सौजन्य- सत्यकथा
इस की वजह यह थी कि किचन में फर्श से करीब 3 फुट नीचे रईस की अंगुलियां नजर आ गई थीं. सचमुच दृश्य खौफनाक था. अंगुलियां बता रही थीं कि यहां किसी इंसान की लाश दफनाई गई है.
अंगुलियां दिखाई दीं तो खुदाई कर रहे मजदूर बड़ी ही सावधानीपूर्वक खुदाई करने लगे. थोड़ी ही देर में उस गड्ढे से 4 अलगअलग टुकड़ों में एक लाश बरामद हुई, जो उसी घर के 10 दिनों से गायब रईस शेख की थी.
11 घंटे की मेहनत करने के बाद पुलिस ने रईस की लाश किचन से बाहर निकाली. इस के बाद थानाप्रभारी ने लाश बरामद होने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर आ गए. सभी ने घटनास्थल का निरीक्षण कर थानाप्रभारी को जरूरी निर्देश दिए और वापस चले गए.
लाश के टुकड़ों को एक पौलीथिन में पैक कर के घटनास्थल की काररवाई पूरी की गई और उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.
शाहिदा से पूछताछ में रईस के इस हाल में पहुंचने की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—
रईस शेख उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा का रहने वाला था. करीब 9 साल पहले सन 2012 में उस की शादी शाहिदा से हुई थी. करीब 6 साल बाद उन के घर एक बेटी हुई. उस के बाद एक बेटा हुआ. 2 बच्चे होने के बाद उन का भरापूरा परिवार हो गया था, जिस से उन की खुशी और बढ़ गई थी.
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बच्चे होने से खर्च बढ़ गया था. यहां उन की इतनी आमदनी नहीं थी कि वे अपने बच्चों का भविष्य संवार सकते. इसलिए रईस ने कहीं बाहर जाने की बात की तो शाहिदा ने खुशीखुशी स्वीकृति दे दी. रईस ने मुंबई में रहने वाले अपने कुछ दोस्तों से बात की तो उन्होंने उसे मुंबई बुला लिया, जहां दहिसर में स्टेशन के पास एक कपड़े की दुकान में उसे सेल्समैन की नौकरी मिल गई.
नौकरी मिल गई तो रईस ने रहने के लिए दहिसर (पूर्व) स्थित खान कंपाउंड में एक मकान किराए पर ले लिया और गोंडा जा कर पत्नी और बच्चों को मुंबई ले आया. पत्नी और बच्चों के साथ जिंदगी की गाड़ी बढि़या चल रही थी.
दुकान से रईस को इतना वेतन मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल रहा था. उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हो रही थी.
रईस अपनी बीवी और बच्चों से बहुत प्यार करता था. उन्हीं के लिए वह घरपरिवार छोड़ कर इतनी दूर आया था. शाहिदा भी रईस को बहुत प्यार करती थी. पर मुंबई आने के कुछ दिनों बाद शाहिदा में बदलाव नजर आने लगा. इस की वजह यह थी कि अब वह किसी और से प्यार करने लगी थी.
पतिपत्नी के बीच कोई तीसरा आ गया था. वह कोई और नहीं, अनिकेत मिश्रा उर्फ अमित था. इस की वजह यह थी कि दोनों ही उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे.
एक दिन अमित सार्वजनिक नल पर पानी भर रहा था, तभी डिब्बे ले कर शाहिदा भी पानी के लिए पहुंची. उस ने गोद में बेटे को ले रखा था. बेटा उस समय जोरजोर से रो रहा था.
अब शाहिदा बेटे को संभाले या पानी के डिब्बे ले जाए. शाहिदा बहुत ही असमंजस में थी. बेटा उसे छोड़ ही नहीं रहा था. उसे परेशान देख कर अमित ने कहा, ‘‘भाभीजी आप बेटे को संभालिए, मैं आप के पानी के डिब्बे पहुंचाए देता हूं.’’
‘‘आप क्यों परेशान होंगे. रहने दीजिए, मैं बेटे को चुप करा कर उठा ले जाऊगी.’’ शाहिदा ने कहा.
‘‘क्यों, मैं पहुंचा दूंगा तो आप को बुरा लगेगा क्या? ऐसा तो नहीं कि आप मेरा छुआ पानी न पीना चाहती हों?’’ अमित ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. मैं नहीं चाहती कि आप मेरे लिए परेशान हों.’’
‘‘भाभीजी, आज आप परेशान हैं तो मैं आप के काम आ रहा हूं, कल मुझे कोई परेशानी होगी तो आप मेरे काम आ जाना. अच्छा आप चलें. मैं डिब्बे ले कर चल रहा हूं.’’ दोनों हाथों में एकएक डिब्बा उठाते हुए अमित ने कहा.
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अमित पानी के डिब्बे ले कर शाहिदा के घर पहुंचा तो औपचारिकता निभाते हुए उस ने कहा, ‘‘बैठिए, मैं चाय बनाने जा रही हूं. आप चाय पी कर जाइए.’’
‘‘फिर कभी पी लेंगे. आज रहने दीजिए.’’
‘‘आज क्यों नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं आप मेरे हाथ की चाय नहीं पीना चाहते हों?’’
‘‘अब तो पी कर ही जाऊंगा. पर थोड़ा जल्दी कीजिएगा. अभी घर के सारे काम करने हैं, नहाना है, खाना बनाना है.’’
‘‘आप अकेले ही रहते हैं क्या?’’ शाहिदा ने पूछा.
‘‘जी, मम्मीपापा गांव में रहते हैं. मैं यहां अकेला ही रहता हूं.’’
‘‘और वाइफ?’’
‘‘अभी शादी ही नहीं हुई है तो वाइफ कहां से आएगी.’’ हंसते हुए अमित ने कहा.
शाहिदा चाय बना कर लाई. दोनों बैठ कर चाय पीते हुए एकदूसरे के बारे में पूछते रहे. चाय खत्म कर के अमित जाने लगा तो शाहिदा ने कहा, ‘‘जब भी चाय पीने का मन हो, बिना संकोच आ जाना. इसे अपना ही घर समझना.’’
सिर हिलाते हुए अमित चला गया.
अमित अभी गबरू जवान था. स्मार्ट भी था. कोई भी लड़की उसे पसंद कर सकती थी. इस के बाद अमित जबतब शाहिदा के घर आनेजाने लगा. धीरेधीरे यह आनाजाना बढ़ता गया. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों एकदूसरे से खुलते गए और उन में हंसीमजाक भी होने लगा.
एक दिन हंसीहंसी में ही जब शाहिदा ने कहा कि इसे अपना ही घर समझना तो अमित ने मजाक करते हुए कहा, ‘‘घर को तो अपना समझ रहा हूं. पर आप को क्या समझूं?’’
अमित की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए शाहिदा ने कहा, ‘‘मुझे भी अपनी ही समझो. पर इस के लिए दम चाहिए, जो तुम में नहीं है.’’
‘‘दम तो बहुत है भाभी, पर थोड़ा संकोच हो रहा था. अब आज की बात से वह भी खत्म हो गया.’’ इतना कह कर अमित ने शाहिदा को बांहों में भर लिया.
अगले भाग में पढ़ें- शाहिदा और अमित क्याें घबरा गए