लेखक-  प्रियदर्शी खैरा

मैं ने आवाज की दिशा में देखा तो वहां कोई नहीं था. अंधेरा होने लगा था. मैं मंत्रालय में भूत की कल्पना कर सिहर उठा. लोकतांत्रिक व्यवस्था में मंत्रालय एक महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, जहां वर्तमान राजामहाराजा  अपने मंत्रियों एवं कारिंदों के साथ बैठ कर राजकाज चलाते हैं. यहां का दरबारे-आम और दरबारे-खास चिट पद्धति अथवा पहुंच पद्धति से चलता है. पहले इन्हें सचिवालय कहते थे. अब मंत्रालय के नाम से जाना जाता है. नाम क्रांति से ले कर कार्य क्रांति तक की संस्कृति का विकास यहीं से हुआ है.

यहां की तख्तियों पर नाम बदलते रहते हैं, किंतु पदनाम स्थायी होते हैं. देश एवं प्रदेश की राजधानियों के ये दर्शनीय

स्थल होते हैं. इन के बाहर

का वातावरण हराभरा और स्वास्थ्यवर्धक रखा जाता है. ताकि यहां से बाहर आ कर आदमी चैन की सांस ले सके.

नया आदमी इन के अंदर आ कर इन की भूलभुलैया में रास्ता भटक जाता है और पुराना आदमी अपने नियत रास्ते पर अनवरत आताजाता रहता है, यही इस स्थान की मूल विशेषता है.

मुझे लगा कोई भूत रास्ता भटक कर मंत्रालय में आ गया है. तभी फिर आवाज आई, ‘‘डरिए नहीं, मैं भी सरकारी कर्मचारी था. मुझे मरे 20 साल हो गए, घर में पत्नी और 2 बच्चे छोड़ कर मरा था. वे 3 से 10 हो गए पर आज तक पेंशन नहीं मिली. आप क्या पेंशन देखते हैं?’’

‘‘नहीं भाई, मुख्य मार्ग से जुलूस निकल रहा था, रास्ता बंद था, इसलिए यहां से आ गया,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘देखो मियां, चिडि़या देख के पहचान लेता हूं, क्यों डर रहे हो. चूना है क्या?’’ उस ने बड़ी आत्मीयता से पूछा.

अब ये तंबाकू मांगेगा, फिर चाय की पूछेगा. कैसा भूत है जो चाय भी पीता  है, तंबाकू भी खाता है, मैं सोच रहा था, फिर पूछा, ‘‘भूत भाई, चूने का क्या करोगे?’’

‘‘कुछ नहीं, फाइल में लगाएंगे. आज ही काम मिला है. ‘नाट अप्रूव्ड’ में ‘नाट’ पर लगाना है. आप की कोई फाइल दबानी हो तो बताएं. स्टोर में फेंक आऊंगा, कभी नहीं मिलेगी,’’ उस ने कहा.

मुझे उस की बातों में मजा आने लगा. पूछा, ‘‘क्या चौकीदार नहीं देखता?’’

एक जोरदार ठहाके की आवाज आई, ‘‘भूत को कौन देखेगा. क्या तुम मुझे देख पा रहे हो? यहां तो कई भूत सक्रिय हैं. तभी तो फाइलें दबती और उड़ती हैं. पर फाइलों के भूत हमेशा जिंदा रहते हैं, मरने पर भी नहीं छोड़ते.’’

फाइलों की महिमा से कौन परिचित नहीं होगा. मंत्रालय फाइलों के माध्यम से ही चलता है.

ये  भी पढ़ें- मुझे नहीं जाना

मैं सोचने लगा जब ईसवी सन 3000 में ऐसे भवन

इतिहास की वस्तु हो जाएंगे

तब इतिहासविद अलगअलग शासनकाल की अपनीअपनी दृष्टि से व्याख्या करेंगे. खुदाई में मिले फाइलों के अवशेषों की इस शोध में विशेष

भूमिका रहेगी. भविष्य में ये फाइलें ऐतिहासिक महत्त्व

की दस्तावेज होंगी. इसलिए इन्हें   राष्ट्रीय   अभिलेखागारों में सुरक्षित रखने की आवश्यकता है. इस में लिखी गई टिप्पणियों पर शोध होगा एवं उन के शब्दार्थ व भावार्थ पर बहसें होंगी कि कौन सी फाइल कितने शासनकालों में चलती हुई सद्गति को प्राप्त हुई, निर्णयों  को किनकिन तत्त्वों ने प्रभावित किया, किस प्रकार निर्णय बदले गए आदि से शासन की विचारधारा संबंधी नतीजे निकाले जाएंगे. अत: यह आवश्यक है कि फाइलें कागजों पर नहीं स्थायी प्रकृति की प्लास्टिक पर अमिट स्याही से लिखी जाएं, जिस से हम आने वाली पीढि़यों को ऐतिहासिक धरोहरें सौंप सकें.

तभी भूत की आवाज ने मेरा ध्यान भंग किया, ‘‘क्या सोच रहे हो मियां, ड्रेस से तो नेता लग रहे हो, ट्रांसफर केस है क्या?’’

भूत मुझे जरूरत से ज्यादा चालाक लगा, धीरेधीरे अपनी औकात दिखा रहा था. मैं ने सहमते हुए कहा, ‘‘नहीं, भूत भाई, यों ही निकल रहा था. रास्ते में आप टकरा गए.’’

‘‘टकराए कहां मियां, हम तो भूत हैं, हम से कौन टकराएगा. हम जब जिंदा थे तब किसी ने हम से टकराने की जुर्रत नहीं की. यूनियन के लीडर थे. बड़ेबड़े अफसरों को छठी का दूध याद दिला दिया. वह भी क्या दिन थे. अफसर भी दमदार होते थे, आज जैसे ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए नहीं घूमते थे.’’

