बिहार के पटना स्थित बिहटा में पिछले सप्ताह एक तेंदुआ बेखौफ घूमता हुआ नजर आया तो लोगों ने इस की सूचना प्रशासन को दी.

लौकडाउन के बीच दिल्ली से सटे नोएडा के जीआईपी मौल के पास नील गाय तो गुरूग्राम मार्केट में मोरों को नाचते तो वहीं हरिद्वार में हिरण को सैर करते देखा गया.

दिल्ली के एक गांव मुखमेलपुर से यमुना नदी पास ही बहती है. गांव के बाहर दूर तक पेङपौधे व जंगल हैं जहां नील गाय बराबर दिखती है. आजकल ये नील गाय गांव में भी आ जा रही हैं. गांव के रहने वाले किसान व समाजसेवी अरविंद राणा के घर पिछले कई दिनों से मोर आ रहे हैं. उन्होंने छिप कर वीडियो भी बनाया है. अरविंद राणा कहते हैं,”देश में जारी लौकडाउन के बीच इधर कई दिनों से मेरे घर के छत पर मोर आ रहे हैं. मोरनी को रिझाने के लिए मोर जब पंख फैला कर नाचते हैं तो देख कर मन भावविभोर हो जाता है.

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“ये मोर काफी पहले आते थे मगर कुछ दिनों से इन का आना बंद हो गया था. मगर अब ये बराबर मेरे ही नहीं गांव के कई घरों की छतों पर आ रहे हैं. नील गाएं कभीकभी आती थीं मगर इधर कुछ दिनों से बराबर ही आ जा रही हैं.”

चिड़ियों का चहचहाना फिर से शुरू

पिछले 23 मार्च के बाद देश में जारी लौकडाउन के बीच आज जहां प्रदूषण में भारी गिरावट आई है, हवा शुद्ध बह रही है, नदियों का पानी साफ दिख रहा है, वहीं चिड़ियों का चहचहाना भी फिर से शुरू हो गया है. लेकिन इस बीच हाथियों, तेंदुओं, हिरण और यहां तक कि जंगली बिलाव देश की सङकों पर खुलेआम घूमते हुए दिख रहे हैं.

पर्यावरणविद और विशेषज्ञ इस खबर को ले कर चिंतित हैं और कहते हैं कि शहरी केंद्रों में जंगली जानवरों का आना सही नहीं है. इन्हें इंसानों द्वारा या तो भगा दिया जाएगा या फिर मार दिया जाएगा.

पर्यावरण मित्र प्रवीण मिश्रा बताते हैं,”देखिए, इंसान की तरह ही जानवरों में भी अपनी सुरक्षा को ले कर एक भय होता है. ये जानवर पहले एक हैबिटेड बनाते हैं और एक जोन ढूंढ़ते हैं. लौकडाउन से पहले एक डिस्टरवैंस बनी हुई थी. अब इन्हें साइलैंस यानी शांत वातावरण मिल रहा है तो भोजन की तलाश में ये बाहर निकल कर शहरी केंद्रों पर आ रहे हैं. यहां अब इन्हें न तो गाङियां मिल रही हैं न कोई शोरगुल और न ही चकाचौंध करती गाड़ियों की लाइटें. पर यह भी तय है कि ये चलायमान प्राणी होते हैं. साइबेरिया से हजारों मील दूर सफर कर साइबेरियन पक्षी यहां तभी तो आते हैं. हां, कुछ जानवर नैटिव होते हैं और वे वहीं रहना चाहते हैं जहां उन का आशियाना है.

