केंद्र और राज्य सरकारें अपनी पूरी कोशिश में हैं कि लोग घर में रहें, बेवजह बाहर न निकलें. इसी उपाय से कोरोना को हराया जा सकता है. पर दिल्ली में बाहरी लोगों ने जो अपनेअपने राज्यों में जाने की जल्दबाजी दिखाई है उस से पूरा मामला गड़बड़ा सा गया है.
दिल्ली ही क्या पूरे एनसीआर में कुछकुछ ऐसे ही हालात हैं. फरीदाबाद को ही देख लें. वहां से भी बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूर अपनेअपने घरों की ओर रुख कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि यहां के प्रशासन ने उन के ठहरने और खानेपीने के इंतजाम नहीं किए हैं, सरकारी स्कूलों में भी हर तरह की व्यवस्था है, पर वे नहीं मान रहे.
इस की सब से बड़ी वजह यह है कि बड़े शहरों में मजदूर तबके की रोजीरोटी के साधन छिन गए हैं. जब अमीर लोग घरों में बैठे हैं और सारे छोटेमोटे काम खुद कर रहे हैं तो गुमटी लगा कर प्रेस करने वाले, घरों में झाड़ूपोंछा लगाने वाले या वालियों की नौकरी चली गई है. इतना ही नहीं, शहरों में सन्नाटा है तो रिक्शा में कौन बैठेगा, किसी कारखाने के बाहर रेहड़ी पर छोलेकुलचे बेचने वाले की कौन सुध लेगा.
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गरीबों पर मार इतनी ही नहीं पड़ी है. दड़बे जैसे घरों कमरों में 8-10 की तादाद में रहने वाले बाहरी मजदूरों को कौन मकान मालिक मुफ्त में रहने की जगह देगा. बीमारी फैलने का डर है तो उन पर मकान खाली करने का भारी दबाव. इतना ही नहीं, सरकारें बोल तो रही हैं कि कोरोना से लड़ने के सारे इंतजाम कर दिए गए हैं, पर जमीनी हकीकत से सभी वाकिफ हैं.
फरीदाबाद में पुलिस प्रवक्ता सूबे सिंह ने बताया कि 28 मार्च को पुलिस कंट्रोल रूम में शाम के 5 बजे तक 115 लोगों ने फोन कर के बताया कि उन के घर का राशन खत्म हो गया है. पुलिस पेट्रोलिंग कर के लोगों तक खानेपीने का सामान पहुंचा तो रही है, पर वह ऊंट के मुंह में जीरा है. जहांजहां गरीबों के लिए शिविर भी लगाए गए हैं वहां सन्नाटा पसरा है.
फरीदाबाद के तिलपत इलाके के सरकारी स्कूल में, जिसे ऐसा ही शिविर बना दिया गया है, केवल 7 लोग ही मिले. पहले 10-12 लोग आए थे, पर बाद में उन की तादाद घट गई.
ऐसा ही नजारा सराय ख्वाजा में भी देखने को मिला. वहां के सरकारी स्कूल को शिविर बनाया है, पर वहां भी लोग ज्यादा देर तक नहीं ठहर रहे हैं. इस सिलसिले में डीसी यशपाल यादव ने बताया, ‘हमारी तरफ से स्कूल में इंतजाम में कोई कमी नहीं है. मेरे पास रिपोर्ट आई थी कि लोग रुकना ही नहीं चाह रहे हैं. वे अपने घर जाने के लिए बस की डिमांड कर रहे हैं.’
दरअसल, इस बड़े पलायन की एक और वजह यह भी है कि अब गरीब लोग ऐसा मानने लगे हैं कि उन का अपने गांव लौटना ही एकमात्र हल है. वहां कच्चापक्का ही सही अपना घर है और फसलें कटने वाली हैं तो शायद दो वक्त की रोटी का भी इंतजाम हो जाए,
इसलिए वे मौत से लड़ कर शहर छोड़ रहे हैं और फिर जान है तो जहान है, रोटी तो कहीं भी कमाई जा सकती है.