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सौजन्य- सत्यकथा

‘‘अच्छा, ऐसी अंतिम धमकियां तो तुम जाने कितनी बार दे चुके हो. तुम मेरा मुंह बंद कर के गुलछर्रे उड़ाना चाहते हो. मेरी जिंदगी, मेरी बच्ची की जिंदगी बरबाद करना चाहते हो. मैं तुम से डरने वाली नहीं. देखो, एक मैं ही हूं जो तुम्हें बारबार माफ करती हूं. कोई दूसरी औरत होती तो अभी तक तुम जेल में होते.’’ वह गुस्से में बोली.

‘‘दीपू, तुम बारबार मुझे जेल की धमकी मत दिया करो, मैं भी कोई आम आदमी नहीं, मेरी भी ऊंची पहुंच है. चाहूं तो तुम्हें गायब करवा दूं, कोई ढूंढ भी नहीं पाएगा. बहुत ऊंची पहुंच है मेरी.’’

वे दोनों इसी तरह आपस में नोकझोंक करते हुए गृहनगर बिलासपुर की ओर बढ़ रहे थे. अचानक देवेंद्र ने कार रोकी और दीप्ति की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘मैं एक मिनट में आता हूं.’’

दीप्ति ने उस की तरफ प्रश्नसूचक भाव से  देखा तो देवेंद्र ने छोटी अंगुली दिखाते हुए कहा, ‘‘लघुशंका.’’

देवेंद्र ने गाड़ी को सड़क से नीचे उतार दिया था. रात के लगभग 10 बज रहे थे, दीप्ति पीछे सीट पर बैठी हुई थी. दीप्ति ने गौर किया देवेंद्र देखतेदेखते कहीं दूर चला गया, दिखाई नहीं दे रहा था.

वह चिंतित हो उठी और इधरउधर देखने लगी. तभी उस ने देखा सामने से 2 लोग उस की ओर तेजी से आ रहे हैं. दोनों के चेहरे पर नकाब था, यह देख दीप्ति घबराई मगर देखते ही देखते दोनों उस पर टूट पड़े.

उन में एक पुरुष था और एक महिला, पुरुष ने जल्दी से एक नायलोन की रस्सी उस के गले में डाल दी और उस का गला रस्सी से दबाने लगा. इस में उस की साथी महिला भी उस की मदद करने लगी और दीप्ति का दम घुटने लगा. थोड़ी देर वह छटपटाती रही फिर आखिर में उस का दम टूट गया.

पुरुष और महिला ने मिल कर के उस का पर्स और मोबाइल अपने कब्जे में लिया. रुपए ले लिए, मोबाइल का सिम निकाला और जल्दीजल्दी उसे अपने कब्जे में ले कर के जेब में रखा. और एक झोले में लाए पत्थर से कार का शीशा तोड़ कर चले गए.

मगर उन लोगों ने यह ध्यान नहीं दिया कि इस आपाधापी में मोबाइल में लगा एक दूसरा सिम वहीं नीचे जमीन पर गिर गया है.

देवेंद्र सोनी और दीप्ति का विवाह 2003 में हुआ था. देवेंद्र के पिता रामस्नेही सोनी नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और उन का संयुक्त परिवार बिलासपुर के सरकंडा बंगाली पारा में रहता था.

देवेंद्र बीकौम की पढ़ाई कर ही रहा था कि पिता ने जिला कोरबा के उपनगर बालको कंपनी में कार्यरत कृष्ण कुमार सोनी की दूसरी बेटी दीप्ति से उस के विवाह की बात चलाई और दोनों परिवारों की सहमति से विवाह संपन्न हो गया.

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विवाह के बाद मानो देवेंद्र सोनी का असली रूप धीरेधीरे सामने आता चला गया. देवेंद्र चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने की तैयारी कर रहा था, मगर परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पा रहा था. इधर उस की आकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. अपनी ऊंची उड़ान के कारण ऐसीऐसी बातें कहता और नित्य नईनई लड़कियों से दोस्ती की बातें दीप्ति को बताता.

शुरू में तो वह नजरअंदाज करती रही, परंतु पैसों की कमी होने के बावजूद वह हमेशा अच्छेअच्छे कपड़े पहनता और नईनई लड़कियों से संबंध बनाता रहता था.

यह बात जब दीप्ति को पता चलने लगी तो दोनों में अकसर विवाद गहराने लगा. इस बीच दोनों की एक बेटी सोनिया का जन्म हुआ, जो लगभग 7 साल की हो गई थी. और बिलासपुर के एक अच्छे कौन्वेंट स्कूल में पढ़ रही थी.

रात के लगभग साढ़े 11 बज रहे थे. जिला चांपा जांजगीर के पंतोरा थाने के अपने कक्ष में थानाप्रभारी अविनाश कुमार श्रीवास बैठे अपने स्टाफ से कुछ चर्चा कर रहे थे कि उसी समय घबराए हुए 2 लोग भीतर आए.

एक के चेहरे पर मानो हवाइयां उड़ रही थीं. उन्हें इस हालत में देख अविनाश कुमार को यह समझते देर नहीं लगी कि कोई बड़ी घटना घटित हो गई है. उन्होंने कहा, ‘‘हांहां बताओ, क्या बात है, क्यों इतना घबराए हुए हो?’’

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दोनों व्यक्तियों, जिन की उम्र लगभग 30-35 वर्ष के लपेटे में थी, में से एक ने खड़ेखड़े ही लगभग कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘सर, मैं देवेंद्र सोनी 2-3 जिलों में कई प्रतिष्ठित लोगों के लिए अकाउंटेंट का काम करता हूं. मैं अपनी पत्नी दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर जा रहा था कि कुछ लोगों ने हम से लूटपाट की और मेरी पत्नी को…’’ ऐसा कह कर वह इधरउधर देखने लगा.

‘‘क्यों, क्या हो गया आप की पत्नी को… विस्तार से बताओ. आओ, पहले आराम से कुरसी पर बैठ जाओ.’’ अविनाश कुमार श्रीवास ने  उठ कर दोनों को अपने सामने कुरसी पर बैठाया और पानी मंगा कर के पिलाते हुए कहा.

अगले भाग में पढ़ें- श्रीवास ने फोन लगाया तो उस का फोन दिन भर बंद  मिला

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