महज 21 वर्ष की उम्र में रीवा राठौड़ ने जो मुकाम हासिल किया उसे हासिल करने में लोगों की पूरी उम्र बीत जाती है. रीवा स्वयं अपने गाने लिखती हैं, स्वयं उन्हें संगीत से संवारती हैं और स्वयं गाती हैं. रीवा राठौड़ को संगीत विरासत में मिला है. उन के पिता मशहूर तबला वादक, संगीतकार व गायक तथा गत वर्ष अपने गजल अलबम ‘जिक्र तेरा’ के लिए ‘जीमा’ अवार्ड हासिल कर चुके रूप कुमार राठौड़ हैं, जबकि मां सोनाली राठौड़ शास्त्रीय गायिका हैं.
आप ने किस उम्र में संगीत सीखना शुरू किया था?
बचपन में संगीत में रुचि थी. जब मैं 6 साल की थी तब मेरे पिता ने पियानो ला कर दिया. मैं ने शांति शेंडल से पियानो बजाना सीखना शुरू किया. पियानो से शुरुआत करने की वजह से मुझे कौर्ड, हारमोनी, रिदम आदि की समझ आई. इस के बाद दक्षिण का संगीत शंकर महादेवन से सीखा. मैं तो आज भी कर्नाटक संगीत सीख रही हूं. उस के बाद मैं ने अपने पिता के मित्र व संगीतकार पं. राजन साजन से हिंदुस्तानी क्लासिकल संगीत सीखना शुरू किया. इस तरह मेरे संगीत में बनारस घराना भी जुड़ा. बनारस घराने के संगीत की मुझे अच्छी समझ हो गई है. मेरे मातापिता ने मुझे संगीत के क्षेत्र में हर तरह से परिपक्व करने के लिए हर संभव ट्रेनिंग दिलाई.
आप ने विविध प्रकार के संगीत की जो ट्रेनिंग ली है, उस से आप के अंदर क्या बदलाव आया?
आप मेरे गाने सुन कर दिग्भ्रमित होते रहेंगे. दक्षिण के गाने सुन कर आप को लगेगा कि मैं दक्षिण भारतीय हूं. अंगरेजी भाषा के गाने सुन कर आप को लगेगा कि मेरी परवरिश विदेश में हुई है. हिंदी गाने सुन कर लगेगा कि मैं वाराणसी में ज्यादा रही हूं. मैं पहली लड़की हूं जिस ने दक्षिण भारतीय ‘कचरी’ की है. मैं ने मुंबई के मैसूर ऐसोसिएशन हाल में 2 घंटे तक दक्षिण भारतीय गीत गाए हैं. जो 2 घंटे की बैठक होती है उसे कचरी कहते हैं. पर मैं बचपन से ही अंतर्राष्ट्रीय संगीत जगत में अपनी पहचान बनाना चाहती थी.
आप की शिक्षा अंगरेजी माध्यम से हुई है. इसी के चलते आप अंगरेजी भाषा में गाने लिखती हैं और इंटरनैशनल संगीत में नाम कमाना चाहती हैं?
मेरे सपने को आप इस तरह से न देखें. मैं तो बचपन से ही अंतर्राष्ट्रीय संगीत जगत में अपना नाम बनाना चाहती थी. मेरी शिक्षा अंगरेजी माध्यम से हुई है, मगर मैं पढ़ाई में बहुत कमजोर थी. मेरी रुचि हमेशा संगीत में रही है. हकीकत में मैं जिस तरह के गाने सुनना पसंद करती हूं, मैं जिस तरह के गाने संगीतबद्ध करती हूं, जिस तरह के गाने लिखती हूं, उस तरह के गाने अंतर्राष्ट्रीय संगीत बाजार के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं. मुझे अंतर्राष्ट्रीय गायकों में शीन, नोरा, जोंस, यन्नी व ब्रिटनी को सुनना बहुत पसंद है. इन गायकों ने मुझे बचपन से बहुत प्रभावित किया है. इस वजह से भी इंटरनैशनल संगीत में मेरी ज्यादा रुचि है.
पर आप के पिता बता रहे थे कि आप किशोर कुमार की प्रशंसक रही हैं?
आप को जान कर आश्चर्य होगा, पर मेरी जिंदगी का सब से बड़ा सच यह है कि 18 वर्ष की उम्र तक मैं किशोर कुमार की बहुत बड़ी प्रशंसक रही हूं. मेरे पास उन के गाए कम से कम 5 हजार गाने हैं. किशोर कुमार के हजारों गाने मुझे याद हैं. मेरे कमरे में 18 वर्ष की उम्र तक सिर्फ किशोर कुमार के ही फोटो व पोस्टर लगे होते थे. जब मेरा 18वां जन्मदिन मनाया गया, तो मैं ने पूरे घर में गुब्बारे नहीं, बल्कि किशोर कुमार के बड़ेबड़े कटआउट लगाए थे.
