हे पाठकराम ! तुम मेरी मनोभावना सुनकर मन ही मन हंस रहे होगे. यह रोहरानंद बावला है क्या ? क्या राहुल गांधी बनना आसान है क्या कोई भी ऐरा गैरा सोचेगा और राहुल ‘बाबा’ बन जाएगा. अगर ऐसा हो तो कौन नहीं चाहेगा,मगर सच यह है कि यह संभव नहीं है.अतः सोचना भी गदहगदह पच्चीसी नहीं तो क्या है.

मगर रुको ! मेरी बात भी सुन लो .मैं एक आम इंसान हूं मेरी भी कुछ इच्छाएं हैं ,महत्वकाक्षाएं होंगी कि नहीं. मानते हो न ! तो अगर मैं छोटा-मोटा नेता बनना चाहू ,पार्टी मेंबर बनना चाहूं तो तुम उसे सहजता से लोगे .मगर मैं जरा ऊंची महत्वाकांक्षा पाल बैठा हूं तो तुम मुझ पर हंस रहे हो. इसे मैं अपनी टांग खींचना कहूंगा.

दोस्त ! इच्छा छोटी मोटी क्यों पालू ? और सुनो अगर मैं राहुल गांधी बन गया तो मेरे नजदीकी सखा,मित्र होने का पूर्ण लाभ तुम्हें ही मिलेगा… अतः मेरे लक्ष्य को पुख्ता बनाने में मेरी मदद करो. आगे तुम्हें भी तो लाभ मिलेगा .

तो , राहुल गांधी बनने के असंख्य लाभ है. दुनिया में रातों-रात लोग मुझे जानने लगेंगे, पहचानने लगेंगे, मेरी एक एक अदा पर लोग जान न्योछावर करने तत्पर होंगे. मेरी बात लोग बड़े ध्यान से सुनेंगे. फिर भले ही सुनकर हंस पड़ें. मैं जो भी करूंगा, वह चर्चा का सबब बन जाएगा.

मेरी एक एक बात का गूढ़ार्थ निकाला जाएगा. अगर मैं सिमी का समर्थन करूंगा तो संघ परिवार हाय तौबा मचायेगा.अगर मैं मुंबई को सारे देश की सौगात कहूंगा तो शिवसैनिक तमतमा जाएंगे. मैं किसी दलित के घर सोया नहीं कि भूचाल आ जाएगा. अर्थात में जो भी करूंगा उसकी सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया होगी।

मित्र ! मेरा जीवन सार्थक हो जाएगा.आज मैं कुछ भी करूं कुछ भी कहूं देश की चींटी तक तवज्जो नहीं देती. फिर मेरा जीना निर्रथक है कि नहीं ? सो बहुत सोच समझकर यह चतुराई भरा निर्णय लिया है कि अगर मुझे दुनिया की निगाह में आना है तो राहुल गांधी बनना ही होगा.

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तुम कहोगे – मेरी बात अब तुम्हें थोड़ी-थोड़ी समझ आ रही है. मगर फिर भी दृढ शब्दों में कहोगे- राहुल गांधी बनना तो असंभव हैं! तुम पगलाये गए हो…क्योंकि दुनिया में जस्ट सेम टू सेम बनना असंभव है. ऐसा सोचना भी दिमागी दिवालियापन का सबूत देता है. और अवश्य मेरा इलाज बांका* में होना चाहिये.

तो हे सखा ! जरा रुको तुम यथार्थ की जिंदगी में हो और मैं भावुक इंसान कल्पना लोक में जीता हूं. ठीक है, यथार्थ में ऐसा संभव नहीं है मगर सोचने से क्या संभव नहीं हुआ है. अभी पांच सात सौ वर्ष पूर्व किसने सोचा था कि बिजली का बल्ब, दूरभाष,एसी गाड़ियां तारकोल की सड़क पर दौड़ेगी ? किसने सोचा था विशालकाय प्लांट होंगे,हवा में ट्रेन दौड़ेगी ?
हमारे हाथों में मोबाइल होगी, भारत चांद पर पहुंच जाएगा! तो भाई सोचने से सब संभव होता है .मैं भोला-भाला सरल इंसान हूं. मैं महत्वाकांक्षा पालने का भी हकदार नहीं हूं क्या!

पाठकराम ! मुझ सा साधारण आदमी और क्या कर सकता है…सोचने और कल्पना के घोड़े दौड़ाने में पैसे भी नहीं लगते, सो सोचता हूं।तुम कहोगे,- भई! अपनी औकात के भीतर सोचो. जितनी चादर उतना पैर पसारो. मैं कहता हूं,-मैं क्यों क्षुद्र सोच रखू ,क्यों मुख्यमंत्री,राज्यपाल बनने का ख्वाब पालूं । मैं तो बड़ा ख्वाब देखूगा, बल्कि देख रहा हूं जिसमें सारे पद स्वमेव समा जाए.

देखो मित्र ! तुम्हारा यह दोस्त ऊंची उड़ान भर रहा है. राहुल गांधी बनने के सैकड़ों फायदे हैं. अगर कहीं ईश्वर ने मेरी सुन ली या अचानक में राहुल बाबा बन गया तो देश की सबसे पुरानी और वृद्धकाय कांग्रेस पार्टी मेरी पतलून की जेब में होगी.
और जब कांग्रेस मेरी मुट्ठी में होगी तो अनेक प्रदेश के मुख्यमंत्री और सरकारें मेरे इशारे पर चलेंगी. हस्तीनापुर का कांग्रेस मुख्यालय मेरी हथेली मैं होगा . मैं प्रधानमंत्री बनूंगा.नहीं भी बना तो हमारी गठबंधन सरकार का जो भी शख्स प्रधानमंत्री होगा, मेरी और सम्मान से देखेगा. मैं जब तलक बैठूंगा नहीं, प्रधानमंत्री,मंत्री और बड़े-बड़े नेता बैठेंगे नहीं. अब बताओ मुझे और क्या चाहिए ? मेरी एक बात उनके लिए पत्थर की लकीर होगी.केंद्र सरकार उसे पूर्ण करने में ऐसे लग जाएगी जैसे कोई ईश्वरी आदेश हो..

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मित्र !अब बता तू ही बता… मैं क्यों पार्षद, विधायक,मेयर बनने की सोचू. राहुल बनते ही वीवीआईपी बन जाऊंगा जिधर से गुजरूगा ऐसी चाक र्चौबंद व्यवस्था सरकार करेगी मानो कोई राष्ट्राध्यक्ष आया है.परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा…..
दोस्त ! मुझे और क्या चाहिए .मैं तो यह सोच कर ही धन्य हो गया कि मैं राहुल बाबा बनूंगा.सोचते ही आत्मा तृप्त हो गई. ऐसा लगा मानो सचमुच में राहुल बन गया. सच मित्र हम गरीब आम भारतीय कभी कुछ नहीं बन सकेंगे…कम से कम सोच कर जीवन को आनंदमय बना ले . चंद खुशी का क्षण इस तरह बटोर ले.कल्पना के घोड़े दौड़ा कर ह्रदय को प्रफुल्लित कर ले. क्योंकि यथार्थ बहुत बहुत कड़वा है मेरे यार…

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