‘पढ़ोगेलिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगेकूदोगे तो होगे खराब’… इस लोकोक्ति को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के छोटे से गांव चांदौन के खिलाड़ी विवेक सागर प्रसाद ने टोक्यो ओलिंपिक खेलों में अर्जेंटीना के खिलाफ गोल दाग कर सच साबित कर दिया है.
टोक्यो ओलिंपिक में 29 जुलाई, 2021 का दिन विवेक सागर प्रसाद के नाम रहा. अर्जेंटीना से मुकाबले में भारतीय हौकी टीम को हर हाल में जीत की दरकार थी. टोक्यो ओलिंपिक में सुबह 6 बजे से जैसे ही अर्जेंटीना और भारत के बीच मुकाबला शुरू हुआ, भारतीय टीम ने दबदबा बना कर 3 गोल कर दिए. विवेक सागर प्रसाद ने भारतीय टीम की ओर से गोल दाग कर देश की जीत तय कर दी.
5 अगस्त, 2021 को टोक्यो ओलिंपिक में हुए हौकी मैच में भारतीय पुरुष हाकी टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जरमनी की टीम को 5-4 से मात दे कर कांस्य पदक अपने नाम कर लिया. जैसे ही भारत को मैडल मिलने का रास्ता साफ हुआ, तो टीम में मध्य प्रदेश से नुमांइदगी कर रहे विवेक सागर प्रसाद का पूरा गांव खुशी से झूम उठा.
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विवेक के भाई विद्या सागर बताते हैं कि मैच के आखिरी 6 सैकंड तक पूरा परिवार दिल थाम कर बैठा रहा. जैसे ही मैच खत्म हुआ, पिता रोहित सागर और मां कमला देवी की आंखों से आंसू आ गए. विद्या सागर ने सुबह जीत के बाद विवेक से बात की तो विवेक ने टोक्यो से वीडियो कालिंग कर अपने भाई को मैडल दिखाया.
विवेक सागर के पिता रोहित प्रसाद सरकारी प्राइमरी स्कूल गजपुर में शिक्षक हैं. मां कमला देवी गृहिणी और बड़ा भाई विद्या सागर सौफ्टवेयर इंजीनियर है. इस के अलावा 2 बहनें पूनम और पूजा हैं. पूनम की शादी हो चुकी है और पूजा पढ़ाई कर रही है.
जीत के बाद विवेक सागर प्रसाद के गांव में दीवाली सा माहौल बन गया. गांव के नौजवान, बच्चे, महिलाएंपुरुष हाथ मे तिरंगा ले कर ढोल की थाप के साथ झूम उठे. घर पर विवेक के पिता रोहित प्रसाद, मां कमला प्रसाद और भाई विद्यासागर भी जम कर नाचे. पूरा गांव उन्हें बधाई देने घर पर आ गया. पिता इतने खुश थे कि गांव में मिठाई बंटवाने के लिए बाहर आ गए.
जिला हौकी संघ के सदस्यों ने भी विजय जुलूस निकाल कर टीम इंडिया की जीत का जश्न मनाया. विवेक के पिता रोहित प्रसाद ने कहा कि आज विवेक ने पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन कर दिया है.
इटारसी के और्डिनैंस फैक्टरी निवासी खिलाड़ी सोनू अहिरवार ने पहली बार विवेक को हौकी खेलने के लिए प्रेरित किया था. विवेक की उम्र जब 8 साल की थी, तब सोनू ने उसे हौकी की स्टिक ला कर दी थी.
विवेक सागर प्रसाद के लिए इस मुकाम को पाना आसान नहीं था. विवेक सागर के प्रारंभिक कोच गजेंद्र पटेल ने बताया कि पहले विवेक क्रिकेट खेलता था. उन्होंने क्रिकेट मैदान में उस की फुरती और स्टैमिना देखते हुए हौकी टीम में शामिल कराने का प्रयास किया.
विवेक सागर प्रसाद के पिता रोहित प्रसाद उस के हौकी खेलने के शुरू से ही खिलाफ रहे, लेकिन तकरीबन 10 साल पहले एक मैच में लोगों ने उस के खेल की जम कर तारीफ की और उस मैच में विवेक को 500 रुपए के इनाम के साथ लोगों की वाहवाही मिली, तो उस के बाद पिता रोहित प्रसाद ने फिर कभी विवेक को हौकी खेलने से नहीं रोका.
