लौंगिया देवी की इस दुखद मौत के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना दुख जाहिर किया. इतना ही नहीं, दाह संस्कार के दौरान कुछ कर्मचारी पदाधिकारी भी वहां हाजिर हुए.
लौंगिया देवी काफी समय से बीमार थीं. उन की कोई सुध लेने वाला नहीं था. उन के दोनों बेटे मजदूरी करने के लिए किसी दूसरी जगह चले गए. लौंगिया देवी घर में अकेली रह रही थीं. एक दिन अचानक ‘द फ्रीडम’ के संस्थापक सुधीर कुमार उन के गांव गेहलौर पहुंचे. उन्होंने 19 नवंबर को वीडियो बना कर लौंगिया देवी के बुरे हालात को दिखाया, जिसे सोशल मीडिया पर कई लोगों ने शेयर किया.
लोगों की यह आवाज गृह विभाग के मुख्य सचिव आमिर शुभानी के कानों तक पहुंची. उन्होंने तत्काल गया के डीएम को फोन किया. गया के डीएम ने एंबुलैंस भेज कर लौंगिया देवी को सदर अस्पताल में भर्ती कराया. पर उन की हालत ठीक नहीं रहने की वजह से उन्हें सदर अस्पताल से मगध मैडिकल कालेज रेफर कर दिया गया. कुछ दिनों तक वहां इलाज चला, फिर वहां से भी उन्हें पटना रेफर कर दिया गया.
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लेकिन लौंगिया देवी के परिवार वाले उन्हें पटना नहीं ले जा सके और घर ले आए. घर लाते ही 4 दिसंबर को लौंगिया देवी ने दम तोड़ दिया.
याद रहे कि अपने दम पर पहाड़ काट कर रास्ता बनाने वाले दशरथ मांझी पर केतन मेहता ने ‘मांझी : द माउंटेनमैन’ फिल्म बनाई थी और करोड़ों रुपए कमाए थे. आज उन्हीं दशरथ मांझी के परिवार के सदस्यों की हालत बहुत ज्यादा चिंताजनक है.
जिस फूस की झोंपड़ी में लौंगिया देवी रहती थीं, पिछले 3 साल से उस के फूस की मरम्मत तक नहीं हो सकी थी. ‘दशरथ मांझी महोत्सव’ का बैनर उस झोंपड़ी के ऊपर डाला हुआ है. उस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का फोटो भी साफ नजर आ रहा है, जो मुख्यमंत्री की कल्याणकारी योजनाओं का मजाक उड़ा रहा है. याद रहे कि लौंगिया देवी पहाड़ काटने में अपने पिता दशरथ मांझी की मदद करती थीं. उन्हें खानपानी भी यही लौंगिया देवी ही पहुंचाने जाती थीं.
जब दशरथ मांझी जिंदा थे, तब वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने गए थे. तब नीतीश कुमार ने अपनी कुरसी छोड़ कर उन्हें उस पर बिठा दिया था. अखबारों में प्राथमिकता के साथ पहले पेज पर यह खबर छपी थी. तब लोगों के दिल में नीतीश कुमार के प्रति भी सम्मान का भाव खूब जगा था.
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दशरथ मांझी के किरदार पर फिल्म बना कर और किताबें लिख कर लोगों ने अथाह कमाई की है, पर उस के असली हकदार उन के परिवार के सदस्य आज भी गरीबी और जलालत के बीच जिंदगी जी रहे हैं. लिहाजा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सिर्फ ट्विटर पर श्रद्धांजलि नहीं दें, इन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी कारगर होगी जब दशरथ मांझी के परिवार के हालात में सुधार होगा.