चूंकि अपराधी भारतीय जनता पार्टी का नेता है, उसे हर तरह की मनमानी करने का पैदाइशी हक है और उस के रास्ते में जो आएगा उस की मौत भी होगी तो बड़ी बात नहीं. इस लड़की के पिता को पकड़ कर जेल में ठूंस दिया गया कि उस ने अपनी बेटी को शिकायत करने से क्यों नहीं रोका. वहां उसे मार डाला गया.
उस लड़की ने खुद को जलाने की कोशिश की तो उस पर तोहमत लगा दी गई. लड़की के चाचा को गिरफ्तार कर लिया गया और अदालत से सजा दिला दी गई. अब जब लड़की, उस की चाची और चाची की बहन जेल में बंद चाचा वकील के साथ लौट कर गाड़ी से आ रहे थे तो एक बड़े ट्रक ने उसे टक्कर मार कर चकनाचूर कर दिया जिस में चाची और चाची की बहन मारी गईं. लड़की बच गई जो न अस्पताल में सुरक्षित है, न घर में रहेगी. मां को हर हाल में समझौता करना पड़ेगा. वह कब तक सरकार से लड़ेगी?
यह कहानी आज की नहीं सदियों की है. देश में बलात्कार की शिकार ही जिम्मेदार है, बलात्कारी नहीं. बलात्कारी का तो हक है खासतौर पर अगर वह शिकार से ऊंची जाति का हो. पहले लड़कियों के पास कुएं या नदी में कूदने या फांसी लगाने के अलावा कोई और रास्ता न था, आज पुलिस में शिकायत का हक है पर तभी अगर दूसरी तरफ का कुछ कमजोर हो, पैसे और रसूख वाला न हो. जिस पर बलात्कार का आरोप है और जो जेल में बंद है, उसे शुक्रिया कहने 4 जुलाई को भारतीय जनता पार्टी के सांसद साक्षी महाराज जेल में पहुंचे थे और उन्होंने कहा था, ‘‘हमारे यहां के यशस्वी और लोकप्रिय विधायक कुलदीप सेंगर जो काफी दिनों से यहां हैं. चुनाव के बाद उन्हें धन्यवाद देना उचित समझा तो मिलने आ गया.’’
यह लड़की भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर के घर नौकरी मांगने के लिए 2017 में गई थी. उस का कहना है कि उस के साथ गलत काम किया गया था. शिकायत करने के बाद उस के घर वालों को धमकियां मिल रही थीं और अब अमलीजामा पहना दिया गया है.
इस मामले में बहुतकुछ नहीं होगा. सबकुछ रफादफा हो जाएगा, क्योंकि गलत तो लड़की ही थी, क्योंकि ऐसे मामले में गलती लड़की की ही होती है. ‘रामायण’ तक में अहल्या और सीता गलत थीं. सजाएं उन्हें ही मिली थीं. ऐसे समय जब पौराणिक युग को वापस लाया जा रहा हो, जब पिछले जन्मों के कर्मों के फल का पाठ पढ़ाने वाली किताबों को ही अकेला ज्ञान माना जा रहा हो, यह तो होना ही था.
यह संदेश है बलात्कार की शिकार हर लड़की को कि बलात्कार के बाद घर जाए, नहाए, क्रोसिन की 4 गोलियां ले कर सो जाए और हादसे को भूल कर अगली बार इसे दोहराने को तैयार रहे. यह तो होगा ही अगर वह जरा भी जवान है. बच्चियों और प्रौढ़ों को भी नहीं छोड़ा जाता और उन के लिए भी संदेश है कि हम 2019 में नहीं 919 में रह रहे हैं, जब इस देश में पूरी तरह धर्म राज था. सुनहरे दिन लौट रहे हैं.
