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सौजन्य- मनोहर कहानियां

हरियाणा पुलिस ने हिंसा फैलाने के आरोप में राम रहीम की गोद ली बेटी और उस की कथित प्रेयसी कहीं जाने वाली हनीप्रीत को भी चंडीगढ़ से गिरफ्तार कर लिया. हनीप्रीत हिंसा होने के बाद से ही फरार थी.

फ्रीज हुए डेरा के 90 बैंक एकाउंट

साध्वियों से बलात्कार मामले में गुरमीत राम रहीम का सजा होने व गिरफ्तारी के बाद से ही डेरा सच्चा सौदा के रहस्य लोक की कहानियां सार्वजनिक होने लगीं.

इधर, डेरा सर्मथकों की हिंसा के बाद डेरा के 90 बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए. गुरमीत राम रहीम के खिलाफ एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) ने भी जांच शुरू कर दी. क्योंकि डेरा की 700 करोड़ की संपत्ति में मनी लांड्रिंग की आशंका नजर आ रही थी.

गुरमीत राम रहीम को रेप मामले में सजा होने के बाद पंचकूला और सिरसा के अलावा करीब 5 राज्यों में हिंसक प्रर्दशन हुए थे. इस मामले में दरजनों केस दर्ज हुए. चंडीगढ़ व पंचकूला में हिंसा फैलाने के मामले में डेरा प्रवक्ता दिलावर सिंह को भी देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया.

दिलावर सिंह एमएसजी ग्लोरियस इंटरनैशनल स्कूल सिरसा का एडमिनिस्ट्रेटर था. उस ने डेरामुखी के गनमैन ओमप्रकाश सिंह, डेरा सर्मथक दान सिंह व चमकौर सिंह के साथ मिल कर पंचकूला में आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया था. करीब 177 से अधिक मामले दर्ज किए गए और 1137 आरोपियों को अरेस्ट किया गया था.

बहरहाल, गुरमीत राम रहीम के पापों की कलई खुलनी शुरू हो चुकी थी और कानून ने सख्त रुख अपना लिया था. उस के खिलाफ मुंह न खोलने वाले लोग भी अब अदालत में सच बयां कर रहे थे.

एक तरफ राम रहीम साध्वियों से बलात्कार के मामले में जेल से बाहर आने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा था कि 17 जनवरी, 2019 को पंचकूला की विशेष सीबीआई के जज जगदीप सिंह  ने सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्या के मामले में भी गुरमीत राम रहीम को उम्रकैद की सजा सुना दी.

इस मामले में डेरा प्रमुख के साथ 3 अन्य लोगों कुलदीप सिंह, निर्मल सिंह और कृष्ण लाल को भी दोषी ठहराया गया था. इन्हें भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

दरअसल, सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति वकालत छोड़ कर ‘पूरा सच’ नाम से एक अखबार निकालते थे. रामचंद्र अपने अखबार के नाम की तरह ही पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे. निर्भीक छवि के रामचंद्र छत्रपति की हत्या का मामला कहीं न कहीं साध्वियों के दुष्कर्म से ही जुड़ा था.

2002 में रामचंद्र छत्रपति के हाथ वह चिट्ठी लग गई, जो गुमनाम साध्वी ने लिखी थी. रामचंद्र ने उस चिट्ठी को अपने अखबार में छाप दिया. इसी अखबार में छपी खबर के बाद लोगों को डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम द्वारा डेरे में साध्वियों के साथ दुष्कर्म करने की जानकारी मिली थी. इस खबर के छपने के बाद छत्रपति को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं.

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आखिरकार 19 अक्तूबर, 2002 की रात छत्रपति को घर के बाहर गोली मारी गई. इस के बाद 21 अक्तूबर को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उन की मौत हो गई.

हालांकि इस दौरान छत्रपति होश में आए लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण छत्रपति का बयान तक दर्ज नहीं किया गया.

दरअसल, छत्रपति अपने अखबार में डेरा सच्चा सौदा की अच्छी और बुरी खबरों को छापते थे, जिस कारण उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलती रहती थीं. यह बात सिरसा के सभी पत्रकार जानते थे.