जब में 7वीं कक्षा में थी, तो बीमारी की वजह से कुछ दिनों तक स्कूल नहीं जा पाई. जब स्वस्थ हुई, तो रविवार के दिन मैं ने अपनी दोस्त को फोन कर स्कूल में सोमवार को क्या होने वाला है, इस की जानकारी मांगी. उस ने बताया कि सोमवार को हिंदी की परीक्षा है. मैं ने उस से चैप्टर पूछ कर अपने पिता के साथ बैठ कर तैयारी कर ली. जब स्कूल गई तो 5 सवाल तो उन्हीं चैप्टर्स में से थे. मगर 10 सवाल दूसरे चैप्टरों से आए थे. जिन सवालों के जवाब मुझे नहीं आ रहे थे, उन की जगह मैं ने किशोर कुमार के गाने लिख दिए जैसे ‘पलपल दिल के पास’, ‘हम बेवफा क्यों हुए…’ आदि जितने गाने याद आए, सब लिख दिए. फिर घर आ कर मैं ने रोते हुए पिता को सब कुछ बता दिया. पिताजी ने टीचर को फोन कर के बात की. टीचर ने पापा से कहा कि उस ने गाने लिखने के बजाय मुझे सुना दिए होते, तो भी मैं उसे पास कर देती. मेरी स्कूल की टीचर व प्रिंसिपल ने मुझे बहुत सपोर्ट किया.
18 साल की उम्र के बाद ऐसा क्या हो गया कि आप का किशोर कुमार से मोहभंग हो गया?
मैं ने पहले भी कहा कि बचपन से ही मुझे इंटरनैशनल संगीत में जाना था. विदेशों में फिल्म कलाकारों की बनिस्बत गायकों की अहमियत बहुत ज्यादा है. वहां एक गायक का एक गाना हिट होते ही उस की पूरी जिंदगी बन जाती है. उसे बारबार अपनेआप को साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती. भारत में तो हर बार खुद को साबित करना पड़ता है. भारत में संघर्ष कभी खत्म नहीं होता.
ऐसा फर्क क्यों है?
इस की सब से बड़ी वजह यह है कि यहां सब कुछ बौलीवुड है. यहां का गायक बौलीवुड फिल्मों में गाने और इस बात पर ध्यान देता है कि उस की आवाज किस कलाकार पर फिट बैठेगी? यहां संगीत के क्षेत्र में बैंड कल्चर का अभाव है. यहां सिर्फ संगीत से जुड़ें और फिल्मों से न जुड़ें, ऐसा नहीं है. यहां जो लोग खुद गाना लिख कर उसे संगीतबद्ध कर अपनी ही आवाज में रिकौर्ड करते हैं, उन की हमारे देश में कद्र नहीं होती. यहां गायक की पहचान इस बात से होती है कि उस ने किस सफल फिल्म में गाना गाया या किस फिल्म का उस का गाना हिट हुआ, जबकि विदेशी फिल्मों में गाने नहीं होते हैं. वहां के संगीतकार या गायक स्वतंत्र रूप से गाना गाते हैं. वहां के गायक स्टार कलाकारों से काफी बड़े हैं. वहां संगीतकार व संगीत से जुड़ी हस्तियों का रुतबा अभिनेता के मुकाबले कई गुना बड़ा है. वहां के श्रोता म्यूजिकल कंसर्ट में बहुत ध्यान से संगीत को सुनते हैं. उन के लिए संगीत, संगीत की धुन, आवाज बहुत माने रखती है. जबकि हमारे यहां संगीत के शो में गायक गाता रहता है और उस के सामने पहली कतार में बैठा इनसान मोबाइल पर बातें करता रहता है. यह देख कर एक गायक को अंदर से बहुत अजीब सा लगता है. यहां संगीत को बौलीवुड से इतर कुछ समझा ही नहीं जाता.
अंतर्राष्ट्रीय संगीत जगत में पहला कदम कब रखा?
मुझे पहली बार 2011 में पुणे में अंतर्राष्ट्रीय गायक ब्रायन एडम के म्यूजिकल शो की शुरुआत करने का अवसर मिला था. इस शो में मैं ने अपना लिखा, अपने द्वारा संगीतबद्ध गीत गा कर श्रोताओं का दिल जीत लिया था. उस के बाद स्पैनिश फिल्म निर्देशक मारिया रिपोल की स्पैनिश व अंगरेजी भाषा की नवंबर 2014 में पूरे विश्व में प्रदर्शित फिल्म ‘ट्रेसेस औफ सैंडलवुड’ में संगीत देने के साथ ही ‘तनदाना’ नृत्यप्रधान गीत गाने का अवसर मिला. इस फिल्म में स्पैनिश कलाकार ऐना क्लोटेट के साथ भारतीय अभिनेत्री नंदिता दास ने अभिनय किया है. इस फिल्म का मेरा यह गाना काफी लोकप्रिय है. यह गाना इतना लोकप्रिय है कि वहां की छोटी लड़कियां नृत्य सीखने के लिए इसी गाने का उपयोग करती हैं. कई लड़कियों ने तो इस के वीडियो भी यूट्यूब पर डाले हैं. स्पैनिश फिल्म में गीत गाने व संगीत देने के बाद मेरा उत्साह बढ़ गया. मेरे दिमाग में यह बात घर कर गई कि अब मुझे अंतर्राष्ट्रीय संगीत जगत में कुछ कर गुजरने से कोई नहीं रोक सकता. फिर मैं ने विश्व प्रसिद्ध ‘बुद्धा बार लाउंज’ के लिए अलबम बनाया, जो दिसंबर माह से हर जगह बज रहा है.
