‘जिहाद’ शब्द किसी भी लिहाज से विलेन नहीं है, बल्कि अगर इस के मतलब पर बात की जाए तो पता चलेगा कि ‘जिहाद’ एक अरबी शब्द है, जिस का मतलब है किसी अच्छे मकसद के लिए जद्दोजेहद करना.

लेकिन इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि ‘जिहाद’ के नाम पर बहुत से भटके हुए मुस्लिम ने दुनिया में आतंक मचाया है, लेकिन साथ ही एक कड़वा सच यह भी है कि इस शब्द का सहारा ले कर पुलिस ने बहुत से मुस्लिमों पर जोरजुल्म भी किए हैं.

ऐसे ही एक मामले में महाराष्ट्र की अकोला कोर्ट ने ‘जिहाद’ के नाम पर

3 मुस्लिम नौजवानों को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि ‘जिहाद’ शब्द के इस्तेमाल भर से किसी को आतंकी नहीं ठहराया जा सकता है.

अकोला की इस अदालत के स्पैशल जज एएस जाधव ने यह टिप्पणी गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून, शस्त्र अधिनियम और बांबे पुलिस ऐक्ट के तहत 3 आरोपियों के खिलाफ एक मामले में की थी.

यह मामला कुछ यों था कि अकोला जिले के पुसाद इलाके में 25 सितंबर, 2015 को बकरीद के मौके पर एक मसजिद के बाहर पुलिस वालों पर हुए हमले में 24 साल के अब्दुल रज्जाक और शोएब खान के साथसाथ 26 साल के सलीम मलिक को गिरफ्तार किया गया था. इन तीनों पर आईपीसी की अलगअलग धाराओं के तहत कई मामले दर्ज किए गए थे.

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इस मामले में पब्लिक प्रोसीक्यूटर

ने आरोप लगाए थे कि अब्दुल रज्जाक मसजिद पहुंचा, एक चाकू निकाला और उस ने ड्यूटी पर मौजूद 2 पुलिस वालों पर हमला कर दिया. उस ने हमले से पहले कहा था, ‘तुम ने गौहत्या कानून लागू किया इसलिए मैं तुम को जान से मार डालूंगा.’

एटीएस ने तो दावा किया था कि ये लोग मुस्लिम नौजवानों को आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए प्रभावित करने के आरोपी थे.

इस आरोप पर जज एएस जाधव ने कहा कि ऐसा लगता है कि आरोपी अब्दुल रज्जाक ने गौहत्या पर पाबंदी को ले कर हिंसा के जरीए सरकार और कुछ हिंदू संगठनों के खिलाफ अपना

गुस्सा जाहिर किया था. बेशक उस ने ‘जिहाद’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया होगा, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि महज ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल करने से उसे आतंकवादी करार देना चाहिए.

कोर्ट ने तीनों आरोपियों को पुलिस वालों को चोट पहुंचाने के सिलसिले में अब्दुल रज्जाक को कुसूरवार ठहराते हुए 3 साल कैद की सजा सुनाई गई थी और चूंकि वह 25 सितंबर, 2015 से जेल में था और कैद में 3 साल गुजार चुका था, इसलिए अदालत ने उसे रिहा कर दिया.

यहां तो कोर्ट ने ‘जिहाद’ शब्द का मतलब बताते हुए इस केस में आरोपियों को एक तरह से बड़ी सजा मिलने से बचा लिया था, लेकिन बहुत से ऐसे मामले भी होते हैं जिन में पुलिस अपना पक्ष मजबूत करने के लिए लोगों पर झूठे आरोप भी लगा देती है.

यह मामला ‘जिहाद’ से तो जुड़ा नहीं है, पर है पूरी तरह से फर्जी. दरअसल, साल 2016 में 1 अक्तूबर को दिल्ली पुलिस ने नकली सिक्के बनाने के आरोप में दिल्ली के एक कारोबारी और दादरी के रहने वाले नरेश को गिरफ्तार किया था. बाद में नरेश ने जमानत पर जेल से बाहर आ कर दिल्ली पुलिस को बताया था कि उन का नकली सिक्के बनाने का कोई गैरकानूनी कारोबार नहीं है, बल्कि उन का तो बवाना इलाके में कैमिकल बनाने का धंधा है.

नरेश ने बताया कि 30 सितंबर को उन के घर समरपाल नाम का एक इंस्पैक्टर आया था और उन्हें पकड़ कर बवाना क्षेत्र में उन की कैमिकल फैक्टरी में ले गया था. वहां जा कर उस इंस्पैक्टर ने बताया कि इस फैक्टरी की पहली मंजिल पर नकली सिक्के बनते हैं.

उस ने इस मामले को रफादफा करने के एवज में नरेश से 25 लाख रुपए की घूस मांगते हुए धमकी दी कि अगर यह रकम नहीं दी गई तो उन्हें फंसा दिया जाएगा.