सोशल मीडिया की दहशत
पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों पर बढ़ते मारपीट के मामलों के पीछे ह्वाट्सएप, ट्विटर और फेसबुक बहुत हद तक जिम्मेदार हैं, क्योंकि ये अफवाहों, अश्लीलता, गंदीभद्दी गालियों, जातिसूचक बकवास को दूरदूर तक ले जाते हैं. पहले जो बात गांव की चौपाल के पास के पेड़ के नीचे तक, शहर में महल्ले की चाय की दुकान या कालेज की कैंटीन तक रहती थी अब मीलों, सैकड़ों मीलों, चली जाती है.
यह मानना पड़ेगा कि ऊंची जातियों के पढ़ेलिखों में ऐसे बहुत से सोशल मीडिया लड़ाकू हैं जो तुर्कीबतुर्की जवाब देने में माहिर हैं. वे सैकड़ों में सही साफ बात कहने वाले की खाल उतार देते हैं. उन के पास सच नहीं होता तो वे झूठ पर उतर आते हैं, उन के पास जवाब नहीं होता तो गाली पर उतर आते हैं. वे बारबार पाकिस्तान भेजने की धमकी दे सकते हैं.
इन सोशल मीडिया बहादुरों ने चाहे कभी मजदूरी न की हो, कोई सामान न ढोया हो, किसी सीमा पर पहरेदारी न की हो, कुछ देश के लिए बनाया न हो, पर ये देशभक्त ऐसे बने रहते हैं मानो भारत इन की वजह से एक है और सैनिक, व्यापारी, किसान, मजदूर, बेरोजगार से ये ज्यादा देश के लिए मर रहे हैं.
इन के पास पढ़ेलिखों का मुंह बंद करने की ताकत आ गई है क्योंकि ये शोर मचा कर सही बात को कुचल सकते हैं. इन के पास समय ही समय है इसलिए ये हर तरह की टेढ़ीमेढ़ी बात गढ़ सकते हैं. ये दलितों के अत्याचारों की कहानियां बना सकते हैं. ये मुसलमानों द्वारा की गई हत्याओं की झूठी कहानियों को ऐसे फैला सकते हैं मानो ये वहीं खड़े थे. दलितों की पिटाई पर ये शिकायत करने वाले की खाल खींच सकते हैं.
ये आदतें इन्हें पीढि़यों से मिली हुई हैं. पीढि़यों से उलटीसुलटी कहानियां कहकह कर ही देशभर में झूठ के मंदिर फैले हुए हैं और वहां से इन लोगों को अच्छी आमदनी होती है. वास्तु, भविष्य, टोनेटोटके, कुंडली, हवनपूजन के नाम पर इन की आमदनी पक्की है. चूंकि पढ़ाई में अच्छे होते हैं, किताबें इन के हिसाब से बनती हैं, इन्हीं के साथी परीक्षा लेते हैं, नौकरियां इन को ही मिलती हैं. जो आरक्षण पा कर कुछ ले रहे हैं वे डरेसहमे रहते हैं, चुप रहते हैं, उन के मुंह से बस ‘जी हुजूर’, ‘जय भीम’, ‘जय अंबेडकर’ निकलता है.
वैसे भी पिछड़ों और दलितों के तो मन में गहरे बैठा है कि वे तो पिछले जन्मों के पापों का फल भोग ही रहे हैं, अगर उन्होंने इन लोगों को जवाब दिया तो उन का हाल शंबूक और एकलव्य जैसा होगा, उन्हें मरने के लिए घटोत्कच की तरह आगे कर दिया जाएगा. वे तो आज भी गंदे सीवर में डूब कर उसे साफ करने भर लायक हैं. वे ट्विटर, फेसबुक, ह्वाट्सएप की तो छोडि़ए एक पोस्टर भी नहीं पढ़ने की हिम्मत रखते. वे क्या मुंहतोड़ जवाब देंगे. और जवाब नहीं दोगे तो बोलने वाले की हिम्मत बढ़ेगी ही, वह मुंह भी चलाएगा और हाथपैर भी चलाएगा ही.