लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
उत्तर प्रदेश में सरकार ने पूरी तरह से पशु हत्या पर बैन लगाया हुआ है, जिस के चलते गैरजरूरी पशुओं की तादाद बहुत बढ़ रही है. अपने राजनीतिक फायदे और पंडों को लुभाने के लिए सरकार सरकारी खजाने से बड़ीबड़ी और भव्य गौशालाएं भी बनवाती है और गायों की रखवाली के लिए एक अच्छीखासी तनख्वाह पर स्टाफ भी रखा जाता है.
आवारा पशु, जिन में आमतौर पर बूढ़ी, बीमार गाएं और सांड़ होते हैं और जिन से न तो दूध मिल पाता है और न ही वे बोझ ढोने लायक होते हैं, पर ये जानवर तथाकथित गौरक्षकों के लिए तुरुप का पत्ता जरूर साबित होते हैं.
धर्म से जुड़े ये जानवर जब हमारी फसलों को खाने लगें और हमारे बच्चों को चोट पहुंचाने लगें तब तो हमें इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत होती है, क्योंकि किसी भी जानवर की जान से ज्यादा कीमती इनसान की जान होती है.
सरकार ने बूचड़खाने पर रोक लगा रखी है. इस वजह से भी आवारा पशुओं की तादाद बढ़ती जा रही है, शहरों में कांजीहाउस होते भी हैं, तो उन की व्यवस्था बदतर ही होती है.
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उदाहरण के तौर पर जनपद लखीमपुर खीरी को ही लें. यह एक तराई का इलाका है, यहां की मुख्य फसल वैसे तो गन्ना है, पर बहुत से किसान ऐसे भी हैं, जो केले और दूसरी सब्जियां भी उगाते हैं.
इन सारे किसानों की फसलों को इन आवारा जानवरों से खतरा होता है. रात के समय जानवरों का झुंड पूरी फसल ही बरबाद कर जाता है. जो बड़े और पैसे वाले किसान हैं, वे तो अपनी फसलों की पूरी तरह से तारबंदी करा लेते हैं, पर जो छोटे किसान हैं, उन के पास अमूमन तारबंदी कराने के भी पैसे नहीं होते. ऐसे में ये आवारा जानवर ऐसे किसानों के लिए बहुत बड़ी समस्या ले कर आते हैं.
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