सौजन्य- मनोहर कहानियां
किडनैपिंग क्वीन अर्चना शर्मा
अनुराधा जुर्म की दुनिया की छोटी मछली थी, जिस का हल्ला मीडिया ने ज्यादा मचाया क्योंकि आमतौर पर औरतों के बहुत ज्यादा क्रूर होने की उम्मीद कोई नहीं करता. लेकिन वक्तवक्त पर महिलाएं जुर्म की दुनिया में आ कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती रही हैं. ऐसा ही एक नाम अर्चना शर्मा का है, जिसे किडनैपिंग क्वीन के खिताब से नवाज दिया गया.
अर्चना की कहानी एकदम फिल्मों सरीखी है. उज्जैन में एक मामूली पुलिस कांस्टेबल बालमुकुंद शर्मा के यहां जन्मी अर्चना भी अनुराधा की तरह पढ़ाईलिखाई में तेज थी, इसलिए सैंट्रल स्कूल के स्टाफ की चहेती भी थी.
4 भाईबहनों में सब से बड़ी अर्चना पेंटिंग की शौकीन थी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. रामलीला में सीता का रोल निभाना उसे बहुत भाता था. सभी लोगों को उम्मीद थी कि महत्त्वाकांक्षी और बहुमुखी प्रतिभा की धनी यह लड़की एक दिन नाम करेगी.
अर्चना ने नाम किया, लेकिन जुर्म की दुनिया में. जिसे जान कर हर कोई दांतों तले अंगुली दबा लेता है. एक दिन अचानक उस ने पढ़ाई छोड़ देने का ऐलान कर दिया, जिस से घर वाले हैरान रह गए, उन्होंने उसे समझाया लेकिन वह टस से मस नहीं हुई.
असल में वह पिता की तरह पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी, जो उस ने कर भी ली. लेकिन जल्द ही वह इस नौकरी से ऊब गई और नौकरी छोड़ भी दी, जिस से गुस्साए घर वालों ने उस से नाता तोड़ लिया.
पुलिस की छोटे ओहदे की नौकरी में मेहनत के मुकाबले पगार कम मिलती थी, जबकि अर्चना का सोचना था कि वह इस से ज्यादा डिजर्व करती है. कुछ कर गुजरने की चाह लिए वह उज्जैन से भोपाल आ गई और वहां एक छोटी नौकरी कर ली.
यहीं से उस के जुर्म की दुनिया में दाखिले के द्वार खुले. अब अर्चना घरेलू बंदिशों से आजाद थी. लिहाजा बेरोकटोक अपनी जिंदगी खुद जीने लगी और उसे एक छोटे नेता से प्यार हो गया. लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाया, क्योंकि इस नेता की मंशा केवल एक खूबसूरत लड़की के साथ टाइम पास करने की थी.
पहले ही प्यार में धोखा खाई अर्चना को समझ आ गया कि न तो छोटी नौकरी से उस के सपने पूरे होने वाले और न ही रोमांटिक ख्वावों से जिंदगी का मकसद पूरा होने वाला. लिहाजा वह भोपाल छोड़ कर मुंबई चली गई.
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लेकिन जिंदगी का मकसद क्या है, यह वह खुद भी तय नहीं कर पा रही थी. मुंबई में उस ने बाबा सहगल का आर्केस्ट्रा ग्रुप जौइन कर लिया और प्रोग्राम देने खाड़ी देशों
तक गई और जल्द ही ऐक्ट्रेस बनने के सपने देखने लगी.
लेकिन उसे यह भी समझ आ गया कि मुंबई में जम पाना कोई हंसीखेल नहीं है. इसी दौरान अर्चना को अहमदाबाद के एक कारोबारी से प्यार हो गया, लेकिन यहां भी उसे नाकामी मिली.
उस कारोबारी ने प्यार नहीं, बल्कि कारोबार ही किया था और खुद अर्चना की भी मंशा किसी पैसे वाले को फांस कर सेटल हो जाने की थी, जोकि पूरी नहीं हुई.
देखा जाए तो अर्चना एक भटकाव का शिकार हो चुकी थी. एक दिन यही भटकाव उसे यूं ही दुबई ले गया, जहां उस की मुलाकात अंडरवर्ल्ड के सरगनाओं से हुई, इन में से एक नाम अपने दौर के चर्चित अपराधी बबलू श्रीवास्तव का भी था.
बहुत जल्द अर्चना को तीसरी बार प्यार हुआ. बबलू श्रीवास्तव भी उस पर जान छिड़कने लगा था. लेकिन कुख्यात बबलू को यह पसंद नहीं था कि अर्चना किसी से हंसेबोले इस को ले कर अपने ही साथियों से कई बार उस का झगड़ा भी हुआ.
