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सौजन्य- सत्यकथा

एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवक तेजी से सरपट दौड़ रही सफेद रंग की स्कौर्पियो कार का दूर से पीछा कर रहे थे. ओवरटेक कर के बाइक जैसे ही स्कौर्पियो के समानांतर आई, बाइक के पीछे बैठे नकाबपोश ने ड्राइवर को लक्ष्य बना कर उस के हाथ पर गोली मार दी.

गोली लगते ही स्कौर्पियो के ड्राइवर के हाथ से स्टीयरिंग छूट गया और कार लहराते हुए डिवाइडर से जा टकराई. तभी घायल ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोला. वह कार से निकल कर भागने ही वाला था कि तभी वह बाइक सवार बदमाश उस के करीब जा पहुंचे और उस से पूछा, ‘‘कार में पीछे बैठा बैंक मैनेजर शैलेंद्र ही है न?’’

दर्द से कराह रहे ड्राइवर ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. तभी हथियारबंद नकाबपोेश बदमाश ने कार में पिछली सीट पर बैठे बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा के पास पहुंच कर सिर में एक और सीने में 2 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह हवा में असलहा लहराते हुए आराम से निकल गए.

जिस समय यह घटना घटी थी, उस समय सुबह के 8 बजे थे. राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बावजूद सड़क पर सन्नाटा पसरा था.

सड़क पर खून से लथपथ युवक को दर्द से कराहता देख कर कुछ बाइक वाले वहां रुके तो ड्राइवर ने उन से मदद मांगी और 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को देने का अनुरोध किया.

ड्राइवर ने अपना नाम अनिल बताया और कहा कि बदमाशों ने कार में बैठे उस के मालिक को भी गोली मारी है.

यह घटना बिहार के नालंदा जिले की फतुहा थाना क्षेत्र के भिखुआचक राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 जून, 2021 को सुबह 8 बजे के करीब घटी थी.

इस के बाद भीड़ में से एक व्यक्ति ने 100 नंबर पर फोन कर घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलते ही फतुहा थाने के थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.

कार चालक अनिल डिवाइडर के किनारे बैठा दर्द से कराह रहा था. उस के दाएं हाथ से खून लगातार बह रहा था. कार में पिछली सीट पर खून से लथपथ रिटायर्ड बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की लाश पड़ी हुई थी.

क्राइम सीन देख कर ऐसा लग रहा था कि बदमाश ने शैलेंद्र को करीब से गोली मारी थी. छानबीन में पुलिस को 7.65 एमएम का एक खोखा कार में से बरामद हुआ था.

साक्ष्य के तौर पर पुलिस ने खोखे को अपने कब्जे में ले लिया. इस बीच थानाप्रभारी मनोज कुमार ने एसपी (ग्रामीण) कांतेश कुमार मिश्र और एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा को इस घटना की जानकारी दे दी थी. घटना की जानकारी मिलते ही दोनों  पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए.

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एक बात पुलिस अधिकारियों को खटक रही थी कि बदमाशों ने चालक को क्यों छोड़ दिया? उस की हत्या क्यों नहीं की? कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं है?

गोली लगने से चालक अनिल की हालत बिगड़ती जा रही थी. इसलिए पुलिस ने उसे जल्द से जल्द जिला हौस्पिटल भेज दिया ताकि उस के जरिए बदमाशों तक आसानी से पहुंचा जा सके. शैलेंद्र कुमार की हत्या का वही एक चश्मदीद गवाह था.

बेहतर इलाज के बाद चालक अनिल के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ तो उसी शाम 3 बजे के करीब थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह बयान लेने जिला अस्पताल पहुंचे, जहां वह भरती था.

‘‘कैसे हो अनिल? अब कैसा फील कर रहे हो?’’ थानाप्रभारी मनोज कुमार ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सर, पहले से बेहतर हूं और अच्छा महसूस कर रहा हूं.’’ अनिल ने बताया.

‘‘अच्छा बताओ कि यह कैसे और क्या हुआ था?’’

‘‘साहब, मैं कार चला रहा था कि तभी साइड से आए एक बाइक वाले ने मुझे गोली मारी जो हाथ में लगी. गोली लगते ही कार की स्टीयरिंग मेरे हाथ से छूट गई और कार डिवाइडर से जा टकराई. फिर बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश बदमाश ने मुझ से पूछा कि कार में बैठा क्या शैलेंद्र यही है. मैं ने हां कह दिया. मेरे हां कहते ही उस बदमाश ने साहब को गोलियों से भून डाला और फरार हो गए.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह! बाइक पर कितने बदमाश थे.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, 2.’’ उस ने बताया.