पर बुद्धा लाउंज बार के लिए अलबम करने का मौका कैसे मिला?
मैं ने गणेश के एक संस्कृत के श्लोक को आधुनिक पश्चिमी संगीत के फ्यूजन के साथ नया रंग देते हुए अपनी ही आवाज में उस का एक वीडियो बना कर यूट्यूब पर डाल दिया, जिस की वजह से बुद्धा बार लाउंज के मालिकों से मेरा परिचय हुआ. उन के कहने पर मैं ने गणेश के श्लोकों पर ही ‘इन राउट गणेशा’ नामक अलबम तैयार कर के दिया. पिछले 20 वर्षों से यह बुद्धा बार लाउंज हर साल विश्व के सर्वश्रेष्ठ संगीत को चुन कर एक अलबम ले कर आता है. फिर यह अलबम का गाना बुद्धा बार लाउंज की हर चेन बार में बजता है. यह गाना गणपति के संस्कृत के श्लोक पर है, जिसे मैं ने थोड़ा मौडर्न टच दे कर गया है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह मेरी बहुत बड़ी उपलब्धि है. मैं पहली भारतीय संगीतकार हूं जिस के संगीतबद्ध व स्वरबद्ध गीत को बुद्धा बार लाउंज ने पिछले 20 वर्षों में पहली बार चुना.
अपनी बहुमुखी प्रतिभा पर रोशनी डालें?
मुझे घुड़सवारी का भी शुरू से शौक था. इसीलिए मैं ने 10 साल की उम्र में घुड़सवारी सीखना शुरू किया. मैं रोज सुबह अपने पिता के साथ मुंबई के रेसकोर्स पहुंच कर घुड़सवारी सीखती थी. मेरा अपना एक घोड़ा था. मैं बाद में राष्ट्रीय स्तर की घुड़सवार बनी. कई अवार्ड मिले. मुझे पेंटिंग का भी बहुत शौक है. मैं अकसर अपने पिता के साथ गुलजारजी के घर जाती थी. वे मुझे 5-6 सादे कागज दे दिया करते थे और फिर वे और मेरे पिता काम में मगन हो जाते थे. मैं उन के कमरे में टंगी तसवीरों को कागज पर उतारती थी. कई बार गुलजार साहब ने मेरे बनाए चित्रों पर सर्वश्रेष्ठ लिख कर औटोग्राफ दिए. यह सब मेरी शिक्षा का ही हिस्सा रहा है.
आप ने पेंटिंग करनी छोड़ दी?
नहीं. मैं आज भी कम से कम 4 पेंटिंग्स जरूर बनाती हूं. पर ज्यादातर वाइल्ड लाइफ पर ही बनाती हूं. घोड़े, हाथी, शेर आदि की पेंटिंग्स बहुत बनाई हैं.
आप ने लिखना कहां से सीखा?
जब मैं किसी बात को महसूस करती हूं तो उस पर सोचना शुरू करती हूं. फिर उसे शब्दों में बयां करती हूं. मैं ने सब से पहले ‘आशिया’ नामक गीत लिखा था. मैं ने जो गाने लिखे हैं, उन्हें स्टेज शो में सुनाती रहती हूं.
आप पर आप के मातापिता का किस तरह का प्रभाव है?
मेरे मातापिता ने बचपन से मेरी पूरी मदद की. हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया. उन्होंने मुझ से यह नहीं कहा कि इस तरह का संगीत मत सुनो. संगीत को ले कर मेरे नजरिए को मेरे मातापिता ने हमेशा सम्मान दिया.
आप के लिए प्यार क्या है?
प्यार किसी से भी हो सकता है. प्रकृति से हो सकता है, मातापिता से हो सकता है. जानवरों से हो सकता है. यह तो इनसानी भावना है.
किसी नए अलबम की तैयारी हो रही है?
जी, हां. मैं एक 8 गानों के अलबम पर काम कर रही हूं. इस अलबम के सभी गीत मैं ने लिखे हैं. इन्हें संगीतबद्ध भी मैं ने ही किया है. इन्हें मैं ने अपनी आवाज में रिकौर्ड किया है. यह ऐसा अलबम होगा, जिस पर लोग फिल्म बनाना चाहेंगे. इस के अलावा संगीतकार रंजीत बारौट के संग एक ‘इंडीपौप’ अलबम पर काम कर रही हूं.
अब तक आप के बौलीवुड फिल्मों में गाने आ जाने चाहिए थे?
मैंने अपनेआप को रोक रखा था. मैं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी शुरुआत करना चाहती थी.