22 साल के रंजन का चयन रेलवे में टैक्नीशियन पद के लिए जनवरी में हुआ था. आईटीआई करने के बाद 3 साल की कड़ी मेहनत करने के बाद आए इस रिजल्ट से वह काफी खुश था.

रंजन के पिता साधारण किसान हैं. उन्होंने रोजमर्रा की जरूरी चीजों में कटौती कर के रंजन को पढ़ने के लिए खर्च दिया. रंजन का रिजल्ट आने के बाद परिवार में खुशी का माहौल था. आखिर हो भी क्यों नहीं, परिवार वालों में उम्मीद की किरण जगी थी कि अब घर में खुशियाली आएगी. दोनों बेटियों की शादी अब अच्छे घर में हो जाएगी.

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रंजन की तरह अभिषेक, राहुल और संजय का भी चयन रेलवे में ड्राइवर पद के लिए हुआ. सभी एक ही कमरे में रह कर पटना में तैयारी करते थे. वे सभी किसान मजदूर के बेटे हैं.

बिहार के साधारण किसान मजदूर के बेटों को अगर सब से ज्यादा सरकारी नौकरी मिलती थी तो वह था रेलवे महकमा, जिस में फोर्थ ग्रेड से ले कर रेलवे ड्राइवर, टैक्नीशियन, टीटी और स्टेशन मास्टर पद की नौकरी लगती थी.

रेलवे ने बिहार के किसान मजदूर तबके के मेधावी लड़कों को देशभर में सब से ज्यादा नौकरी दी, जिस से लोगों के हालात में काफी सुधार हुआ.

पर रेलवे के निजीकरण की चर्चा सुनते ही किसान मजदूरों के 3-4 साल से तैयारी कर रहे नौजवानों के होश उड़ गए हैं. वे निराश हो गए हैं. जिन का चयन हो गया है यानी रिजल्ट आ गया है, वे भी उलझन में पड़ गए हैं कि उन्हें जौइन कराया जाएगा या नहीं.

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