मृतक पत्रकार के बेटे अंशुल ने हाईकोर्ट में दायर की थी याचिका

जनवरी, 2003 में मृतक के बेटे अंशुल ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मामले को सीबीआई को सौंपने की मांग की. इस याचिका में डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के  भी इस में संलिप्त होने के आरोप लगाए. सोशल मीडिया में रामचंद्र छत्रपति को इंसाफ दिए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी.

इसी दौरान डेरामुखी पर डेरे के एक पूर्व मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या के भी आरोप लगने लगे. इस मामले में भी पीडि़तों की तरफ से अदालत का दरवाजा खटखटाया गया.

हाईकोर्ट ने पत्रकार छत्रपति और डेरा मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या के मामलों को जोड़ते हुए 10 नवंबर, 2003 को सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया.

सीबीआई ने दिसंबर, 2003 में मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. मामला दर्ज होते ही डेरा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर जांच पर रोक लगाने की अपील की गई, जिस के बाद उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और मामले की जांच पर उस वक्त रोक लगा दी गई.

लेकिन नवंबर, 2004 में दूसरे पक्ष की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने डेरा की याचिका को खारिज कर दिया और सीबीआई जांच को जारी रखने के आदेश दिए.

सीबीआई ने दोबारा दोनों मामलों की जांच शुरू की और डेरा प्रमुख समेत कइयों को अभियुक्त बनाया. इसी मामले में सीबीआई कोर्ट ने गुरमीत राम रहीम समेत 4 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई.

साध्वी रेप केस मामले और पत्रकार छत्रपति हत्याकांड की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के जेल जाने के बाद से उस की खास राजदार हनीप्रीत सब से ज्यादा सुर्खियों में रही है. उस पर भी पंचकूला में दंगा भड़काने, राजद्रोह और राम रहीम को पुलिस कस्टडी से भगाने की साजिश रचने के आरोप लगे और बाद में उसे गिरफ्तार किया गया.

हालांकि कुछ महीने बाद हनीप्रीत को अदालत से जमानत मिल गई और उस के बाद हनीप्रीत ने डेरा सच्चा सौदा की कमान अपने हाथों में ले ली. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर हनीप्रीत कौन है, जो गुरमीत राम रहीम के बाद डेरा सच्चा सौदा की सब से ताकतवर बनी है.

आखिर इतना बड़ा परिवार होते हुए राम रहीम क्यों हर वक्त हनीप्रीत को याद करता रहा और हनीप्रीत से उस का क्या खास रिश्ता है.

हनीप्रीत इंसां का जन्म 21 जुलाई, 1980 को हरियाणा के फतेहाबाद में हुआ था. उस का स्कूली नाम प्रियंका तनेजा है.  प्रियंका तनेजा का पूरा परिवार करीब ढाई दशक से डेरे का अनुयायी था.

हनीप्रीत के दादा ने पाकिस्तान से आ कर हरियाणा के सिरसा में कपड़े की दुकान खोली थी. जहां गुरमीत राम रहीम के गुरु शाह मस्तानाजी आते रहते थे. तभी से उन की फैमिली डेरे की अनुयायी हो गई.

कुछ ही दिनों में हनीप्रीत के दादा डेरे के प्रशासक बन गए और वहां खजाने से संबंधित काम देखने लगे थे. 1996 में प्रियंका के दसवीं पास करते ही दादा ने उस का एडमिशन डेरे के ही स्कूल में करवा दिया.

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हनीप्रीत के पिता रामानंद तनेजा पहले पुरानी दिल्ली एमआरएफ टायर्स का ‘सर्च टायर्स’ नाम से शोरूम चलाते थे. लेकिन बाद में उन्होंने डेरे में ही एक बड़ा सीड प्लांट डाल लिया. बाद में गुरमीत राम रहीम ने उस के पिता रामानंद तनेजा को डेरा की पर्चेजिंग कमेटी का हेड बना दिया, जो डेरे के सारे सामान की खरीदफरोख्त का काम देखने लगे.