‘‘दोनों बदमाशों में से किसी का चेहरा याद है तुम्हें?’’ उन्होंने अगला सवाल किया.

‘‘नहीं, साहब. कैसे चेहरा देखता, जब दोनों के चेहरे नकाब से ढके थे.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह!’’ थानेदार मनोज कुमार ने एक लंबी सांस छोड़ी, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम आ कहां से रहे थे?’’

‘‘नालंदा के गड़पर स्थित प्रोफेसर कालोनी से आ रहे थे. साहब के छोटे बेटे मनीष गुवाहाटी से पटना आ रहे थे. उन्हें ही रिसीव करने साहब को ले कर पटना जा रहा था कि…’’ कह कर अनिल रोने लगा.

‘‘तुम्हारे साहब के घर में कौनकौन रहता है और तुम्हारे यहां आने की जानकारी किस किस को थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब के साथ मेमसाहब और उन का बड़ा बेटा पीयूष रहते हैं. पीयूष दिव्यांग हैं. मेम साहब और पीयूष बाबा के अलावा किसी को भी इस की जानकारी नहीं थी.’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है. अभी तो मैं चलता हूं बाद में आ कर फिर तुम से मिलूंगा.’’

थानेदार मनोज कुमार सिंह ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र से पूछताछ कर वहां से थाने लौट आए थे. इधर शैलेंद्र कुमार की हत्या की जानकारी मिलते ही उन के घर में कोहराम छा गया था. मृतक शैलेंद्र कुमार की पत्नी सरिता देवी का रोरो कर बुरा हाल था.

ससुर की हत्या की जानकारी जैसे ही दामाद पवन कुमार को हुई, वह भागाभागा मोर्चरी पहुंचा, जहां पोस्टमार्टम के बाद लाश मोर्चरी में रखी हुई थी. गुवाहाटी से पटना आ रहे बेटे मनीष को रास्ते में ही फोन से पिता की हत्या की जानकारी दे दी गई थी, इसलिए वह भी सीधा मोर्चरी पहुंच गया था.

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इस बीच में पुलिस ने मनीष की तरफ से 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. बेटा, दामाद और रिश्तेदारों ने मिल कर शैलेंद्र कुमार का गंगा के किनारे श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया और अपनेअपने घरों को लौट आए. फिर मनीष जीजा पवन के साथ घर देर रात पहुंचा.

बेटे को देख कर मां की आंखें फफक पड़ीं तो मनीष भी खुद को रोक नहीं पाया. मां को रोता देख उस की आंखें बरस पड़ीं. रोतेरोते दोनों एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे.

पलभर के लिए वहां का माहौल एकदम से फिर गमगीन हो गया था. दामाद पवन कुमार कुछ देर वहां रुका. उस ने सास और साले को समझाया और फिर रामकृष्णनगर, पटना अपने किराए के कमरे पर वापस लौट गया.

अगले दिन थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह हत्या की गुत्थी सुलझाने और जानकारी लेने के लिए गड़पर प्रोफेसर कालोनी में स्थित मृतक शैलेंद्र कुमार के आवास पहुंचे. घर में वैसे ही मातम छाया हुआ था.

घर का गमगीन माहौल देख कर थानाप्रभारी का मन द्रवित हो गया. वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि बैंक मैनेजर की पत्नी से कैसे पूछताछ करें, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी होती है. उसे पूरा तो करना ही था.

उन्होंने मृतक की पत्नी सरिता देवी से हत्या के संबंध में कुछ जरूरी सवाल पूछे. सरिता देवी के जवाब से इंसपेक्टर मनोज कुमार सिंह को ऐसा कहीं नहीं लगा कि उन की किसी से कोई दुश्मनी हो. उन के जवाब से एक बात साफ हो गई थी कि पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी.

निश्चित ही उन का कोई ऐसा अपना था, जिसे उन की गतिविधियों के बारे में पलपल की जानकारी थी. उसी अपने ने बदमाशों के साथ मुखबिरी का खेल खेला और उन की जान ले ली.

सरिता देवी से पूछताछ करने के बाद विवेचनाधिकारी मनोज सिंह थाने वापस लौट आए थे.

रास्ते भर में वे यही सोच रहे थे कि आखिर वह कौन हो सकता है, जिस ने मुखबिर की भूमिका निभाई होगी और उन की हत्या से किस का क्या लाभ हुआ होगा?

हत्या की गुत्थी एकदम से उलझती चली जा रही थी. इस के सुलझाने का एक आखिरी रास्ता काल डिटेल्स ही बचा था.

अगले भाग में पढ़ें- तीनों आरोपियों ने भी अपने जुर्म कुबूल कर लिए

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