यह हास्य व्यंग प्रधान वेब सीरीज लोगों के घरों के अंदर काम करने वाली बाई की कहानी है,जो सोशल मीडिया पर स्टार बन जाती है.इसमें स्मिता तांबे ने शीला का मुख्य किरदार निभाया है. स्मिता तांबे का मानना है कि मराठी भाषीयों को अंडरस्टीमेट नहीं किया जाना चाहिए.
स्मिता तांबे ने 2009 में मराठी भाषा की फिल्म ‘‘जोगवा’’में अभिनय किया था और इसके लिए उन्हे अर्वाड मिल गया था.उसके बाद से स्मिता तांबे ने ‘देवूल’, ‘तुकाराम’,‘72 माइल्सः एक प्रवास’,‘महागुरू’, ‘बायोस्कोप’, ‘गणवेश’जैसी कुछ सफल मराठी भाषी फिल्मों,अंतरराष्ट्रिय स्तर पर प्रशंसित अंग्रेजी भाषा की फिल्म ‘‘उमरीका’’के अलावा ‘‘सिंघम रिटर्न’’,‘‘अजी’’, ‘‘रूख’’, ‘‘नूर’’ व ‘‘डबल गेम’’ जैसी हिंदी फिल्में कर चुकी हैं.इन दिनों वह एक मराठी भाषा की फिल्म ‘‘सावत’का निर्माण व उसमें अभिनय कर रही हैं.
स्मिता तांबे को मराठी फिल्मों में स्टार माना जाता है.स्मिता तांबे ने मराठी फिल्मों में बतौर हीरोईन कई स्ट्रांग किरदार निभाए हैं. मगर हिंदी फिल्मों में उन्हे हमेशा छोटे किरदारों से ही संतुष्ट होना पड़ा है.सिर्फ स्मिता तांबे ही नहीं लगभग हर मराठी भाषी कलाकार के साथ ऐसा होता आया है.
हाल ही में ‘‘माई नेम इज शीला’’के प्रमोशन के दौरान जब स्मिता तांबे से हमारी एक्सक्लूसिब बातचीत हुई,तो हमने उनसे हिंदी फिल्मों में महाराष्ट्यिन कलाकारों के संग भेदभाव को लेकर सवाल किया,जिसका उन्होने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया.
प्रस्तुत है स्मिता तांबे के संग हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश...
सवाल: आपको पहली बार कब लगा कि अभिनय के क्षेत्र में आगे बढ़ा जाना चाहिए?
-यूं तो में कौलेज दिनो से ही नाटकों में अभिनय करती आयी हूं. मैंने कईमराठी के टीवी सीरियल भी किए. फिर मैंने 2009 में मराठी फिल्म‘‘जोगवा’’ की, जिसके लिए पुरस्कार भी मिला.इस फिल्म के सेट पर मुझे अहसास हुआ कि यह ऐसा माध्यम है,जो सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं,बल्कि एक साधना है.इस फिल्म में अभिनय करते हुए अभिनय तथा फिल्म माध्यम को देखने का मेरा नजरिया ही बदल गया.अब तक मैं बीस से अधिक फिल्में कर चुकी हूं. इन दिनों तीन मराठी फिल्में,‘पंगा’जैसी हिंदी फिल्म के अलावा हिंदी की तीन वेब सीरीज कर रही हूं.
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