लेखक- राजेश चौरसिया
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- बुंदेलखंड में मातृशक्ति का राष्ट्र को समर्पित कार्य..
- छतरपुर घर बैठकर मुफ्त में बना रहीं बेटियां मास्क..
- राष्ट्रहित में धन की जगह श्रमदान कर रहीं महिलायें..
- माँ बेटियां मिलकर बनातीं हैं रोजाना 1000+ मास्क..
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विश्व आपदा, कोरोना महामारी, और लॉग डाउन के चलते देशभर में सम्पन्न लोग जरूरतमंदों को उनकी जरूरतों और अपनी हैसियत के मुताबिक मदद कर रहे हैं जो कि ज़मीनी स्तर पर कारगर साबित हो रही है. जिसके अलग-अलग जगहों से पृथक पृथक परिणाम निकलकर सामने आये हैं. ऐसे ही कई मामले बुंदेलखंड से भी निकलकर आये और देखने को मिले हैं.
मामला मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले का है जहां अर्थ/पैसे से सक्षम न हो पाने के बाबजूद भी लोग राष्ट्रहित में अपना हुनर और श्रम समर्पित कर सहयोग कर रहे हैं. जहां रुपयों पैसों से सहयोग न कर पाने के बदले राष्ट्र और जन हित में अपना हुनर रूपी श्रम की पूंजी न्योछावर कर रहे हैं.
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डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक इस कोरोना वायरस से बचाव ही इसका सबसे बड़ा उपाय और है. जिसके चलते अचानक सैनिटाइज, ग्लब्स, और मास्क की मांग में हजारों गुना उछाल आया है. जिसके चलते इनका सहजता से मिला पाना संभव नहीं हो पा रहा. मास्कों की अचानक बेतहाशा मांग के चलते हा-हा-कार सा मचा हुआ है जिससे इनका मिलना मुश्किल से हो पा रहा है. दूसरी ओर गरीब मजबूर जरूरतमंद लोग इन्हें ख़रीदपाने में भी सक्षम नहीं हैं. जिसके चलते सक्षम और जनसेवी लोगों ने इन्हें लोगों को मुफ्त बांटने का बीड़ा उठाया है.
छतरपुर शहर निवासी मातृशक्ति (रचना नामदेव) और बहनें मानसी, साक्षी, दिव्या मिलकर इस विश्व आपदा और राष्ट्रहित/जनहित के कार्य को अंजाम दे रहीं हैं. छतरपुर शहर के हटवारा मोहल्ला स्थित नामदेव परिवार अपने घर पर माँ अपनी तीन बेटियों के साथ मिलकर मास्क निर्माण के काम में जुटीं हुईं हैं. इनकी मानें तो यह रोजाना 1000 से ऊपर तक मास्क बनाकर तैयार करतीं हैं. और माश्क बनाने का यह काम वे बिल्कुल मुफ्त कर रहीं हैं. यह परिवार अब तक 10,000 (दस हज़ार) से ज़्यादा तक मास्क बना चुका है.
रचना नामदेव की मानें तो वह एक स्व सहायता समूह से जुड़ी हुई है जिसके तहत वह सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, कर अपना और आने परिवार का जीविकोपार्जन करती हैं. उनके साथ उनकी बेटियाँ (मानशी, अंचल, रानू) भी स्कूल और पढ़ाई से फ्री होकर पार्ट टाइम (फ्री-टाईम) में उनका हाथ बाँटवातीं हैं. इस वक्त वैसे भी स्कूल कॉलेज सब बंद हैं तो वह 100 % फ्री ही हैं जो इस समय उनके काम में हाथ बंटा रहीं हैं.
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रचना की मानें तो उनके पास नगर की प्रथम महिला अर्चना गुड्डू सिंह का मास्क बनाने के काम को लेकर ऑफर आया (कि उन्हें मास्क निर्माण कर लोगों में मुफ्त बांटने हैं) जिसको उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. परंतु साथ ही एक शर्त भी रक्खी कि उनके जनहित के इस कार्य में वह उनके साथ हैं वह रूपये पैसों से तो सक्षम नहीं हैं पर वह अपना हुनर और श्रम देकर राष्ट्र और जनहित के कार्य में शामिल हैं. अर्थात वह उनसे माश्क बनाने के एवज में एक पैसा भी नहीं लेंगीं. मास्क बनाने की सामग्री, कपड़ा, धागा, डोरी, ईलास्टिक के अलावा वह कुछ भी न लेंगीं.
रचना बतातीं हैं कि विश्व आपदा और इस महामारी पर लोग अपनी सक्षमता के हिसाब से सहयोग कर रहे हैं. हम धनबल से तो लोगों की मदद तो नहीं कर सकते क्यों कि वह हमारे पास है ही नहीं तो हम अपने हुनर और मेहनत के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से देश और जनसेवा में मदद कर रहे हैं.
बोलीं अर्चना गुड्डू सिंह..
वहीं जब हमने अर्चना गुड्डू सिंह से बात की तो उन्होंने हमें बताया कि हम इस आपदा में जरूरतमंद लोगों को राजनीति से इतर राशन, पानी से लेकर उनकी हर जरूरत का सामान मुहैया करा रहे हैं इसके साथ हम संक्रमण रोकने में बेहद जरूरी मास्क सेनिटाईज, ग्लब्ज़ बांट रहे हैं. जिसके लिए हम कई स्व सहायता समूह के जरिये इनका निर्माण करवा रहे हैं. इनसे रोजाना निर्मित होने वाले मास्कों को हम वार्ड-वार्ड भ्रमण कर बांटने का काम कर रहे हैं जो पिछले कई दिनों से अनवरत जारी है जो कोरोना और लॉग डाउन समाप्ति तक जारी रहेगा.
मामला चाहे जो भी हो पर विश्व आपदा पर राष्ट्रप्रेम देशभक्ति जनसेवा की इस तरह की मिशाल अब तक कहीं से सामने नहीं आई कि जहां एक ओर खुद जरूरतमंद परिवार मदद के लिये आगे आ रहा है. भले ही वह पैसों से सक्षम अमीर न हों पर दिल से अमीर हैं तभी तो अपना हुनर और श्रम राष्ट्रहित में जनसेवा कर समर्पित कर रहे हैं.
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अर्थात हम ऐसीं मातृ शक्ति माँ-बेटियों को तहेदिल से सलाम करते हैं.. जय हिंद.. जय भारत..”