थोड़ी देर की खामोशी के बाद फिर आवाज आई, ‘‘आप तो पहुंचे हुए नेता लग रहे हैं, सर.’’

‘‘नहीं, विधायक हूं,’’ मैं ने संक्षिप्त उत्तर दिया.

‘‘यही तो, मेरी नजर धोखा नहीं खाती श्रीमान. मेरा पेंशन केस निबटवा दें. जनरल केटेगरी का भूत हूं, बच्चे की नौकरी नहीं लगी, कुछ हेल्प कीजिए, पूरी फेमिली परेशान है,’’ भूल का याचनापूर्ण स्वर सुनाई दिया.

‘‘तुम भूत हो, सबकुछ कर सकते हो, खुद क्यों नहीं करते?’’ मैं ने प्रश्न किया.

‘‘सर, फाइल उड़ाना अलग बात है, काम कराना अलग. मैं यहीं रहा हूं, सब समझता हूं पर क्या करूं, भूत हूं, बेबस हूं, यहां जिंदों के काम नहीं होते, भूतों के क्या होंगे?’’ भूत बेबसी से बोला.

‘‘अरे, भूत तो कहीं भी जा सकता है, फाइल में घुस जाओ और निबटवा लो…’’ मैं ने सुझाव दिया.

‘‘क्या बताऊं सर, भूत तो हवा है और हवा में वजन नहीं होता. एक बार फाइल में घुस गया तो फाइल उड़ गई, फिर से फाइल बनने में 2 वर्ष लग गए…’’ भूत ने व्यथा सुनाई.

‘‘तो फिर काम पूरा करने वाले के सिर पर क्यों नहीं सवार हो जाते?’’ मैं ने रास्ता सुझाया.

‘‘न बाबा न, एक भूत से इस तरह की गलती हो गई थी. फाइल निबटवाने के चक्कर में नेताजी के सिर पर सवार हो गया था. फाइल तो निपटी नहीं, लौट कर आया तो उन के संस्कार साथ ले आया. यहां आ कर यमराज की कुरसी पर दावा ठोक दिया. भूततंत्र में प्रजातंत्र की मांग करने लगा.

हवाई क्रांति की बात उठने लगी. भूतलोक में बवंडर मच गया. यमराज ने बड़ेबड़े आदमी उतारने वाले भूत बुलाए, पर नहीं उतरा. फिर एक सयाना भूत आया, उस ने उसे कुरसी दिखाई. कुरसीमंत्र फूंका, जब से वह भूत उसी कुरसी के चक्कर लगा रहा है.

‘‘एक और मजेदार केस है. एक भूत अफसर को लग गया. लौट के आया तो अंगरेजी बोलने लगा. अब छोटे भूतों पर रौब झाड़ता है, बड़ों की चमचागीरी करता रहता है. एक दिन तो हद ही हो गई. यमराज को पारब्रह्म परमेश्वर कह दिया…’’ कह कर भूत हंसा फिर बोला, ‘‘आप ही कुछ कीजिए न, सर.’’

‘‘बताओ, मैं क्या कर सकता हूं,’’ मैं ने पूछा.

‘‘आप सबकुछ कर सकते हैं, सर. आप महान हैं. बेटे को अनुकंपा नियुक्ति दिला दें. मैं उसे 10 वर्ष का छोड़ के मरा था, अब 30 साल का हो गया है, उम्र निकल जाएगी. अनुकंपा नियुक्ति की फाइल 10 साल से चर्चा में उलझी है,’’ भूत घिघियाता हुआ बोला.

‘‘ठीक है, देखूंगा. एक बात बताओ. यहां तो बहुत से भूत होंगे,’’ मैं ने पूछा.

‘‘बहुत सारे, सर. जगह कम पड़ गई है. कुछ भूतों को नई जगह शिफ्ट कर रहे हैं. साइट सलेक्शन की फाइल महाभूत के यहां 2 साल से पेंडिंग में है. छोटे भूतों ने आपत्ति की है कि वे नई जगह नहीं जाएंगे,’’ भूत ने राज की बात बताई.

‘‘भूत हड़ताल पर जा रहे हैं क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, धीरे बोलिए, महाभूत का चमचा मेरे पीछे ही खड़ा है. आप को नहीं दिखेगा. नमकमिर्च लगा कर चुगली कर देगा. वैसे यहां हड़ताल पर प्रतिबंध है, महाभूत का बड़ा आतंक है. कहीं किसी जिले में पटक दिया

तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा,’’ भूत फुसफुसाया.

‘‘यहां ऐसी क्या खास बात है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, यहां अच्छी सुविधा है, जिलों के बड़ेबड़े भूत भी राजधानी के छोटे भूतों को सलाम करते हैं. जिला पंचायत के अध्यक्ष और मंत्री में अंतर तो स्पष्ट है. यहां काम करने के लिए वाइड फील्ड है, कहीं भी बेटिंग करो,’’ भूत ने समझाया.

‘‘तुम्हारे यहां राजनीति के क्या हाल हैं?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

तभी पत्ते खड़खड़ाए. भूत की डूबती हुई आवाज आई, ‘‘मृत्युलोक की राजनीति का असर अब यहां भी पड़ रहा है. राजनीति पर फिर कभी चर्चा करेंगे. महाभूत का बुलावा आया है, मेरा काम करा दें, सर. यह भूत आप का गुलाम हो जाएगा…’’

ये  भी पढ़ें- टूटे कांच की चमक

मैं मन ही मन मुसकरा रहा था. भूत को क्या बेवकूफ बनाया? भूत भी विधायक के नाम पर पानीपानी हो गया.    द्य

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...