प्रियंका के भाई साहिल तनेजा को भी गुरमीत का आशीर्वाद मिल गया और वह भी डेरे में बड़े स्तर पर कारोबार करने लगा. बाद में प्रियंका की छोटी बहन नीशू तनेजा की गुरुग्राम में जो शादी हुई, उस में भी बाबा का खास योगदान रहा.

हनीप्रीत के चाचा और मामा समेत दूसरे कई रिश्तेदार सिरसा के मुख्य मार्गों पर टायरों का कारोबार करते हैं. आज भी डेरे में कई बड़े प्रोजेक्ट हनीप्रीत के नाम से चल रहे हैं.

बताते हैं कि गुरमीत राम रहीम 1996 में डेरे के स्कूल में जब छात्राओं को आशीर्वाद देने गया था तो वहां उस की नजर पहली बार प्रियंका तनेजा पर पड़ी थी. बस उसी के बाद बाबा ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि वह प्रियंका को अपना खास आशीर्वाद देने के लिए डेरे में अपने निजी कक्ष में बुलाने लगा.

बाबा की खासमखास बन गई हनीप्रीत

कुछ ही दिनों में प्रिंयका पूरी तरह बाबा के वश में हो गई. कुछ समय बाद बाबा ने उस का नया नामकरण किया और उस का नाम हनीप्रीत इंसां रख दिया. क्योंकि डेरे में सभी राजदारों व साधुसाध्वियों को ‘इंसां’ सरनेम दिया जाता है.

उम्र का काफी फासला होने के बावजूद धीरेधीरे गुरमीत राम रहीम और हनीप्रीत इंसा के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

जल्द ही हनीप्रीत बाबा की खास बन गई और उस की पहुंच बेरोकटोक बाबा के बैडरूम तक होने लगी. हनीप्रीत ने 12वीं तक की पढ़ाई डेरे के स्कूल में ही की. बाबा ने उस का डेरे से बाहर आनाजाना बंद करा दिया. डेरे में उस के लिए एक खास आवास की व्यवस्था कर दी गई और वहीं पर उस के टीचर उसे पढ़ाने के लिए आते.  इतना ही नहीं, बाबा ने हनीप्रीत के लिए एक विशेष जिम बनवा दिया. हनीप्रीत के नाम पर डेरे के अंदर एक बुटीक भी खोल दिया गया.

बताते हैं कि धीरेधीरे हनीप्रीत और राम रहीम की नजदीकियां कुछ इस तरह बढ़ गईं कि हनीप्रीत बाबा के हर राज की राजदार हो गई. हनीप्रीत अब गुरमीत की सब से करीबी बन गई थी. गुरमीत उस पर इतना मेहरबान था कि उस ने हनीप्रीत के नाम पर डेरे में कई बड़े कारोबार शुरू किए.

बताते हैं कि डेरे के अंदर बाबा और हनीप्रीत के रिश्ते को ले कर हमेशा लोगों के मन में सवाल रहते थे. लेकिन बाबा के डर से कोई अपनी जबान नहीं खोलता था, क्योंकि बाबा राम रहीम उसे लोगों के सामने अपनी बेटी, अपनी ‘परी’ कहता था. लेकिन हकीकत यह थी कि वो बाबा की ‘परी’ नहीं बल्कि बाबा की ‘हनी’ थी.

बताते हैं कि जब बाबा को लगा कि एक अविवाहित लड़की इस तरह उस की सेवा में रहेगी तो इस से उस की छवि और प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े हो सकते हैं. इसलिए उस ने 14 फरवरी, 1999 वैलेनटाइंस डे के दिन हनीप्रीत की शादी विश्वास गुप्ता से करा दी. हनीप्रीत के परिवार की तरह करनाल के रहने वाले विश्वास गुप्ता का परिवार भी बाबा का अनुयायी था. बाबा ने ही शादी की सारी व्यवस्थाएं कराई थीं. राम रहीम ने हनीप्रीत की शादी तो गुप्ता से करा तो दी, लेकिन दोनों को आदेश दिया कि वे बच्चा पैदा न करें.

अगले भाग में पढ़ें- डेरे के सारे फैसले लेने लगी हनीप्रीत

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