आजाद जिंदगी जीने की आदी हो चली अर्चना को प्यार का यह तरीका और बबलू का पजेसिव नेचर नागवार गुजरने लगा. कुछ दिनों बाद बबलू उसे ले कर नेपाल चला आया. यहां अर्चना को चौथी बार प्यार हुआ राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता दिलशाद बेग से.
अब तक अर्चना किस्मकिस्म के मर्दों से मिल चुकी थी और उन की कमजोरियां भी समझने लगी थी. दिलशाद पर उस ने अपने हुस्न और प्यार का जादू चलाया तो वह भी बबलू की तरह उस पर मरने लगा.
असल में अर्चना की मंशा दिलशाद को मोहरा बना कर बबलू से छुटकारा पाने की थी. दोनों को वह मैनेज करती रही.
साल 1994 में बबलू गिरफ्तार हुआ तो अर्चना भारत वापस चली आई और बबलू का गिरोह संभालने लगी.
अब वह एक पेशेवर मुजरिम बन चुकी थी और जुर्म की दुनिया में लेडी डौन का खिताब हासिल कर चुकी थी.
कई उद्योगपतियों को अगवा कर उस ने मोटी फिरौती वसूली. इस काम की वह स्पैशलिस्ट हो गई थी.
धीरेधीरे बबलू और उस का साथ छूट गया और अर्चना देश के कई गिरोहों के संपर्क में आई, जिन में गैंगस्टर हिंदू सिंह यादव का नाम भी शामिल था.
आए दिन अर्चना पुलिस से आंखमिचौली खेलने लगी और मध्य प्रदेश को अपना गढ़ बनाने की कोशिश करने लगी, पर बना नहीं पाई. क्योंकि पुलिस उस के पीछे थी.
अब अर्चना कहां है, यह किसी को नहीं मालूम क्योंकि उस की गतिविधियां बंद हैं और अफवाह यह भी उड़ी थी कि वह तो साल 2010 में बांग्लादेश में मारी गई. अर्चना को ले कर पुलिस कितनी परेशान थी, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक वक्त में पुलिस ने उस की बाबत 40 देशों को अलर्ट जारी किया था.
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जेनाबाई, जिस के इशारे पर अंडरवर्ल्ड डौन भी नाचते थे. अनुराधा और अर्चना तो अभी सुर्खियों में हैं, क्योंकि उन के मामले ताजेताजे हैं लेकिन देश में लेडी डौन की लिस्ट काफी लंबी है, जिन के कारनामे भी हैरतंगेज हैं और दिलचस्प भी. इस लिस्ट को देख कर लगता है कि औरतों का अंडरवर्ल्ड से पुराना नाता है और वे समयसमय पर जुर्म की दुनिया में अपनी हाजिरी दर्ज कराती रही हैं.
माफिया क्वीन जेनाबाई दारू वाली आज जिंदा होती तो उस की उम्र 100 साल होती, जिस का नाम आज भी एक मिसाल के तौर पर लिया जाता है. जेनाबाई दूसरी महिला डौनों की तरह किसी जरायमपेशा के इशारों पर कभी नहीं नाची, बल्कि उस ने कई नामी अपराधियों को इशारों पर नचाते लंबे वक्त तक राज किया.
सांप्रदायिक हिंसा और दीगर अपराधों के लिए जाने जाने वाले मुंबई के बदनाम डोंगरी इलाके, जहां की एक चाल में उस का परिवार रहता था, से शराब की तसकरी करने वाली यह लेडी डौन आला दिमाग की मालकिन और चालाक थी.
दाऊद इब्राहिम, हाजी मस्तान और करीम लाला जैसे मुंबइया डौन जिन के नाम और खौफ के सिक्के चलते थे. वे महारथी अगर किसी के इशारे पर नाचते थे तो वह जेनाबाई दारू वाली थी, जिस के दरबार में मुंबई क्राइम ब्रांच के छोटेबड़े अफसर भी सिर नवा कर दाखिल होते थे.
जेना थी तो एक दुस्साहसी और असाधारण महिला, जो आजादी की लड़ाई में भी शरीक हुई थी. उस का पति उसे छोड़ कर पाकिस्तान चला गया था, लेकिन 5 बच्चों की जिम्मेदारी जेना पर छोड़ गया था.
गरीब जेना ने पहले चावल और फिर शराब की तसकरी शुरू कर दी. कई बार वह पकड़ी गई, लेकिन छूट भी गई. इस परेशानी से बचने के लिए जेना पुलिस की मुखबिर बन गई.
उस का एक बेटा गैंगवार में मारा गया तो जुर्म से उस का जी उचट गया और वह धर्मकर्म करने लगी और 1994 में उस की मौत हो गई.
अगले भाग में पढ़ें– खतरनाक सायनाइड किलर केमपंमा