“लौकडाउन में अचानक से आने का यह मामला बिलकुल नया है और यह तब हुआ है जब इन्हें लग रहा है कि यह सेफ जोन है और यहां उन्हें कोई खतरा नहीं है. दरअसल, जानवरों का स्वभाव इंसानों से बिलकुल अलग होता है और इंसानों पर हमला भी ये तभी करते हैं जब उन में असुरक्षा की भावना न घर कर जाए. इंसानों को देख कर पहले ये भागते हैं और जब इन्हें लगता है कि ये भाग नहीं सकते तभी वे हमला करते हैं. जहरीला सांप भी किसी को तब तक नहीं डंसता जब तक उसे किसी तरह का नुकसान न पहुंचाया जाए या फिर उन्हें असुरक्षा का आभास हो.”

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भूख से बेहाल हैं जानवर

देश में लौकडाउन के बीच शहरी केंद्रों की ओर जानवरों के आने से पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने एक मीडिया से बात करते हुए कहा है कि जंगलों में इंसानी घुसपैठ और पेङपौधों की अंधाधुंध कटाई से उन के सामने भुखमरी की समस्या खड़ी हो गई है. इस वजह से वे भोजन की तलाश में शहरों की ओर आने लगे हैं. पहले के समय इंसान और जानवर एकदूसरे से तालमेल बैठा कर रखते थे. मगर आज की सरकारें जंगलों को केवल कारोबार के मकसद से इस्तेमाल कर रही हैं. भूख से बेहाल ये जानवर इंसानों की बस्ती में आ रहे हैं, जो चिंता का विषय है.”

इंसानों के लिए चेतावनी तो नहीं

पर्यावरण मित्र प्रवीण मिश्रा कहते हैं कि कोरोना वायरस मनुष्य जीवन के लिए एक चेतावनी है कि वे प्रकृति से छेड़छाड़ करना छोंङें और प्रकृति के बीच रहने की कोशिश करें. इस की शुरूआत वे घरों से कर सकते हैं और अपने बच्चों को शुरू से ही जागरूक बना सकते हैं. आज के अभिभावक बच्चों को प्रकृति के गुणों के बारे में बताएं ताकि आने वाली पीढ़ियों को बेहतर जीवन दिया जा सके.

कहीं कोरोना वायरस भी इसी छेङछाङ का परिणाम तो नहीं

पर कोरोना वायरस का प्रकोप प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम है इस पर बहस जारी है, शोध किए जा रहे हैं और इसलिए अभी यह कहना कि यह वायरस प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम है, कहना जल्दबाजी होगी. मगर इतना तो तय है कि इंसानों ने खुद को प्रकृति से दूर कर लिया है, खानपान की आदतों को बदतर बना लिया है. इंसान आज मरे हुए जानवरों की लाशों को नोचनोच कर स्वाद के लिए खा रहे हैं तो जाहिर है कुदरत का संतुलन बिगङेगा ही.

एक खबर के मुताबिक, गौरैआ अब कम दिख रही है, कौओं की संख्या में कमी आई है, गिद्ध अब न के बराबर दिख रहे हैं तो जाहिर है इंसानों ने खुद के सुख की खातिर पशुपक्षियों को अपने से दूर कर दिया या उन्हें मार कर खा रहे हैं.

बेजबानों की भी सुनें

झारखंड के दलमा वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी में लगातार हाथियों की संख्या में कमी आ रही है. ऐसा पेङों की अंधाधुंध कटाई से हो रहा है.

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हाथी पलायन कर बंगाल और उड़ीसा के जंगलों की तरफ जा रहे हैं. साल 2017 में जहां दलमा में 96 हाथी थे, अब 47 रह गए हैं. सिर्फ हाथी ही नहीं मोरों, लंगूरों की संख्या में भी भारी कमी आई है.

मगर क्या अब इंसान बदलेगा? बेजबान जानवरों, पशुपक्षियों पर जुल्म बंद करेगा? जंगलों की कटाई नहीं होगी? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन का जवाब आज देना होगा. मगर यदि इंसानों ने अपनी आदतें नहीं बदलीं तो इस खमियाजा उन्हें ही भुगतना होगा. कोरोना वायरस भी इंसानी भूल का ही परिणाम है, इस में कोई संदेह नहीं.

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