नरेश ने आगे बताया कि उन की फैक्टरी ग्राउंड फ्लोर और बेसमैंट में है. पहली मंजिल से उन का कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन पुलिस ने उन की एक न सुनी और उन्हें पकड़ कर थाने ले गई.

इस दौरान पुलिस के जुल्म से तंग आ कर नरेश ने अपनी पत्नी से कह कर बैंक में रखे 9 लाख रुपए निकलवाए और पुलिस को दिए. इस के बाद भी पुलिस नहीं पसीजी और नरेश के साले के जरीए फिर से रुपए मांगे, लेकिन नरेश के पास और पैसे नहीं थे.

कारोबारी नरेश ने आगे बताया कि इंस्पैक्टर समरपाल ने उन पर नकली सिक्कों का कारोबार करने का केस बना कर जेल भिजवा दिया. उन्हें तकरीबन 42 दिनों तक दिल्ली की जेल में रहना पड़ा था.

नरेश की इस शिकायत पर पुलिस ने इंस्पैक्टर समरपाल के खिलाफ मामला दर्ज किया और उसे लाइन हाजिर भी किया. नरेश के आरोपों की हकीकत सामने आने के बाद इंस्पैक्टर समरपाल को बाद में सस्पैंड कर उस के खिलाफ केस दर्ज किया गया.

ऐसे न जाने कितने मामले होते हैं जहां पुलिस झूठे केस बना कर लोगों को सताती है, उन्हें पैसे से भी लूटती है. अगर मामला 2 धर्मों के लड़कालड़की के प्यार का हो तो उसे ‘लव जिहाद’ बनाने में देर नहीं लगाती है.

यह बात सितंबर, 2018 की है. उत्तर प्रदेश के मेरठ से पुलिस की गुंडागर्दी का एक वीडियो सामने आया था जिस में एक मुस्लिम लड़के से ताल्लुक होने पर कुछ पुलिस वालों ने हिंदू धर्म की छात्रा के साथ न सिर्फ बदतमीजी की थी, बल्कि उस पर अपने साथी छात्र के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का दबाव भी बनाया था.

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पीडि़ता ने बताया कि वह अपने दोस्त के साथ उस के घर पढ़ने गई थी, जहां हिंदू संगठन के कुछ कार्यकर्ताओं ने पहुंच कर बवाल मचाया. इस के बाद वहां पहुंची पुलिस उन दोनों को अपने साथ ले गई थी.

पीडि़ता ने आगे बताया, ‘पुलिस मुझे और मेरे दोस्त को अलगअलग गाड़ी

में ले कर गई. मैं जिस गाड़ी में थी, उस में मौजूद पुलिस वालों ने मेरे साथ बदतमीजी की. मुझ पर मुस्लिम लड़के से रिश्ते होने का आरोप लगाया.

‘मेरा नकाब उतरवाया गया और गाड़ी में बैठे पुलिस वाले ने मेरा

वीडियो बनाया और मेरे खिलाफ

गंदी भाषा का इस्तेमाल किया…

‘जब मुझे थाने ले जाया गया तो वहां पुलिस वालों ने मुझ पर लड़के के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए कहा. मैं ने उन से कहा कि हमारे बीच कोई गलत संबंध नहीं हैं, इसलिए मैं ऐसा नहीं कर सकती. इस के बाद पुलिस वालों ने कहा कि हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे, बस तुम लड़के के खिलाफ केस दर्ज करा दो, क्योंकि वह मुस्लिम है…

‘जब मेरे घर वाले वहां पहुंचे तो पुलिस ने उन से भी मेरे दोस्त के खिलाफ केस करने के लिए कहा, लेकिन मेरे घर वालों ने भी इनकार कर दिया.’

इस पूरे वाकिए पर एडीजी कानून व्यवस्था आनंद कुमार ने पुलिस वालों की इस हरकत को घोर गैरजिम्मेदाराना बताते हुए कहा कि पुलिस वालों ने न सिर्फ मारपीट की है, बल्कि खुद ही वीडियो बना कर वायरल भी किया है.

आरोपी 3 पुलिस वालों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया, जबकि होमगार्ड के एक जवान को नौकरी से बरखास्त कर दिया गया.

जैसा इन मामलों में हुआ है, वैसा होना नहीं चाहिए और अगर यह साबित हो जाए कि पुलिस ही मामले को तोड़मरोड़ कर धार्मिक या सामाजिक उन्माद फैलाने का काम कर रही है, तो उस पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए.

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ड्यूटी से निलंबित या लाइन हाजिर कर देना कोई सजा नहीं है, बल्कि यह तो उन्हें एक तरह से मदद पहुंचाई जाती है कि मामला ठंडा होने के बाद ड्यूटी पर बहाली हो जाएगी. पुलिस जनता की हिफाजत और समाज में शांति बनाए रखने के लिए बनाई गई है, उसे अपनी हद का पता होना चाहिए, तभी लोग उस की इज्जत करेंगे, नहीं तो बीच चौराहे पर तलवार निकाल कर लोहा लेने को मजबूर हो जाएंगे.

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

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