा मेरा बेटा भुगते. वो यहां जरूर आएगा और मेरे साथ ही रहेगा.’’
अंजली का यह फैसला सुन कर अमित की मां गरज उठीं.
‘‘इस घर में सौरभ नहीं आएगा और अगर सौरभ इस घर में आएगा तो मैं इस घर में नहीं रहूंगी.’’
‘‘आप इस घर से क्यों जाएंगी. ये आप का घर है, आप शौक से रहिए. इस घर के लिए अभी मैं अजनबियों सी हूं, मैं ही चली जाऊंगी. पहले भी मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ हुआ था, आज फिर हो रहा है. पहले सूरज खिलाड़ी था और आज आप हैं जो स्वयं एक मां हैं. क्या आप अपने बच्चों से दूर रह सकती हैं?’’ अंजली अमित की मां का सामना करते हुए बोली.
‘‘पहली शादी टूट चुकी है. दूसरी हुई है तो निबाह ले मूरख वरना दुनिया थूथू करेगी,’’ अमित की मां ने कटाक्ष किया.
‘‘मैं ने आज तक अमित से या आप से यह नहीं पूछा कि इन की पहली पत्नी ने इन्हें क्यों तलाक दे दिया पर अब सोच सकती हूं कि अमित के तलाक में भी आप का ही हाथ रहा होगा.’’
मां और पत्नी के बीच बढ़ती तकरार को देख कर अमित मां को उन के कमरे में ले गए और अंजली पैर पटकती हुई अपने कमरे में लौट आई.
अंजली को लगा कि एक बार फिर उसे ससुराल की दहलीज लांघनी होगी पर इस बार वह अपने पैरों पर खड़ी हो अपना सहारा स्वयं बनेगी. बाबूजी ने झूठ बोल उस का संसार बसाना चाहा पर सौरभ की कीमत दे कर वह बाबूजी की इच्छा पूरी नहीं कर पाएगी. उस की आंखें नम हो आईं. उसे अपनी तकदीर पर रोना आ गया.
तभी अमित कमरे में प्रवेश करते हुए बोले, ‘‘क्या सोच रही हो अंजली? शायद, घर वापस जाने की सोच रही हो?’’
‘‘जी,’’ छोटा सा उत्तर दे अंजली फिर खामोश हो गई.
‘‘मैं ने तो तुम से जाने को नहीं कहा,’’ अमित ने कहा तो अंजली रुखाई से बोली, ‘‘लेकिन आप ने अपनी मां का या मेरी बातों का कोई विरोध भी तो नहीं किया. क्या आप सुमेधा और सुप्रिया के बिना रह सकते हैं?’’ इतना कहतेकहते अंजली रो पड़ी.
‘‘ठीक है, हम जाएंगे और अपने बेटे सौरभ को ले कर आएंगे,’’ अमित की बात सुन सहसा अंजली को विश्वास नहीं हुआ. वह चकित सी अमित को देख रही थी तो अमित हंस पड़े.
‘‘लेकिन आप की मां,’’ अंजली ने शंका जाहिर की.
‘‘अरे हां, मैं तो भूल ही गया था, अभी आया,’’ कह कर अमित मुड़ने को हुए तो अंजली ने टोका, ‘‘आप कहां जा रहे हैं?’’
‘‘अपनी मां को घर से निकालने,’’ अमित ने हंस कर कहा.
‘‘जी’’ किसी बच्चे की तरह चौंक कर अंजली फिर बोली, ‘‘जी.’’
‘‘अरे भई, उन्होंने ही तो अभी कहा था कि इस घर में या तो सौरभ रहेगा या वह रहेंगी. कल जब सौरभ आ रहा है तो जाहिर है वह यहां नहीं रहेंगी,’’ अमित ने कहा.
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‘‘लेकिन मैं ऐसा भी नहीं चाहती. आखिर वह आप की मां हैं,’’ अंजली अटकते हुए बोली.
‘‘मेरी मां हैं तभी तो उन्हें उन के भाई के यहां कुछ दिन छोड़ने के लिए जा रहा हूं. तुम चिंता मत करो. वह भी अपने बच्चे से अलग होंगी तभी तुम्हारी ममता को समझ पाएंगी. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा,’’ कह कर अमित बाहर निकल अपनी मां के कमरे की ओर मुड़ गए.
सुखदुख के मिलेजुले भाव ले वह अमित और उन की मां की उठती आवाजों को सुनती रही. बहस का अंत अमित के पक्ष में आतेआते अंजली का मस्तक अमित के लिए श्रद्धा से झुक गया. द्य