लेखक- अशोक गौतम
होरी पंचम के खेत अब के फिर ज्यों बाढ़ की भेंट चढ़े तो उस ने तनिक दिमाग लगा कर तय किया कि क्यों न इन तालाब बने खेतों में मछलीपालन कर इनकम बढा़ई जाए, आपदा को अवसर में ही नहीं, सुनहरे अवसर में बदला जाए. इस का फायदा यह भी रहेगा कि वह सरकार के साथ भी चलेगा और इनकम भी हो जाएगी. मतलब, एक पंथ दो लाभ.
यह सोच कर होरी पंचम मछली बाबू के दफ्तर जा पहुंचा. उसे अपने औफिस में आया देख कर मछलीखालन विभाग माफ कीजिएगा मछलीपालन विभाग के हैड ने उस से पूछा, “कौन? मत्स्य कन्या?”
“नहीं साहब, होरी पंचम. गांव लमही, जिला कोई भी रख लो.”
“तो मछली बाबू को क्यों डिस्टर्ब किया भरी दोपहर में? मछली बाबू से क्या चाहते हो?”
“साहब, गाय पाल कर गोबर तो बढ़ा पर इनकम न बढ़ी, सो अब मछली पाल कर इनकम बढ़ाना चाहता हूं.”
“गुड… वैरी गुड. आदमी को समयसमय पर धंधा और सरकार बदलते रहना चाहिए. इस से धंधे और लीडरों में गतिशीलता बनी रहती है… तो क्या हुक्म है?”
“साहब, वैसे भी बाढ़ ने खेतों का तालाब बना दिया है, तो सोच रहा हूं कि जब तक खेतों का पानी उतरे, क्यों न तब तक खेतों में मछली की खेती ही कर ली जाए. मछलियों से इनकम के लिए क्या करना होगा साहब?”
“करना क्या… हम से मछलियों का बीज ले जाओ और जब तक बाढ़ जाए उस से पहले ही जन से जनप्रतिनिधि हुओं की तरह हाथ पर हाथ धरे सौ गुना कमाओ, वह भी लेटेबैठे.”
“पर मछली का बीज तो असली ही होगा न मछली साहब?” होरी पंचम ने मछली बाबू के आगे सवाल खड़ा किया तो मछली बाबू यों उछलते हुए बोले ज्यों पानी से बाहर मछली निकाले जाने पर उछलती है, “क्या मतलब है तुम्हारा? सरकार पर तो आएदिन सवाल खड़े करते ही रहते हो, अब सरकारी बीज पर भी सवाल खड़ा करते हो?”
“नहीं साहब… माफ करना… मेरा मतलब वह नहीं था जो आपजी सोच रहे हो, पर पिछली दफा भी मैं आम के पौधे ले गया था सरकार की नर्सरी से, बड़े हुए तो बबूल निकले. लोन पर गाय ले गया था सरकार के फार्म से. सोचा था कि देश में दूध की नदियां बहा दूंगा, पर घर जाते ही वह गाय सांड़ निकली. बस, इसीलिए जरा तसदीक करना चाहता था कि…” होरी पंचम ने मछली साहब के आगे हाथ जोड़ते हुए सच कहा तो मछली साहब बोले, “देखो, ये ऐसीवैसी मछलियां नहीं हैं, बल्कि हजार सरकारी टैस्टों से गुजरी हैं. ये साधारण किस्म की नहीं, असाधारण ब्रीड की मछलियां हैं होरी पंचम. जो बाढ़ का पानी उतरने से पहले ही मछली का हर बच्चा 30-30 किलो का न हो जाए तो कहना…”
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होरी पंचम ने मछली बाबू से 10 किलो मछली का बीज उधार के पैसों से लिया और घर जा कर खेत बने तालाबों में डाल दिया. पलक्षण मछलियों के बच्चे बढ़ने लगे. होरी पंचम उन के चारे के लिए साहूकार से उधार पर उधार लेने लगा कि ज्यों ही मछलियों की फसल तैयार होगी, वह साहूकार की पाईपाई चुका देगा.
पर हफ्ते बाद ही होरी पंचम ने देखा कि मछलियों के बच्चों की शक्ल मगरमच्छ के बच्चों में बदलने लगी है, तो उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ. पर फिर उस ने सोचा, ‘हो सकता है कि खास किस्म की मछलियां हों…’ पर फिर उस ने नोट किया कि जब वह उन्हें चारा देने जाता है तो वे उसे खाने को दौड़ पड़ती हैं सरकारी मच्छों की तरह.
आखिरकार होरी पंचम ने जब धनिया पंचम को यह बात बताई तो वह अपना सिर पीटतीपीटती खेत बने तालाब के पास आई. उस ने देखा तो उस के भी होश उड़ गए. मछलियों के बच्चे वाकई मगरमच्छ के बच्चों की शक्ल ले रहे थे.
यह देख कर होरी पंचम जल्दीजल्दी में धनिया के जूते पहने दौड़ादौड़ा फिर मछली बाबू के औफिस गया और जाते ही मछली बाबू के पैर पड़ फरियाद की. मछली बाबू उस समय कुरसी पर मच्छ की तरह पसरे थे.
होरी पंचम बोला, “मछली बाबू… मछली बाबू…”
“अब क्या हो गया? फसल तैयार हो गई क्या? मछली बाबू को नई फसल का पहला कटान चढ़ाने आए हो? और इनकम बढ़ाने का बीज चाहिए क्या?”
“नहीं मछली बाबू साहब, जो ले गया था अभी तो वही नहीं संभाला जा रहा,” कहतेकहते होरी पंचम रोने सा लगा.
“क्या मतलब है तुम्हारा?” मछली महकमे की कुरसी पर पसरे मछली बाबू मगरमच्छ से मगरमच्छियाए.
“मछली बाबू, जो असली मछलियों का बीज आप से इनकम बढ़ाने के चक्कर में ले गया था, वह बीज तो मछलियों से मगरमच्छ हुआ जा रहा है.”
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“तो क्या हो गया… म से मछली तो म से मगरमच्छ. हैं तो दोनों की सिंह राशि वाली ही न. शुक्र करो, जो दोनों की अलगअलग राशि न निकली. ऊपर से दोनों जल में रहने वाले. जो बीज आकाश में रहने वाले का और देह जमीन पर चलने वाले की निकलती तो बता क्या होता?
“बड़े लकी हो यार होरी पंचम, वरना यहां तो कई बार मछली बाबू से किसान ले मछलियों का बीज जाता है और बाद में वह बीज निकलता दरियाई घोड़ों का है.”
“तो साहब, अब…” होरी ने धीरे से पूछा.
पर मछली बाबू चुप रहा, कुरसी पर मगरमच्छ सा पसरा हुआ.