भोजपुरी फिल्मों ने बहुत सारे नौजवानों को ऐक्टिंग में कैरियर बनाने का मौका दिया है. परेशानी वाली बात यह है कि इन फिल्मों पर सैक्सी और फूहड़ होने का ठप्पा लगा दिया जाता है, जिस से भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को वह मुकाम नहीं मिल सका, जो हिंदी फिल्मों को मिला है.
हिंदी फिल्मों के मशहूर डायरैक्टर फरहान अख्तर, विधु विनोद चोपड़ा, राजकुमार कोहली, संजय खान और गोल्डी बहल के साथ असिस्टैंट डायरैक्टर के तौर पर काम कर चुके सुजीत पुरी को लगा कि उन को भोजपुरी फिल्मों में भी काम करना चाहिए. उन्होंने ‘निरहुआ रिकशावाला’, ‘बेटवा बाहुबली’, ‘मिस्टर तांगावाला’ जैसी सुपरहिट फिल्में बनाईं.
पेश हैं, भोजपुरी फिल्मों को ले कर सुजीत पुरी के साथ की गई बातचीत के खास अंश:
आप का डायरैक्टर से हीरो बनने का सफर कैसे पूरा हुआ?
मैं ने हिंदी फिल्मों में बतौर असिस्टैंट डायरैक्टर शुरुआत की. मुझे वहां काम सीखने का मौका मिला. मैं खुद भोजपुरी बोलने वाला था, तो मैं ने हिंदी के साथ भोजपुरी फिल्मों को बनाया, जिन को दर्शकों ने खूब पसंद किया.
जब मैं ने फिल्म ‘तेरीमेरी आशिकी’ की कहानी सुनी, तो मुझे लगा कि इस फिल्म में मुझे ही बतौर ऐक्टर काम करना चाहिए. इसलिए मैं ने हीरो के रूप में काम करने का फैसला किया.
ऐसा माना जाता है कि भोजपुरी फिल्मों में हीरोइन को बदन दिखाने के लिए रखा जाता है. सैक्सी सीन को ले कर इन फिल्मों की बुराई होती है. इस बारे में आप का क्या कहना है?
ऐसा बिलकुल नहीं है. मेरी फिल्म ‘तेरीमेरी आशिकी’ हो या इस से पहले बनाई फिल्में, सभी में कहानी को प्राथमिकता दी गई. हीरोइन कोई भी रही हो, उस का बड़ा असरदार रोल रहा. फिल्म ‘तेरीमेरी आशिकी’ के बाद इस की हीरोइन तनुश्री को कई दूसरी फिल्मों में काम मिलने लगा.
भोजपुरी फिल्मों पर सैक्स परोसने जैसे आरोप बेकार की बातें हैं. इस से ज्यादा बोल्ड और सैक्सी सीन तो दूसरी भाषाओं की फिल्मों में होते हैं. मेरा तो यही मानना है कि सैक्सी सीन डालने से फिल्में नहीं चलतीं.
आप ने राजनीति में भी दखल दिया है. आप इतने काम एकसाथ कैसे कर लेते हैं?
मेरे मातापिता का मेरे ऊपर बहुत असर रहा है. मैं हमेशा से समाजसेवा करना चाहता था. मैं ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कहने पर मांझी छपरा से विधानसभा का चुनाव लड़ा था.
जब अन्ना हजारे का आंदोलन शुरू हुआ, तो मैं उन के साथ अनशन पर बैठा था. वहां मेरी मुलाकात स्मृति ईरानी से हुई. वहां से मुझे भारतीय जनता पार्टी में आने का मौका मिला. अब मैं महराजगंज लोकसभा सीट से साल 2019 के चुनाव की तैयारी कर रहा हूं.
मैं राजनीति में समाजसेवा के लिए आया हूं. जब तक ईमानदारी से कर पाऊंगा मैं समाज की सेवा करूंगा, नहीं तो अपने फिल्मी कैरियर पर ही ध्यान दूंगा.
आप बिहार में हुई शराबबंदी के फैसले को कैसे देखते हैं?
मैं शराबबंदी के पक्ष में हूं. यह एक अच्छा कदम है. शराब बहुत सी बुराइयों की जड़ है. देखने वाली बात यह है कि इस को सरकार कैसे लागू करेगी.
बिहार का बहुत सारा इलाका ऐसा है, जहां पर कच्ची शराब बनती है. अगर उस को बनने से नहीं रोका गया, तो लोग कच्ची, जहरीली शराब का शिकार हो सकते हैं.
दूसरी परेशानी की बात यह है कि यहां शराब की तस्करी ज्यादा होगी. बिहार बौर्डर से लगे उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के रास्ते शराब की तस्करी यहां हो सकती है.
बिहार में शराबबंदी का फैसला करना आसान था, पर इन चुनौतियों से निबटना जरा मुश्किल होगा.