12 साल की उम्र में विवेक सागर प्रसाद जब अकोला में एक टूर्नामैंट खेल रहे थे, तभी मशहूर हौकी खिलाड़ी अशोक ध्यानचंद की उन नजर पड़ी और उन्होंने विवेक की प्रतिभा को पहचान लिया.
अशोक ध्यानचंद ने विवेक सागर का नामपता लिया और फिर अपने पास अकादमी में बुला लिया. विवेक सागर प्रसाद ने बताया कि कुछ दिनों तक उन्होंने मुझे अपने घर में ही ठहराया था.
विवेक सागर प्रसाद का चयन मध्य प्रदेश हौकी अकादमी में 2012-13 में हुआ था. विवेक के खेल में अशोक ध्यानचंद की कोचिंग से खेल में निखार आया. उन्होंने मध्य प्रदेश हौकी अकादमी में 30 महीने तक कोचिंग ली. वहां से वे आगे की कोचिंग के लिए हौकी अकादमी दिल्ली चले गए.
विवेक सागर प्रसाद भी ऐसे खिलाडि़यों में से एक हैं, जिन्होंने अपने ऊपर आई बाधा को हौसले से पार कर लिया. साल 2015 में प्रैक्टिस के दौरान विवेक की गरदन की हड्डी टूट गई थी. दवाओं की हैवी डोज से उन की आंतों में छेद हो गया था और वे 22 दिनों तक जिंदगी और मौत से जू झते रहे. आखिरकार उन्होंने जिंदगी का मैच जीत लिया. इस के बाद जूनियर हौकी टीम की मलयेशिया में कप्तानी की और ‘मैन औफ द सीरीज’ पर कब्जा जमा लिया.
बातचीत में विवेक सागर प्रसाद बताते हैं कि किस तरह शुरुआती दौर में वे इटारसी के सीनियर प्लेयर को हौकी खेलता देखते थे, तो उन के मन में भी हौकी खेलने का विचार आता था.
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हौकी के प्रति जब विवेक सागर प्रसाद का लगाव बढ़ा, इस के बाद सीनियरों से हौकी स्टिक और दोस्तों से जूते मांग कर मिट्टी वाले ग्राउंड में प्रैक्टिस करने लगे.
भारतीय पुरुष हौकी टीम ने जरमनी को टोक्यो ओलिंपिक खेलों के कांस्य पदक मैच में 5-4 से शिकस्त दे कर 41 साल बाद पदक जीता.
भारत ने इस से पहले साल 1980 में मास्को ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीता था. भारतीय टीम की इस ऐतिहासिक जीत से पूरे देश में खुशी का माहौल है.
विवेक सागर प्रसाद ने ओलिंपिक तक का यह सफर इटारसी के पास के छोटे से गांव चांदौन से शुरू किया. उन्होंने अनेक नैशनल और इंटरनैशनल लैवल की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और लगातार अच्छे प्रदर्शन के बल पर भारतीय टीम में अपना स्थान बनाया.
विवेक सागर प्रसाद के यहां तक पहुंचने की कहानी भी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है. विवेक सागर प्रसाद का परिवार शीट की छत वाले घर में रहता है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जब उन्हें बतौर एक करोड़ रुपए इनाम देने की घोषणा की, तो इस पर विवेक का कहना है कि वे इस पैसे से अपनी मां के लिए आलीशान मकान बना कर देंगे.
विवेक सागर प्रसाद के पिता बताते हैं कि वे तो विवेक को हमेशा से इंजीनियर बनाना चाहते थे, लेकिन उसे तो हौकी प्लेयर ही बनना था.
विवेक की मां कमला देवी बताती हैं कि बेटे की पिटाई नहीं हो, इसलिए कई बार उस के पिता से झूठ बोलना पड़ा. वह घर नहीं आता तो वे कह देतीं कि वह सब्जी लेने गया है, फिर चुपके से बहन पूजा दूसरे दरवाजे से घर में बुला लेती.
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भाई विद्यासागर के मुताबिक, जब दोस्तों ने कहा कि विवेक टैलेंटेड है और खूब आगे जाएगा, तो उन्होंने अपने पापा को हौकी खेलने के लिए मनाया.
गांव की मिट्टी में पलाबढ़ा नौजवान विवेक सागर प्रसाद आज हीरो बन कर उभरा है. विवेक सागर प्रसाद की लगन, मेहनत और जुनून ने यह साबित कर दिया है कि हौसले बुलंद हों तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है.